नया साल बॉलीवुड लवर्स के लिए एक से बढ़कर एक फिल्मों की सौगात लेकर आया है। सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित फिल्म ‘उरी’ (Uri) को मिली सफलता के बाद अब रानी लक्ष्मीबाई पर केंद्रित फिल्म ‘मणिकर्णिका : द क्वीन ऑफ झांसी’ (Manikarnika : The Queen of Jhansi) रिलीज़ हो चुकी है। बायोपिक के इस दौर में इस तरह की फिल्में बहुत पसंद की जा रही हैं। मगर क्या ये फिल्में वास्तव में पूरा सच दिखा पाती हैं या इनमें कुछ अधूरापन रह जाता है? फिल्म ‘मणिकर्णिका’ में कंगना रनौत (Kangana Ranaut) की एक्टिंग की काफी तारीफ की जा रही है मगर इस फिल्म में कुछ अधूरा रह गया है। जानिए, मणिकर्णिका (Manikarnika) की पूरी कहानी।
रानी लक्ष्मीबाई की गौरव गाथा
1857 में हुए देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाली रानी लक्ष्मीबाई (Rani LakshmiBai) के शौर्य से तो सभी परिचित हैं। उन्होंने अपनी ज़िंदगी को देश के प्रति समर्पित कर दिया था। फिल्म ‘मणिकर्णिका : द क्वीन ऑफ झांसी’ को देश के प्रति उनके समर्पण और त्याग के लिए एक ट्रिब्यूट माना जा रहा है मगर इतिहासकारों की मानें तो फिल्म में काफी कुछ अधूरा रह गया है।
दरअसल, रानी लक्ष्मीबाई को अपनी निजी ज़िंदगी में काफी कष्ट झेलने पड़े थे और उनके वीरगति को प्राप्त होने के बाद उनके बेटे की हालत भी काफी बदतर हो गई थी।
रानी लक्ष्मीबाई के बेटे की ज़िंदगी
बहुत कम लोगों को पता है कि रानी लक्ष्मीबाई के दो बेटे थे। 1851 में रानी ने एक बेटे को जन्म दिया था लेकिन मात्र 4 महीने में ही उसकी मृत्यु हो गई थी। रानी लक्ष्मीबाई के पति राजा गंगाधर राव की तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गई थी, जिससे कि उनका वंश आगे बढ़ सके। इन दोनों के दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया था। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवंबर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई थी। रानी लक्ष्मीबाई दामोदर राव को पीठ से बांधकर युद्ध लड़ने जाया करती थीं।
बिखर गई थी दामोदर की ज़िंदगी
रानी लक्ष्मीबाई के वीरगति को प्राप्त होने के बाद उनके दत्तक पुत्र दामोदर राव की ज़िंदगी बिखर गई थी। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में काफी कष्ट झेले। यहां तक कि अपना गुज़ारा भीख मांगकर भी किया। 1857 के युद्ध के दौरान लक्ष्मी बाई ने अपने पुत्र की ज़िम्मेदारी अपने विश्वासपात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख को सौंप दी थी।
2 साल तक वे दोनों ललितपुर के जंगल में भटकते रहे। अंग्रेजों के डर से कोई उनकी मदद तक नहीं करता था। काफी परेशानियों से जूझने के बाद वे झालरापाटन पहुंचे, जहां उन्हें नन्हे खान मिले थे। फिर नन्हे खान की सिफारिश के बाद दामोदर राव को 200 रुपये प्रति माह पेंशन मिलने लगी थी।
चाची ने करवाई शादी
दामोदर राव की चाची ही उनकी असल मां थीं। उन्होंने 1860 में दामोदर का विवाह करवा दिया था। कुछ समय बाद ही उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी और फिर शीघ्र ही उनका दूसरा विवाह भी करवा दिया गया था। अपनी दूसरी पत्नी से दामोदर को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी, जिसके बाद उनके वंश को आगे बढ़ाया जा सका। रानी लक्ष्मीबाई के वंशज इंदौर के अलावा देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी रहते हैं। ये सभी अपने नाम में सरनेम के तौर पर झांसीवाला लिखते हैं।
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