महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की लड़ाई आज की नहीं है बल्कि बहुत पुरानी है। प्राचीन ग्रीस में लीसिसट्राटा नाम की एक महिला ने फ्रेंच क्रांति के दौरान युद्ध समाप्ति की मांग रखते हुए समानाधिकार आंदोलन की शुरूआत की, फारसी महिलाओं के एक समूह ने वरसेल्स में इस दिन एक मोर्चा निकाला, इस मोर्चे का उद्देश्य युद्ध की वजह से महिलाओं पर बढ़ते हुए अत्याचार को रोकना था। 1909 में 28 फरवरी को पहली बार अमेरिका में महिला दिवस (mahila divas) मनाया गया था। सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने न्यूयॉर्क में 1908 में गारमेंट वर्कर्स की हड़ताल को सम्मान देने के लिए इस दिन का चयन किया ताकि इस दिन महिलाएं काम के कम घंटे और वेतन के लिए विरेध कर अपनी मांग कर सकें।
इसके बाद साल 1913-14 में महिला दिवस युद्ध का विरोध करने का प्रतीक बनकर उभरा। इसी साल रुसी महिलाओं ने पहली बार अतंरराष्ट्रीय महिला दिवस फरवरी माह के आखिरी दिन पर मनाया और पहले विश्व युद्ध का महिलाओं ने विरेध भी किया। इसके बाद यूरोप में महिलाओं ने 8 मार्च को पीस ऐक्टिविस्ट्स को सपोर्ट करने के लिए रैलियां की। 1975 में यूनाइटेड नेशन्स ने 8 मार्च का दिन ही वुमन्स डे (antarrashtriya mahila diwas) मनाना शुरू किया। वहीं विश्व स्तर पर पहली बार 19 मार्च, 1911 को आस्ट्रिया डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। दो साल बाद इसकी तारीख को बदलते हुए यानी 1913 मैं इसे 8 मार्च कर दिया गया और तब से इसे हर साल मनाया जाता है।
दुनियाभर के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए महिला दिवस को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। पूरी दुनिया में महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की जाती है, समाधान खोजे जाते हैं और संकल्प लिए जाते हैं। इस दिन को मनाने के पीछे इसका उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है,था और रहेगा। शिक्षा पाकर लड़कियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनेंगी तो आर्थिक आजादी के साथ ही समानता की भावना भी समाज में प्रसारित होगी। अभी भी कई पिछड़े इलाकों और समुदायों में महिलाओं की स्थिति कुछ खास सही नहीं है, ऐसे में उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता जरूरी है। तभी वो अपनी सुरक्षा खुद कर पाएंगी, तब समाज, पुलिस और कानून भी उनकी मदद करेगा।8 मार्च का दिन सिर्फ और सिर्फ महिलाओं को ही समर्पित है। दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर महिलाओं को छुट्टी दी जाती है। अफगानिस्तान, क्यूबा, वियतनाम, युगांडा, कंबोडिया, रूस, बेलरूस और यूक्रेन कुछ ऐसे देश हैं जहां 8 मार्च को आधिकारिक छुट्टी होती है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (Antarrashtriya Mahila Diwas) उन संघर्षों का प्रतीक है जो दुनिया भर में महिलाओं को समानता और अधिकार हासिल करने के लिए किये गए हैं। इसके अलावा ये दिन यह भी दर्शता है कि अभी महिलाओं का और कितने आगे जाना है। हर महिलाओं को चाहिए कि वो इस दिन को खूब एंजॉय करें और अपनी सफलताओं का बखान करें। यहां हम आपको कुछ ऐसे तरीके बता रहे हैं जिनकी मदद से आप इस दिन को सेलिब्रेट (women's day celebration) कर सकते हैं। दुनिया भर में महिलाओं और उनके संघर्षों के बारे में अधिक जानकर खुद को शिक्षित करें। महिला समर्थक संगठन में राजनीतिक रूप से शामिल हों। सोशल मीडिया का उपयोग करके महिलाओं के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाएं। अपने जीवन में महिलाओं के लिए सहायक बनें। उन्हें बताएं कि वे आपके लिए कितना मायने रखती हैं।अपनी जान-पहचान की महिलाओं को फूल या फिर एक पौधा गिफ्ट में देकर उन्हें हैप्पी वूमन्स डे कहें।अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर कुछ लाइनें देश की महिलाओं की प्रगति उनके संघर्षों पर लिखें और अपने ज्जबात शेयर करें।आप चाहें तो इस दिन अपने घर या फिर किसी जगह पर अपने महिला मित्रों के साथ पार्टी का भी आयोजन रख सकते हैं। पूरी दुनिया में भले ही अलग - अलग तरीके से वूमन्स डे मनाते हों पर इसका उद्देश्य हर जगह महिलाओं को समानता और सम्मान देना ही है। लेकिन ऐसा नहीं है कि यह एक दिन ही निर्धारित है महिलाओं के सम्मान के लिए। घरेलू हिंसा, भ्रूण हत्या, बालात्कार, शोषण और अपमान जैसे ये घिनौने अपराध आए दिन महिलाओं के साथ होते रहते हैं और कुछ आवाजें तो बंद दरवाजों के पीछे ही दब जाती है। ऐसे में जररूत है हर किसी को अपनी सोच बदलने की। महिलाओं को पुरुष के बराबर इस समाज में समानता देनी की। महिलाएं समाज का वो आईना है जिसके बिना इस दुनिया की कल्पना भी मुश्किल है। इसीलिए उन्हें सम्मान से जीने दीजिए।
हमारे समाज में कई अपराध ऐसे होते हैं जिनके बारे में किसी भी तरह की कोई रिपोर्ट नहीं हो पाती है सिर्फ इसीलिए कि महिलाओं को अपने अधिकार ही नहीं पता होते हैं। भारतीय संविधान ने महिलाओं की सुरक्षा और उनके संरक्षण को देखते हुए कई अधिकार (women rights in india) उन्हें प्रदान किये हैं। यहां हम उन्हीं कुछ जरूरी कानूनी अधिकारों की जानकारी दे रहे हैं जिन्हें जानकर महिलाएं इनका सही इस्तेमाल कर सकती हैं।
मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत किसी भी पब्लिक व प्राइवेट सेक्टर की महिला कर्मचारी को प्रसव के बाद अब 12 नहीं बल्कि 24 हफ्ते यानि 6 महीने तक अवकाश मिलेगा। इस दौरान महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाएगी साथ ही अवकाश के बाद वो फिर से काम शुरू कर सकती है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति यानि पिता की संपत्ति पर अब जितना बेटे का हक है, उतना ही घर की बेटियों का भी। यहां तक कि ये अधिकार बेटियों के लिए उनकी शादी के बाद भी कायम रहेगा।
सभी अधिकारों के तहत ‘जीने का अधिकार’ सबसे अहम है जिसे किसी इंसान से नहीं छीना जा सकता है। अगर किसी महिला की मर्जी के खिलाफ उसका अबॉर्शन कराया जाता है, तो ऐसे में दोषी पाए जाने पर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। हां अगर, गर्भ की वजह से महिला की जान जा सकती है या गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांगता का शिकार हो तो अबॉर्शन कराया जा सकता है। इसके लिए 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट बनाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार किसी भी मामले में आरोपी साबित हुई महिला के गिरफ्तारी यानि की पुलिस हिरासत व कोर्ट में पेश करने के कई कानून बने हुए हैं। जिसका पालन करना जरूरी है। जैसे कि बिना महिला पुलिसकर्मी के लिए आरोपी महिला को हिरासत में नहीं लिया जा सकता है। साथ ही महिला के घरवालों को सूचित करना, लॉकअप में बंद करने से पहले उसके लिए अलग व्यवस्था करना जरूरी है।
लीगल ऐड कमेटी के तहत रेप पीड़िता को मुफ्त कानूनी सलाह व सरकारी वकील मुहैया कराने की पूरी व्यवस्था है। ऐसे में वो अदालत से गुहार लगा सकती है। उसे किसी भी तरह का कोई भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए एस.एच.ओ स्वयं ही ऐड कमेटी से सरकारी वकील की व्यवस्था करने की मांग करेगा।
किसी महिला के साथ मारपीट की गई हो या फिर उसे मानसिक प्रताड़ना दी गई हो जैसे कि ताने मारना या फिर गाली-गलौज या फिर किसी दूसरी तरह से इमोशनल हर्ट किया गया हो। तो वह घरेलू हिंसा कानून (डीवी ऐक्ट) के तहत मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत कर सकती है।
अगर कोई महिला लिव-इन रिलेशनशिप में है यानि बिना शादी किए किसी मेल पार्टनर के साथ एक छत के नीचे पति-पत्नी की तरह रहती है, तो उसे भी डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट यानि घरेलू हिंसा के तहत प्रोटेक्शन और प्रताड़ित करने व जबरन घर से निकाले जाने के मामले में मुआवजा भी मिलता है। ऐसे संबंध में रहते हुए उसे राइट-टू-शेल्टर भी मिलता है। सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना है कि लंबे समय तक कायम रहने वाले लिव-इन रिलेशन से पैदा होने वाले बच्चे को नाजायज नहीं करार दिया जा सकता।
महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखकर सरकार ने हर जगह और प्रदेश के अलग-अलग कई हेल्पलाइन नंबर जारी किये गये हैं। लेकिन वुमंस हेल्पलाइन नंबर 1091/1090 पूरे देश में कहीं भी कभी भी महिलाओं की मदद के लिए तत्पर है। इन पर फोन लगाकर तुरंत मदद पाई जा सकती है। इसके अलावा अगर कोई महिला अपनी किसी तरह की निजी समस्याओं सरकार तक पहुंचाना चाहती हैं तो नेशनल कमिशन फॉर वुमन (NCW) के जरिए अपनी बात रख सकती है। 0111-23219750 एन.सी.डब्लू का टोलफ्री नंबर है।
अपने मोबाइल फोन में जरूर रखें ये जरूरी इमरजेंसी एप्स - Emergency Mobile Apps
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के लिए बैंगनी (purple) रंग ही क्यों चुना गया है?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, बैंगनी महिलाओं के प्रतीक के लिए एक रंग है। ऐतिहासिक रूप से 1908 में ब्रिटेन में महिला सामाजिक और राजनीतिक संघ से उत्पन्न महिलाओं की समानता के प्रतीक बैंगनी, हरे और सफेद रंग का संयोजन, न्याय-गरिमा और नई आशा का प्रतीक है।
महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली पहली महिला कौन थी?
संयुक्त राज्य में महिलाओं के अधिकारों के लिए समर्पित पहली सभा 19-20 जुलाई, 1848 को सेनेका फॉल्स, न्यूयॉर्क में आयोजित की गई थी। सेनेका फॉल्स कन्वेंशन की मुख्य आयोजक एलिजाबेथ कैडी स्टैंटन थी, जिन्होंने सर्वप्रथम महिलाओं के अधिकारों के प्रति आवाज उठाई थी।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मूल्य (values) क्या हैं?
अलग-अलग लोगों के लिए इसके अलग-अलग मायने हो सकते हैं। लेकिन कुल मिलाकर, 10 मूल्य हैं जो अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का मार्गदर्शन करते हैं -
भारत में पुरुषों की तुलना में किस राज्य में महिलाएं अधिक हैं?
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत के केरल राज्य में प्रति 1000 पुरुषों पर 1084 महिलाओं का लिंगानुपात सबसे अधिक है।
भारत में महिलाओं के अधिकार एंव सम्मान की रक्षा किस आयोग के अंतर्गत आती है?
महिलाओं के अधिकारों एवं कानूनी हकों की रक्षा के लिए साल 1990 में संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई। भारतीय संविधान में 73वें और 74वें संशेाधनों (1993) के माध्यम से महिलाओं के लिए पंचायतों और नगरपालिकाओं के स्थानीय निकायों में सीटों में आरक्षण का प्रावधान किया गया है जो स्थानीय स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।