भगवान शिव शंकर या फिर भोलेनाथ हिंदू धर्म के प्रमुख भगवानों में से एक हैं। हिंदू धर्म के लोगों की भगवान शिव शंकर के प्रति काफी भक्ति भावना है। यहां तक कि हिमालयों की बात करते ही हमारे दिमाग में भगवान शिव शंभू का ख्याल आता है या फिर तीर्थ धामों का सोचते हैं। वहीं महाशिवरात्रि का त्योहार भा आने वाला है तो चलिए इस महाशिवरात्रि के मौके पर हम आपको बद्रीनाथ मंदिर (badrinath mandir) और उससे जुड़ी भगवान शिव की मान्यताओं के बारे में बताते हैं।
बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास – Badrinath Temple History
![Badrinath Temple History in Hindi]()
बद्रीनाथ या फिर बद्रीनारायण (बद्रीनाथ मंदिर) उत्तराखंड के बद्रीनाथ शहर में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। बद्रीनाथ मंदिर (badrinath ki kahani), चार धामों में से एक है। यह मंदिर अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नाम के दो पर्वत श्रेणियों के बीच में स्थित है। इसे पंच बद्री में से एक माना जाता है। दरअसल, उत्तराखंड में पंच बद्री, पंच केदार और पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण हैं। यह ऋषिकेश से 214 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है और साथ ही यह शहर का मुख्य आकर्षण भी है। इस मंदिर की ऊंचाई करीब 15 मीटर है। पौराणिक कथा के मुताबिक, भगवान शंकर ने बद्रीनाथ (badrinath temple) की छवि एक काले पत्थर के ऊपर शालिग्राम में अलकनंदा नदी में तलाशी थी।
माना जाता है कि 16वीं सदी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठवाकर वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना कर दी थी। इसके अलावा ऐसी मान्यता भी है कि गुरु शंकराचार्य ने 8 वी सदी में मंदिर का निर्माण कराया था।
बद्रीनाथ मंदिर तीन भागों में विभाजित है। एक गर्भगृह, दूसरा दर्शनमंडप और तीसरा सभामंडप। इस मंदिर में 15 मूर्तियां स्थापित हैं और भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा भी यहां स्थापित है। इस मंदिर को पृथ्वी के वैकुण्ठ के रूप में भी जाना जाता है। बद्रीनाथ मंदिर (badrinath temple history in hindi) में प्रसाद के रूप में वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि चढ़ाया जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना
![Establishment of Badrinath Temple in HIndi]()
पौराणिक कथा की मानें तो यह स्थान भगवान शिव भूमि के रूप में जाना जाता है। दरअसल, भगवान विष्णु अपने ध्यान योग के लिए एक स्थान ढूंढ रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के पास शिव भूमि का स्थान बहुत पसंद आ गया। इस वजह से उन्होंने ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के पास बालक रूप धारण किया और रोने लगे।
रोने की आवाज सुन कर माता पार्वती और भगवान शिव उनके पास आए और बालक से पूछने लगा कि तुम्हें क्या चाहिए। तो बालक ने ध्यान करने के लिए देवभूमि का स्थान मांग लिया और इस तरह से भगवान विष्णु को शिव पार्वती से ध्यान योग करने के लिए शिव भूमि मिल गई और आज इस स्थान पर बद्रीनाथ मंदिर (badrinath dham) स्थापित है।
बद्रीनाथ मंदिर की मान्यता
बद्रीनाथ मंदिर से जुड़ी बहुत सी मान्यताएं हैं। इनमें से कुछ मान्यताएं आपने भी कभी ना कभी सुनी होंगी लेकिन यदि नहीं भी सुनी है तो यहां हम बद्रीनाथ मंदिर से जुड़ी कुछ मान्यताओं के बारे में बताने वाले हैं, जो काफी प्रचलित हैं।
![Importance of Badrinath Temple in Hindi]()
– बद्रीनाथ मंदिर की पौराणिक मान्यताओं की मानें तो जब गंगा नदी पृथ्वी पर अवतरित हो रही थीं तो गंगा नदी 12 धरोहर में बंट गई थीं। इस जगह पर मौजूद धारा बाद में अलकनंदा के नाम से मशहूर हुई थी।
– माना जाता है कि यह प्राचीन काल में बेरों के पेड़ों से भरा हुआ करता था और इस वजह से इस जगह के नाम बद्री पड़ गया था।
– यह भी माना जाता है कि बद्रीनाथ की गुफा में वेदव्यास ने महाभारत लिखी थी और पांडवों के स्वर्ग जाने से पहले यह उनका अंतिम पड़ाव था।
– यह भी मान्यता है कि बद्रीनाथ धाम में भगवान शिव को ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली थी।
– बद्रीनाथ के बारे में यह भी माना जाता है कि यहीं पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। इसके बाद अगले जन्म में नर का जन्म अर्जुन और नारायण का जन्म श्री कृष्ण के रूप में हुआ था।
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