चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में LGBTQ कम्युनिटी के हित में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया है। इसके तहत देश में अब असल मायने में प्यार की जीत हुई है।
विशेष समुदाय को मिले समान अधिकार
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की खंडपीठ ने गुरुवार को LGBTQ समुदाय के हित में एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसके बाद वे भी देश में बाकी लोगों की तरह समान अधिकारों के साथ रह सकेंगे। पीठ ने IPC की धारा 377 को अतार्किक और अवैध बताया है। इस केस का फैसला 17 जुलाई को ही कोर्ट में सुरक्षित कर लिया गया था। समलैंगिक संबंधों को अवैध बताने वाली धारा को खत्म करने के फैसले के बाद इस समुदाय से जुड़े लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई है।
प्यार अब अपराध नहीं
कोर्ट के इस फैसले के बाद LGBT (लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर) समुदाय के लोगों को छिप कर नहीं रहना पड़ेगा। अब वे भी आम नागरिकों की तरह एक सुखी दांपत्य जीवन बिता सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के मुताबिक, दो बालिगों के बीच सहमति से बने अप्राकृतिक यौन संबंध को नाजायज नहीं ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने आम राय से कहा है कि अंतरंगता और निजता सबकी निजी पसंद है। धारा 377 संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्राप्त समानता के अधिकार को सीधी चुनौती दे रहा था।
नहीं छीन सकते अधिकार
सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक पीठ ने कहा कि देश में सभी को समान अधिकार मिले हुए हैं। नैतिकता की आड़ में ज़बर्दस्ती के कानून या नियम बनाकर उन्हें किसी से छीना नहीं जा सकता है। यौन प्राथमिकता जैविक और प्राकृतिक है, ऐसे में किसी को इससे वंचित नहीं किया जा सकता है। हर किसी को अपने हिसाब से जीने का अधिकार है, इसलिए जो जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकार किया जाना चाहिए। धारा 377 की वजह से LGBT समुदाय को समाज में जो भेदभाव झेलना पड़ रहा था, अब वे उससे बच सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सबको बेकरारी से इंतज़ार था और अब इसका तहेदिल से स्वागत किया गया है।
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