मेरे कालेज का पहला साल था, अपने एक क्लासमेट पर मेरा जबरदस्त crush आ गया। मैं हमेशा girls school में पढ़ी थी इसलिए ट्यशन, इंटर स्कूल कंपीटीशन के अलावा लड़कों से बातचीत करने का ज्यादा मौका कभी नहीं मिला। लेकिन अब मैं ऐसे कालेज में पढ़ रही थी जहां लड़के भी थे इसलिए मैं अपने crush का हर जगह पीछा कर रही थी। हालांकि वो flirting में बिल्कुल भी interested नहीं था। वो मुझे friendly था लेकिन flirting …बिल्कुल नहीं। पर मैं उसका पीछा करती ही रही..कॉमन रूम में भी जहां वो हर रोज टेबल टेनिस खेलता था।
एक बात तो पक्की थी कि टेबल-टेनिस खेलकर उसका दिल जीतना मेरे लिए impossible था। इसलिए मैंने दोस्तों के साथ ताश खेलना शुरू किया। ताश के पत्तों के पीछे से उसे देखना मेरे लिए थोड़ा आसान था। एक महीने ताश खेलने के बाद मैंने महसूस किया कि मुझे उस crush वाले लड़के से ज्यादा interest ताश के पत्तों में आने लगा है। अपने ताश वाले दोस्तों के साथ गप्पें मारने में अब मुझे ज्यादा मजा आता था…उससे तो कहीं ज्यादा जितना एक प्लास्टिक की बॉल खेलते हुए लड़के को देखना।
जल्दी ही मैं ताश खेलने वाले इस ग्रुप की अच्छी दोस्त बन गई। ये सभी मेरे department में नहीं थे। इसलिए मेरी इनसे बहुत ज्यादा मुलाकात तो नहीं होती थी लेकिन शाम को छह से नौ बजे के बीच में हम मिलते थे। इन्हीं में से एक रणविजय, मुझे कुछ ज्यादा ही अटेंशन देने लगा था। मुझे अच्छा लग रहा था…ये सोच कर कि अब एक लड़का भी मेरा दोस्त है…अच्छा दोस्त..ये वो मोहल्ले वाला दोस्त नहीं है जिसके बाद मैं बड़ी हुई!!
एक Sunday मैं घर पर बैठकर टीवी देख रही थी कि तभी मेरी दादी ने आकर बताया कि मेरे लिए किसी लड़के का फोन आया है और फोन करने वाला लड़का अपना नाम नहीं बता रहा है। ये मेरे लिए अजीब था…मैं भागकर फोन के पास गई…(हां..ये वो टाइम नहीं था जब हर किसी के हाथ में मोबाइल हुआ करता था).. मैं उतनी ही बेसब्र थी ये जानने के लिए कि किसका फोन है जितनी मेरी दादी।
वो रणविजय का फोन था। हमने थोड़ी देर बात की…ताश के खेल ब्रिज की कुछ टेक्नीक को डिस्कस किया और फिर उसने पूछा, “क्या तुम ……?”
जी हां, उन दिनों लैंडलाइन फोन सिर्फ BSNL के होते थे और दो लोगों के बीच की बातचीत फोन के उसी कनेक्शन पर डिपेंड होती थी…!!
“Huh?” मैंने कहा।
“क्या तुम …. चाहिए [घरर्रर्ऱर्र]?”
इस फोन के disturbance के अलावा मेरे कान में मम्मी की आवाज भी गूंज रही थी जो मुझे खाना खाने के लिए बुला रही थी।
“मुझे तुम्हारी आवाज ठीक से सुनाई नहीं दे रही है!” मैंने कुछ धीरे आवाज में कहा।
“क्या तुम …. [घर्रर्रर्र]… …[घर्रर्रर्र]?” वो लगभग चिल्लाया।
“हां, हां, बिल्कुल!” मैंने जल्दीबाजी में कहा,“Bye, कल मिलते हैं!”
मैं उस वक्त सिर्फ जल्दी से जल्दी फोन रखना चाहती थी ताकि खाना खाने जा सकूं। मुझे कुछ ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था कि वो क्या कह रहा है और बार बार उससे पूछने में मुझे टाइम बर्बाद नहीं करना था।
Monday की सुबह मैं कालेज गई। मैं उस शाम रणविजय से पूछने वाली थी कि असल में उस वक्त क्या कह रहा था।
लेकिन अचानक वो मुझे मेरे ही क्लासरूम के बाहर मिल गया। वो मुझसे दो साल सीनियर था और उसका डिपार्टमेंट भी अलग था। बिल्डिंग में दूसरे विंग में उसकी classes लगती थी इसलिए उसे वहां देखकर मुझे अजीब लगा। तभी वहां मेरे दूसरे क्लासमेट्स आने लगे और मेरे प्रोफेसर भी आ गए। जल्दी में रणविजय ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा “मैं बहुत खुश हूं!”
“क्या?” मैंने कहा।
“मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम मेरी girlfriend बनने के लिए हां कर दोगी!”
“क्या?!”
उस वक्त मेरी पूरी क्लास और मेरे प्रोफेसर मुझे ही देख रहे थे। उस वक्त मेरे लिए उसे बताना possible नहीं था कि दरअसल मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा था। मैं घबराहट में सिर्फ थोड़ा मुस्कुरा दी और उससे हाथ छुड़ाकर अपनी क्लास में चली गई।
जैसे ही क्लास खत्म हुई, सबने मुझे घेर लिया। सब मुझसे treat मांगने लगे…वो सब मेरे “couplehood” को सेलिब्रेट करना चाहते थे। मैं उससे पहले किसी और को बताना नहीं चाहती थी कि वो सब सिर्फ एक misunderstanding है। इसलिए मैं सबके सामने भी सिर्फ मुस्कुरा दी…इससे सबको और यकीन हो गया कि मैं सच में उसकी girlfriend बन गई हूं।
जब तक मुझे रणविजय अकेले में मिलता, पूरे कालेज में ये खबर फैल चुकी थी कि हम दोनों couple बन गए हैं और सभी हम दोनों को रोमांस में होने के लिए रैग कर रहे थे। हैरानी की बात तो यह थी कि सिर्फ स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि हमारे प्रोफेसर भी हम दोनों को छेड़ रहे थे!!
“सुनो…” मैंने उससे कहा…
“I love you so much!” उसने बिना कुछ सुने कह दिया।
“…Um.” अब मैं क्या करुं????
“It’s okay,” उसने कहा, “तुम्हें कुछ कहने की जरुरत नहीं है, मुझे पता है तुम्हें शर्म आ रही है …”
मैं वहां से भाग गई। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसे कैसे बताऊं कि असल में हुआ क्या है, असल में मैं उसे इस तरह पसंद ही नहीं करती, मैंने उसके बारे में इस तरह से सोचा ही नहीं कभी, मैं तो उसे ठीक से जानती भी नहीं और इसलिए उसकी गर्लफ्रेंड बनने के लिए मैं तैयार ही नहीं हूं!!
घर जाकर मैंने अपनी best friend को फोन किया और उसे पूरे मामले के बारे में बताया। पहले तो वो पागलों की तरह हंसने लगी और फिर उसने कहा…कि एक बार try करने में कोई बुराई नहीं है।
“लेकिन मैं तो उसे ठीक से जानती तक नहीं- मैं तो ये भी नहीं जानती कि मैं सच में उसकी गर्लफ्रेंड बनना भी चाहती हूं या नहीं!”
“Well, तो तुम उसे धीरे धीरे जान ही लोगी…है न? उसके बाद फैसला कर लेना कि क्या करना है?” बात तो उसने सही कही थी।
अब हमारे दिन का रुटीन लगभग फिक्स हो गया था। हम क्लास अटैंड करते थे, फिर ब्रिज खेलते थे और शाम को मैं और रणविजय कॉफी पीने जाते थे। हम कभी साथ में फिल्म देखने नहीं जाते थे क्योंकि इस मामले में उसके पेरेंट्स काफी conservative थे और चाहते थे कि रणविजय हर हाल में रात नौ बजे तक घर वापस आ जाए। इससे पहले मैं कभी उसके साथ अकेली घूमने नहीं निकली थी। हम हमेशा दोस्तों के साथ ही घूमते-फिरते थे। मुझे पता चला कि वो अब तक यह नहीं सोच पाया है कि उसे कालेज के बाद क्या करना है। जबकि मैं अपने करियर को लेकर पूरी तरह sure थी। मैं academics में कुछ करना चाहती थी। मुझे पढ़ने का बहुत शौक था, उसे हर प्रिटेंड चीज से नफरत थी…उसे गेम्स पसंद थे।
करीब एक हफ्ते बाद मैंने उसे बताया कि दरअसल उन दिन फोन पर मैंने ठीक से सुना ही नहीं था कि उसने क्या कहा था…वो बहुत जोर से हंसा, उसने मुझ पर यकीन ही नहीं किया। इतने दिनों तक मेरी उसे यह बात बताने की हिम्मत ही नहीं हुई थी…आखिर कौन यकीन करेगा कि मैं इतनी छोटी बच्ची हूं जिससे किसी ऐसी चीज के लिए हां बोल दिया जो बात उसने ठीक से सुनी ही नहीं!!!
“नहीं, सच में,” मैंने कहा। जवाब में उसने मुझे अपनी तरफ खींचकर बाहों में ले लिया…उसने कहा, मजाक मत करो…साथ ही मुझे ये भी बताया कि मैं कितनी खुशनसीब हूं जिसे उस जैसा प्यार करने वाला मिला जो उसकी सारी बेवकूफियों को बरदाश्त करता है।
मैंने उसके बाद भी एक-दो बार कोशिश की उससे इस बारे में बात करने की लेकिन उसने हर बार मुझे चुप कर दिया। जब जब मैं उससे थोड़ा दूर जाने की कोशिश करती वो मुझे और ज्यादा अपनी ओर खींच लेता। उस फोन कॉल के बाद दो हफ्ते में ही ये आलम था कि वो हर पीरियड के बाद मेरे क्लासरूम के बाहर खड़ा मिलता था…सिर्फ मुझे hi-hello कहने के लिए! और मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि उसके इस ‘प्यार’ पर मैं कैसे रिएक्ट करुं…। मैं बेवकूफों की तरह इन सब में और उलझती जा रही थी..मुझे रिलेशनशिप का कोई experience नहीं था..मुझे लगा कि फिल्मों और किताबों के बाहर शायद ये सब ऐसे ही इसी तरह होता होगा। कोई घंटियां नहीं बजती शायद, कोई सरसों के खेत के बीच में से दौड़ता हुआ नहीं आता…ये सब बस यूं ही..बहुत रूटीन सा होता होगा..जैसा मेरे साथ हो रहा था।
लेकिन करीब एक महीने के बाद मुझे ये सब कुछ ज्यादा ही अजीब लगने लगा। उसके hugs पहले से ज्यादा टाइट होने लगे थे…वो ‘अनजाने’ में मेरे boobs और butts को छू चुका था…और मैं इन सब के लिए ‘भोली-भाली’ थी…लेकिन hello!! इतनी भी भोली नहीं थी मैं!!! वो हजारों बाद मुझे I love you बोल चुका था, मुझे एक बार भी वापस बोलने के लिए उसने जोर नहीं डाला…पूरी दुनिया मुझे उसकी गर्लफ्रेंड समझ रही थी लेकिन…मैं उसके लिए कुछ भी महसूस ही नहीं कर पा रही थी…कुछ भी मतलब कुछ भी!!!
शायद अब समय आ गया था जब मुझे उसे सच बताना ही चाहिए था। मुझे उसे बता देना चाहिए कि उसके ये tight hugs और प्यार भरी बातें मुझे बिल्कुल खुशी नहीं देती। मैं सोच चुकी थी।
अगली बार उसने मुझे अपनी ओर जैसे ही खींचा…मैंने सच बोलने के लिए अपना मुंह खोला ही था कि….उफ!! उसने मुझे kiss करना शुरू कर दिया!!
शायद ये सबसे…सबसे खराब मौका था जब मैं उसे यह सच बताने जा रही थी..मुझे भी अपनी पहली kiss का इंतजार था लेकिन…
वो एक अच्छा इंसान था, शायद मुझे सच में प्यार भी करता था लेकिन मैं नहीं करती थी…और यही सच था!
“रुको, please stop!” मैंने रोते हुए कहा।
“क्या हुआ baby?” उसने कहा।
वो रुक गया…और पहली बार लगा कि वो चाहता है मैं कुछ बोलूं!! Wow!! मैंने उसे बताया कि मैं अभी उसकी गर्लफ्रेंड बनने के लिए तैयार नहीं हूं।
लेकिन जब उसने मुझसे इसकी वह पूछी तो मैं सच नहीं बोल पाई…मुझे लगा कि सच उसके लिए बहुत ज्यादा …insensitive हो जाएगा। मैंने बहाने बताने शुरू किए…पढ़ाई है, मम्मी पापा नहीं मानेंगे…यह सब कहकर मैंने रोना शुरू कर दिया ताकि वो मुझसे ज्यादा सवाल न पूछ पाए। लेकिन मैं सच में रो ही रही थी… frustration की वजह से।
उसने ये सब सुनकर पूरी समझदारी दिखाई। उसने माना कि उसके पेरेंट्स भी यह बात कबूल नहीं कर पाएंगे कि उसकी गर्लफ्रेंड भी है। शायद इसलिए उसने मेरी बात पर भी यकीन कर लिया।
“हम तब भी अच्छे दोस्त रहेंगे…” उसने कहा।
“Of course!” मैंने जवाब दिया।
मैं वापस घर चली गई। इसके बाद कुछ महीनों तक मैं कालेज के उस कॉमन रूम तक भी नहीं गई जहां हम दोनों का सामना होने की गुंजाइश थी। वो मुझे कैंपस में कभी कभी दिखता था और दूर से ही हाथ हिलाकर हैलो करता था..मैं भी वापस हाथ हिलाकर जवाब दे देती थी।
शायद उसने यकीन कर लिया था कि असल में हमारा रिश्ता उसकी वजह से ही टूटा है..मेरे झूठे बहाने उसे वजह नहीं लगे थे शायद। करीब एक साल बाद उसने अपना बदला भी ले लिया। मैंने एक लड़के को डेट करना बस शुरू ही किया था कि उसने उसे बोल दिया कि मैं lesbian हूं। क्योंकि सारी दुनिया रणविजय और मेरी उस नकली रिलेशनशिप के बारे में जानती थी और यकीन करती थी, मेरे इस नए boyfriend ने उसकी बात पर भरोसा कर लिया और मुझे छोड़ दिया।
मैं बहुत young थी इसलिए मुझे इन सब चीजों से उबरने में टाइम नहीं लगा। लेकिन मैं आज उस सारी गड़बड़ के लिए उन लैंडलाइन फोन को जिम्मेदार मानती हूं।
F*** you, BSNL.
* लोगों की प्राइवेसी बनाए रखने के लिए नाम बदले गए हैं।
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Megha Sharma