शिशु के गर्भ में आने से लेकर उसका धीरे-धीरे भ्रूण से शिशु के आकार में होने का एहसास माँ को उसको देखने की इच्छा को दिन-ब-दिन बढ़ाती रहती है। नौ महीने के इंतजार के बाद जब शिशु का जन्म होता है तब उसके रोने की आवाज और पहला स्पर्श माँ को स्वर्गीय आनंद का एहसास कराता है। पर इस मधुर आनंद की अनुभूति तभी पूर्ण होती है, जब नवजात शिशु के जन्म के बाद सभी जरूरी प्रक्रियाओं को सही तरह से किया जाए।
इसके लिए जरूरी है कि माँ को शिशु के जन्म के बाद सभी प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी हो। चाहे नॉर्मल डिलीवरी हुई या सिजेरियन माँ के साथ शिशु का संबंध अनमोल होता है। शिशु के पास आते ही माँ अपना सारा दर्द भूल जाती है। लेकिन इसके साथ ही जन्म के कुछ घंटे के बीच शिशु के साथ कुछ जरूरी चीजें की जाती हैं, उसके बारे में एक-एक करके जानते हैं-
अगर माँ और शिशु दोनों की अवस्था ठीक रहती है तो शिशु के रोने के बाद उसको माँ के पास कम से कम दस मिनटों के अंदर लाया जाता है। उस वक्त नवजात शिशु, नॉर्मल अवस्था में शिशु जैसे देखने में होते तो हैं, लेकिन उससे थोड़ा अलग होते हैं।
जन्म के बाद ही शिशु का रंग थोड़ा असामान्य होता है यानी वह नीले रंग का होता है, सर का आकार भी अजीब होता है। कान थोड़ा मुड़ा हुआ, सर या तो गंजा या बाल लिए हुए होता है। शिशु के शरीर पर चिपचिपा सफेद रंग का लेप जैसा लगा हुआ रहता है, यह लेप पहले स्ननान के बाद धो देने के बाद साफ हो जाता है। ज्यादातर बच्चों की आँखे नीली-भूरी या नीले रंग की होती हैं। बच्चे के नाखून लंबे हो सकते है, शरीर पर धब्बे या चकत्ते जैसा दिख सकता है। यहाँ तक कि स्तन और लिंग में भी थोड़ी सूजन हो सकती है।
लेकिन इसको लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं, धीरे-धीरे जन्म के बाद के ये निशान चले जाते हैं, वह नॉर्मल शिशु की तरह नजर आने लगता है।
नौ महीनों के लंबे इंतजार के बाद शिशु के रोने के पहली आवाज सुनकर माँ की सारी तकलीफ दूर हो जाती है। शिशु के इस पहले रोने के पीछे एक कारण है। जन्म के पहले तक शिशु को गर्भ में ऑक्सीजन मिलता था, वह खुद साँंस नहीं लेता था। लेकिन दुनिया में पहली बार साँस लेने के लिए अब उसको अपने नाक का इस्तेमाल करना पड़ता है।
जन्म के बाद शिशु के लंग्स में रक्त को पहुँचने में कुछ समय लगता है, क्योंकि फेफड़े से अतिरिक्त द्रव्य को निकालने के लिए डॉक्टर हल्के से त्वचा को थपथपाता है, उसके बाद शिशु रोकर साँस लेने की प्रक्रिया को शुरू कर देता है। विशेष स्थितियों में द्रव्य को निकालने के लिए डॉक्टर उपकरण या डिवाइस का भी सहायता लेते हैं।
आजकल डॉक्टर एक घंटे के अंदर माँ और शिशु का स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट करने की सलाह देते हैं। जन्म के बाद के पहले घंटे को ‘गोल्डेन आवर’ कहते हैं। यह माँ और शिशु दोनों के सेहत और रिश्ते को मजबूत करने के लिए जरूरी होता है।
आपके जानकारी के लिए बता दें कि माँ और शिशु के बीच इस कॉन्टैक्ट को ‘कंगारू मदर केयर’ भी कहते हैं। इस प्रक्रिया से शिशु को बिना किसी परेशानी के जल्दी स्तनपान करने में मदद मिलती है। स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट में शिशु को कमर से गर्म कपड़े में लपेटकर माँ के छाती या पेट पर शिशु को पेट के बल लिटा दिया जाता है।
स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट से माँ और शिशु दोनों का तनाव कम होता है। स्किन कॉन्टैक्ट से शिशु को संक्रमण होने से बचाया जा सकता है। गोल्डेन आवर में इस कॉन्टैक्ट से शिशु की श्वसन और हृदय प्रणाली अधिक स्थिर होती है। वह दूसरे बच्चों की तुलना में कम रोता है।
नवजात शिशु का स्वास्थ्य मूल्यांकन किया जाता है। इस जाँच को अपगार टेस्ट (Apgar test) कहते हैं। यह शिशु के जन्म के 1 मिनट और 5 मिनट बाद के स्थिति का मूल्यांकन होता है। इसमें होता है-
शिशु शारीरिक रूप से स्वस्थ है कि नहीं इसकी जाँच कुछ मिनटों और घंटों में की जाती है-
इसके अलावा वजन को नापने के दौरान विटामिन ‘के’ का इंजेक्शन शिशु को दिया जाता है ताकि विटामिन ‘के’ की कमी होने पर ब्लीडिंग होने से बचाया जा सके।
नवजात शिशु के जन्म के बाद अम्बिकल कॉर्ड या गर्भनाल को क्लैल्प करके काटा जाता है। यह प्रक्रिया जन्म के तुरन्त बाद ही करना पड़ता है। इसको काटना कठिन तो होता है, मगर इसको काटने से माँ और शिशु दोनों को दर्द नहीं होता है।
अब तक हमने नवजात शिशु के जन्म के तुरन्त बाद क्या किया जाता है, इसके बारे में संक्षिप्त विवरण देने की कोशिश की है।
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