आमतौर पर लोग कोई भी इलेक्ट्रिकल डिवाइस खरीदते वक्त नया प्रोडक्ट खरीदने पर ही ज़ोर देते हैं। और करें भी क्यों न? किसी पुराने प्रोडक्ट में कोई कमी निकल आने पर जो परेशानी उठानी पड़ती है, उससे तो बेहतर ही है कि एक नया प्रोडक्ट खरीद लिया जाए। हालांकि, इस आर्टिकल में हम आपको ऐसे कई फायदों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें जानने के बाद आप यूज़्ड प्रोडक्ट खरीदने से घबराएंगे नहीं। ये यूज़्ड प्रोडक्ट, दरअसल, रीफर्बिश्ड प्रोडक्ट्स (refurbished products) कहलाए जाते हैं। इनके बारे में और जानिए, 999 सर्विसेज़ डॉट कॉम के सीईओ और फाउंडर, वेदांग खेतावत से (Vedang Khetawat, CEO and founder of 999services.com)
रीफर्बिश्ड गुड्स क्या होते हैं? what are refurbished goods?
रीफर्बिश्ड गुड्स ऐसे सामान को कहा जाता है, जो कहने के लिए इस्तेमाल किए हुए होते हैं, मगर कंज़्यूमर को देने से पहले उन्हें बिल्कुल नया जैसा बना दिया जाता है। इन्हें न सिर्फ नए बॉक्स में, नई पैकिंग के साथ बेचा जाता है, बल्कि उनका पूरा परीक्षण भी किया जाता है। उनके अंदर की मशीन व अन्य मटीरियल्स को भली-भांति जांचा जाता है, कोई परेशानी लगने पर अंदर के पार्ट्स को बदला भी जाता है। इनमें नए या रीसाइकिल (recycle) किए गए पार्ट्स लगाए जाते हैं। फिर नई पैकिंग के साथ उन्हें एकदम नया बनाकर बेचा जाता है। रीफर्बिश्ड इलेक्ट्रॉनिक्स (refurbished electronics) नए प्रोडक्ट की तरह ही होते हैं, बस एक अच्छे-खासे डिस्काउंट के साथ। इन रीफर्बिश्ड प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर आप ई-वेस्ट (E-waste) कम कर सकते हैं।
ई-वेस्ट क्या है
यह तो सभी जानते हैं कि प्लास्टिक का ज्यादा इस्तेमाल हमारे पर्यावरण के लिए बेहद नुकसानदेह साबित होता है। इसी वजह से अब ज्यादातर रेस्त्रां और कैफे में प्लास्टिक के ढक्कन और स्ट्रॉ के बजाय रीयूज़ेबल बैग्स और कंटेनर्स का इस्तेमाल किया जाता है। जब हम इलेक्ट्रॉनिक सामान की बात करते हैं तो प्लास्टिक वेस्ट (plastic waste) ही सब कुछ नहीं होता है, बल्कि ई-वेस्ट (E-waste) का योगदान भी काफी अहम होता है। ई-वेस्ट का संबंध ऐसे कंज्यूमर और बिज़नेस इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स से होता है, जो अपनी लाइफसाइकल के अंत पर होते हैं। कंप्यूटर, टीवी, रेडियो आदि सामान को ई-वेस्ट माना जाता है। जब इन आइटम्स को फेंका जाता है तो इन मशीन्स के अंदर मौजूद मेटल्स में से खतरनाक केमिकल्स (लेड, मरकरी, कैडमियम, बेरिलियम आदि) निकलने लगते हैं, जो पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह साबित होते हैं। जब तक इन डिवाइसेस का इस्तेमाल किया जाता है, तब तक ये केमिकल्स किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, मगर जब इन्हें दूसरे कूड़े के साथ फेंक दिया जाता है तो इनमें से केमिकल्स का रिसाव होने लगता है। ज़मीन के अंदर पहुंचने पर ये ज़मीन के नीचे पानी तक को काफी दूषित कर देते हैं।
वैश्विक तौर पर, हर साल 40 मिलियन टन इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट जनरेट होता है, जिसे हर सेकंड 800 लैपटॉप फेंकने के बराबर समझा जा सकता है। इसमें से 20 प्रतिशत से भी कम ई-वेस्ट को रीसाइकिल किया जा पाता है।
रीफर्बिशिंग से सुलझेगी समस्या
ताज़ा आंकड़ों पर नज़र डालें तो कचरे के ढेर में लगभग 50 मिलियन टन का ई-वेस्ट है। अगर ई-वेस्ट इसी तरह से बढ़ता रहा तो 2050 तक 120 मिलियन टन तक पहुंच जाएगा। इसके अलावा दुनिया भर के समुद्रों में 150 मिलियन टन तक का प्लास्टिक का कचरा भी पानी को दूषित कर रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो 2030 तक महासागरों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक का कचरा होगा।
दुनिया में ई-वेस्ट और प्लास्टिक वेस्ट में कमी लाने का सबसे आसान उपाय है कि इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स को यूंही फेंकने के बजाय उन्हें रीफर्बिश कर दिया जाए, यानि कि नया जैसा बना दिया जाए। अब कंज्यूमर्स को नया गैजेट खरीदने की इतनी हड़बड़ाहट होती है कि उन्हें लैपटॉप, फोन, फैक्स मशीन या कॉपियर को फेंकने के दुष्परिणामों का अंदाज़ा तक नहीं होता है।
यहां हमें इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि भले ही हमारे डिवाइस की लाइफसाइकल खत्म हो चुकी है, मगर उसके अंदर मौजूद प्लास्टिक और मेटल्स का अभी भी उपयोग किया जा सकता है।
मैन्युफैक्चरर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के अंदर मौजूद केमिकल्स को रीसाइकिल कर उन्हें नए या रीफर्बिश्ड प्रोडक्ट्स में लगा सकते हैं। इस एक आसान उपाय का नतीजा बहुत शानदार निकलेगा। इससे प्लास्टिक वेस्ट और ई-वेस्ट में भारी कमी आएगी।
अब वक्त आ गया है कि हम स्टैंड लें। पर्यावरण को बचाने के लिए ब्रैंड न्यू प्रोडक्ट्स लेने के बजाय रीफर्बिश्ड गुड्स खरीदें।