त्योहारों के देश के तौर पर मशहूर भारत में अलग-अलग महीनों में काफी जोर-शोर से कई त्योहार मनाए जाते हैं। सिर्फ हिन्दू पर्व ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों के पर्वों को भी यहां बेहद खुशी और तैयारियों के साथ मनाया जाता है। कुछ त्योहार नए मौसम का प्रतीक होते हैं तो कुछ नई फसल के, कुछ सादगी के साथ घर-परिवार के बीच मनाए जाते हैं तो वहीं कुछ समुदायों के साथ। कुछ त्योहार किसी राज्य विशेष में मनाए जाते हैं तो कुछ देशभर में मनाए जाते हैं। होली, दीवाली, नवरात्रि के साथ ही मुख्य तौर पर सिखों का त्योहार माने जाने वाले बैसाखी (Importance of Baisakhi in Hindi) को भी देश भर में काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
Baisakhi Kab Hai 2022 – बैसाखी कब है?
बैसाखी को किसानों का पर्व (Baisakhi Festival) कहा जाता है। पूरे देश में मनाया जाने वाला यह त्योहार पंजाब और हरियाणा के लोगों के लिए खासतौर पर महत्वपूर्ण है। इस विशेष त्योहार पर अनाज की पूजा कर प्रकृति को धन्यवाद दिया जाता है। अब बात करते हैं कि हर साल इतने जोश और खुशियों के साथ मनाई जाने वाली बैसाखी कब है (baisakhi kab hai)। हर साल बैसाखी का त्यौहार 13 या 14 अप्रैल को ही मनाया जाता है। दरअसल, इसके पीछे भी एक मान्यता है। सूर्य जिस दिन मेष राशि में प्रवेश करता है, उसी दिन बैसाखी का त्यौहार (Baisakhi festival) मनाया जाता है। ऐसा अमूमन हर साल 13 या 14 अप्रैल को ही होता है, जिसकी वजह से हर साल इन्हीं दो तारीखों में से किसी एक दिन बैसाखी (Vaisakhi) की तिथि पड़ जाती है। 2022 में भी 13 अप्रैल को बैसाखी का त्यौहार (Importance of Baisakhi in Hindi) मनाया जाएगा।
Baisakhi Kab Hai
बैसाखी क्यों मनाई जाती है? – Baisakhi kyu Manaya Jata Hai
वे अपनी अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद भी कहते हैं और इससे बैसाखी का महत्व सिद्ध हो जाता है। इसके अलावा बैसाखी का एक ऐतिहासिक महत्व भी है। सन 1699 में 13 अप्रैल को ही सिखों के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को खालसा के तौर पर संगठित किया था। उन्होंने आनंदपुर साहिब में खालसा पंत की नींव रखी थी। उस समय खालसा पंथ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त करवाना ही था।
बैसाखी का नाम कैसे पड़ा
किन राज्यों का प्रमुख त्योहार है बैसाखी
बैसाखी का त्यौहार खासतौर पर हरियाणा और पंजाब में मनाया जाता है। हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि इसे सिर्फ इन्हीं दो राज्यों में मनाया जाता हो। इन राज्यों का मुख्य त्योहार बैसाखी पूरे उत्तर भारत में काफी जोर-शोर के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा कई दूसरे राज्यों में भी इसे मनाने की परंपरा है। असम में बिहू के तौर पर लोकप्रिय बैसाखी के त्योहार को वहां फसल काटकर मनाया जाता है। वहीं, बंगाल में पोइला के नाम से मनाए जाने वाले इसी त्योहार के साथ उनका नववर्ष प्रारंभ होता है। केरल में यही त्योहार विशु के नाम से जाना जाता है। नाम कोई भी हो, इसे मनाने के कारण खुशियों से भरे हुए हैं और इसका जोश इन राज्यों के हर घर में देखा जा सकता है।
बैसाखी का धार्मिक महत्व
इसी वजह से बैसाखी के मौके पर धार्मिक नदियों में स्नान किया जाता है। इस दिन गंगा किनारे जाकर मां गंगा की आरती करना भी बेहद शुभ माना गया है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो बैसाखी का अलग-अलग राशियों पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिस वजह से इसे सौर नववर्ष भी कहते हैं।
कैसे मनाएं बैसाखी
इस त्योहार की तैयारी कुछ-कुछ दीपावली की तरह ही की जाती है। कई दिनों पहले से ही घरवाले इसकी तैयारियों में जुट जाते हैं। घरों की सफाई और रंगाई-पुताई करवाई जाती है, उनकी नई सजावट की जाती है। आंगनों या बैल्कनी में अल्पना या रंगोली सजाई जाती है।
दीवाली की ही तरह बैसाखी पर भी घरों में लाइटिंग की जाती है और दीयों व मोमबत्तियों से रोशनी की जाती है। अलग-अलग तरह के पकवान बनाकर घरों में खुशी का माहौल बनाया जाता है। सुबह स्नान आदि करके सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारा जाते हैं, वहां गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ होता है और कीर्तन भी करवाया जाता है। आज भी बैसाखी का त्यौहार मनाने के लिए नदियों के किनारे मेलों का आयोजन होता है, जिसमें बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, सभी शिरकत कर एक-दूसरे से मिलकर साथ में मस्ती करते हैं।
स्वर्ण मंदिर में बैसाखी
सिखों के मुख्य त्योहार बैसाखी की बात हो और पंजाब के अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर का ज़िक्र न किया जाए, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। बैसाखी के खास मौके पर स्वर्ण मंदिर यानि कि गोल्डन टेंपल (Golden Temple) की रौनक देखते ही बनती है। इस दिन पूरे प्रांत के लोग मत्था टेकने के लिए यहां आते हैं।
वैसे तो यहां हर दिन ही सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं, मगर बैसाखी वाले दिन सभी का उत्साह और भीड़ दोगुनी हो जाती है। यहां दरबार साहिब के दर्शन कर अरदास की जाती है। उसके बाद कीर्तन और शबद राग गायन का आयोजन किया जाता है। फिर वहां स्थित पवित्र सरोवर में डुबकी लगाई जाती है। स्वादिष्ट लंगर का स्वाद चख गुरु जी का आशीर्वाद लेकर भक्त वहां से वापसी करते हैं।
बैसाखी से जुड़े सवाल-जवाब (FAQ’s)
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