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करवा चौथ : सिर्फ पति या प्रेमी ही नहीं, इस रिश्ते के लिए भी रखा जाता है व्रत

Deepali Porwal  |  Oct 26, 2018
करवा चौथ : सिर्फ पति या प्रेमी ही नहीं, इस रिश्ते के लिए भी रखा जाता है व्रत

भारत में कई ऐसे त्योहार मनाए जाते हैं, जो हमें रिश्तों का महत्व और उनकी गहराई को समझना सिखाते हैं। इन त्योहारों के धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व से रिश्तों का गुलदस्ता महक उठता है। हर व्रत- त्योहार की अपनी अलग खासियत होती है। जहां त्योहार आमतौर पर हंसी- खुशी से पूरे परिवार व दोस्तों के साथ मनाए जाते हैं वहीं व्रत अक्सर किसी खास मकसद या व्यक्ति के लिए रखे जाते हैं। करवा चौथ (karwa chauth), तीज व छठ सौभाग्य का प्रतीक माने जाते हैं।

करवा चौथ का महत्व

सुहाग और सौभाग्य का पर्व करवा चौथ (karwa chauth) हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। 2018 में करवा चौथ का व्रत 27 अक्टूबर, शनिवार को है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पति की आयु लंबी होती है और दांपत्य जीवन में कभी भी वियोग का दर्द नहीं सहना पड़ता है। इसीलिए सभी सुहागन स्त्रियां पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस व्रत को रखती हैं। वे कई दिन पहले से इस व्रत की तैयारियां शुरू कर देती हैं और करवा चौथ की रात को सोलह श्रृंगार कर चंद्रमा की पूजा करती हैं। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति के हाथों पानी पीकर इस निर्जला व्रत को खोला जाता है। हालांकि, समय के साथ इस व्रत के मायने भी कुछ बदले हैं। अब यह व्रत सिर्फ विवाहित स्त्रियां ही नहीं रखती हैं, बल्कि मंगेतर और प्रेमिकाएं भी अपने पार्टनर के साथ की कामना करते हुए यह व्रत रखती हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि यह व्रत सिर्फ अपने साथी के लिए ही नहीं रखा जाता है?

मंगलकामना का व्रत है करवा चौथ

करवा चौथ का व्रत जहां पहले सिर्फ विवाहित स्त्रियां ही रखती थीं, वहीं अब कुंवारी लड़कियां भी राज़ी- खुशी इस व्रत का पालन करती हैं। अक्सर माना जाता है कि करवा चौथ का व्रत सिर्फ अपने पति, प्रेमी या मंगेतर के लिए ही रखा जाता है, जबकि यह मान्यता गलत है। दरअसल, भारत के कुछ क्षेत्रों में बहनें अपने भाइयों के लिए भी करवा चौथ का व्रत रखती हैं। ज्योतिषियों के अनुसार भी इस रीति में कुछ गलत नहीं है। भाइयों की लंबी उम्र व सौभाग्य के लिए रखे गए व्रत में भी करवा माता का उतना ही आशीर्वाद मिलता है, जितना कि साथी के लिए रखे जाने वाले व्रत में। राजस्थान के कई क्षेत्रों में बहनें इस व्रत का विधिवत पालन करती हैं। एक प्राचीन कथा में भी इस बात का उल्लेख है, जो कि महाभारत काल से जुड़ी हुई है। हालांकि, विवाहित स्त्री और कन्या द्वारा रखे जाने वाले करवा चौथ की विधि अलग- अलग है।

महाभारत में भी है उल्लेख

प्राचीन कथा को मानते हुए करवा चौथ के व्रत का औचित्य बेहतर तरीके से समझ में आता है। यह कथा भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी से जुड़ी हुई है। महाभारत युद्ध में सफलता हासिल करने के लिए अर्जुन नीलगिरी पर्वत गए थे। वहां तपस्या के साथ ही उन्हें युद्ध के लिए अस्त्र- शस्त्र भी इकट्ठे करने थे। काफी समय तक जब अर्जुन नहीं लौटे तो द्रौपदी को उनकी चिंता सताने लगी थी और ऐसे में उन्होंने श्री कृष्ण को याद किया था। द्रौपदी की समस्या का समाधान करते हुए श्री कृष्ण ने उन्हें करवा चौथ का व्रत करने की सलाह और विधि बताई थी। द्रौपदी श्री कृष्ण को अपना सखा और भाई मानती थी। उनकी सलाह मानते हुए द्रौपदी ने विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत रखा था और फिर अर्जुन अपनी तपस्या पूरी करके सकुशल वापस लौट आए थे। इसी कथा का उल्लेख होने के बाद से कुंवारी कन्याएं अपने भाई की सलामती के लिए करवा चौथ का व्रत रखने लगीं।

पूजन की विधि अलग- अलग

शास्त्रों के अनुसार, विवाहित स्त्रियां व कुंवारी कन्याएं, दोनों ही विधिपूर्वक करवा चौथ के व्रत का पालन कर सकती हैं। मगर दोनों की विधि में थोड़ा अंतर है। पति या प्रेमी के लिए रखा जाने वाला करवा चौथ का निर्जला व्रत चांद की पूजा करने के बाद खोला जाता है। वहीं, भाई के लिए रखा जाने वाला व्रत तारों को देखकर खोला जाता है। कुंवारी कन्याओं को विवाहित स्त्रियों की तरह सोलह श्रृंगार करने की भी कोई ज़रूरत नहीं होती है। हालांकि, शौकिया तौर पर वे मेहंदी लगाकर सज- संवर सकती हैं। जहां, पति, मंगेतर या प्रेमी के सौभाग्य के लिए रखा गया व्रत उनके द्वारा पानी पिलाने पर ही खोला जाता है। जिनके पति कहीं दूर होते हैं, वे स्त्रियां उनकी तस्वीर देखकर भी व्रत खोल लेती हैं। वहीं भाइयों के लिए रखे गए व्रत में इस विधि का उल्लेख नहीं है। उन्हें सिर्फ भाई की मंगल कामना करते हुए यह व्रत करना चाहिए।

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