आज के समय में तनाव से बचना किसी भी व्यक्ति के लिए आसान नहीं है, चाहे वह किसी भी उम्र का हो या वर्ग का, क्योंकि ज़िंदगी है तो परेशानियां हैं, परेशानियां हैं तो उलझनें हैं और उलझनें हैं तो चिंताएं हैं। यही चिंताएं कब रोज़मर्रा के अपने सामान्य रूप से निकलकर तनाव, यानी एंज़ायटी जैसी रूप ले लेती हैं, पता ही नहीं चलता।
एंजायटी क्या है? – What is Anxiety in Hindi
यूं तो हर व्यक्ति में एंज़ायटी (anxiety) डिसऑर्डर के लक्षण बड़े अलग-अलग होते हैं, लेकिन कुछ इस समस्या के कुछ रूप ऐसे हैं, जो लगभग सभी रोगियों में मिलते-जुलते होते हैं, जैसेकि- लगातार रहने वाली बैचेनी, घबराहट, किसी बड़े कारण के बिना भी हर समय चिंतित रहना, नींद का न आना या बहुत ही ज़्यादा आना, भूख का न लगना या बहुत ही ज़्यादा लगना, हद से ज्यादा चिड़चिड़ापन या बिना किसी ठोस कारण के उदास रहना, किन्हीं काल्पनिक घटनाओं के डर से हर समय चिंताग्रस्त रहना। ये एंज़ायटी के अनेक लक्षणों में से कुछेक हैं। पहली नज़र में ये लक्षण ऐसे नहीं लगते कि किसी की पूरी ज़िंदगी को हिलाकर रख दें, लेकिन असल में ये सच है कि ये लक्षण वह धीमा ज़हर हैं, जो प्रभावित व्यक्ति के जीवन का सुख-चैन छीन लेते हैं।
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एंजायटी किस रूप में हमारे लिए सर्वाधिक घातक है?
थोड़ी-बहुत चिंता या तनाव हम सभी के रोज़मर्रा का हिस्सा है, जिसके परिणाम कई बार अच्छे भी होते हैं। बहुत से रचनात्मक व्यक्ति ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तनाव के चलते ही किया, लेकिन ये स्थिति एक थोड़े से समय के लिए ही होती है। इसके ठीक उलट अगर ये तनाव हमारे दैनिक जीवन में इस प्रकार से अपनी पैठ बना ले कि पूरी दिनचर्या, सामाजिक जीवन, हमारा स्वास्थ्य, घर-परिवार, करियर सभी कुछ इसकी चपेट में आकर प्रभावित होने लगे तो इसी को एंज़ायटी, यानी तनाव का घातक रूप माना जा सकता है। बहुत से लोगों में ये तनाव डर का रूप ले लेता है। भविष्य की काल्पनिक चिंताओं को ही वे इतना सच मानने लगते हैं कि उनका वर्तमान पूरी तरह से डूबने लगता है। वे अपनी घबराहट या बेचैनी से उबर नहीं पाते हैं। अनिद्रा के शिकार हो जाते हैं या हर समय खोए-खोए से रहते हैं।
एंग्जाइटी के लक्षण – Anxiety ke Lakshan
एंजायटी के कितने प्रकार हैं – Types of Anxiety in Hindi
एंज़ायटी के कुछ प्रमुख प्रकार इस रूप में मिलते हैं-
इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति हर समय बहुत अधिक चिंता करते रहते हैं। यहां तक कि कई बार तो उनकी चिंता का कोई ठोस कारण भी नहीं होता या वे कारण वास्तविक न होकर काल्पनिक तक हो सकते हैं।
जनरलाइज्ड एंज़ायटी डिसऑर्डर
इससे पीड़ित लोग हमेशा किसी न किसी सोच में ही डूबे रहते हैं या डरे से रहते हैं। इसी ज़रूरत से ज्यादा सोच के चलते उनमें कुछ अजीब सी आदतें भी पैदा होने लगती हैं। वे किसी भी काम के प्रति अतिरिक्त रूप से चौकसी बरतने लगते हैं। पैसे होने पर भी उन्हें खर्च करने की बजाय भविष्य के डर से इकट्ठा ही करने पर लगे रहते हैं। उन्हें हर समय कुछ बुरा घटने का डर सताता रहता है।
ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर
पैनिक डिसऑर्डर
इस समस्या के शिकार लोगों को बहुत अधिक घबराटहट होती है। उन्हें ये एहसास इतना ज़्यादा होता है कि वे महसूस करने लगते हैं कि उन्हें हार्ट अटैक आ रहा है या फिर उनकी सांस ही बुरी तरह से अटक रही है। वे थोड़ी सी बात में भी बहुत घबरा जाते हैं और उनके हाथ-पैर फूलने लगते हैं।
पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस
यह स्थिति तब पैदा होती है, जब इसका शिकार व्यक्ति किसी बड़े हादसे से गुज़रा हो, जैसे- घोर प्राकृतिक आपदा, यौन शोषण, यौन हिंसा, किसी अत्यंत प्रियजन का आकस्मिक देहांत। इन घटनाओं की यादें उस व्यक्ति को उबरने नहीं देतीं और वह हर समय बाकी लोगों या समाज से कटा-कटा रहने लगता है। उसे किसी से भी मिलना-जुलना या बोलना-चालना अच्छा नहीं लगता। भावनात्मक रूप से भी वह शून्य सा ही हो जाता है।
सोशल एंज़ायटी डिसऑर्डर
इस में व्यक्ति इतना ज्यादा सतर्क रहने लगता है कि मानो पूरी दुनिया ही उस पर नज़रें गड़ाए बैठी है। सभी का ध्यान केवल उसी व्यक्ति पर है, जिसके चलते वह अपने सभी कामों में अतिरिक्त सतर्कता बरतने लगता है और घबराया सा रहता है। इसी घबराहट में उससे होने वाली गलतियां उसे और अधिक डरा देती हैं। ये एक क्रम सा बन जाता है और उस व्यक्ति का सामान्य जीवन, सुख-शांति, स्वास्थ्य सभी बुरी तरह से प्रभावित होने लग जाते हैं।
एंग्जायटी के घरेलू उपाय – Anxiety Treatment in Hindi
मनोचिकित्सक से मिलें
इस रोग की पहचान के बाद सबसे पहला काम जो करना है, वह ये कि किसी योग्य मनोचिकित्सक से मिलें। आप अगर दवा नहीं भी खाना चाहते, तब भी आपके रोग के लक्षणों के आधार पर वह स्थिति की गंभीरता का समझकर आपको सही सलाह दे सकेगा। इनका पालन करके इस समस्या पर जल्दी ही काबू पाया जा सकता है।
जीवनशैली में सुधार लाएं
याद रखिए, एक बार अगर आप किसी समस्या की चपेट में आ जाते हैं तो उससे आप ही को जूझना पड़ता है। उस समस्या के चलते होने वाला कष्ट आपको ही भोगना पड़ता है। साथ ही आपके अपने भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते, इसलिए अपने जीवन की सारी भागदौड़ की लगाम अपने हाथ में रखें। किसी भी परिस्थिति को अपने ऊपर हावी न होने दें। नींद पूरी लें। खाना समय पर और पौष्टिक ही खाएं। जब भी समय मिले, अपनों के साथ मौज-मस्ती भरा समय बिताने की गुंजाइश जरूर रखें। साथ ही थोड़ा समय अपने लिए, अपनी रुचियों के लिए भी जरूर रखें।
स्वास्थ्य पर ध्यान दें
आप अपने शरीर की जितनी परवाह करेंगे, ये शरीर उतना ही आपका साथ देगा। हम ये नहीं कहते कि सुबह पांच बजे उठकर दौड़ लगाने निकल जाइए। सच कहें तो शायद ये काफी हद तक आज की दिनचर्या से मेल भी नहीं खाता, क्योंकि सात से आठ घंटे की नींद पूरी करना भी उतना ही जरूरी है, लेकिन जब भी समय मिले, अपने रुटीन के हिसाब से अपनी पसंदीदा एक्सरसाइज़ चुन लें और उसे नियमित रूप से करें।
कुछ न करने का समय भी निकालें
कभी-कभी कुछ भी न करना भी अपने शरीर के लिए बहुत-कुछ करना होता है। खासतौर पर तब, जब आपकी नियमित दिनचर्या बहुत ही भागदौड़ भरी या मानसिक तनाव कारक हो, बहुत ज्यादा शारीरिक और मानसिक थकान से आपको रोज़ ही जूझना पड़ता हो, ऐसे समय में केवल आराम करते हुए सुकून के कुछ पल आपके लिए बहुत जरूरी हैं। इस समय में आप चाहें तो थोड़ा सामाजिक होकर दोस्तों-परिचितों से मिल सकते हैं या फिर अकेले ही घूमने निकल जाएं। वह सब-कुछ करें, जो करने की हसरत आपके मन के कोने में बाकी दिनों में दबी रह जाती है। बस, ख्याल सिर्फ इतना रखना है कि आपका एकांत अकेलेपन में न बदले और न ही इसमें उदासी या परेशानी जैसी चीजों के लिए कोई जगह हो। साथ ही याद रखिए कि आपकी नींद पूरी होना बहुत-बहुत जरूरी है, क्योंकि इसके चलते न सिर्फ एंज़ायटी, बल्कि और भी बहुत सी स्वास्थ्य समस्याएं आपको हो सकती हैं।
एंजायटी के इलाज में काउंसलिंग का क्या योगदान होता है?
एंज़ायटी के इलाज में काउंसलिंग एक रोल किसी चमत्कार से कम नहीं है। मन के कोने में न जाने कितनी ही ऐसी बातें दबी रह जाती हैं, जो अक्सर हम बहुत चाहकर भी किसी से शेयर नहीं कर पाते। कभी ऑफिस की ऐसी बातें होती हैं, जो घरवालों को समझा पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन सा होता है और कभी घर की जाने कितनी ही बातें हम मन की परतों में ये सोचकर दबा लेते हैं कि अगर इसके बारे में हम किसी से बातें करेंगे तो वे हमारे घरवालों के बारे में गलत छवि न बना लें। आखिरकार हैं तो वे हमारे घरवाले ही। ये भी हो सकता है कि हमें लगने लगे कि कोई भी हमें ठीक से समझ ही नहीं पाता और जजमेंटल उससे पहले हो जाता है। ऐसे में काउंसलर से बढ़कर मददगार हमारे लिए कोई दूसरा हो ही नहीं सकता। वह न सिर्फ शांति से हमारी पूरी बात सुनेगा, समझेगा, बल्कि हमें जबरदस्ती की कोई सलाह भी नहीं देने वाला। सबसे बड़ा डर जो हमें दूसरों के साथ होता है, जजमेंटल होने का, काउंसलर के साथ दूर-दूर तक इस मामले में कुछ भी सोचने की जरूरत नहीं। साथ ही अगर आप किसी मोड़ पर खुद को अपनी ही सोचों में उलझा पा रहे हैं तो उससे उबरने में भी एक काउंसलर की मदद काबिले-तारीफ होती है। इसके साथ ही अगर घरवाले भी सहयोग करें और एंज़ायटी से पीड़ित व्यक्ति की स्थिति को समझें तो इस समस्या से बड़ी ही आसानी से और कम समय में ही छुटकारा पाया जा सकता है।
एंजायटी को लेकर पूछे जाने वाले 5 संभावित सवाल और उनके जवाब (FAQ’s)
मोटे तौर पर देखा जाए तो एंज़ायटी और डिप्रेशन में काफी हद तक अंतर और समानता दोनों ही है। अंतर को यूं समझा जा सकता है कि एंज़ायटी डिप्रेशन जैसे रोग का लक्षण हो सकती है, लेकिन डिप्रेशन विशुद्ध रूप से एक रोग ही है। एंजायटी, यानी तनाव किसी एक कारण को लेकर, जीवन में समस्याएं होने पर ही होता है, जबकि डिप्रेशन किन्हीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कारणों के चलते कई बार तब भी हो सकता है, जब बाहरी तौर पर जीवन में सब-कुछ ठीक चलता हुआ लग रहा हो। सो बहुत जरूरी है कि आप यहां ऊपर बताए गए लक्षणों को यदि कभी खुद में या किसी अपने में महसूस करें तो सबसे पहले मनोचिकित्सक की ही सलाह लें। अपने-आप से भूलकर भी किसी निर्णय पर पहुंचकर इलाज शुरू न कर दें।
नहीं। ये धारणा गलत है कि एंजायटी की इलाज बहुत महंगा होता है या इसे वहन कर पाना आम लोगों के बस की बात नहीं है। यहां तक कि कई सरकारी अस्पतालों या सेवा केंद्रों में इसकी दवा मुफ्त भी मिलती है।
नहीं, ये गलत धारणा है। किसी को भी एंज़ायटी का इलाज ज़िंदगी भर करवाने की जरूरत नहीं पड़ती है। ये इलाज कितना लंबा और कैसा होगा, ये रोगी की दशा पर निर्भर करता है, लेकिन ये तय है कि इसमें कोई भी प्रक्रिया ऐसी नहीं होती है, जो जीवन भर चले।
सबसे बड़ा रोल तो घरवालों के सहयोग का ही होता है। यदि एंजायटी के शिकार व्यक्ति को समय पर सही मनोचिकित्सक की सलाह, सही काउंसलिंग और अपने परिवार का साथ मिल जाए तो उसकी स्थिति कितनी भी गंभीर क्यों न हो चुकी हो, बहुत जल्दी उसे सामान्य जीवन में वापस लाया जा सकता है।
जी हां, वैकल्पिक चिकित्सा में भी एंजायटी का इलाज पूरी तरह से संभव है, क्योंकि ये एक खराब जीवनशैली और परिस्थितियों के आधार पर उत्पन्न समस्या है। यदि जीवनशैली की गलत आदतों को पहचानकर उन्हें सुधार लिया जाए, परिस्थितियों को खुद पर हावी न होने दिया जाए और सही खान-पान, व्यायाम, योग-ध्यान, सामाजिक जीवन आदि पर ध्यान दिया जाए तो इस समस्या को वैकल्पिक रूप से भी ठीक किया जा सकता है।
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