हिमालय का कण-कण शिव-शंकर का स्थान है और जम्मू-कश्मीर की खूबसूरत वादियों के बीच भोलेनाथ हिमलिंग के स्वरूप में अमरनाथ गुफा में विराजते हैं। अमरनाथ मंदिर हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है, और हिंदू धर्म में सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है। इस स्थान का नाम अमरनाथ व अमरेश्वारा इसलिए पड़ा क्योंकि भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। अमरनाथ गुफा के शिवलिंग को ‘अमरेश्वर’ कहा जाता है। अमरनाथ की खासियत पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का बनना है। अपने आप बर्फ से बनने के कारण ही इसे स्वयंभू ‘हिमानी शिवलिंग’ या ‘बर्फ़ानी बाबा’ (baba barfani) भी कहा जाता है। अमरनाथ की यात्रा हर साल जुलाई माह में प्रारंभ होती है और यदि मौसम अच्छा हो तो अगस्त के पहले सप्ताह तक चलती है। भगवान शिव का सबसे बड़ा त्योहार है महाशिवरात्रि (Mahashivratri ki Hardik Shubhkamnaye) और इस मौके पर अमरनाथ बर्फ से ढका रहता है, लेकिन सावन के महीने में भगवान शिव स्वयंभू हिमलिंग के रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। आज यहां हम अमरनाथ मंदिर के बारे में विस्तारपूर्वक हर वो बात जानेंगे जो हर एक श्रद्धालु को जरूर पता होनी चाहिए।
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अमरनाथ शिवलिंग कैसे बनता है?
बहुत से लोगों के मन ये सवाल उठता होगा कि आखिर अमरनाथ में इतनी सारी गुफायें हैं लेकिन सिर्फ इसी खास गुफा में ही क्यों बर्फ शिवलिंग का रूप ले लेती है। तो हम आपको बता दें कि अमरनाथ गुफा की परिधि लगभग 150 फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें जगह-जगह पर टपकती रहती हैं। लेकिन ठीक बीचों बीच पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली बर्फ की बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बन जाता है। सबसे हैरान कर देने वाली बात तो ये है कि ये शिवलिंग कच्ची बर्फ का नहीं बल्कि ठोस बर्फ का बना होता है। इसी के साथ ही मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड अपने आप बन जाते हैं। साथ ही बाबा बर्फानी का शिवलिंग (baba amarnath) चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ घटना शुरू हो जाता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। लोगों के लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं है।
अमरनाथ मंदिर की मान्यता – Amarnath Mandir in Hindi
अमरनाथ मंदिर की मान्यता के बारे में पुराणों में कहा गया है कि काशी में दर्शन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना पुण्य देने वाले श्री बाबा अमरनाथ (amarnath mandir) के दर्शन हैं। कहते हैं कि जो भी भक्त कैलाश पर्वत के दर्शन कर लेता है उसे मोक्ष ही प्राप्त होता है। ईसा पूर्व लिखी गई कल्हण की ‘राजतरंगिनी तरंग द्वितीय’ में भी ये उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शिव के परम भक्त थे और वे पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग (baba barfani) की पूजा करने जाते थे। बर्फ का शिवलिंग कश्मीर को छोड़कर विश्व में कहीं भी नहीं मिलता।
इतिहासकार अबुल फजल (16वीं शताब्दी) ने आइना-ए-अकबरी में उल्लेख किया है, ”अमरनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है। गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। क्या यह चमत्कार या वास्तुशास्त्र का एक उदाहरण नहीं है कि चंद्र की कलाओं के साथ हिमलिंग बढ़ता है और उसी के साथ घटकर लुप्त हो जाता है।”
अमरनाथ की कथा – Amarnath Story in Hindi
अमरनाथ गुफा का रहस्य – Amarnath Gufa
अमरनाथ यात्रा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। अमरनाथ की पवित्र गुफा हिन्दुओं के लिए विशेष तीर्थ स्थल है। अमरनाथ गुफा (amarnath dham) से जुड़े कई रोचक रहस्य हैं, जिन्हें बहुत कम लोग ही जानते हैं। ये रहस्य एक अनसुलझी पहेली की तरह हैं जिनका जवाब मनुष्य के पास भी नहीं है। तो आइए जानते हैं बाबा अमरनाथ की यात्रा और अमरनाथ गुफा का रहस्य के बारे में –
- अमरनाथ मंदिर में हिम शिवलिंग के साथ ही एक गणेश पीठ व एक पार्वती पीठ भी हिम से प्राकृतिक रूप में निर्मित होता है।
- हमने सुना है कि भगवान शिव ने पार्वती को जब अमरता का मंत्र सुनाया था उस समय गुफा में उन दोनों के अलावा सिर्फ कबूतरों का एक जोड़ा मौजूद था। कथा सुनने के बाद कबूतर का जोड़ा अमर हो गया था। आज भी अमरनाथ गुफा में कबूतर का वो जोड़ा दिखाई देता है।
- कबूतर के जोड़े को लेकर ये भी आश्चर्य की बात है कि जहां ऑक्सीजन की मात्रा नहीं के बराबर है और जहां दूर-दूर तक खाने-पीने का कोई साधन नहीं है, वहां ये कबूतर किस तरह रहते होंगे? यहां कबूतरों के दर्शन करना शिव और पार्वती के दर्शन करना माना जाता है।
- अमरनाथ गुफा में बर्फ की बूंदों से बनने वाला यह हिमलिंग चंद्र कलाओं के साथ थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक बढ़ता रहता है और चन्द्रमा के घटने के साथ ही घटना शुरू होकर अंत में गायब हो जाता है। जो अपने आप में काफी रहस्यमयी है।
- अमरनाथ गुफा के आस-पानी पानी बहता है। लेकिन ये बात किसी को अभी तक नहीं पता चल पाई है कि आखिर इस पानी का स्त्रोत क्या है, कहां से आता है।
- अमरनाथ गुफा चारों तरफ से कच्ची बर्फ से ढकी होती है। मगर गुफा के अंदर स्थित बाबा बर्फनी का शिवलिंग पक्की बर्फ का होता है। लोगों के लिए ये बात भी एक रहस्य की तरह है।
अमरनाथ यात्रा करने के नियम
बाबा अमरनाथ की यात्रा को सुगम बनाने के लिए भारत सरकार और मंदिर (amarnath mandir) की देखरेख करने वाले अमरनाथ श्राइन बोर्ड की तरफ से कई नियम-कानून बनाये गये हैं। जोकि मंदिर और दर्शनार्थी दोनों के लिए सुरक्षादृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं। अन्य धार्मिक स्थलों की तुलना में अमरनाथ की यात्रा करना थोड़ा कठिन है। क्योंकि आप कभी भी किसी भी समय अमरनाथ की यात्रा पर जाने का निर्णय नहीं ले सकते हैं। इसीलिए यहां हम आपको अमरनाथ यात्रा करने के नियम व कानून के बारे में बताने जा रहें हैं, जिससे आपकी यात्रा सुगम बन सकती हैं –
- अमरनाथ की यात्रा हर साल 2 महीने के लिए ही शुरू होती है। बाकि समय बर्फ पड़ने की वजह से वो स्थान बंद रहता है।
- अमरनाथ की यात्रा में जाने के लिए हर साल अमरनाथ श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर इसके लिए ऑनलाइन बुकिंग जारी हो जाती है। यहां आप रजिस्ट्रेशन करवा कर ही अमरनाथ यात्रा पर जा सकते हैं।
- अमरनाथ की यात्रा पर जा रहे यात्रियों को अपने साथ पर्याप्त मात्रा में गर्म कपड़े ले जाने चाहिए। क्योंकि यहां अचानक तापमान गिर जाता है।
- इस जगह पर कभी अचानक से तेज बारिश शुरू हो जाती है इसीलिए अपने साथ वॉटरप्रूफ जूते, बैग व अन्य सामान जरूर साथ रखें।
- एक अहम सावधानी तो यही है कि इन यात्राओं पर बहुत छोटे बच्चों को ले जाना अवॉइड करें। यात्रा के दौरान या किसी भी आपात स्थिति में बच्चों की सुरक्षा काफी मुश्किल हो जाती है।
- आपात स्थिति के लिए अपने जेब में अपने नाम, पता, मोबाइल नंबर आदि की पर्ची जरूर रखें।
- गर्भवती महिलाओं व 75 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को इस यात्रा में शामिल होने की अनुमति नहीं मिलती है।
- इसके अलावा सुरक्षाबल व अमरनाथ श्राइन बोर्ड द्वारा जारी निर्देशों को सही से पालन करें।
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अमरनाथ मंदिर से जुड़े सवाल जवाब
अमरनाथ मंदिर भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में स्थित है। ये बालटाल अमरनाथ ट्रेक, वन ब्लॉक, अनंतनाग, पहलगाम में आता है। पहलगाम से गुफा तक की दूरी लगभग 51 किलोमीटर है और बालटाल से अमरनाथ मंदिर (amarnath mandir) की दूरी करीब 14 किलोमीटर है।
हर साल यहां लाखों यात्री पवित्र हिमलिंग के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। अमरनाथ की यात्रा अब बेहद सुगम हो गई है। अगर कोई व्यक्ति चॉपर से दर्शन करने जा रहा है तो उसे मात्र 1 दिन लगते हैं। लेकिन वहीं अगर कोई भक्त पहलगाम से पैदल यात्रा कर रहा है तो 5 दिन लगते हैं। इस दौरान रास्ते में बने कैंप आदि में वो रात को आराम कर सकता है।
अमरनाथ गुफा की खोज (amarnath gufa) बूटा मलिक नाम के एक मुस्लिम गड़रिया (बकरी चराने) वाले ने की थी।
अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने यात्रा के लिए घोड़ा, पालकी, टैंट और हैलीकाप्टर का किराया तय कर रखा है। आप इनमें से अगर किसी की सेवा लेकर अमरनाथ मंदिर तक जाना चाहते हैं तो अलग-अलग खर्चा आता है, मोटे तौर पर 5 से 10 हजार के बीच। अगर आप पैदल यात्री है तो रजिस्ट्रेशन फीस, सोने के लिए टेंट का किराया, खाना आदि मिलाकर 2-3 हजार के आसपास खर्चा आता है।
अमरनाथ की यात्रा आप बिना रजिस्ट्रेशन कराये नहीं कर सकते हैं। हर साल यात्रा शुरू होने से पहले अमरनाथ श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर इसके लिए ऑनलाइन बुकिंग जारी हो जाती है। यहां आप रजिस्ट्रेशन करवा कर ही अमरनाथ यात्रा पर जा सकते हैं।
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