कमबख्त, कमीना, नशा और न जाने किन- किन नामों से बुलाया जाता है इश्क़ को। मगर ये दिल है कि इश्क़ कर ही बैठता है। वो उम्र ही कुछ ऐसी होती है जहां कुछ सही- गलत नजर नहीं आता। नजर आता है तो बस वो एक चेहरा जो आंखों में बसा होता है। प्यार करने से पहले हम ये नहीं जानते कि वो हमारा होगा या नहीं, मगर ये जरूर जानते हैं कि हम उसके हो चुके हैं। ये कहानी ऐसे ही पहले प्यार की है जो मिल कर भी न मिल सका। वो प्यार जिसने कभी प्यार की कद्र नहीं की और जब उसे प्यार की अहमियत पता चली, तब तक काफी देर हो चुकी थी।
मेरा नाम शौर्य है और मैं मुजफ्फर नगर का रहने वाला हूं। बात उन दिनों की है जब सिर्फ लैंडलाइन फोन हुआ करते थे और कॉल घर में कौन उठा ले इसका रिस्क प्यार के कम ही पंछी लेते थे। अपने बहुत सारे दोस्तों को कॉलेज से बंक मार कर उनकी गर्लफ्रेंड के साथ घूमने जाते देखा, साइकिल और मोटर साइकिल से कॉलेज से घर और फिर कोचिंग से घर छोड़ने जाते देखा लेकिन मैंने कभी इस बारे में कुछ सोचा ही नहीं। जब भी दोस्त बोलते कि किसी लड़की को गर्लफ्रेंड बना ले, तो बस एक ही बात हमेशा कही ‘भाई अपने वाली शहर में शायद है ही नहीं’।
डिग्री कॉलेज का पहला साल था और मोबाइल लगभग- लगभग हमारी जनरेशन के दिमाग पर छा चुके थे। मोबाइल रखना तो जैसे स्टेटस सिंबल बन चुका था। मैंने भी एक दिन मां से जाकर बोल दिया- ‘मोबाइल दिला दो’, उधर से बिना देर किये जवाब आया- ‘खुद कमा कर ले लो’। खुद्दारी कुछ ऐसी जागी कि सोच लिया अब खुद की कमाई से मोबाइल लेकर ही रहूंगा। मेरी मां एक डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर थीं इसलिए पढ़ाना अपने खून में था तो उससे बेहतर और क्या हो सकता था। तो ईश्वर की कृपा और मां का नाम इस्तेमाल करके मिल गए कुछ होम ट्यूशन। ये वो जगह थी जहां से जिंदगी में पहली बार कोई दस्तक देने वाला था। यही वो समय था जब मुझे पहली बार प्यार हो गया था।
दरअसल जिस घर में होम ट्यूशन देता था, उसी घर में शिप्रा का परिवार भी रहता था। उसका टॉम बॉय स्टाइल, उसके अंदर छुपी उस खूबसूरत और क्यूट लड़की पर कभी हावी नहीं हो पाया। पूरा दिन सिर्फ उस चेहरे की एक झलक पाने की आस में निकल जाता था। मैंने धीरे- धीरे उसके परिवार से घुलने मिलने की शुरुआत की और उस परिवार में आने- जाने और उनसे मिलने की पृष्ठभूमि तैयार कर ली लेकिन दिल दिमाग पूरी तरह से सिर्फ शिप्रा से मिलने और ज्यादा बात कर पाने के मौके निकालने में लगा था। बातचीत चलती रही लेकिन कभी कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी। नए साल पर पहली बार किसी लड़की के लिए चॉकलेट और ब्रेसलेट लिया। ये लेने की हिम्मत भी शायद जुटा नहीं पाता, अगर मेरे दो जिगरी यारों ने हिम्मत न दी होती। काफी कोशिशों के बाद मैंने अकेले में मौका देख कर उसको गिफ्ट दे दिए।
ये निगाहों और इशारों से भरा प्यार लगभग 2 साल चलता रहा। मैं आगे तक के सपने बुन चुका था, मुझे करियर क्या और कैसे बनाना है, सब कुछ और इस बात की तैयारी भी कि उसके घर पर शादी की बात कैसे करनी है।
इसी बीच मैं एक जॉब के सिलसिले में अपने शहर से निकलकर दिल्ली आ गया। मैं लकी रहा कि कुछ एक दो महीने घूमने के बाद मुझे नौकरी मिल गई। लगभग 6 महीने बाद शहर लौट रहा था, घर पहुंचने से ज्यादा ख़ुशी उसके पास जाकर सब कुछ बताने की थी। घर पे पहुंचा ही था कि मेरे दोनो जिगरी यार मुझे बहाने से छत पर ले आए। उन्होंने मुझे बताया कि मेरे जाने के बाद उसकी एक नई दोस्त बन गई थी, जिसके साथ वो मुंबई चली गई मॉडल बनने। मोबाइल न होने की वजह से इन 6 महीनों में मेरी शिप्रा से बात भी कम हुई थी। इसलिए उसके मुंबई जाने की बात मुझे पता न चल सकी।
मैं अपने दोस्तों के साथ मुंबई शहर पहुंचा जहां पर शिप्रा अपनी दोस्त के साथ थी। वहां का नज़ारा पिछले ढाई साल के उस हसीं प्यार की रीढ़ की हड्डी तोड़ने के लिए काफी था। शिप्रा अब अपनी दोस्त के भाई की गर्लफ्रेंड बन चुकी थी। मुझे बहुत बुरा लगा, लेकिन जिसने मुझे कुछ करने से रोका वो थी शिप्रा की ख़ुशी। वो इस सबमें खुश थी इसलिए बिना उससे झगड़े मैं चुपचाप अपने शहर लौट आया और अपनी नौकरी में मन लगाना शुरू कर दिया।
शिप्रा के लिए मेरे दिल में हमेशा वही प्यार बसा रहा और शिप्रा कभी मेरे दिल से अलग नहीं हुई। जिंदगी यूं ही बढ़ती रही, शिप्रा मॉडल नहीं बन पाई और वापस घर लौट आई। घर वालों ने दबाव डाल कर उसे पोस्ट ग्रेजुएशन करने दिल्ली भेज दिया।
इस बीच घर वालों ने मेरी शादी तय कर दी। आज भी याद है वो दिन जब दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल से अपने शहर की बस पकड़ कर मैं सगाई करने घर जा रहा था, कि अचानक फ़ोन बजा। कॉल उठाई, उधर से आवाज आई, ‘बधाई हो’। वो शिप्रा का फ़ोन था। उस दिन लगा कि टाइम मशीन होती तो सब कुछ बदल देता। मेरे मुंह से सिर्फ एक बात निकली, पहले नहीं कर सकती थी कॉल। उसने बस इतना ही बोला कि मुझे अभी पता चला आपकी शादी तय हो गई। आप प्लीज मत करिए न ये शादी… उसकी ये बात सुनकर मानो मेरा समय वहीं रुक गया। मेरे एक फैसले से दो परिवारों की इज्जत जुड़ी थी और जो वादे परिवार एक दूसरे से कर चुके थे उनको तोड़ने का दम मुझमें नहीं था। मैंने उससे बोला “तुमने बहुत देर कर दी” और फ़ोन काट दिया।
उसके बाद से आज तक शिप्रा की कॉल हमेशा मेरे बर्थडे पर आती है और वो बस मुझे विश करके फ़ोन रख देती है। शिप्रा ने अभी तक शादी नहीं की। मैंने अपनी बीवी के साथ एक नई जिंदगी बसा ली। मगर आज भी दिल में अपने पहले प्यार से बिछड़ जाने की कसक बरक़रार है। ये कमबख्त प्यार दूसरा मौका बहुत कम देता है। खुशनसीब होते हैं वो लोग जिनके नसीब में उनका पहला प्यार लिखा होता है…।
इन्हें भी पढ़ें
#मेरा पहला प्यार – वो कच्ची उम्र का पक्का प्यार
# मेरा पहला प्यार- इतनी सी बात है, मुझे तुमसे प्यार है
#मेरा पहला प्यार- इश्क जो मुकम्मल न हो सका
#मेरा पहला प्यार- प्यार में शर्तें और मजबूरी नहीं, सिर्फ प्यार होता है