हमारे समाज में बचपन से ही सबको रटा दिया जाता है कि पढ़ाई-लिखाई करने से ही नवाब बना जा सकता है। यह बात हर दर्जे तक बिल्कुल उपयुक्त भी है लेकिन इस कहावत को अब थोड़ा मॉडिफाई करने की भी ज़रूरत है। दरअसल इस कहावत के साथ जीते-जीते हम बाकी सब बातें भूल जाते हैं और हमारा पूरा फोकस सिर्फ और सिर्फ वहीं अटका रहता है। माना कि सही पढ़ाई-लिखाई के बिना हम कहीं स्टैंड नहीं करते हैं मगर लाइफ में और भी बहुत से गंभीर मुद्दे हैं, जिनके प्रति हमें ध्यान देना ज़रूरी है और अब बच्चों की कंडीशनिंग उसी तरह से होनी चाहिए। फिलहाल के हालात को देखते हुए बच्चों को आपके सही गाइडेंस की ज़रूरत है, उन्हें ऐसे हालात का सामना करने के लिए मज़बूत बनाएं और इसके दूरगामी प्रभावों से भी परिचित करवाएं।
नज़रिया बदल रहा है कोरोनावायरस
कोरोनावायरस (coronavirus) के कहर ने सारी दुनिया के तारतम्य को बदल कर रख दिया है। जिन कंपनीज़ ने कभी बेहद मजबूरी में भी अपनी एंप्लॉइज़ को वर्क फ्रॉम होम की सुविधा नहीं दी थी, उनके पास भी अब इसके सिवा कोई चारा नहीं है। जो लोग घर की हर बेसिक ज़रूरत को पूरा करने के लिए मार्केट का रुख किया करते थे, अब वे भी ऑनलाइन ऑर्डर करने में ही भलाई समझ रहे हैं। बड़ी से बड़ी कंपनीज़ भी इन दिनों अपने घुटने टेकने पर मजबूर हो रही हैं। ऐसे में भारतीय शिक्षण व्यवस्था (इंडियन एजुकेशन सिस्टम-Indian Education System) में भी एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है।
बात चाहे प्राइमरी एजुकेशन की हो, हायर सेकेंड्री की या यूनिवर्सिटी लेवल की, सभी जगह फेरबदल कर दिया गया है।
बदल रहे हैं तौर-तरीके
कोरोनावायरस के कहर की वजह से पूरा देश लॉकडाउन (lockdown) की स्थिति में है। मार्च से सभी स्कूल, कॉलेज व यूनिवर्सिटी बंद हैं। यहां तक कि इतिहास में पहली बार हर तरह की परीक्षाओं तक को टाल दिया गया है। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई का लॉस होना भी लाज़िमी था और इसीलिए भारत में ऑनलाइन एजुकेशन (eduation) के महत्व को समझते हुए आनन-फानन में हर लेवल के स्टूडेंट की पढ़ाई शुरू करवा दी गई। सभी को पता है कि महीने-6 महीने में कोरोनावायरस से जंग तो जीतनी ही है और उसके बाद ज़िंदगी फिर उसी पुराने ढर्रे पर भी लौट आएगी और ऐसे में बच्चों की पढ़ाई को जारी रखना भी ज़रूरी है।
ऑनलाइन एजुकेशन के मायने
प्राइमरी के बच्चे भी अब हाथों में फोन और टैबलेट लिए नज़र आते हैं, वजह है उनकी पढ़ाई का अचानक से ऑनलाइन मोड में चले जाना। आज-कल स्टूडेंट्स (students) और टीचर्स घंटों ऑनलाइन मीडियम को समझने और फिर उसे अपनी ज़िंदगी में शामिल करने की कोशिश में लगे हुए हैं।
जिन बच्चों को 2021 की बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी करनी थी या कॉलेज के फाइनल ईयर के जो स्टूडेंट्स प्लेसमेंट के इंतज़ार में बैठे थे, उनके लिए इंतज़ार की ये घड़ियां काफी लंबी और तनावपूर्ण साबित हो रही हैं। वे मानसिक तौर पर परेशान हो रहे हैं और गजब की बात है कि हमारे घरों का सिस्टम कुछ ऐसा है कि हर बच्चा अपने माता-पिता से इस स्ट्रेस के बारे में बात भी नहीं कर सकता!
डिप्रेशन में बच्चे
हम और आप तो कोरोनावायरस के कहर के खत्म होने के बाद एक बार फिर ज़िंदगी के उसी पुराने ढांचे में वापिस लौट जाएंगे। हो सकता है कि हम में से काफी लोगों को इस दौरान आर्थिक तौर पर काफी नुकसान उठाना पड़े, मगर मुझे लगता है कि हमारी ज़िंदगी इन मासूमों से तो आसान ही रहेगी। जहां स्कूल जाने वाले बच्चों को इतने महीनों बाद अचानक स्कूल जाने की दिनचर्या को अपनाना पड़ेगा तो वहीं कॉलेज के सीनियर स्टूडेंट्स को लंबे समय तक नौकरी न मिलने या कम आमदनी में संतोष करने वाली स्थिति से गुज़रना पड़ेगा।
सिर्फ इतना ही नहीं, कोर्स कवर करने के लिए पड़ने वाले दबाव के कारण इन सभी का मेंटल स्ट्रेस डबल होने की भी आशंका है।
पेरेंट्स को रखना होगा ध्यान
लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी हालात सामान्य होने में काफी समय लग सकता है। ऐसे में बच्चों के साथ ही अपने इमोशनल बैलेंस और मेंटल हेल्थ का भी पूरा ख्याल रखें। घर में रहें, सुरक्षित रहें।