यूं तो प्रत्येक मास की चतुर्थी श्री गणेश को ही समर्पित है। लेकिन भाद्रपद के महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को बहुत खास माना जाता है। मान्यता है कि इसी चतुर्थी को गणपति का जन्म हुआ था। इस अवसर पर लोग गणपति को 5, 7 या 9 दिनों के लिए घर पर लेकर आते हैं। गणेश चतुर्थी का ये उत्सव भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक चलता है। खासतौर पर ये पर्व महाराष्ट्र में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दौरान भक्त अपने घर में बप्पा की स्थापना कर उनकी विधि-विधान से पूजा करते हैं। साथ ही उन्हें अलग-अलग प्रकार के भोग भी लगाते हैं, जिससे गणपति उनके सभी दुखों का नाश कर उन्हें खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दें। ऐसे में भक्त कोशिश करते हैं कि प्रसाद बप्पा का पसंदीदा होना चाहिए।
अब ये तो सभी जानते हैं कि बप्पा को मोदक कितना ज्यादा पसंद हैं। भगवान गणेश को मोदक इसलिए भी पसंद हो सकता है क्योंकि यह मन को खुश करता है। शास्त्रों के अनुसार गणपति जी सदा खुश रहने वाले देवता माने गए हैं और अगर आप मोदक शब्द पर गौर करें तो इसका मतलब होता है खुशी। लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि आखिर सिर्फ मोदक की गणपति को क्यों प्रिय हैं और इसके पीछे क्या मान्यता है, आइए जानते हैं इसके बारे में –
आखिर मोदक ही क्यूं हैं गणपति को इतने प्रिय ? why lord ganesha likes modak
ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश को मोदक अति प्रिय है। वैसे इसके पीछे कई प्रचलित कथाएं और किवदन्तियां हैं। एक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव शयन कर रहे थे और द्वार पर गणेश जी पहरा दे रहे थे। परशुराम वहां पहुंचे तो गणेश जी ने परशुराम को रोक दिया। इस पर परशुराम क्रोधित हो गए और गणेश जी से युद्ध करने लगे। जब परशुराम पराजित होने लगे तो उन्होंने शिव जी द्वारा दिए परशु से गणेश जी पर प्रहार कर दिया। इससे गणेश जी का एक दांत टूट गया। दांत टूट जाने की वजह से उन्हें काफी दर्द हुआ और खाने पीने में परेशानी होने लगी। तब उनके लिए मोदक तैयार किए गए क्योंकि मोदक काफी मुलायम होते हैं। मोदक खाने से उनका पेट भर गया और वे अत्यंत प्रसन्न हुए। तब से मोदक गणपति का प्रिय व्यंजन बन गया। मान्यता है कि जो भी उन्हें मोदक का भोग लगाता है, गणपति उससे अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
दूसरी कथा ये है कि एक बार पार्वती जी ने विशेष लड्डू यानी मोदक बनाएं और अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय और गणेश जी से कहा कि जो भी अपने ज्ञान, बुद्धिमत्ता और शक्ति का परिचय देगा, वो ही इन मोदक का असली हकदार होगा। ऐसे में कार्तिकेय अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए पूरे ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करने निकल पड़ें, वहीं गणेश जी ने अपने माता-पिता शिव-पार्वती की परिक्रमा कर ये तर्क दिया उनके लिए उनके माता-पिता ही सारा संसार है। ऐसे में गणेश जी के इस तर्क से शिव जी और मां पार्वती काफी खुश हुएं और उन्हें तीनों लोकों में ज्ञान, विज्ञान और कला में सबसे निपुण होने का आशीर्वाद दिया। इसके साथ ही देवी पार्वती के हाथों बनाए गए मोदक भी गणेश जी के हो गए और तभी से उनके प्रिय भोग में मोदक शामिल हो गया।
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