अपने माता-पिता को खोने का दुख वही समझ सकता है जिसने अपने माता-पिता को वास्तव में खो दिया हो। दुनिया में सिर्फ माता-पिता ही ऐसे होते हैं जो एक बार खो जाएं तो कभी नहीं मिलते और न ही कभी उनकी कमी को पूरा किया जा सकता है। हालांकि यह भी सच है कि किसी के जाने से ज़िंदगी रुकती नहीं है और आपको आगे बढ़ना ही होता है। इसके लिए आप किसी दोस्त या परिजन से बात करें। इससे आपके मन में चल रही हलचल शांत हो सकती है और आप अपने दुख से उबर पाएंगे। एक समय के बाद आपको स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि नियति के आगे आप बेबस हैं और आपके हाथ में कुछ नहीं है ।
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परिजनों को खोने के दुख का सामना कैसे करें – How to Overcome Loss of a Loved One
किसी क़रीबी व्यक्ति को खोने की पीड़ा बहुत अधिक हो सकती है। उस समय कैसा लगता है, यह कोई सोचना भी नहीं चाहता लेकिन कभी न कभी जीवन में इस दुख का सामना करना पड़ता है और खुद को संभालना भी पड़ता है। दर्द, दुखद यादें या ऐसे सवाल, जिनके जवाब नहीं मिले हों, आपका पीछा ही नहीं छोड़ते हैं। आपको लग सकता है कि अब कुछ भी पहले जैसा नहीं होगा – आप कभी भी हंस नहीं पाएंगे या संपूर्ण नहीं हो पाएंगे। लेकिन फिर धीरे-धीरे समय बीतता है और आप पुरानी यादों को दिल में रखकर जीने लगते हैं। आज हम आपको कुछ टिप्स बता रहे हैं जिन पर अमल करके आप भी अपने दर्द को कुछ कम कर सकते हैं।
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जब भी हम दर्द में होते हैं तो हमारे आंसू अपने आप बहने लगते हैं। ऐसे में आंसुओं को बहने दीजिए। कभी रोने में हिचकिचाइए मत, चाहे आप ऐसा आम तौर पर नहीं करते हों। उस समय दिल में जितना भी दर्द है, उसे बाहर निकालें और खुलकर आंसू बहाएं। याद रखिए कि पीड़ा को सहने या उसको व्यक्त करने का कोई सही या गलत तरीका नहीं होता है। महत्वपूर्ण यह है कि आप दर्द को पहचान लें और फिर उस पर काम करें। आप यह कैसे करेंगे, यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है और यह हर एक के लिए अलग-अलग हो सकता है।
अपनी भावनाओं को दूसरों के साथ बांटिए
किसी भी तरह के कष्ट में हमेशा ऐसे लोगों के आस-पास रहना चाहिए जो आपका ध्यान रख सकें। अगर आपको यह चिंता हो कि आपकी बातें सुन कर सामने वाला व्यक्ति परेशान हो जाएगा या उलझन में पड़ जाएगा तो आप उन्हें पहले से ही अपने दुख व स्टेट ऑफ माइंड के बारे में अवगत करा दें। बस उनको यह पता चल जाने दीजिए कि आप दुखी, चिंतित और उलझन में हैं। ऐसे में आप जो भी कहेंगे, हो सकता है कि उसमें से कुछ का मतलब नहीं निकल पाए मगर आप चाहते हैं कि कोई आपकी बात सुन सके।
ऐसा मत सोचिए कि अगर मैं किसी से बात करूंगा तो कोई मेरी बात का उल्टा मतलब निकालेगा। यह सोचिए कि बात करने से आपका मन हल्का होगा और आपको एहसास होगा कि आपका साथ देने के लिए और लोग भी हैं। कुछ समय टहलने में, विचार करने में और अपने आस-पास के प्राकृतिक सौंदर्य को देखने में लगाइए। आप चाहें तो उन लोगों के साथ वॉक पर भी जा सकते हैं, जिनसे बात करके आपको अच्छा लगता हो।
जो लोग संवेदनशील न हों, उनसे दूर ही रहिए
कई बार ऐसा होता है कि आपको लगता है जिससे आप बात कर रहे हैं वह आपकी बात नहीं सुन रहा। हो सकता है कि जिनसे आप बात करें, वे आपकी मदद न कर पाएं लेकिन फिर भी आपको बात करनी चाहिए। कई बार लोग ज्ञान देते हुए कहते हैं कि अरे इससे बाहर निकलो या फिर इतना सेंसिटिव होने से नहीं चलता है, जब मेरे साथ ऐसा हुआ था, तब मैं तो बहुत ही जल्दी इससे बाहर आ गया था… ऐसे लोगों से दूर रहिए। हो सकता है कि वे आपके दोस्त हों लेकिन जब आप फिर से मज़बूत हो जाएं, तभी इन लोगों से फिर से संबंध बनाइए।
कई बार अच्छे दोस्त भी नहीं जानते कि दुख को कैसे दूर किया जाए। इसलिए उनसे कुछ समय के लिए दूरी बनाएं। यही आपके लिए अच्छा होगा। आप किसी भावनात्मक घाव को भरने में जल्दी नहीं कर सकते हैं। उसमें समय लगता है और आपको समय देना ही होगा। सोशल वर्क करने के बारे में सोचिए और अपनी समस्याओं पर से ध्यान हटा कर दूसरों की समस्याओं को देखिए। फिर आपको एहसास होगा कि आपकी परेशानी दूसरों की परेशानी के सामने कुछ भी नहीं है।
कोई अफ़सोस मत रखिए
किसी को खोने के बाद आपको अपराध बोध हो सकता है। आप यह सोच कर बेचैन हो सकते हैं कि काश मैंने एक और बार गुड बाय कह दिया होता या काश मैंने इस व्यक्ति के साथ अच्छा व्यवहार किया होता। स्वयं को इस अपराध बोध के सागर में डूबने मत दीजिए। अगर आप ऐसा करेंगे तो कभी भी उस दर्द से बाहर नहीं निकल पाएंगे जो आपके माता-पिता के जाने से आपको हुआ है। अतीत के बारे में बार-बार सोच कर आप उसको बदल नहीं सकते हैं। अगर आपने अपने प्रिय को खो दिया है तो यह आपकी गलती नहीं है। यह सोचते रहने की जगह पर कि आप क्या कर सकते थे या आपको क्या करना चाहिए था, ध्यान इस पर लगाइए कि आप क्या कर सकते हैं।
सलाहकार या थेरपिस्ट का सहारा लें
थेरपिस्ट या काउंलर से मिलना आपको कमज़ोर या दयनीय नहीं बना देता है बल्कि इससे आपको मदद मिलती है और आप अपने दुख पर विजय पाते हैं। अगर कई दिनों के बाद भी आप खुद को संभाल नहीं पा रहे तो आप किसी सलाहकार या थेरपिस्ट का सहारा ज़रूर लीजिए। चाहे आपको ऐसा क्यों न लगता हो कि आप यूं ही बड़बड़ा रहे हैं, परेशान या अनिश्चित न हों। थेरपिस्ट या काउंलर जानते हैं कि वे आपको उस दर्द से कैसे छुटकारा दिला सकते हैं। इसलिए खुलकर उनसे बात करें। यह न सोचें कि इससे आपके बारे में लोग राय बना लेंगे। थेरपिस्ट की मदद से आप पुराने दर्द से बाहर आ सकते हैं लेकिन उसके लिए आपको तैयार होना पड़ेगा।
दर्द को बाहर निकाल फेंकें (रोकर चिल्ला कर, एकांत)
अपने दर्द को दिल में दबाने से आप परेशान हो सकते हैं और उसके कारण कई बार हानिकारक आदतें पाल लेते हैं। इसमें ड्रग्स लेने लगना, शराबी बन जाना, बहुत अधिक सोने लगना, इंटरनेट का अत्यधिक प्रयोग करने लगना या बिना किसी वजह के बेपरवाह हो जाना शामिल होता है जो आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है और उससे आप पीड़ा और एडिक्शन के शिकार हो सकते हैं। इसलिए आपने अपने अंदर जो भी दर्द समा रखा है, उसे बाहर निकाल दीजिए। चाहे तो आप जी भर कर रो लें या कुछ दिनों के लिए किसी एकांत जगह पर भी जा सकते हैं।
नुकसान से होने वाले दर्द को अनदेखा करने या खुद को किसी और चीज़ के नशे में डुबो देने से बस थोड़ी देर का ही आराम मिलेगा और बाद में तो आपका दुख फिर से घेर ही लेगा। अपने नुकसान का सामना करिए। रोइए या ऐसे किसी तरह से दुख मनाइए, जो स्वाभाविक हो। सबसे पहले यह स्वीकार कर लीजिए कि दुख है और तभी आप उस पर विजय पा सकते हैं। अपने दर्द को आप पेंटिंग की मदद से भी कम कर सकते हैं। इससे आपका ध्यान भी कुछ समय के लिए दूसरी जगह पर लगा रहेगा।
परिजनों को खोने के दर्द को इन तरीकों से करें कम
परिजनों से बिछड़ने का मतलब यह नहीं है कि खुद को नुकसान पहुंचाया जाए या चीज़ों को और ख़राब किया जाए। बिछड़ना वह समय होता है, जब यह सीखना चाहिए कि कैसे अपने अंदर की बचा कर रखी गई भावनाओं का सहारा लिया जाए और कैसे अपनी पीड़ा से निबटना सीखा जाए। इसलिए आप दर्द को पहचान लें और फिर उस पर काम करें। आप यह कैसे करेंगे, यह हम आपको बता रहे हैं लेकिन फिर भी यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है क्योंकि दर्द से उबरने के तरीका हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकता है।
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अपना ख्याल रखें
समय सब घावों को भर देता है। आपको भावनात्मक रूप से ठीक होने में महीनों और सालों तक लग सकते हैं। जिनसे आप प्यार करते हैं, उन्हें आप कभी नहीं भूलेंगे। इसलिए उनका सम्मान करना शुरू कर दीजिए और साथ में अपनी सेहत का ख्याल भी रखिए क्योंकि आमतौर पर लोग दुख में इतना खो जाते हैं कि खुद को भूल जाते हैं। आपको घावों को भरने के लिए स्वयं को समुचित समय देना चाहिए, वहीं यह भी महत्वपूर्ण है कि आप याद रखें कि आपका जीवन बहुमूल्य है और आप पर ही, यहां पर, उसको बनाने या बिगाड़ने की ज़िम्मेदारी है।
दोस्तों के साथ रहें
किसी बड़े नुकसान के बाद बाहर जा कर समय बिताने के लिए स्वयं को प्रोत्साहित करना मुश्किल हो सकता है। मगर ऐसा करने से आपके मूड में बहुत सुधार हो सकता है। उसके बाद ही आप अपने स्वास्थ्य का खयाल रख सकते हैं। इसके लिए आप चाहें तो ऐसे मित्रों और परिचितों को ढूंढ निकालिए जो मज़ेदार तो हों ही, साथ ही दयालु और संवेदनशील भी हों। वे आपको व्यस्त रखेंगे और उनके साथ रहने से आप पुरानी चीजें भूल जाएंगे। हमेशा ऐसे दोस्तों के साथ समय बिताना अच्छा होगा जो आपकी मनोभावना को तब भी समझ सकते हैं, जब आप मौन हों और कुछ बोलने की क्षमता में न हों।
पुरानी यादों की डायरी बनाएं
केवल इसलिए कि कोई व्यक्ति आपसे बिछड़ गया है तो इसका यह मतलब नहीं है कि आपको उन्हें याद नहीं करते रहना चाहिए। आपको उनकी अच्छी यादों को खुद में सहेज कर रखना चाहिए। आप चाहें तो उनसे जुड़ी बातों की एक डायरी बना सकते हैं जो हमेशा आपके साथ रहेगी। जब भी अपने मन की बातें उस डायरी में लिखेंगे तो आपका मन भी हल्का हो जाएगा। जब भी आपको उन यादों की आवश्यकता हो, तब आप उस डायरी को निकाल सकते हैं। इससे भावनात्मक रूप से सहारा मिलता है।
माता-पिता को खोने के गम को लेकर अक्सर पूछे जाने वाले आम सवाल और उनके जवाब FAQ’s
सवाल- माता-पिता की याद जब भी आती है तो दिल भर आता है। उससे निकलने के लिए क्या किया जाए?
जवाब- सबसे पहले आप खुद में बदलाव करें और अपने अंदर की सारी नेगिटिविटी को खत्म करें। जो बीत चुका है, वह अब बदल नहीं सकता है। नकारात्मक विचारों से आपको और भी बुरा लगने लगेगा। सोचिए, जो आपके जीवन में कभी खुशियां लेकर आया था, वह कभी भी नहीं चाहेगा कि आप दुख में डूबे रहें। ऐसी चीज़ों को याद रखने का प्रयास करिए, जैसे कि वह व्यक्ति कैसे बातें करता था, उसकी अजीबोगरीब आदतें, उसके साथ हंसी-मज़ाक में गुजारा हुआ समय और उस व्यक्ति ने आपको जीवन और स्वयं के बारे में जो कुछ सिखाया हो। अगर आप उन बातों को याद करेंगे तो आपको अच्छा लगेगा और दुख भी कम होगा।
सवाल- जब परिजनों की याद आती है तो उदास हो जाती हूंं। अपनी भावनाओं पर कैसे नियंत्रण करूं?
जवाब- परिजनों से जुड़ी हुई जो भी बातें आपको याद आती हों, उन्हें लिख डालिए। उदासी के पलों में, ख़ुशी की यादें ताज़ा करने के लिए आप इस डायरी को देख सकते हैं।
सवाल- क्या सच में खुद को कामों में व्यस्त कर देने से परिजनों के बिछड़ने का दर्द कम हो जाता है?
जवाब- काम में व्यस्त रहने से ध्यान दूसरी तरफ लग जाता है और कुछ समय के लिए एहसास बदल जाते हैं। इससे आपको यह एहसास करने का मौक़ा भी मिलता है कि आपकी दुनिया में अभी भी कुछ अच्छी चीज़ें बाक़ी हैं और आपके लिए जरूरी भी हैं। अगर आप हाउस वाइफ हैं तो अपनी पहचान ऐसे ख़ुशनुमा कामों से कराइए, जिनसे आपको शांति मिलती हो। आप बाग़वानी, खाना पकाना, फेवरिट म्यूजिक सुनना, टहलना, फ़ोटोग्राफ़ी, पेंटिंग, राइटिंग जैसी आदतें अपना सकती हैं। ऐसी किसी चीज़ का चयन करिए, जिससे आपको शांति और ख़ुशी से कुछ पाने का एहसास मिले।
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