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गुरु गोविंद सिंह जयंती से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें | Guru Gobind Singh Jayanti

गुरु गोविंद सिंह जयंती से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें | Guru Gobind Singh Jayanti

 

गुरु गोविंद सिंह की जयंती हर वर्ष अलग-अलग तिथि पर मनाई जाती है। यह नानकशाही कैलेंडर के आधार पर तय होता है कि किस तिथि को इनकी जंयती का समारोह मनाया जाएगा। पूरे भारत में इसकी तैयारियां जोर-शोर से होती हैं।
गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु माने गए हैं। उनका जन्म बिहार के पटना साहिब में हुआ था। वर्ष 1666 में उन्होंने सिख धर्म के नौवें गुरु तेग बहादुर साहब की इकलौती संतान के रूप जन्म लिया था। वह खालसा पंथ के संस्थापक रहे। यह सिख समुदाय में महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में गुजार दिया था। उनकी दी गई शिक्षा आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का कारण बनती है। यही वजह है कि सिखों में गुरु गोविंद  सिंह की जयंती को लेकर धूम मची रहती है और उसे बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कौन थे गुरु गोविंद सिंह और क्या थीं उनकी शिक्षाएं तथा ये किस तरह आज भी लोगों के हित में काम करती हैं, यह सब जानने के लिए आइए, आपको उनसे जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों से अवगत कराते हैं। गुरु गोविंद सिंह की वाणी

कौन थे गुरु गोविंद सिंह – Who is Guru Gobind Singh

गुरु गोविंद सिंह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने खालसा पंथ की रक्षा के लिए मुगलों का भी सामना किया था। उन्होंने ही सिखों को पांच चीजें बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश दिया था । इन 5 चीजों को ‘पांच ककार’ कहकर बुलाया जाता है।  इन सभी को धारण करना सिखों के लिए अनिवार्य गुरु गोविंद सिंह ने ही कराया था। वह एक ऐसे विद्वान माने जाते थे, जिन्होंने कई रचनाएं कीं, कई ग्रंथ रचे। साथ ही उन्होंने कई भाषाओं का भी विस्तार किया। उनके दरबार में हमेशा ही 52 कवियों और लेखकों की मजलिस जमी रहती थी, जो विचारों का आदान-प्रदान किया करती थी। उन्होंने अपने जीवन काल में संस्कृत, पंजाबी, फारसी और अरबी भाषाएं भी सीखीं। यही नहीं, उन्होंने तलवारबाजी, धनुष-बाण और भाला चलाने की विधा में भी निपुणता हासिल की।
उन्होंने सिखों के उत्थान के लिए शिक्षा का मार्ग चुना, इसलिए वे सिखों के महत्वपूर्ण गुरु कहलाए। उन्होंने ही खालसा पंथ में ‘सिंह’ उपनाम की शुरुआत की थी। खालसा पंथ की स्थापना में उनका मुख्य योगदान रहा। इन्हीं कारणों से उन्हें एक वीर योद्धा माना गया।
उनके बारे में स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि गोविंद सिंह जैसे व्यक्तित्व के आदर्श हमेशा हमारे सामने होने चाहिए, जो कि हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें। 
गुरु गोविंद सिंह के तेज को लेकर एक कथा प्रचलित है कि जब गोविंद सिंह का जन्म हुआ था, उसी वक्त एक मुसलमान संत भीखण शाह ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक आगे चलकर पूरे समाज की सेवा करेगा । उन्हें बचपन में ‘बाला प्रीतम’ कह कर भी बुलाया जाता था। उनका नाम गोविंद भी इसलिए पड़ा, क्योंकि उनके मामा का मानना था कि यह बालक भगवान गोविंद की देन है। उनके बारे में एक और अहम बात यह है कि उनके पिता गुरु तेग बहादुर ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए कुर्बानी दी थी। इसके बाद बालक गोविंद को नौ साल की उम्र में गद्दी पर बिठाया गया था। लेकिन उन्हें कभी भी उस गद्दी का मोह ही नहीं रहा था। पहले गोविंद, गोविंद राय के रूप में जाने जाते थे। बाद में गुरुजी पंज प्यारों से अमृत ठेक कर राय से सिंह बन गए। 
गुरु गोविंद ने महाराष्ट्र के नांदेड़ शहर में स्थित हजूर साहिब सचखंड गुरुद्वारे में अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम सांस ली थी। गुरु गोविंद सिंह का जीवनकाल 42 वर्षों का रहा। उनकी हत्या धोखे से कर दी गई थी। दरअसल, बहादुर शाह को गद्दी पर बिठाने में गोविंद सिंह ने मदद की थी। इस वजह से दोनों में मित्रता थी, लेकिन एक क्रूर शाषक नवाब वजीद खां को यह मित्रता रास नहीं आई और उन्होंने दो हत्यारों को भेज कर गोविंद  सिंह पर हमला करवाया। एक हत्यारे को तो गोविंद सिंह ने खुद खंजर मार कर गिरा दिया था। दूसरे को सिख समुदाय के लोगों ने मारा। उन्होंने अंतिम सांस लेते हुए भी सिखों की सुरक्षा का बीड़ा उठाया। गोविंद सिंह जब अपनी जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे तो उन्होंने संगत बुला कर सिख धार्मिक पुस्तक ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को ही सिख गुरु की गद्दी पर स्थापित किया और स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब कोई भी जीवित व्यक्ति इस गद्दी का हक़दार नहीं होगा। इसके बाद उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही कि आने वाले समय में सिख समाज को गुरु ग्रंथ साहिब पुस्तक से ही मार्गदर्शन और प्रेरणा लेनी होगी और इस तरह वे सिखों के अंतिम जीवित गुरु बने। 

क्यों मनाई जाती है गुरु गोविंद सिंह जयंती

यह जयंती गुरु गोविंद के सम्मान के रूप में मनाई जाती है। चूंकि उन्होंने सिख समुदाय के लिए कई कार्य किए थे और उनकी वजह से ही सिख समुदाय कई मामलों में विस्तार कर पाया इसलिए सिख समुदाय के लोग सम्मान के रूप में उनकी जयंती धूमधाम से मनाते हैं। उनके द्वारा दी गई शिक्षा आज भी सिखों के काम आती है। सिख यह जयंती मना कर उन्हें और उनके बलिदान को याद करते हैं। यह दिन पूर्ण रूप से उन्हें ही समर्पित होता है। 

गुरु गोविंद सिंह जयंती का महत्व – Importance of Guru Gobind Singh Jayanti

गुरु गोविंद सिंह ने न सिर्फ सिख धर्म का विस्तार किया, बल्कि उन्होंने अपनी शिक्षा के माध्यम से पूरे समाज में शांति, प्रेम, एकता, समानता का मार्ग अपनाने का संदेश भी फैलाया। उनके लिए भौतिक सुख कुछ था ही नहीं। उन्होंने कभी भी धन और संपत्ति या राजसत्ता को महत्व नहीं दिया। उन्होंने हमेशा अन्याय, अधर्म और अत्याचार के विरुद्ध ही युद्ध लड़े। वे हमेशा कहते थे कि युद्ध कभी भी सैनिकों की संख्या पर नहीं, बल्कि उनकी अपनी इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। उनका यह भी मानना था कि जो सच्चे उसूलों के लिए लड़ता है, वही धर्म योद्धा होता है, न कि जो राजसत्ता के लिए लड़े। ईश्वर भी उसे ही विजयी बनाता है, जो धर्म योद्धा होता है।
गोविंद सिंह जी ने सती प्रथा, बाल विवाह, बहु विवाह और भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथा के खिलाफ भी आवाज उठाई। इन कुरीतियों का कड़ा विरोध किया और जनमानस को यह बात समझाने तथा अपनी इस क्रांति में साथ लाने का बीड़ा उठाया। उनका मानना था कि पूरा देश और समाज एक सूत्र में बंध जाएं, ताकि समाज के सृजन में सुचारू रूप से कदम उठाए जा सकें। गुरु गोविंद सिंह ने मुगल शासकों के अत्याचार के खिलाफ भी कड़ी आवाज उठाई थी। उन्होंने सिख समुदाय के लिए 14 युद्ध लड़े थे। गुरु गोविंद सिंह ने देहधारी गुरु की उपाधि को ही समाप्त कर दिया। उन्होंने घोषणा की कि गुरु वाणी और गुरु ग्रंथ साहिब ही सिखों के लिए सर्वोपरि होंगे।

गुरु गोविंद सिंह ने खालसा योद्धा के लिए कुछ नियम भी तैयार किए। उन्होंने ये नियम बनाए कि वे कभी तम्बाकू का उपयोग नहीं करेंगे, बलि दिया हुआ मांस नहीं खाएंगे, उन लोगों से कभी भी बात न करें, जो उनके उत्तराधिकारी के प्रतिद्वन्द्वी हैं। 

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किस तरह मनाई जाती है गुरु गोविंद सिंह जयंती – How we Celebrate Guru Govind Singh Jayanti

गुरु गोविंद सिंह को ज्ञान और सैन्य क्षमता का भी प्रतीक माना जाता है। उन्हें संत सिपाही भी इसी वजह से कहा जाता है। यही वजह है कि सिख धर्म के लोग गुरु गोविंद सिंह की जयंती को बहुत धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन घरों और गुरुद्वारों में कीर्तन होता है। वहीं खालसा पंथ की झांकियां निकाली जाती हैं। इस दिन खासतौर पर लंगर का भी विशाल आयोजन किया जाता है। इस जयंती में गुरुद्वारों की विशेष साज-सज्जा होती है। देर रात तक शबद-कीर्तन किया जाता है। गुरुद्वारे में लंगर के साथ शर्बत भी वितरित किया जाता है। सुबह से ही खुशनुमा और भक्तिमय माहौल रहता है, जो कि देर रात तक जारी रहता है।

गुरु गोबिंद सिंह द्वारा दी गई शिक्षाएं

गुरु गोविंद कहा करते थे कि हृदय में साधु बनो, व्यवहार में मधुरता लाओ और भुजाओं में सैनिक की वीरता पैदा करो। उनका मानना था कि इंसान को करुणामय होना चाहिए। साथ ही उसे हमेशा कर्मयोगी भी बने रहना चाहिए, क्योंकि एक जगह बैठ कर यही सोचना कि सब कुछ भगवान कर रहा है, उचित नहीं है। जहां भी अपने धर्म की रक्षा करने की जरूरत हो, वहां उठ खड़े होना जरूरी है। वे देश को एक सूत्र में बांध कर चलना चाहते थे। साथ ही कहते थे कि गुरु का जिंदगी में बहुत महत्व है। वह ज्ञान को ही सबसे बड़ा गुरु मानते थे। उनका मानना था कि ज्ञान और गुरु में कोई फ़र्क नहीं होना चाहिए, इसलिए वे ग्रंथ और गुरु में भी कोई अंतर नहीं मानते थे।
गुरु गोविंद सिंह कहते थे कि अगर आप केवल भविष्य के बारे में सोचेंगे तो वर्तमान तबाह कर देंगे, इसलिए वर्तमान में जीना और कदम उठाना जरूरी है। वे यह भी मानते थे कि जब आप अपने अंदर से अहंकार मिटा देंगे, तभी आप को वास्तविक शांति प्राप्त होगी। उनका मानना था कि हर इंसान का जन्म धरती पर किसी कारण से हुआ है, इसलिए हाथ पर हाथ धरे बैठना बिल्कुल सही नहीं है। उनका कहना था कि हम संसार में आए हैं तो अच्छे काम करें और बुराइयों को दूर करें। अगर आपने अच्छे कर्म किए हैं तो  ईश्वर भी आपकी पूरी तरह से मदद करेगा। वे यह बात भी साफ-साफ कहते थे कि जब बाकी सभी तरीके विफल हो जाए तो हाथ में तलवार उठाना बिल्कुल गलत नहीं है। यह सच है कि वह शांति और एकता के को तवज्जो देते थे, लेकिन उनका यह भी मानना था कि समय पर तलवार उठाना भी जरूरी है, वरना शत्रु आप को हराकर आगे निकल जाएगा।
वे इस मंत्र को भी हमेशा दोहराते थे कि हर कोई उस सच्चे गुरु की जय-जयकार और प्रशंसा करें, जो हमें भक्ति के खजाने तक ले जाए। मृत्यु को लेकर भी वे बहुत ही व्यावहारिक सोच रखते थे। वे कहते थे कि सच्चे गुरु की सेवा करते हुए ही स्थायी शांति प्राप्त होगी, जन्म और मृत्यु के कष्ट मिट जाएंगे। उनका मानना था कि आपको इसमें अपना समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए कि आपको किस तरह की मृत्यु मिलेगी, बल्कि उसके भय में जीना छोड़ कर अपने काम पर ध्यान देना चाहिए।

गुरु गोविंद सिंह के अनमोल विचार – Guru Gobind Singh Ji Quotes

 

गुरु गोविंद सिंह के अनगिनत अनमोल विचार रहे हैं, लेकिन हम आपको यहां उनके कुछ चुनिंदा विचार बता रहे हैं। उन्होंने कम शब्दों में ही जीवन को लेकर कई बड़ी स्वाभाविक और व्यावहारिक बातें कही हैं।

 

1. स्वार्थ ही अशुभ संकल्प को जन्म देता है।
2. सेवक नानक भगवान के दास हैं, अपनी कृपा से भगवान उनका सम्मान सुरक्षित रखता है।
3. मैं उस गुरु के लिए न्योछावर हूं जो भगवान के उपदेशों का पाठ करता है।
4. बिना नाम के कोई शांति नहीं है। बिना गुरु के किसी को भगवान का नाम नहीं मिला है।
5. अज्ञानी व्यक्ति पूरी तरह से अंधा है,  वह मूल्यवान चीजों की कद्र नहीं करता है।
6. आप स्वयं ही स्वयं हैं, आपने स्वयं ही सृष्टि का सृजन किया है।
7. सबसे महान सुख और स्थायी शांति तब प्राप्त होती है, जब कोई अपने भीतर से स्वार्थ को समाप्त कर देता है।
8. किसी असहाय के ऊपर अपनी तलवार चलाने के लिए उतावले मत हो,अन्यथा विधाता तुम्हारा खून बहाएगा।
9. मैं उन लोगों को पसंद करता हूं, जो सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं।
10.चिड़ियों सों मैं बाज तड़ाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं, तबै गोबिंद सिंह नाम कहाऊं।
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11 Oct 2022

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