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जानिए कैसे, कब और कहां से आये थे गांधी जी के य 3 बंदर 

Archana Chaturvedi  |  Oct 2, 2023
Three Monkeys

हर साल राष्ट्रपिता गांधी जी जयंती पर हम उन्हें याद करते हैं और उनकी दी गई सीख को लोगों के साथ साझा करते हैं। जब भी बापू का जिक्र होगा, उनसे जुड़े तीन बंदरों की भी बात होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन तीनों बंदरों का नाम बापू के साथ कैसे जुड़ा? आज यहां हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर कब और कहां से आये बापू के 3 बंदर, आइए जानते हैं इसके बारे में –

कब, कहां और कैसे आये गांधी जी के 3 बंदर | Three Monkeys Of Gandhi History in Hindi

हम सभी ने आइकॉनिक 3 बुद्धिमान बंदरों को देखा है, जो गांधीजी के साथ जुड़ने के कारण दुनिया भर में लोकप्रिय हो गए हैं। यह गुजरात के साबरमती आश्रम में भी एक विशिष्ट स्थान रखता है, जहां महात्मा गांधी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे गहन वर्षों के दौरान रुके थे। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये 3 बंदर बापू जी के पास भी कैसे आ गये। तो आपतो बता दें कि माना जाता है कि ये बंदर चीन-जापान से बापू तक पहुंचे। दरअसल, देश- विदेश से लोग अक्सर सलाह लेने के लिए महात्मा गांधी के पास आया करते थे।

बापू को उपहार में मिले थे बंदर

हालांकि, बहुत से लोग नहीं जानते कि चीनी मिट्टी से बनी यह मूर्ति निशिदात्सु फ़ूजी नामक एक जापानी भिक्षु ने महात्मा गांधी को उपहार में दी थी। यह जल्द ही गांधीजी की पसंदीदा संग्रहणीय वस्तुओं में से एक बन गई और उनकी अपनी विचारधारा में जोड़कर लोगों तक पहुंचाया। 

ऐसा कहा जाता है कि महात्मा गांधी के पास बहुत कम संपत्ति थी, चश्मा, सैंडल, एक पॉकेट घड़ी, एक छोटा कटोरा और प्लेट, और दिलचस्प बात यह है कि पांचवीं संपत्ति तीन बुद्धिमान बंदरों की एक मूर्ति थी। माना जाता है कि इन तीन बंदरों की उत्पत्ति कन्फ्यूशियस, ताओवाद और जापानी शिंटोवाद के लेखन में हुई है। ये बंदर भी बापू के 3 बंदरों की तरह हमारे कार्यों या अवलोकन, सुनने और बोलने से मिलते जुलते हैं।

जापानी शिंटो धर्म में तीन बंदर हैं –

• मिज़ारू बंदर – जो कोई बुराई नहीं देखता,

• किकाज़ारू बंदर – जो बुरा नहीं सुनता और

• इवाजारू बंदर – जो बुरा नहीं बोलता।

जापान से बापू के 3 बंदरों का गहरा नाता

माना जाता है कि ये बंदर चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के थे और आठवीं शताब्दी में ये चीन से जापान पहुंचे। उस वक्त जापान में शिंटो संप्रदाय का बोलबाला था। शिंटो संप्रदाय में बंदरों को काफी सम्मान दिया जाता है। जापान में इन्हें ‘बुद्धिमान बंदर’ माना जाता है और इन्हें यूनेस्को ने अपनी वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया है। वैसे, इन तीन बंदरों के प्यार से नाम भी हैं।

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