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Chhath Puja kyu Manaya Jata Hai | जानिए छठ पूजा कब है, छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई और छठ पूजा से जुड़ी जरुरी बातें

Shruti Kharbanda  |  Nov 8, 2021
Chhath Puja kyu Manaya Jata Hai | छठ पूजा कब है

छठ पूजा (Chhath Pooja) का यह दिन भगवान सूर्य को समर्पित है। खासतौर पर बिहार और पूर्वांचल के निवासी इस दिन को विशेष श्रद्धाभाव से मनाते हैं। छठ पर्व पर वे जहां भी होते हैं, सूर्य भगवान की पूजा (why chhath puja is celebrated in hindi) करना और उन्हें अर्घ्य देना नहीं भूलते हैं। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व बड़ा ही कठिन होता है और यह पूर्वांचल के अहम पर्वों में से एक माना जाता है। यहां पढ़ें छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं संदेश। इसमें शरीर और मन को पूरी तरह साधना पड़ता है, इसलिए इस पर्व को ‘हठयोग’ भी माना जाता है। आइए, जानते हैं कि कैसे मनाते हैं यह पर्व और क्या है छठ पूजा (chhath puja in hindi) से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।

Chhath Puja Kab Hai | छठ पूजा कब है

2022 में छठ पूजा (chhath puja 2022) का त्योहार 30 अक्टूबर से शुरू होगा। दरअसल, 29 अक्टूबर को खरना किया जाएगा और इसके बाद 30 अक्टूबर 2022 को छठ के महापर्व (2022 छठ पूजा) का संध्याकालीन अर्घ्य है। बता दें कि छठ, 4 दिवसीय त्योहार होता है और छठ (chhath kab hai) की शुरुआत भाईदूज के तीन दिन बाद होती है।

जानिए छठ पूजा से जुड़ी 7 अहम बातें

Chhath Puja kyu Manaya Jata Hai | क्यों मनाया जाता है छठ का पर्व

कई लोगों के जहन में ये सवाल भी आता है कि छठ पर्व क्यों मनाया जाता है (chhath puja kyu manaya jata hai) तो हम आपको बता दें कि छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिन्दू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं, जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है। छठ पर्व, छठ या षष्‍ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। भारत में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध यह पर्व मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण ‘छठ’ के नाम से जाना जाता है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। सूर्य की पूजा का यह त्योहार मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। छठ पूजा (chhath puja) सूर्य और उनकी बहन छठी म‌इया को समर्पित है। खास बात ये है कि छठ में कोई मूर्ति पूजा शामिल नहीं है। अब छठ पूजा की विधि जानने से पहले यहां छठ पूजा से जुड़ी अहम बातें जान लें।

Chhath Puja 2022 Vidhi in Hindi | छठ पूजा की विधि

छठ पूजा (chhath puja ki vidhi) एक ऐसा पर्व है, जो पूरी तरह से साधक को अपनी इंद्रिय जनित कमजोरियों पर विजय दिलाता है। इसके साधक इसकी कठोरता से ज़रा भी विचलित हुए बिना पूरे श्रद्धा और समर्पण भाव से इस व्रत को करते हैं। त्योहार के अनुष्ठान चार दिनों तक मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। इसमें मुख्य उपासक आमतौर पर महिलाएं होती हैं। हालांकि, बड़ी संख्या में पुरुष भी अभूतपूर्व श्रद्धा के चलते इस उत्सव का पालन करते हैं। कुछ भक्त दंडवत अवस्था में परिक्रमा भी करते हैं।

आमतौर पर सौभाग्य का प्रतीक माने जाते हैं ये व्रत

यह पर्व चार दिनों का है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है। छठ पूज पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है (chhath puja vidhi) पहले दिन (chhath puja samagri in hindi) सेंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रति दिन भर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब 7 बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं।अंतिम दिन उगते हुए सूर्य (chhath puja karne ki vidhi) को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा (chhath puja vidhi in hindi) में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसुन, प्याज का सेवन वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां का संपूर्ण वातावरण बहुत ही भक्तिमय व सात्विक होता है। आप यहां Chhath Puja ka Gana भी देख सकते हैं। अंत में लोगों को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं और व्रत को संपूर्ण मान लिया जाता है।

Environmental Importance Of Chhat Puja in Hindi | छठ का पर्यावरणीय महत्व क्या है

पर्यावरणविदों का दावा है कि छठ सबसे पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्योहार है। छठ पूजा का महत्व (chhath puja ka mahatva) पर्यावरण के लिहाज से भी है क्योंकि इसका स्वरूप व मनाने का ढंग पूरी तरह से प्रकृति को समर्पित है। असल में यह है ही प्रकृति की पूजा। इसके पूजन के केंद्र में सूर्य हैं और पूजन सामग्री मौसमी फल-सब्जियां, जो कि प्रकृति का आभार स्वरूप हैं। यह त्योहार भारतीय लोगों के अतिरिक्त नेपाली लोगों द्वारा भी बहुतायत में मनाया जाता है।

Chhath Puja History in Hindi | छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई

छठ पर्व छठ षष्ठी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली के बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाए जाने व मान्यता के अनुसार सूर्य भगवान की बहन छठी मइया को समर्पित होने के कारण ही इसका नाम छठ पड़ा है। ऐसा माना जाता है कि देव माता अदिति ने छठ पूजा की थी। (chhath puja kya hai) एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गए थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र त्रिदेव रूपी आदित्य भगवान ने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाई थी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया। रामायण में भी उल्लेखित एक मान्यता के अनुसार, लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। (Chhath Puja History in Hindi) सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वे प्रतिदिन कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे और उनकी कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।

Chhath Puja mei Kya Kya Hota Hai | छठ पूजा का संपूर्ण स्वरूप क्या है

छठ पूजा (chhath puja kya hoti hai) चार दिवसीय उत्सव है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं और पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं।

नहाय खाय

पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बना शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजन के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।

लोहंडा और खरना

दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नियत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है।

उषा अर्घ्य

चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती वहीं पुनः इकट्ठा होते हैं, जहां उन्होंने पूर्व संध्या को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। सभी व्रती तथा श्रद्धालु घर वापस आते हैं। व्रती घर वापस आकर पीपल के पेड़, जिसे ‘ब्रह्म बाबा’ कहते हैं, की पूजा करते हैं। पूजा के पश्चात् व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं, जिसे पारण या परना कहते हैं।

व्रत – Fast

छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है, जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह छठ व्रत अधिकतर महिलाओं द्वारा किया जाता है; कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिलाओं को परवैतिन कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कम्बल या चादर के सहारे ही रात बिताती हैं। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की गई होती है। व्रती को ऐसे कपड़े पहनना अनिवार्य होता है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘छठ पर्व को शुरू करने के बाद सालो-साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की कोई विवाहित महिला इसके लिए तैयार न हो जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’

सूर्य पूजा का संदर्भ

छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिन्दू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं, जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है। सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों को नमन किया जाता है।

Six Stages of Chhath Puja in Hindi | छठ पूजा के 6 चरण क्या है

योग में छठ पूजा के प्रक्रम को 6 चरण में बांटा गया है। छठ पूजा शुद्धिकरण 6 चरणों में पूरी होती है।
पहला – शरीर और आत्मा का निराविषीकरण, ऐसा व्रत अनुशासन और आत्मसंयम से संभव से किया जाता है। अपने शरीर और ध्यान को सूर्य की प्राण ऊर्जा पाने के लिए तैयार करते हैं।
दूसरा – नदी में आधा शरीर डूब जाने तक खड़े होकर सूर्य को अर्घ देना, ऐसा करने से सूर्य से मिलने वाली प्राण ऊर्जा से सुषुम्ना नाड़ी जागृत होती है ।
तीसरा – इस चरण में सूर्य की ऊर्जा आपकी आंखों से पीनियल ग्रंथियों तक पहुंचती है।
चौथे – चरण में आपके अंदर ग्रंथियां एक्टिवेटेड हो जाती हैं।
पांचवे चरण में – जैसे ही पीनियल ग्रंथि जागृत होती है, आपकी रीढ़ तरंगित होकर आपके अंदर की कुंडिलिनी शक्ति को जागृत करती है और आपकी इंटुइशन, यानी अंतर्दृष्टि को मज़बूत करतीहै।
छठे चरण में – व्रत धारण करने वाला स्वयं ऊर्जा का एक स्रोत बन जाता है और जगत को अपने व्यक्तित्व की सकारात्मक ऊर्जा से पोषित करने लायक बन जाता है।

छठ के बारे में पूछे जाने वाले सवाल और जवाब – FAQ’s on Chhath Puja in Hindi

छठ पूजा क्या सिर्फ बिहार में मनाई जाती है? 
नहीं, वर्तमान समय में छठ सिर्फ बिहार में नहीं मनाई जाती है, बल्कि अब तो यह देश-विदेश की सीमाएं भी लांघ रही है। इस व्रत के प्रति श्रद्धा भाव रखने वाले जहां भी रहते हैं, वहीं इस व्रत को पूरे भक्तिभाव से करते हैं। अब यह झारखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश के कई जगहों पर और नेपाल में भी बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है।
क्या यह पूजा सिर्फ छठ घाट पर ही हो सकती है?
जी हां, नदी के घाट पर होकर इस प्रक्रिया को करना ज़रूरी होता है। इसके पीछे वैज्ञानिक-धार्मिक कारण हैं। नदी सूर्य पूजा तो वैसे कहीं भी की जा सकती है, पर ख़ास समय और मुहूर्त पर करने से ही शरीर में कुंडिलिनी शक्ति जागृत होती है। सही समय और मुहूर्त धरती और सूर्य की सटीक दूरी के हिसाब से ही तय किया जाता है।

छठ पूजा का इतिहास क्या है?

छठ पूजा पहली बार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गए थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी।

छठ पूजा के पीछे क्या कहानी है?

सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वे प्रतिदिन कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे और उनकी कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।

छठ पूजा में किसकी पूजा की जाती है?

छठ पूजा में सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मइया की पूजा की जाती है।

छठ पूजा का मतलब क्या होता है?

छठ पूजा सूर्य, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी म‌इया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवतायों को बहाल करने के लिए धन्यवाद किया जा सके और इसलिए ही छठ का त्योहार मनाया जाता है।

हम उम्मीद करते हैं कि छठ पूजा पर हमारे इस लेख में आपको छठ पूजा कब है, छठ पूजा क्यों मनाया जाता है आदि सवालों के जवाब मिले होंगे।

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