उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर का इतिहास कई सालों पुराना है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण के नाम पर सबसे पहले इस शहर का नाम ‘कान्हापुर’ पड़ा था। बाद में इसके नाम में कई बदलाव किये गए और आखिरकार ‘कानपुर’ नाम पर मोहर लग गई। ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं से भरपूर इस शहर में कई दार्शनिक स्थल मौजूद हैं। यहां प्राचीन मंदिरों के साथ ही रामायण के भी कुछ निशान मौजूद हैं। हम आपके लिए लेकर आए हैं कानपुर शहर के कुछ ऐसे ही प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों की लिस्ट, जहां एक बार दर्शन करने जाना बनता है। अगर आप कानपुर शहर से हैं और अभी तक इन मंदिरों में नहीं गए हैं या फिर यहां कुछ समय बिताने आए हैं तो इन प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन करने ज़रूर जाइयेगा।
कानपुर के प्रसिद्ध मंदिर – Famous Temples in Kanpur
जेके मंदिर – J.K. Temple
कानपुर शहर के सर्वोदय नगर में स्थित जेके मंदिर न सिर्फ कानपुर बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसे राधाकृष्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण जे.के. ट्रस्ट ने 20 मई 1960 में करवाया था। बेहद खूबसूरती के साथ डिजाइन किया गया यह मंदिर बेहतरीन कलाकारी और प्राचीन सभ्यता से भरा है। जेके मंदिर में भगवान श्री राधा और कृष्ण, भगवान श्री लक्ष्मी और नारायण, भगवान श्री अर्धनारीश्वर और भगवान श्री हनुमान की मूर्तियां विराजमान हैं। इनमें से श्री राधाकृष्ण मंदिर प्रमुख है।
दिन में दो बार दर्शन देकर समुद्र की गोद में छुप जाता है यह अनोखा मंदिर
इतना ही नहीं, मदिर की दीवारों पर भारतीय संस्कृति, सभ्यता, परंपराओं और आध्यात्मिकता की आत्मा को प्रदर्शित करती खूबसूरत मूर्तियां भी उकेरी गई हैं। यहां प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। शाम के समय रौशनी से सराबोर जेके मंदिर की खूबसूरती बस देखते ही बनती हैं। कानपुर आने वाला कोई भी शख्स यहां दर्शन किए बगैर वापस नहीं लौटता।
वाल्मीकि आश्रम – Valmiki Ashram
कानपुर के पास लगे बिठूर की अपनी अलग ऐतिहासिक पहचान है। यहीं पर स्थित है महर्षि वाल्मीकि आश्रम। इस आश्रम को लव- कुश की जन्म स्थली के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसी वाल्मीकि आश्रम में सीता माता ने लव- कुश को जन्म दिया था। यहां तक कि लव- कुश ने इसी जगह से शिक्षा भी प्राप्त की थी। वो पेड़ जिसके नीचे बैठ कर लव- कुश शिक्षा लिया करते थे, आज भी वहां मौजूद है। गंगा नदी के किनारे बसे इस वाल्मीकि आश्रम में एक ओर सीता रसोई भी बनी हुई है। माना जाता है कि यहीं पर माता सीता भोजन बनाया करती थीं। उस समय इस्तेमाल किए गए बर्तन भी सीता रसोई में मौजूद हैं। यहां तक कि वो कुआं, जिसका पानी माता सीता इस्तेमाल करती थीं, आज भी वहां मौजूद है और उस कुएं का पानी अभी भी नहीं सूखा है।
वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि जब अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा बिठूर पहुंचा तो लव- कुश ने उसे बांध लिया था। तब भगवान राम स्वयं यहां युद्ध के लिए आ पहुंचे थे। युद्ध के बीच में ही उन्हें पता चला कि जिन लव- कुश के साथ वे युद्ध कर रहे हैं, वे उनके ही पुत्र हैं। इसके बाद माता सीता की श्री राम से मुलाकात भी यहीं पर हुई थी। माना जाता है कि सीता जी यहीं पर धरती में समाई थीं। इस मंदिर में एक गड्ढे की पूजा भी की जाती है, जिसपर लिखा है, “सीता पाताल प्रवेश”।
इस मंदिर में मूर्ति की जगह पूजी जाती है देवी की योनि
पनकी पंचमुखी हनुमान मंदिर – Panki Panchmukhi Hanuman Mandir
कानपुर शहर के पनकी इलाके में बना है पनकी हुनमान मंदिर। इसे श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। लोग दूर- दूर से इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं। मंगलवार के दिन यहां जैसे लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मंदिर लगभग 400 साल पुराना है। माना तो यह भी जाता है कि इस मंदिर की स्थापना कानपुर शहर की स्थापना से भी पहले हुई थी। कहा जाता है कि इस मंदिर में जो व्यक्ति सच्चे मन से भगवान हनुमान के आशीर्वाद व दर्शन के लिए आता है, उसकी मनोकामना ज़रूर पूरी होती है। अगर आप कानपुर में हैं और अभी तक इस मंदिर के दर्शन के लिए नहीं गए, तो इसी मंगलवार जाने का प्लान बना लीजिए।
साल में सिर्फ एक बार 24 घंटे के लिए ही खुलते हैं इस अदभुत मंदिर के दरवाजे
बारा देवी मंदिर – Baradevi Mandir
कानपुर का बारा देवी मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। वैसे तो मंदिर के इतिहास के बारे में सही- सही जानकारी नहीं मिलती है लेकिन माना जाता है कि मंदिर की मूर्ति लगभग 15 से 17 सौ साल पुरानी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार पिता से हुई अनबन पर उनके गुस्से से बचने के लिए घर से एक साथ 12 बहनें भाग गई थीं। सारी बहनें इस जगह पर मूर्ति बनकर स्थापित हो गईं। पत्थर बनी यही 12 बहनें कई सालों बाद बारादेवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुईं। कहा जाता है कि बहनों के श्राप से उनके पिता भी पत्थर हो गए थे। वैसे तो भक्त पूरे साल इस मंदिर के दर्शन करने के लिए आते हैं मगर नवरात्रि के मौके पर लाखों भक्तों की अटूट आस्था बारा देवी मंदिर में भीड़ के रूप में उमड़ती है। माना जाता है कि कानपुर में बने बर्रा इलाके का नाम भी इसी मंदिर से प्रेरित है।
जैन ग्लास मंदिर – Jain Glass Temple
कानपुर शहर में कमला टावर के पास माहेश्वरी महल में स्थित है यह खूबसूरत जैन ग्लास मंदिर। जैसा कि नाम से ही पता चलता है, यह मंदिर पूरी तरह कांच से बना हुआ है। जैन ग्लास मंदिर को कानपुर के प्राचीन और भव्य मन्दिरों में से एक माना जाता है। खूबसूरत नक्काशी से बना यह मंदिर पर्यटकों को खूब पसंद आता है। मंदिर में कांच की अद्भुत सजावट की गई है। माना जाता है कि जैन ग्लास मंदिर का निर्माण जैन समुदाय द्वारा उनके धर्म के 24 तीर्थंकरों की स्मृति में करवाया गया था। इस मंदिर में भगवान महावीर और तीर्थंकरों की मूर्तियां भी हैं। ये मूर्तियां एक विशाल छतरी के नीचे संगमरमर के ऊपर बनी हैं।
इस मंदिर में देवी मां को आता है पसीना, देख लेने से हो जाती है मुराद पूरी
भीतरगांव मंदिर – Bhitargaon Temple
कानपुर के घाटमपुर तहसील क्षेत्र में स्थित एक कसबा भीतरगांव है। भीतरगांव में एक प्राचीन मंदिर है। मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 6वीं शताब्दी में भारत के स्वर्णिम गुप्तकाल के दौरान हुआ था। इस मंदिर का नाम भी इसी कस्बे के नाम पर आधारित है। ईंटों से निर्मित इस मंदिर की खोज का श्रेय अंग्रेज पर्यटक कनिंघम को दिया जाता है। भीतरगांव मंदिर को सबसे प्राचीन हिन्दू पवित्र स्थान माना जाता है। हालांकि मंदिर के गर्भगृह में किसी भी देवी- देवता की मूर्ती स्थापित नहीं है। इस मंदिर का पूरा ढांचा उस समय की वास्तुकला का जीता- जागता प्रमाण है। इस मंदिर की दीवारों पर खजुराहो की तर्ज पर पशु- पक्षियों और मनुष्यों की प्रतिमाएं खंडित अवस्था में बनी हुई हैं।
जगन्नाथ मंदिर – Jagannath Temple
कानपुर के भीतरगांव में एक और काफी प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर का नाम है जगन्नाथ मंदिर। माना जाता है कि जगन्नाथ मंदिर की स्थापना 11वीं सदी में हुई थी। यह मंदिर अपनी एक अनोखी विशेषता के कारण प्रसिद्ध है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यह मंदिर बारिश होने की सूचना 7 दिन पहले ही दे देता है। इसे अंधविश्वास कहें या फिर लोगों की आस्था, लेकिन मान्यता तो यही है। दरअसल भगवान जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह के शिखर पर एक पत्थर लगा है। मान्यता है कि मानसून आने के 7 दिन पहले यह पत्थर पानी टपकाकर बारिश का संदेश देने लगता है। मान्यता तो यह भी है कि मंदिर से टपकने वाली बूंदें जितनी बड़ी होती हैं, बारिश उतनी ही अच्छी होती है।
अनोखा है देवी का यह मंदिर, खीरा चढ़ाने से भर जाती है सूनी गोद
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