कंप्यूटर पर काम करते हुए अक्सर लोगों के मन में सवाल आता है कि हमारी ज़िंदगी में भी कंट्रोल (control), अन्डू (undo), डिलीट (delete) जैसे बटंस (buttons) या कमांड क्यों नहीं हैं? क्या आप जानते हैं कि अगर हम चाहें तो अपनी ज़िंदगी में भी इन कमांड्स का भरपूर इस्तेमाल कर सकते हैं? न्यूरोसाइंस के मुताबिक, दिमाग से पुरानी चीज़ों को डिलीट कर हम नई चीज़ों के लिए जगह बना सकते हैं। यही बात दिल पर भी लागू होती है। खुशी की चाहत है तो दिल और दिमाग से एक्सट्रा चीज़ों को बाहर करना ही होगा।
नेगेटिविटी को कहें गुडबाय
कई बार हमारे दिलोदिमाग में कुछ ऐसी बातें फीड हो जाती हैं, जो सालों तक हमें परेशान करती रहती हैं। मसलन, कुछ सालों पहले आपके साथ कोई दुर्घटना घटी, जिसके बारे में आप खुलकर किसी से बात नहीं कर पाए या किसी ने आपसे या आपके बारे में कुछ कहा, जो अधपका सच था और जिसके बारे में जानकर आप उसे भुला ही नहीं पाए। अपने दिल या दिमाग में किसी भी बात का बोझ रखना हमारी सेहत पर बहुत बुरा असर डालता है। जितना भी हो सके, नकारात्मक विचारों से दूर रहें और दिल के बोझ को कम करने के लिए उसे किसी के साथ बांटें ज़रूर। हालांकि, कई बार हम चाह कर भी अपनी बातों को स्पष्ट रूप से किसी के सामने नहीं रख पाते और उनके कारण अंदर ही अंदर घुटते जाते हैं। अगर आपके साथ भी ऐसा है तो अपने विचारों को डायरी में लिखना शुरू कर दें या किसी मनोचिकित्सक से बात कर उन्हें अपनी ज़िंदगी से गुडबाय कहें।
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हिचकिचाने से बिगड़ेगी बात
किसी को खुश रहने की सलाह देना और खुद खुश रहने में काफी फर्क है। कई बार हम अपने बेहद प्रिय व करीबी लोगों से भी अपने दिल का सही हाल बयां नहीं कर पाते हैं। इसकी वजह है, उनका आपमें ज्यादा रुचि न लेना और आपका ज़रूरत से ज्यादा संकोची होना। दिल में गुबार इकट्ठा करते रहने से बेहतर है कि आप अपना हाल-ए-दिल उन्हें सुना दें।
माइग्रेन का कारण और इलाज जानकर तनाव को कहें गुडबाय
हो सकता है कि किसी बात को कहने-सुनने से रिश्ते में थोड़ी नाराज़गी आ जाए पर कम से कम वह अस्थायी तो रहेगी। उस एक बात का आपके दिल और दिमाग पर कितना गहरा असर पड़ रहा है, यह आपसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता। इसलिए, उसे दिमाग के किसी फोल्डर में सेव करने के बजाय तुरंत डिलीट करें। ऐसी बातों को तो दिमाग के रीसाइकिल बिन से भी मिटा देना चाहिए।
खुद से करें दोस्ती
ज़िंदगी में हम जितना भी तनाव लेते हैं, उसका असर कहीं न कहीं हमारे स्वास्थ्य पर ज़रूर पड़ता है। आजकल बेहद कम उम्र के लोगों में याददाश्त संबंधी समस्याएं देखी जा रही हैं। बचपन से हम जिस प्रतिस्पर्धा वाला जीवन जीने की आदत डाल लेते हैं, वह दरअसल, तनाव को आकर्षित करने का एक ज़रिया है।
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छोटी उम्र में पढ़ाई का तनाव, फिर प्रोफेशनल लाइफ में खुद को सेटल करने का तनाव और फिर दोस्ती व रिश्तों का तनाव तो उम्र के हर पड़ाव में साथ रहता ही है। इन सबके बीच में हम खुद को कहीं खो देते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि सबकी उम्मीदों पर खरा उतरने के साथ ही हमारी खुद के प्रति भी कुछ ज़िम्मेदारी ज़रूर बनती है। इसलिए दिन का कुछ समय अपने साथ भी ज़रूर बिताएं। असली खुशी पाने के लिए खुद को ट्रीट दें, हंसने के बहाने देखें, अपने प्रिय लोगों से मिलें-जुलें और दूसरों की मुस्कुराहट की वजह भी बनें।
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