Table of Contents
- Navratri kab Hai
- Why We Celebrate Navratri in Hindi | क्यों मनाई जाती है नवरात्रि
- Importance of Sarasvati, Lakshmi and Durga in Navratri in Hindi | नवरात्रि में सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा का महत्त्व
- Significance of Red Color in Worship | पूजा में लाल रंग का महत्व
- जाने नवरात्रि की 9 देवियों, यानी दुर्गा के 9 रूपों के बारे में
- Kalash Sthapna ki Vidhi | नवरात्री (नव दुर्गा) कलश स्थापना पूजा विधि
- शारदीय नवरात्री से जुड़ें कुछ सवाल – FAQ’s
मां दुर्गा को समर्पित ये त्योहार पूरे देश में बहुत जोश के साथ मनाया जाता है। दरअसल नवरात्रि (Navratri) का त्योहार उत्सव से ज्यादा व्रत और साधना के लिए होता है। साधना – शक्ति की, अग्नि तत्व की, जो ज़िन्दगी में धन, ऊर्जा, सेहत और शुभता लाते हैं। देवी दुर्गा उस शक्ति का प्रतीक हैं, जो किसी भी काम को करने के लिए आपको चाहिए। नवरात्रि प्रकृति और धरती जैसी मातृ उर्जाओं के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का त्यौहार भी है, आइए जानते हैं कि नवरात्रि कब हैं (Navratri kab Hai)?
Navratri kab Hai | नवरात्रि कब है
नवरात्रि की महिमा तो हम सब जानते हैं, अब सवाल उठता है कि आखिर नवरात्रि कब है (Navratri kab Hai)? नवरात्रि के बारे में बात करें तो हिंदू पंचांग के अनुसार ये अश्विन माह की शुरूआत में ही मनाए जाते हैं और पंचाग के अनुसार, नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है। इस बार नवरात्रि का महापर्व 26 सितंबर, सोमवार से शुरू हो रहा है। नवरात्रि का त्यौहार 5 अक्टूबर, बुधवार तक मनाया जाएग और इसके बाद यानि दसवें दिन दुर्गा मां की प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा।.ये भी पढ़ें – नवरात्रि के शुभकामना सन्देश
Why We Celebrate Navratri in Hindi | क्यों मनाई जाती है नवरात्रि
नवरात्रि का मतलब है 9 रात्रि, यानी देवी पूजन की 9 रातें। नवरात्रि को दुर्गा पूजा भी कहा जाता है। यह सनातन धर्म का बहुत बड़ा त्योहार है। पुराणों में ऐसा उल्लेख है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने महिषासुर नाम के असुर को किसी भी पुरुष द्वारा न मारे जा सकने का वरदान दिया था। इस वरदान को पाकर महिषासुर में अहंकार जाग गया। पूरी पृथ्वी जीतने के बाद वह इंद्र लोक, यानी स्वर्ग जीतने के लिए निकल पड़ा। इंद्र की प्रार्थना पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव की संयुक्त शक्तियों से देवी दुर्गा उत्पन्न हुईं और महिषासुर से 9 दिन तक युद्ध करने के बाद दसवें दिन उसका सिर काट कर वध कर दिया। यह 9 दिन अच्छे की बुराई पर विजय के प्रतीक हैं, इसलिए दसवें दिन को दशहरा के रूप में भी मनाया जाता है। इसे विजयदशमी नाम भी दिया गया है। जानिए, मां दुर्गा के 9 रूपों के बारे में
मां दुर्गा को समर्पित ये त्योहार पूरे देश में बहुत जोश के साथ मनाया जाता है। हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से नवरात्रि साल में चार बार आती है- पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन में। इनमें से चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहते हैं। सर्दियों में पड़ने वाली नवरात्रि को शरद और अश्विन नवरात्रि कहते है। भारत में अश्विन मास की नवरात्रि ज्यादा प्रसिद्ध है। इस समय में दशहरा और दीवाली नज़दीक होने की वजह से धूमधाम और जश्न का माहौल होता है।
नवरात्रि के दौरान वास्तु से जुड़ी बातों को ध्यान में रख कर पूजा (pooja) करेंगे तो धन लाभ और इच्छा पूर्ति के प्रबल अवसर मिलेंगे।
Importance of Sarasvati, Lakshmi and Durga in Navratri in Hindi | नवरात्रि में सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा का महत्त्व
सरस्वती ज्ञान और कला की देवी हैं, लक्ष्मी धन की और दुर्गा शक्ति की देवी हैं। यह तीनों तत्व सफ़ल ज़िंदगी जीने के लिए बहुत ज़रूरी हैं। नवरात्रि के पहले 3 दिन दुर्गा माता के, बीच के तीन दिन लक्ष्मी और आख़िरी 3 दिन सरस्वती के होते हैं। यूं तो 9 दिन देवी के 9 रूप हैं, लेकिन अगर मुख्य रूप से विस्तार करें तो यह ऊर्जा के तीन रूप होते हैं। देवी दुर्गा उस शक्ति या ऊर्जा की प्रतीक हैं, जो किसी भी काम को करने के लिए चाहिए। वहीं किसी भी कार्य को करने के लिए जिस भी गुण या हुनर का सहारा लिया जाता है, उसका ज्ञान होता है देवी सरस्वती की कृपा से। लक्ष्मी जीवन के 4 पुरुषार्थों में से एक अर्थ (धन) को दर्शाती हैं। अर्थ का मतलब ‘प्रयोजन’ भी होता है , यानी किसी भी कार्य को करने का प्रयोजन माने मक़सद क्या है, क्योंकि किसी भी व्यापार को करने का मूल प्रयोजन धन ही होता है और लक्ष्मी जी साक्षात धन की देवी हैं। उन्हें पाने के लिए हम मेहनत करते हैं, पर उन्हें कैसे पाना है और उनके आगमन पर उन्हें कैसे प्रयोग में लाना है, यह जानना बहुत ज़रूरी हैं। यही आती हैं देवी सरस्वती। यदि हम सूक्ष्म भाव से देखें तो ये तीनों ही रूप एक-दूसरे के पूरक हैं। जीवन शक्ति से चलता है, शक्ति से अर्जित ज्ञान से ही हममें लक्ष्मी की प्राप्ति की सामर्थ्य आती है और इन्हीं के इर्द-गिर्द जीवन-चक्र चलता है।
Significance of Red Color in Worship | पूजा में लाल रंग का महत्व
सनातन धर्म में लाल रंग बहुत सी बातों का प्रतीक है, जैसे- शक्ति, मंगल ग्रह, अग्नि तत्व और धन की देवी लक्ष्मी आदि। लाल रंग शुभता और ऊर्जा का रंग भी है। ऐसा माना जाता है कि लाल रंग को देखने से, उस पर ध्यान लगाने से काम करने का उत्साह बढ़ता है। देवी दुर्गा भी शक्ति की प्रतीक हैं। अग्नि भी ऊर्जा का प्रतीक है। इस लिहाज़ से लाल रंग का पूजा में महत्व बहुत बढ़ जाता है। यही कारण है कि पूजा में लाल रंग के प्रयोग का बहुत महत्व होता है।
जाने नवरात्रि की 9 देवियों, यानी दुर्गा के 9 रूपों के बारे में
नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों का पूजन किया जाता है, जिसे नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।
शैलपुत्री – वह पर्वत हिमालय की बेटी है और नौ दुर्गा में पहली रूप है।
ब्रह्मचारिणी – दूसरा रूप मां ब्रह्मचारिणी की है।
चंद्रघंटा – तीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा। यह साहस की अभूतपूर्व छवि है।
कुष्मांडा- मां के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा। इनकी आभा सूर्य की तरह सर्वव्यापी है।
स्कंदमाता – देवी दुर्गा का पांचवा रूप है, स्कंद माता।
कात्यायनी – मां दुर्गा का छठा रूप है कात्यायनी।
कालरात्रि – मां दुर्गा का सातवां रूप है कालरात्रि।
महागौरी – आठवीं दुर्गा स्वरूपा महा गौरी हैं।
सिद्धिदात्री – मां का नौवा रूप है,सिद्धिदात्री।
Kalash Sthapna ki Vidhi | नवरात्री (नव दुर्गा) कलश स्थापना पूजा विधि
नवरात्रि में कलश स्थापना की भी काफी अहमियत मानी जाती है।
कलश स्थापना विधि (Ghat Sthapna Vidhi)
नवरात्रि में कलश स्थापना देवी-देवताओं के आह्वान से पूर्व की जाती है। कलश स्थापना करने से पूर्व आपको कलश को तैयार करना होगा, जिसकी सम्पूर्ण विधि इस प्रकार है-
सबसे पहले मिट्टी के साफ, बड़े से पात्र में थोड़ी सी मिट्टी डालें। फिर उसमें ज्वार के बीज डाल दें।
अब इस पात्र में दोबारा थोड़ी मिटटी और डालें और फिर बीज डालें। उसके बाद सारी मिट्टी पात्र में डाल दें और फिर बीज डालकर थोड़ा सा जल डालें।
(ध्यान रहे, इन बीजों को पात्र में इस तरह से लगाएं कि उगने पर यह ऊपर की तरफ उगें, यानी बीजों को खड़ी अवस्था में लगाएं।)
अब कलश और उस पात्र की गर्दन पर मौली बांध दें। साथ ही तिलक भी लगाएं। इसके बाद कलश में गंगा जल भर दें। यदि आप जहां रहते हैं, वहां इतनी मात्रा में गंगाजल उपलब्ध न हो तो साफ पानी लेकर उसी में गंगाजल की कुछ बूंदें डालकर भी कलश स्थापित किया जा सकता है। इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का भी डाल दें। अब इस कलश के किनारों पर 5 अशोक के पत्ते रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें। अब एक नारियल लें और उसे लाल कपड़े या लाल चुन्नी में लपेट लें। चुन्नी के साथ इसमें कुछ पैसे भी रखें। इसके बाद इस नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र से बांध दें।
तीनों चीजों को तैयार करने के बाद सबसे पहले जमीन को अच्छे से साफ़ करके उस पर मिट्टी का जौ वाला पात्र रखें। उसके ऊपर मिटटी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रख दें।
आपकी कलश स्थापना पूर्ण हो चुकी है। इसके बाद सभी देवी-देवताओं का आह्वान करके विधिवत नवरात्रि पूजन करें। इस कलश को आपको नौ दिनों तक मंदिर में ही रखें।
नव दुर्गा पूजन विधि
दुर्गा देवी की आराधना अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराण के अनुसार श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ ज़रूरी है।
पाठ विधि – श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक का विधिपूर्वक पूजन कर इस मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए।
‘नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।’
देवी व्रत में कुमारी कन्या पूजन परम आवश्यक माना गया है। सामर्थ्य हो तो नवरात्रि के प्रतिदिन, अन्यथा समाप्ति के दिन नौ कुंवारी कन्याओं के चरण धोकर उन्हें देवी रूप मान कर आदर के साथ, समता अनुसार भोजन कराना चाहिए एवं वस्त्रादि से सत्कार करना चाहिए। कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं का अर्चन विशेष महत्व रखता है। इसमें दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की काली, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष वाली कन्या सुभद्रा स्वरूपा होती है।
शारदीय नवरात्री से जुड़ें कुछ सवाल – FAQ’s
- नवरात्रि साल में कितनी बार आती है?
नवरात्रि साल में 4 बार आती है। हिन्दू केलेंडर में साल के पहले महीने अर्थात चैत्र में पहली नवरात्रि होती है। चौथे महीने आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में तीसरी और प्रमुख नवरात्रि होती है तथा इसी ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में चौथी नवरात्रि का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
- देवी की पूजा किस दिशा में करनी चाहिए?
वास्तु शास्त्र के मुताबिक देवी लक्ष्मी की दिशा अग्नि कोण कही जाती है, यानी दक्षिण-पूर्व अखंड दीप जलाने के लिए सर्वोत्तम है। दूसरी दिशा है उतर-पूर्व दिशा, इस दिशा में बैठ कर पूजा करने से ध्यान की शक्ति प्रगाढ़ होती है। दोनों में से किसी भी दिशा में बैठ कर पूजन किया जा सकता है।
- देवी को हम लाल रंग की ही चुनरी क्यों चढ़ाते हैं?
लाल रंग देवी का प्रिय रंग माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी को लाल रंग की चुनरी चढाने से हमें जीवन में उन्नति, समृद्धि, धन, स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- नवरात्रि पूजा में क्या न चढ़ाएं?
नवरात्रि पूजा में सभी तामसिक वस्तुओं की मनाही होती है। काले वस्त्र वर्जित होते हैं। देवी को नीले रंग के फूल भी नहीं चढ़ाए जाते।
- नवरात्रि का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?
यह त्यौहार शक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाता है।
- नवरात्रि हम 9 दिनों तक क्यों मनाते हैं?
क्योंकि नौ दिनों तक माता रानी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है।
- नवरात्रि के 9 दिन का मतलब क्या है?
नौ दिन नव दुर्गाओं को समर्पित हैं जिनके नाम क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और मां सिद्धिरात्रि है।
- नवरात्रि का इतिहास क्या है?
नवरात्रि वैदिक त्यौहार हैं। कहा जाता है कि महिषासुर और देवी दुर्गा का युद्ध शुरू हुआ, जो 9 दिनों तक चला। फिर दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। कहा जाता है है कि इन 9 दिनों में देवताओं ने रोज देवी की पूजा-आराधना कर उन्हें शक्ति देने का प्रयास किया था। तब से ही इन दिनों को नवरात्रि के रूप में मनाने की शुरुआत हुई।
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