टीनएज बच्चों को कैसे सिखाएं परिवार का महत्व – Importance of Family in Hindi
बच्चे के लिए तो सारी दुनिया उसके पेरेंट्स के इर्द-गिर्द ही सिमटी होती है, लेकिन इस बात की अहमियत समझने की भी ज़रूरत है कि हर रिश्ते का अपना महत्व होता है। (family values in hindi) सो अपने बच्चे को पहले खुद समझें और फिर उसे परिवार का महत्व (parivar ka mahatva) समझाएं, लेकिन उसका मनोविज्ञान पूरी तरह से समझते हुए। आइए जानें कुछ इसी बारे में-
सबसे पहले पहचानिए बच्चे का मिज़ाज – Bacchon ko Kaise Samjhe
सबसे पहली बात तो यही है कि कभी भी अपने टीनएज किड, यानी किशोर होते बच्चे की तुलना किसी भी दूसरे बच्चे से न करें। आमतौर पर होता यही ही कि ज्यादातर परिवारों में बड़े इन बच्चों से सामान्य बातचीत की बजाय हर समय कोई न कोई टोका-टोकी, उलाहना या जानकारियां देने में ही निकाल देते हैं। बेशक बच्चे को समझदारी भरी बातें समझानी भी ज़रूरी है, लेकिन अगर हर समय यही किया जाएगा तो बच्चे परिवार से खुद ब खुद दूर होने लगेंगे। अधिकांश बड़े लोगों की जुबान पर ये जुमला बड़ी आसानी से आ जाता है कि हमारे ज़माने में तो ऐसा होता था, वैसा होता था। आज के बच्चों में तो ये बात ही नहीं है। हर ज़माना अलग होता है, हर हालात अलग होते हैं और हर बच्चा अलग होता है। कोई बच्चा अपने मिज़ाज से अंतर्मुखी होता है तो कोई बेहद तेज़तर्रार-हाज़िरजवाब, कोई पढ़ाई-खेल-कूद हर बात में अव्वल रहता है तो किसी की कोशिशें देर से रंग लाती हैं। ऐसे में अपने बच्चे को कुछ भी कहने या बताने से पहले ये ज़रूर जान लें कि आपके बच्चे का मूल स्वभाव क्या है।
दोस्ती कीजिए बच्चे के दोस्तों से
ये एक बहुत बड़ा सच है कि हर रिश्ते को हमें ज्यों का त्यों स्वीकार करना होता है, लेकिन दोस्त हम अपनी मर्ज़ी से चुनते हैं। ये बात तो बड़ों तक पर लागू होती है, इसलिए अगर आपका बच्चा न सिर्फ अपने दोस्त ही खुद चुनता है, बल्कि उन्हें ज्यादा महत्व भी देता है, उनके साथ ज्यादा वक्त भी बिताता है तो इस बात में आपके परेशान होने का कोई कारण नहीं है। बच्चे की सही संगत की चिंता ज़रूर कीजिए, क्योंकि बच्चे बहुत सी सही-गलत आदतें भी दोस्तों की संगत में ही सीखते हैं, लेकिन ऐसा करने के लिए तरीका सही अपनाइए। सबसे अच्छा तरीका तो यही है कि समय की ताल से ताल मिलाकर परिवार का प्यार दे और उसके दोस्तों के दोस्त बन जाएं। यकीन कीजिए, आजकल के बच्चे तो जानकारियों और सूचनाओं के चलते-फिरते इनसाइक्लोपीडिया हैं। आप न सिर्फ उन्हें ही बहुत-कुछ सिखा सकते हैं, बल्कि खुद भी उनसे बहुत-कुछ सीख सकते हैं।
समझदारी ही नहीं, शरारतें भी कीजिए साझा
ये भी कितना दिलचस्प होता है न कि जब हम छोटे होते हैं तो जल्दी-जल्दी बड़े होना चाहते हैं और एक बार जब बड़े हो जाते हैं तो ताउम्र बचपन की शरारतों और बेफिक्री को याद करके बचपन की याद करके आहें भरते हैं। हम आपको एक बात बताएं, बड़े होकर भी अगर आप फिर से बच्चा बनना चाहते हैं तो ये बहुत ही आसान है। बस अपने बच्चों के साथ बच्चा ही बन जाइए। बेशक उन्हें हर वह जानकारी, ज्ञान औऱ संस्कार ज़रूर दीजिए, जिसकी ज़रूरत आपके बच्चे को भविष्य में पड़ेगी, लेकिन भविष्य के लिए वर्तमान को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ मत कीजिए। करने दीजिए अपने बच्चे को कभी जम के शरारतें भी औऱ खुद भी उसकी शरारतों के साझीदार बन जाइए। ये न सिर्फ आपकी बढ़ती उम्र का रूख़ पीछे मोड़ देगी, बल्कि बच्चे और आपके बीच में एक मज़बूत बॉन्डिंग भी बन जाएगी उम्र भर के लिए।
तारीफ का असर होता है गहरा
जी हां, परिवार का प्यार और तारीफ़ भी एक बहुत मोटिवेशनल चीज़ होती है, चाहे ये किसी भी उम्र में क्यों न की जाए या पाई जाए। दरअसल, तारीफ़ का मतलब होता है कि आप भी कुछ हैं, आप भी कुछ जानते हैं, आप में भी कुछ ख़ास है, आपमें भी है कुछ बात। अब अगर तारीफ़ बच्चे की हो तो इसकी बात ही क्या। होता क्या है कि बढ़ती उम्र के बच्चे, यानी टीनएजर्स को हर कोई, कुछ न कुछ सिखाना ही चाहता है। ये अच्छी बात है, लेकिन इस बात पर भी तो यकीन ज़रूरी है कि जो कुछ वह सीख चुका है, वह भी तो काबिलेतारीफ है। उसके कामों की, गुणों की, शौक की तारीफ उसकी बढ़ती उम्र में खाद-पानी का काम करेगी। यकीन न हो तो आज़मा लीजिए।
विश्वास को दीजिए संस्कारों का आधार
टीनएजर्स को लेकर उनके पेरेंट्स की चिंता समझना आसान है। जैसाकि हमने पहले कहा कि टीनएजर्स न तो इतने छोटे होते हैं कि उन्हें कुछ भी कह दिया जाए, न ही इतने बड़े होते हैं कि कुछ भी कहा ही न जाए। इसके लिए ज़रूरी है कि बच्चे की परवरिश में उन पर विश्वास को भी गहरी जगह दीजिए। उन्हें सही-गलत का फर्क ज़रूर बताइए, लेकिन साथ ही उन्हें ग़लती करने की छूट और हक भी दीजिए। हर समय उनके लिए स्पाई कैमरा बनने की बजाय जरूरी है कि आप उन्हें थोडी छूट भी दें। अगर आपने अपनी परवरिश में ये सीख शामिल रखी है कि वे सही-गलत के बीच फर्क कर सकें तो अपने और बच्चे के रिश्ते को विश्वास का आधार भी दीजिए। अगर वे कहीं गलत भी हुए तो क्या हुआ, आप है न उनके साथ। यकीन कीजिए, यही यकीन आपके बच्चे की नींव मज़बूत करेगा।
महसूस कराइए रिश्तों का मैग्नेट
आज के समय में सबसे ज़्यादा अभाव भी समय का ही है। कभी पेरेंट्स के पास बच्चे को देने के लिए सुविधाएं तो होती हैं, मगर समय नहीं तो कभी बच्चों को ही पेरेंट्स या रिलेटिव्स की कंपनी बोर लगने लगती है। वे अपने रिश्तेदारों-परिचितों या माता-पिता से बैठकर बात करने की बजाय फोन पर या सोशल मीडिया पर चैट करना ज्यादा पसंद करते हैं। इसके लिए दोष उन्हें मत दीजिए औऱ दोष खुद को भी मत दीजिए, क्योंकि जब, जो कुछ हुआ उसके कारण रहे होंगे। हां, मगर अब कोशिशों से इस खाई को पाटा जा सकता है। समय रहते ही ऐसी स्थिति के आने को रोका जा सके तो इसके लिए कोशिश भी समय रहते ही करनी पड़ेगी। अगर आप सचमुच चाहते हैं कि आपके बच्चे रिश्तों को अहमियत दें (family values in hindi), समय दें, सम्मान दें तो उन्हें बचपन से ही इन रिश्तों की मिठास का ज़ायका चखने दीजिए। कोशिश कीजिए कि उनके भाई-बहुन ही उनके बेस्ट फ्रैंड्स भी बन जाएं। बच्चे बड़ों के साथ साझेदारी में हिचक महसूस न करें। अलग-अलग रिश्तों से जुड़े एहसास क्या होते हैं, इसके लिए उनके बचपन को इन रिश्तों से जुडी इतनी यादें दे डालिए कि समय उन्हें धुंधला ही न कर पाए।
दूर भी जाने दें पास आने के लिए
किसी को सही से देखना हो तो ज़रूरी होता है कि उससे थोड़ी सी दूरी से बात की जाए। नज़दीकी इतनी भी नहीं होनी चाहिए कि पास का चेहरा भी धुंधला बन जाए। जी हां, अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा आपके पास रहे तो कभी-कभी उसे थोड़ा दूर भी कीजिए. दरअसल ये दूरी, दूरी नहीं होती, बल्कि सच कहें तो एक-दूसरे का ब्रीदिंग स्पेस होती है और बढ़ते बच्चों, यानी टीनएजर्स के लिए तो ये बहुत ज़रूरी भी होती है, क्योंकि चाहे लाख अपनाइयत हो, कुछ बातों के लिए बच्चे अपना पर्सनल स्पेस चाहते ही हैं। उन्हें ये दीजिए। अगर वे अपने दोस्तों के साथ कोई ट्रिप या गैदरिंग प्लान कर रहे हैं तो उन्हें हमेशा मना मत कीजिए। यहां तक कि अगर कभी-कभी वे अकेले ही रहना पसंद करते हैं, तब भी समय-समय पर उनकी इस भावना का आदर कीजिए। कभी-कभी नज़दीकियां दूरियों में भी छिपी होती हैं।
बच्चे को बंधुवा मत महसूस कराइए
ये बात ठीक है कि बच्चों के प्रति की गई टोका-टाकी भी दरअसल उनके प्रति प्यार औऱ चिंता का ही एक रूप होता है, लेकिन ये बात बड़े समझते हैं। बच्चों से हर बार इस बात को समझ लेने की उम्मीद मत कीजिए। आपकी हर वक्त की टोका-टाकी या हर बात पूछ कर ही करवाना उन्हें चिड़चिड़ा बना सकता है। यहां तक कि ये इसका असर उनके आत्मविश्वास पर भी पड़ सकता है, क्योंकि सही करने की सलाहियत गलत करने के बाद औऱ ज्यादा मजबूत हो जाती है, लेकिन आपके द्वारा की जा रही रोक-टोक उसे गलतियां तो करने ही नहीं देगी तो कहां से आएगी ये मजबूती। बच्चों का कभी-कभी कुछ फैसले खुद लेने दीजिए। यहां तक कि अगर वे खुद ऐसा न करके हर बात में आपका मुंह देखने लगते हैं तो आप खुद पहल करके उन्हें फैसला लेने के ले प्रोत्साहित करें। ये उनके मजबूत औऱ सही विकास के लिए ज़रूरी भी है।
बच्चों को परिवार से जोड़े रखने के एक्सपर्ट टिप्स
बच्चों का मन समझ पाना कोई बच्चों का खेल नहीं है। बेहद मुश्किल काम है एक अच्छी पेरेंटिग। ऐसे में जब बात हो बच्चों को परिवार का महत्त्व (parivar ka mahatva) बताने और उससे जोड़े रखने की तो एक एक्सपर्ट की सलाह से बेहतर और क्या हो सकता है। आइए जानते हैं एक्सपर्ट द्वारा बताए कुछ टिप्स, जो करेंगे फैमिली औऱ बच्चे के रिलेशन फिक्स –
- अपने बच्चे की सुरक्षा जरूर सुनिश्चित कीजिए, लेकिन उसके लिए उसे हर वक्त घेरे रखने की जरूरत नहीं है।
- बच्चे को सही-गलत का फर्क जरूर समझाइए, लेकिन उसकी हर बात को इसी सही-गलत के तराजू में मत तोलिए।
- बच्चे को गलती करने का अधिकार भी दीजिए। साथ ही उसे ये विश्वास भी दीजिए कि अगर वह कहीं कोई गलती करता है या लड़खड़ाता है, फेल साबित होता है, तब भी आप उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।
- बच्चे को थोड़ा समय ऐसा भी दें, जब वह आपकी नहीं, बल्कि पूरी तरह से सिर्फ अपने मन की सुनें और करे।
- बच्चे की शरारत और जिद को समझिए और कभी भी इसे बढ़ावा देने का काम मत कीजिए।
- परिवार में अनुशासन जरूरी है, इसलिए कोशिश करें कि कभी भी परिवार के एक सदस्य द्वारा की जा रही बात का विरोध बच्चे के सामने ही परिवार के दूसरे सदस्य करने लगें।
- बच्चे को ये जरूर महसू कराएं कि आप उसकी हर जरूरत तो पूरा करेंगे, लेकिन उसके जिद कर लेने भर से हर गलत बात नहीं मानी जाएगी। साथ ही बच्चे को भी ये एहसास होना चाहिए कि आप उसके लिए कितनी कड़ी मेहनत करते हैं, ताकि वह श्रम का मूल्य समझ सके।
- बच्चे में बचत करने की आदत विकसित करें। साथ ही उसे अपने पैसों का सही उपयोग करने की शिक्षा भी दें।
- बच्चे को सिर्फ अपने तक सीमित नहीं रखिए, बल्कि उसे और रिश्तों की नजदीकी भी महसूस होने दीजिए।
- बच्चे की छोटी-छोटी कोशिशों और कामों को भी सराहिए। इससे उसके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी।
- कभी भी अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चे से मत कीजिए।
- बच्चे के दोस्तों को भी अपना दोस्त बना लीजिए।
- बेहतर होगा कि आप बच्चे को हर समय कुछ न कुछ सिखाते रहने के अलावा कभी-कभी उसके साथ ऐसा समय भी बिताएं, जब उसी पल में जीकर, जो हो रहा है, होने दें।
- बच्चे में शुरू से ही अपने आस-पास के वातावरण, परिवेश और चीजों के पास संतुलन और संवेदनशीलता पैदा कीजिए।
टीनएज बच्चे को परिवार से जोड़ने के संबंध में पूछे गए कुछ सवाल और जवाब
जैसाकि आपने खुद कहा कि आपका बच्चा काफी समझदार है, लेकिन उसके व्यवहार में कभी-कभी ही बचपना झलकता है तो यह बड़ा ही स्वाभाविक है, क्योंकि आखिरकार है तो वह बच्चा ही। अगर ज्यादातर मौकों पर वह संयम औऱ समझदारी से काम लेता है तो कुछ जगहों पर यह बात आप पर निर्भर करती है कि आप उसकी उम्र को समझते हुए, उसे कितनी शरारतों की इजाज़त दे सकते हैं। एक दौर, एक उम्र शरारतों के नाम भी तो होनी चाहिए, बाकी शरारतों के लिए तो तमाम उम्र है ही। हां, बस ये ख़्याल रखने की ज़रूरत है कि आपके बच्चे का व्यवहार किसी बड़े अनुशासन का उल्लंघन न हो। अगर ऐसा होता है तो सबसे पहले ज़रूरी है कि आप उसके मूल कारण को समझें। याद रखिए, हर समस्या का हल उसके कारण में ही छिपा होता है।
इस बात को वाकई आसानी से समझा जा सकता है कि एक ऐसा परिवार, जिसने इस बच्चे के लिए काफ़ी समय तक इंतज़ार किया था, अब उसके आ जाने के बाद उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। आपकी बेटी खुशकिस्मत है कि इस न्यूक्लियर फैमिली के ज़माने में उसे भरे-पूरे परिवार का प्यार मिल रहा है। यह आगे चलकर उसके भावनात्मक विकास पर गहरा असर भी डालेगा। यहां ध्यान सिर्फ इस बात का रखे जाने की ज़रूरत है कि यह लाड़-प्यार कहीं इतना भी ज़्यादा न हो जाए कि बच्चे की ज़िंदगी से अनुशासन पूरी तरह से ही ग़ायब हो जाए। आपको ये बात समझनी होगी कि किसी भी बच्चे के स्वस्छ व उन्नत विकास में प्यार और अनुशासन, दोनों का ही बहुत महत्व होता है। यही बात अपने घरवालों को भी समझाइए कि उनका बहुत ज़्यादा लाड़-प्यार कहीं बच्चे की ज़िंदगी बनाने की बजाय, उसे ज़िद्दी और अनुशासनहीन बना कर बिगाड़ न दे। सिर्फ प्यार जताने के लिए बच्चे की ग़लत बातों को न तो खुद मानिए और न ही परिवार के दूसरे लोगों को मानने दीजिए। इस बारे में आपको घरवालों से भी बात करनी चाहिए और बच्चे को भी ये बात समझानी चाहिए कि आप जो भी करेंगे, उसमें उसी का हित है। हालांकि किसी भी बच्चे को ये बात समझा पाना भी अपने-आप में एक मुश्किल काम है, पर ये समझाने के लिए सिर्फ इतना काफी है कि आप उसकी फर्माइश तो पूरी कीजिए, मगर ज़िद नहीं।
आमतौर पर बच्चों का अपनी हमउम्र बच्चों, खासकर कज़िंस वगैरह से घुल-मिल जाना बड़ी आम सी बात है, लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो सबसे पहले इसके मूल कारण को समझना होगा। दरअसल, बच्चे बहुत से मामलों में अपने बड़ों का अनुकरण करते हैं, इसलिए सबसे पहले तो ये देखना होगा कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि परिवार के बड़ों के रिश्तों में भी ज़्यादा मिठास नहीं है। लोग अपने-अपने में सिमटे हुए हैं या कभी-कभी किसी रूप में बच्चों के सामने ही कोई ऐसी बात हुई हो कि उस दूरी को अब तक दूर नहीं कर पाए हैं। ये भी मुमकिन है कि परिवार के बड़े बच्चों के साथ छोटे बच्चों को कोई समस्या हो। इस दूरी को पाटने के लिए आपको अपनी तरफ से कोशिश करनी होगी। ऐसे प्रयास करने होंगे, जि बच्चों को एक-दूसरे के नज़दीक लाएं, जैसे- कभी उन्हें एक साथ कहीं घूमाने ले जाएं, कोई गेम साथ-साथ खिलाएं, एक-दूसरे का ख्याल रखने और मेल-जोल बढ़ाने के लिए भी उन्हें प्रोत्साहित करें। इनका फ़ायदा आपको ज़रूर मिलेगा।
तकनीक के इस दौर में सभी के साथ ये आम समस्या हो गई है कि वे आपस में समय बिताने की बजाय टेक्नीकल चीज़ों के ज्यादा करीब हो गए हैं। इसके लिए आप अपने घर में एक ऐसा समय और स्थान तय कर सकती हैं, जब सभी बाकी चीजों से दूरी बनाकर सिर्फ आपस में एक-दूसरे से बातें करें, एक-दूसरे के साथ समय बिताएं। ऐसा आप ब्रेकफास्ट या डिनर टाइम पर भी कर सकती हैं या फिर अपनी सुविधा से कोई भी समय चुन लीजिए। ख्याल बस इतना रखना है कि जो बातें आप अपने बच्चे से मनवाना चाहते हैं, वह नियम आपको खुद पर भी लागू करना पड़ेगा। इसके अलावा आप अपने बच्चे के लिए ज्ञान और मनोरंजन के दूसरे ज़रिये भी उपलब्ध करवाइए। जरूरी नहीं है कि सब कुछ सिर्फ तकनीक पर ही निर्भर करे। इसके और भी बहुत से स्रोत हैं।
जहां तक बात है बच्चे की सुरक्षा की तो वहां तक तो आपकी चिंता को समझा जा सकता है, लेकिन आज के समय में हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग की न तो जरूरत है, न ही गुंजाइश। आप अपने बच्चे को सही-गलत का फर्क तो सिखाइए, लेकिन साथ ही उसकी निजता के अधिकार की अहमियत भी समझिए। उसे कुछ वक्त अकेले भी गुजारने दीजिए। अपने घर में एक ऐसा वातावरण बनाइए, जिसमें आपका बच्चा खुलकर आपसे हर बात शेयर कर सके। हो सकता है कि जिस पल वह अपनी सारी बातें आपको बता रहा हो, उस समय पर आपको कुछ चीजें सुनकर अच्छी न लगें, लेकिन ये बहुत जरूरी है कि आप उस वक्त संयम और समझदारी से काम लेते हुए, बिना जजमेंटल हुए उसकी पूरी बात सुनें। अगर आप उसे बीच में ही टोक देंगे या सही-गलत समझाने की कोशिश करेंगे तो हो सकता है कि वह आगे से आपको कुछ भी बताने से हिचके। (ये लेख जाने-माने मनोवैज्ञानिक डॉक्टर समीर पारिख से बातचीत पर आधारित है।)