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टॉप 9 जरूर देखने लायक बॉलीवुड फिल्में, जो ज्यादा चल नहीं पाईं – Most Underrated Top Bollywood Movies

Richa Kulshrestha  |  Jun 28, 2018
टॉप 9 जरूर देखने लायक बॉलीवुड फिल्में, जो ज्यादा चल नहीं पाईं – Most Underrated Top Bollywood Movies

बॉलीवुड की जो भी फिल्में रिलीज होती हैं, उनमें से कुछ ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल हो पाती हैं और फिर ये भी जरूरी नहीं कि सभी हिट फिल्म बहुत अच्छी ही हों। हिट होने के लिए बहुत अच्छी स्टोरीलाइन या फिर बहुत अच्छी एक्टिंग हो, यह जरूरी नहींं, कई बार किसी एक एक्टर या एक्ट्रेस का होना ही फिल्म के हिट होने की वजह बन जाता है तो कभी- कभी फिल्म के लिए हुआ प्रचार उसे हिट बनाता है। ऐसे में बहुत सी फिल्में ऐसी भी होती है, जो बहुत अच्छी एक्टिंग और बहुत अच्छी पटकथा होने के बावजूद ज्यादा चल नहीं पातीं और फ्लॉप हो जाती हैं। ऐसी फिल्मों के बारे में लोग भी ज्यादा जान नहीं पाते। हम आपको ऐसी ही कुछ फिल्मों के बारे में यहां बता रहे हैं, जिन्हें मिस नहीं करना चाहिए। हो सके तो इन फिल्मों को आप जरूर देखें –

ट्रैप्ड – Trapped (2017)

जैसा कि इस फिल्म के नाम से ही स्पष्ट है कि‍ कोई फंस गया है। ये और कोई नहीं फिल्म का हीरो शौर्य (राजकुमार राव) है। वह फंसा है एक बिल्डिंग की 35वीं मंजिल के एक फ्लैट में। न उसके पास खाने को कुछ है और न पीने को। बिजली भी नहीं है। बिल्डिंग में कोई भी नहीं है। उसे नीचे लोग नजर आ रहे हैं पर उसकी आवाज उन तक नहीं पहुंचती। वह कई तरीके आजमाता है, लेकिन सभी बेअसर साबित होते हैं। वह वहां कैसे फंसा? बाहर निकल पाया या नहीं? इसके जवाब के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। राजकुमार राव का अभिनय शानदार है। डर, जीत, झुंझलाहट, हार, संघर्ष के सारे भाव उनके चेहरे पर देखने को मिलते हैं। गीतांजली थापा का रोल छोटा जरूर है, लेकिन वे उपस्थिति दर्ज कराती हैं। कौनसी फिल्मे चल रही हैं

अ डेथ इन द गंज – A death in the gunj (2017)

कोंकणा सेन शर्मा निर्देशित ‘अ डेथ इन द गंज’ बांग्‍ला परिपाटी की हिंदी फिल्‍म है। कोंकणा सेन शर्मा की यह फिल्‍म बांग्‍ला के मशहूर फिल्‍मकारों की परंपरा में हैं। इस फिल्‍म के लिए कोंकणा सेन शर्मा ने अपने पिता मुकुल शर्मा की कहानी को आधार बनाया है। यह फिल्‍म छोटे-बड़े सभी कलाकारों की अदाकारी के लिए याद रखी जा सकती है। सभी संगति में हैं और मिल कर कहानी को रोचक बनाते हैं। रणवीर शौरी और कल्कि कोचलिन का अभिनय उल्‍लेखनीय है।

द गाज़ी अटैक – The Ghazi attack (2017)

1971 में भारत पाक के बीच हुई जंग से पहले गहरे समुद्र में ढाई सौ से तीन सौ मीटर पानी के नीचे एक ऐसी जंग लड़ी गई, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है। करन जौहर ने एक ऐसी वॉर को लेकर पूरी ईमानदारी के साथ फिल्म बनाने का जोखिम उठाया है, जिसके बारे में कोई नहीं जानता। बांग्ला देश बनने से पहले भारत – पाक के बीच 1971 में हुई जंग के बारे में हम जानते हैं, लेकिन इससे पहले समुद्र के नीचे गहरे पानी के बीच एक ऐसी जंग भी हुई जिस जीत ने 71 की जंग को हमारी सेना के लिए आसान बना दिया। पानी के अंदर लड़ी गई इसी जंग पर बनी यह एक ऐसी बेहतरीन फिल्म है जिसे देखते वक्त आप भारतीय होने पर गर्व महसूस कर सकेंगे।

हरामखोर – Haramkhor (2017)

हरामखोर’ एक असामान्‍य प्रेम त्रिकोण है जो कि मानवीय भावनाओं और संबंधों की जटिलता को उजागर करता हैा यह तीन किशोरों और एक शादीशुदा शिक्षक की कहानी है जो प्‍यार, वासना और हिंसा की दुनिया में उलझे हैं, फिल्म 13 जनवरी 2017 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। इस फिल्‍म से बॉलीवुड में श्‍वेता त्रिपाठी का डेब्‍यू हो रहा हैा नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने इसमें स्‍कूली शिक्षक का किरदार निभाया है तो वहीं श्‍वेता त्रिपाठी विद्यार्धी की भूमिका में हैं।

निल बटे सन्नाटा – Neel Battey Sannata (2016)

निल बटे सन्नाटा के निर्माता-निर्देशक ने एक बाई के किरदार को लीड में लेकर फिल्म बनाई है। ये फिल्म उस वर्ग का प्रतिनिधित्व रखती है जिसे समाज में खास महत्व नहीं दिया जाता है। आजकल के उच्च और मध्यम वर्ग में ‘बाई’ के बिना कोई काम नहीं होता। इस फिल्म के माध्यम से बताया गया है कि बाई को भी सपने देखने का हक है। नितेश तिवारी ने उम्दा कहानी लिखी है। कहानी नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली है, लेकिन फिर भी दर्शकों का मनोरंजन करती है। फिल्म में मां-बेटी के रिश्ते को भी बहुत ही खूबसूरती के साथ दर्शाया गया है। किशोर उम्र के बच्चे मां- बाप के खिलाफ अक्सर विद्रोही तेवर अपना लेते हैं। यहां फिल्म में भी एक बच्ची को यही शिकायत रहती है कि उसकी मां बाई है और उसे ज्यादा पढ़ा नहीं सकती है, लेकिन उसकी मां इसे गलत साबित करती है।

आंखों देखी – Aankho Dekhi (2014)

आंखों देखी  रजत कपूर निर्देशित एवं लिखित बॉलीवुड फ़िल्म जिसके निर्माता मनीष मुंद्रा हैं। फ़िल्म में मुख्य अभिनय भूमिका में संजय मिश्रा और रजत कपूर हैं। फिल्म जितनी साधारण है उतना ही साधारण हैं फिल्म के किरदार। लेकिन फिल्म को अपनी बेहतरीन एक्टिंग से खास बना देने वाले अभिनेता संजय मिश्रा ने इसमें लोगों को हैरान कर दिया है। इस किरदार को देखने के बाद दर्शकों को उनके परिवार के उन बुजुर्गों की याद आ गयी जिन्हें समझने में वो अक्सर गलती कर बैठते हैं या फिर जिन्हें समझने की कोशिश ही नहीं करते, ये सोचकर कि उनका दिमाग खराब हो गया है। लेकिन असल में उनके दिमाग में क्या चल रहा है और खुद को कितना अकेला महसूस कर रहे हैं ये कोई नहीं समझता।

लुटेरा – Lootera  (2013)

लुटेरा फिल्म एक प्रेमकहानी है जो विक्रमादित्य मोटवानी द्वारा निर्देशित है और ओ हेनरी की लघुकथा द लास्ट लीफ पर आधारित है। इसे 1950 के दशक पर आधारित बनाया गया है। इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका में रणवीर सिंह और सोनाक्षी सिन्हा हैं। इस फ़िल्म के निर्माता अनुराग कश्यप, एकता कपूर, शोभा कपूर और विकास बहल हैं। फ़िल्म का पार्श्व गीत और पृष्ठभूमि अमित त्रिवेदी द्वारा तथा सम्पूर्ण संगीत अमिताभ भट्टाचार्य द्वारा तैयार किया गया है तथा चलचित्रण महेन्द्र जे॰ शेट्ठी द्वारा निर्मित है। विक्रमादित्य मोटवानी की फिल्म लुटेरा ने भले ही बॉक्स ऑफिस ना लूटा हो लेकिन सोनाक्षी सिन्हा ने अपनी बेहतरीन अदाकारी से दर्शकों का दिल जरूर लूट लिया।

मद्रास कैफे – Madras Cafe  (2013)

मद्रास कैफे भारतीय राजनैतिक रहस्यों पर आधारित फ़िल्म है जिसका निर्देशन शूजित सरकार ने किया है।फ़िल्म में जॉन अब्राहम, नर्गिस फ़ख़री और राशि खन्ना मुख्य अभिनय भूमिका में हैं। फ़िल्म 80 के दशक और 1990 के पूर्वार्द्ध को प्रदर्शित कर रही है, जिस समय श्रीलंकाई में गृहयुद्ध के दौरान भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्याकाण्ड को दर्शाया गया है। पात्रों के नाम बदल दिये गये हैं। फ़िल्म भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या पर आधारित है। फ़िल्म की शुरुआत उस दृश्य के साथ होती है जिसमें रॉ एजेंट विक्रम सिंह (जॉन अब्राहम) चर्च में एक पादरी के सामने स्वीकार करता है कि उन्हें बचाया जा सकता था। फिर वही बताता है कि कैसे अलगाववादी संगठन ने पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश रचती, क्योंकि उसे डर है कि वो सत्ता में दोबारा आ गए तो श्रीलंका में तनाव ख़त्म करने की दिशा में कड़े कदम उठा सकते हैं, जो वो नहीं चाहता था।

शंघाई  – Shandhai  (2012)

डायरेक्टर दिबाकर बनर्जी की ‘शंघाई’ एक पॉलिटिकल थ्रिलर है, जिसमें बड़ी खूबसूरती से राजनैतिक दलों की सभाएं, जुलूस, राजनीति का ग्लैमर, इसके दांवपेंच, आईएएस−आईपीएस अफसरों की लॉबिंग और सड़क पर हिंसा करते कार्यकर्ताओं के सीन फिल्माए गए हैं। प्रोग्रेस के नाम पर एक बस्ती को तोड़कर इंटरनेशनल बिज़नेस पार्क बनाने की योजना पर आधारित है फिल्म ‘शंघाई’। एक ही वक्त में सोशल एक्टिविस्ट की हत्या और आइटम नंबर का कंट्रास्ट बेहतरीन हैं। ऑर्केस्ट्रा और पटाखों के शोर में ’भारत माता की जय’ जैसे गीत में जबर्दस्त एनर्जी है और देश की हालत पर कटाक्ष भी। अभय देओल, इमरान हाशमी, पीतोबाश त्रिपाठी ने दमदार एक्टिंग की है।

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