गणेश उत्सव को पूरे उमंग और उल्लास के साथ देशभर में मनाया जाता है। गणेश उत्सव के दौरान ऐसा लगता है कि पूरे देश में कोई ऐसा त्योहार चल रहा है, जिसमें रंग और आतिशबाजी दोनों का संगम होता है। गणेश चतुर्थी से प्रारम्भ होकर यह उत्सव अनन्त चतुर्दशी तक, भगवान गणेश की प्रतिमा के विसर्जन तक मनाया जाता है। खास तौर पर महाराष्ट्र में गणेश उत्सव बहुत ही धूमधाम और खास ढंग से मनाया जाता है। हालांकि इस त्योहार को अब दक्षिण भारत व उत्तर भारत में भी बहुत ही श्रद्धा से मनाया जाने लगा है। लोग श्रद्धा से गणेश जी की मूर्ति की स्थापना अपने घर, गली, मोहल्ले में करते हैं और रोज उनकी पूजा, आरती व रंगारंग कार्यक्रमों से वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं।
गणेश उत्सव मनाने के पीछे एक पुरानी कहानी है। दरअसल श्री गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। इसीलिए हर साल इस दिन गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जाती है। भगवान गणेश के जन्म दिन के उत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष के दौरान भगवान गणेश का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश का जन्म मध्याह्न काल के दौरान हुआ था इसीलिए मध्याह्न के समय को गणेश पूजा के लिये ज्यादा उपयुक्त माना जाता है। गणेश पूजा के लिए लोग गणेश जी की मूर्ति को घर लाते हैं और पूरी भक्ति के साथ उनकी पूजा करते हैं। उसके बाद तीन, पांच या दस दिन बाद मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। विसर्जन करने के पीछे मान्यता है कि जिस प्रकार मेहमान घर में आते हैं तो कुछ लेकर आते हैं, इसी प्रकार भगवान को भी हम हर वर्ष अपने घर बुलाते हैं, वे घर में पधारते हैं तो जरूर सभी के लिए कुछ न कुछ लेकर आते हैं। इस प्रकार घर में खुशहाली व सुख- समृद्धि कायम रहती है। गणेश चतुर्थी के दिन से गणेश उत्सव का आरंभ होता है और फिर 11वें दिन यानि अनंत चतुर्दशी को गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ इसका समापन होता है।
गणेश उत्सव की शुरुआत सबसे पहले महाराष्ट्र में हुई थी। भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। शिव पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इस त्योहार को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। भारत के दक्षिण और पश्चिम राज्यों में इस त्योहार की विशेष धूमधाम रहती है। बताया जाता है कि भारत में जब से पेशवाओं का शासन था, तब से वहां गणेश उत्सव मनाया जा रहा है। सवाई माधवराव पेशवा के शासन में पूना के प्रसिद्ध शनिवारवाड़ा नामक राजमहल में भव्य गणेशोत्सव मनाया जाता था। जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने पेशवाओं के राज्यों पर अधिकार कर लिया। तब से वहां इस त्योहार की रंगत कुछ फीकी पड़नी शुरू हो गई। लेकिन फिर लोकमान्य तिलक ने गणेश उत्सव पर विचार किया और उन्होंने पुणे में सन 1893 में सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की। तब यह तय किया गया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) तक गणेश उत्सव मनाया जाए और तब से पूरे महाराष्ट्र में यह उत्सव 11 दिन तक मनाया जाने लगा। उसके बाद देश के बाकी राज्यों में भी इस पर्व को सेलिब्रेट किया जाने लगा।
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गणपति की अनुमति के बिना किसी भी देवता का कोई भी दिशा से आगमन नहीं हो सकता, इसलिए किसी भी मंगल कार्य या देवता की पूजा से पहले गणपति पूजन करना चाहिए। गणपति द्वारा सर्व दिशाओं के मुक्त होने पर ही पूजित देवता पूजा के स्थान पर पधार सकते हैं। इसी विधि को महाद्वार पूजन या महागणपति पूजन कहते हैं। आप भी इसी विधि- विधान के साथ अपने घर पर गणेश जी को स्थापित कर सकते हैं। हां, इस दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
अगर आप घर में पहली बार मूर्ति स्थापित कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि मूर्ति की सूंड बाईं ओर होनी चाहिए। कई लोग मां गौरी और भगवान गणेश को एक साथ पूजते हैं। इसलिए घर में स्थापित की जाने वाली मूर्ति की सूंड की दिशा की ओर अवश्य ध्यान दें।
गणपति जी की मूर्ति ऐसे स्थापित करनी चाहिए कि बप्पा की पीठ किसी भी कमरे की ओर न हो। सिर्फ उनके मुंह के दर्शन ही होने चाहिए। ऐसा माना गया है कि उनकी पीठ के पीछे दरिद्रता का निवास होता है।
भगवान की मूर्ति को कभी भी घर में बिना दिशाओं के ज्ञान के न रखें। खासकर गणपति जी की मूर्ति को भूलकर भी कभी दक्षिण दिशा की ओर स्थापित न करें। कोशिश करें कि मूर्ति को पूर्व या पश्चिम की ओर ही स्थापित करें। इससे बप्पा आपकी मनोकामना पूरी करेंगे।
घर में बप्पा को लाने से पहले ही उनकी स्थापना की जगह बना लें। कभी भी सीढ़ियों के नीचे भगवान की मूर्ति को स्थापित न करें क्योंकि सारा दिन सीढ़ियों से ऊपर- नीचे आते- जाते रहते हैं और धर्म के अनुसार, यह ईश्वर का अपमान है। वास्तु के हिसाब से ऐसा करने से घर में दुर्भाग्य आता है।
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गणेश उत्सव के लिए बप्पा को घर में स्थापित करना होता है इसलिए उसकी तैयारियां कई दिन पहले से करनी होती है। बप्पा की मूर्ति घर में स्थापित करने से पहले ऐसी कई महत्वपूर्ण तैयारियां हैं, जिन्हें जानना आपके लिए जरूरी है। जानें, गणेश उत्सव की तैयारी का सही तरीका।
गणेश उत्सव के लिए बाजारों में तरह- तरह के गणेश जी की मूर्तियां मिल जाती है। इसलिए चुनते वक्त काफी मुश्किल होता है कि कौन सी मूर्ति चुनें। मूर्ति खरीदने के दौरान सबसे पहले गणेश जी की सूंड देखें कि वह किस तरफ है। उसके बाद उनके दोनों पैरों को देखें। दरअसल जिस मूर्ति में गणेश जी के पैर जमीन को स्पर्श कर रहे होते हैं, वह मूर्ति शुभ होती है और इससे कामों में स्थिरता और सफलता मिलती है। इसके अलावा अगर आप कुछ दिन पहले से ही मूर्ति का चयन कर लेंगे तो वह आपको महंगी भी नहीं पड़ेगी और आपको मनचाही मूर्ति भी मिल जाएगी।
घर में गणेश उत्सव मनाने के लिए पूजा पांडाल का ध्यान रखने में ज्यादा दिक्क्त नहीं होती लेकिन जब सार्वजनिक पूजा पांडाल लगा रहे हों तो उसका खास ध्यान देना पड़ता है। सोसाइटीज में गणेश पूजा के लिए जो पूजा पांडाल लगता है, उसमें ध्यान देना पड़ता है कि वहां कितने लोग आ पाएंगे या फिर वह जगह पूजा के लिए ठीक है या नहीं।
गणेश उत्सव के दौरान मिठाइयों का खूब लेन- देन होता है। बप्पा के भोग से लेकर मेहमानों तक में मिठाई बांटी जाती है इसलिए कुछ दिन पहले ही कौन सी मिठाई बनानी है या फिर खरीदनी है, उसकी लिस्ट बना लें। ताकि उस समय किसी तरह की कोई भूल न हो।
गणेश उत्सव के दौरान लोग अपने घरों में बप्पा को भोग लगाने के लिए उनका पसंदीदा मोदक बनाते हैं। अगर गणेश उत्सव के दौरान मोदक का सामान लेने बाजार जाएं तो कई बार वह मिलता भी नहीं है क्योंकि उस समय मांग बहुत ज्यादा होती है। इसलिए आप पहले ही घर पर मोदक का सारा सामान लाकर रख लें ताकि बाद में आपको परेशान न होना पड़े।
गणेश उत्सव के दौरान घर में खूब सजावट की जाती है, जिसमें भांति- भांति के रंग- बिरंगे फूल होते हैं। इसलिए सजावट के लिए फूल और बाकी का सामान पहले ही लाकर रख लें। इससे आपको सही कीमत पर सब चीजें मिल जाएंगी।
बिना रंगोली के गणेश उत्सव का मजा नहीं आता। जब तक दरवाजे पर अलग-अलग रंगों की रंगोली न बनी हो तो लगता ही नहीं है कि घर में गणेश उत्सव मनाया जा रहा है। इसलिए आपको कौन सी रंगोली बनानी है और उसमें किस- किस रंग का प्रयोग करना है, पहले ही सोच कर अपने पास रख लें। यूं तो गणेश उत्सव पर रंगोली में सबसे ज्यादा लाल, पीले, नीले और हरे रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। कहते हैं कि ये रंग शुभ होते हैं और गणेश जी को पसंद भी आते हैं।
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गणेश पूजा करने के 4 मुख्य रिवाज होते हैं। इसमें सबसे पहला रिवाज त्योहार के पहले दिन घर में मूर्ति की स्थापना के साथ शुरू होता है, इसके बाद गणेश जी के 16 रूपों की पूजा की जाती है। तीसरे रिवाज में गणेश भगवान की प्रतिमा को स्थानांतरित किया जाता है और इसके आखिरी रिवाज में इस प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता है। इसे ही गणपति विसर्जन के रूप में मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी का त्योहार आते ही बप्पा के भक्त ढोल- नगाड़ों के साथ भगवान गणेश को अपने घर लाने में जुट जाते हैं। लोग इस मौके पर गणपति बप्पा की पूजा- अर्चना कर उनसे अपने घर में सुख- शांति बनाए रखने की कामना करते हैं। इसके अलावा एक और चीज ऐसी है, जिसका जिक्र इस मौके पर सबसे ज्यादा किया जाता है, वह है गणेश उत्सव का प्रसाद, मोदक। तो चलिए आज आपको बताते हैं इसे बनाना का क्या है सही और खास तरीका।
प्रसाद बनाने के लिए सामग्री
प्रसाद बनाने की विधि
स्टेप 1- सबसे पहले मोदक में भरने के लिए पिट्ठी बनाएं। इसके लिए गुड़ और नारियल को कड़ाही में डालकर गरम होने के लिए रख दें।
स्टेप 2- इसे तब तक चलाते रहें, जब तक कि यह मिश्रण गाढ़ा न बन जाए। इस मिश्रण में किशमिश और इलायची मिला दें।
स्टेप 3- अब 2 कप पानी में एक छोटा चम्मच घी डालकर गरम होने के लिए रख दें। जैसे ही पानी उबल जाए, गैस बंद कर दें। अब इसमें चावल का आटा और नमक डालकर अच्छी तरह से मिलाएं। इसके बाद इस मिश्रण को करीब 5 मिनट के लिए ढक कर रख दें।
स्टेप 4- चावल के आटे को बड़े बर्तन में निकाल कर हाथ से नरम करके आटा गूंथ लें। ध्यान रहे कि आटा मुलायम ही रहे।
स्टेप 5- अब घी की सहायता से मोयन तैयार कर लें। इसके बाद थोड़ा सा आटा लें और उसे चाहें तो छोटे साइज का बेल लें या फिर हथेली से ही बड़ा कर लें।
स्टेप 6- इसके बाद इसमें बीच में पिट्ठी को भरें और उंगलियों से मोड़ते हुए मोदक का शेप दें। अब किसी बर्तन में 2 गिलास पानी डालकर खौलने दें और उसके ऊपर छलनी या फिर किसी स्टैंड के ऊपर मोदक को रखकर पका लें। अब बप्पा को भोग लगा दें।
गणेश जी का डेढ़ दिन, 3 दिन, 5 दिन और 7 दिन के बाद विसर्जन किया जाता है। परंपरानुसार कहा जाता है कि श्री गणेश प्रतिमा को उसी तरह विदा किया जाना चाहिए जैसे हमारे घर का सबसे प्रिय व्यक्ति जब यात्रा पर निकले, तब हम उनके साथ व्यवहार करते हैं। इसलिए लोग नाचते- गाते हुए बप्पा को विदा कर आशीर्वाद मांगते हैं कि अगले साल भी बप्पा इसी तरह से हमारे घर आना। बप्पा के विसर्जन का ये है तरीका।
1. ईको फ्रेंड्ली गणपति का विसर्जन कैसे किया जाना चाहिए?
ईको फ्रेंड्ली गणपति को आप अपने घर में भी विसर्जित कर सकते हैं। क्योंकि वे पूरी तरह से पानी में गलकर विलीन हो जाएंगे। वे आधे- अधूरे और टूट- फूट के साथ रुकेंगे नहीं। उन्हें घर में विसर्जित कर अपने गमले में वह पानी डाल कर हमेशा अपने पास रख सकते हैं।
2. गणेश जी को घर में कितने दिन तक रख सकते हैं?
गणेश जी को घर में 10 दिन या डेढ़ दिन, 3 दिन, 5 दिन और 7 दिन तक रख सकते हैं।
3. गणेश उत्सव पर गणेश जी के अलावा और किस- किस भगवान की पूजा करते हैं?
गणेश जी के अलावा आप शिवजी और माता पार्वती की पूजा कर सकते हैं। उनकी मूर्ति भी बप्पा के साथ लगा सकते हैं।
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