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जानिए तीज का व्रत किस तरह है करवाचौथ से अलग और क्या है इसकी मान्यताएं

Supriya Srivastava  |  Aug 18, 2022
How teej is different from karvachauth

सावन के महीने में तीज पर्व का काफी महत्त्व है। तीज तीन प्रकार की होती है। हरियाली तीज, कजरी तीज और हरितालिका तीज। तीनों प्रकार की तीज की अलग-अलग मान्यताएं हैं मगर इन तीनों में एक बात कॉमन है और वो है सुहागिन स्त्री का अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखना, हाथों में मेहंदी लगाना और सोलह श्रृंगार करना। मगर ऐसा तो हम करवाचौथ पर भी करते हैं तो भला तीज, करवाचौथ से कैसे अलग हुई। अगर आपके मन में भी तीज को लेकर इस तरह के सवाल उठते हैं तो उसके जवाब हम यहां आपको देंगे। तीज और करवाचौथ दोनों ही सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु के लिए रखे जाते हैं। मगर इन दोनों के रीती-रिवाजों में बहुत फर्क है। जानिए तीज का व्रत किस तरह है करवाचौथ से अलग और क्या है इसकी मान्यताएं।

तीज का व्रत किस तरह है करवाचौथ से अलग

1- तीज तीन प्रकार की होती है, जबकि करवचौथ अपने आप में बस एक ही होता है। 

2- करवाचौथ पर सुहागिन महिलाएं चाहें तो अपनी शादी का लहंगा भी पहन सकती हैं मगर तीज में ऐसा नहीं कर सकते। दरअसल, तीज में हर साल नई और शुद्ध साड़ी या लहंगा पहनकर ही पूजा की जाती है। 

3- करवाचौथ का व्रत महिलाएं उसी दिन चांद देखकर खोल लेती हैं, वो भी अपने पति के हाथ से। जबकि तीज का व्रत 24 घंटे से भी कयदा लंबा चलता है। इसमें महिलाएं अगली सुबह भोर में सूरज निकलने से पहले नहा धोकर पूजा करके अपना व्रत खुद ही खोल लेती हैं। 

4- करवाचौथ में जहां सुहागिन महिलाएं चांद को अर्घ्य देखकर अपना व्रत खोलती हैं वहीं तीज में शिव-पार्वती और उनके पूरे परिवार का पूजन किया जाता है। 

5- करवाचौथ भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में तीज की धूम सबसे ज्यादा रहती है। 

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तीज की मान्यताएं 

तीज का व्रत शादीशुदा जोड़ों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पावन व्रत को गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती ने किया था जिसके फलस्वरूप भगवान शंकर उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए। ऐसी मान्यता है कि तीज का व्रत रखने से सुहागिन महिलाओं के पति की लंबी आयु होती है वहीं कुंवारी लड़कियों को यह व्रत रखने से अच्छे वर की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। यह व्रत करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान तो मिलता ही है, साथ में मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। मान्यता है कि यह पर्व वास्तव में सत्यम शिवम सुंदरम के प्रति आस्था और प्रेम का पर्व है।

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