करवाचौथ उत्तर भारतीय महिलाओं के लिए एक बेहद ख़ास धार्मिक अवसर है। ये व्रत सिर्फ धार्मिक कारणों और मान्यताओं के लिए ही नहीं, बल्कि पति-पत्नी के आपसी प्रेम और समर्पण का भी त्योहार है। करवाचौथ पति की लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला व्रत है।
करवाचौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, 'करवा' यानी मिट्टी का बरतन और 'चौथ' यानी 'चतुर्थी'। इस व्रत में मिट्टी के बरतन, यानी करवे का विशेष महत्व है। सभी विवाहित महिलाएं साल भर इस दिन का इंतजार करती हैं और करवाचौथ वाले दिन व्रत रखकर इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है। इस दिन महिलाएँ सूट, लेहेंगा-चोली या फिर करवा चौथ स्पेशल साड़ी पहनती हैं।
मान्यताओं और छांदोग्य उपनिषद के अनुसार करवाचौथ के दिन व्रत रखने व चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इससे जीवन में सभी तरह की मुसीबतों का निवारण तो होता ही है, साथ ही लंबी उम्र भी प्राप्त होती है। करवाचौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन को भेंट करनी चाहिए व उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
साल 2020 का करवाचौथ, बुधवार, नवम्बर 4 को है।
इस करवा चौथ अपने श्रृंगार में लगाएं चार-चांद और बना दें उन्हें अपना दीवाना
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, सभी विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु व अपने वैवाहिक जीवन में सुख-सौभाग्य की कामना से यह व्रत रखती हैं। उत्तर भारत में सूरज के उगने से लेकर रात में चांद के निकलने तक निर्जला व्रत रखा जाता है। इस व्रत की मूल उत्पत्ति या जड़ें उत्तर भारत में पाई जाती हैं, लेकिन यह समान श्रद्धा एवं विश्वास के भाव से पंजाब, मध्य प्रदेश व हरियाणा आदि जैसे कई भागों में प्रचलित है। पांचांग के अनुसार, ये व्रत कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तारीख को होता है, मतलब पूर्णिमा के बाद चौथे दिन पड़ता है।
उत्तर प्रदेश में सुहागनें दीवार पर गौरी मां की आकृति बनाकर पूजन करती हैं। इनके साथ ही चांद और सूरज भी बनाती हैं। मिटटी का करवा बना कर पूजा करती हैं और दीया जलाती हैं। दिन में औरतें घर में या मंदिर में सामूहिक रूप से पूजन करती हैं, कथी सुनती हैं और फिर शाम को चंद्रमा निकलने के समय पूरे सोलह सिंगार करके चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति के हाथों पानी पीकर व्रत को पूर्ण करती हैं और परिवार की बुजुर्ग महिलाओं का आशीर्वाद लेती हैं।
राजस्थान में करवा में चावल और गेंहू भरा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को रखने से न सिर्फ पति की उम्र लंबी होती है, बल्कि पति-पत्नी दोनों का साथ और उनका परस्पर प्रेम और विश्वास जन्म-जम्नांतर तक बना रहता है।
पंजाब में भी यह व्रत पूरे श्रद्धा एवं भक्ति भाव से मनाया जाता है। विवाहित महिलाएं सूर्योदय के समय सरगी ग्रहण करती हैं। उसके बाद पूरे दिन नर्जला व्रत करती हैं। इस अवसर पर वे पूरे मनोयोग से सोलह सिंगार करके अपने पति के प्रति अपना प्रेम व समर्पण प्रकट करती हैं। सुबह के समय सभी महिलाएं पूजन करती हैं। फिर दिन में सभी व्रत कथा सुनती हैं और करवे की अदला-बदली करती हैं। रात्रि के समय चंद्रमा उदित होने पर अर्घ्य देकर पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था, जिससे उसके सात महान पुत्र और वीरवती नाम की एक गुणवान पुत्री थी, क्योंकि सात भाइयों की वह केवल एक अकेली बहन थी, जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाइयों की भी लाड़ली थी।
जब वह विवाह के लायक हो गई, तब उसकी शादी एक ब्राह्मण युवक से हुई। शादी के बाद वीरवती जब अपने माता-पिता के यहां थी, तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लंबी आयु के लिए करवाचौथ का व्रत रखा। करवाचौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई।
सभी भाइयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी। वे जानते थे कि वीरवती, जो कि एक पतिव्रता नारी है, चंद्रमा के दर्शन किए बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी, चाहे उसके प्राण ही क्यों न निकल जाएं। सभी भाइयों ने मिलकर एक योजना बनाई, जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। उनमें से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया। जब वीरवती मूर्छित अवस्था से जागी तो उसके बाकी सभी भाइयों ने उससे कहा कि चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आए। वीरवती ने कुछ दूर वट के वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर लिया कि चन्द्रमा निकल आया है। अपनी भूख से व्याकुल वीरवती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ्य अर्पण कर अपने व्रत तोड़ दिया। वीरवती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दूसरे में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल से पति की मृत्यु का समाचार मिला।
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरवती रोने लगी और करवाचौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी। वह विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी, जो कि इंद्र देवता की पत्नी हैं, वीरवती को सांत्वना देने के लिए पहुंचीं।
वीरवती देवी इन्द्राणी से अपने पति को जीवित करने की विनती करने लगी। वीरवती का दुख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ्य अर्पण किए बिना ही व्रत तोड़ा था, जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरवती को करवाचौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।
इसके बाद वीरवती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती। अंत में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरवती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
करवाचौथ के व्रत से जुड़े नियम और सावधानियों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। आइए पढ़ें जरूरी बातें-
करवाचौथ के दिन श्री गणेश, मां गौरी और चंद्रमा की पूजा की जाती है। केवल सुहागिनें या जिनका रिश्ता तय हो गया हो, वही स्त्रियां ये व्रत रख सकती हैं। व्रत रखने वाली स्त्री को काले और सफेद कपड़े कतई नहीं पहनने चाहिए। करवाचौथ के दिन लाल और पीले कपड़े पहनना विशेष फलदायी होता है। करवाचौथ का व्रत सूर्योदय से चंद्रोदय तक रखा जाता है। ये व्रत निर्जला या केवल जल ग्रहण करके ही रखना चाहिए। इस दिन पूर्ण श्रृंगार करना चाहिए। पत्नी के अस्वस्थ होने की स्थिति में पति भी ये व्रत रख सकते हैं।
करवाचौथ का व्रत रखने से पहले ज़रूरी है कि आप इस व्रत के प्रति अपने मन में श्रद्धा और विश्वास का अनुभव करें। व्रत के दिन समयानुसार उठकर स्नान करना अनिवार्य है। फिर विधिपूर्वक इस व्रत का संकल्प लें और नियमानुसार व्रत आरंभ करें। इस दिन स्नान-ध्यान मनमर्जी से सुविधानुसार नहीं, बल्कि प्रातबेला में नियमानुसार किया जाता है। कपड़े भी पहले के पहने हुए नहीं, बल्कि साफ-सुथरे होने ज़रूरी हैं। यह व्रत सुहागिनों का व्रत है, इसलिए जरूरी है कि कपड़ों का रंग भी वही हो, जो सुहागनों के अनुकूल हो। ऐसा रंग किसी भी फैशन के चलते हर्गिज़ न पहनें, जो सुहागिनों के लिए वर्जित कहे गए हैं, जैसेकि- काला या सफेद।
पूरे श्रंगार के साथ मां गौरी का पूजन-अर्चन कर अपने सौभाग्य की कामना करनी चाहिए।
दिन में कथा सुनने के उपरांत परस्पर करवा थाली फेरी जाती है।
व्रत के दिन बार-बार कुछ न खाएं-पिएं। करवा चौथ के व्रत में तो बीच मेंं यदि बहुत आपात स्थिति न हो या स्वास्थ्य खराब न हो तो पानी तक नहीं पिया जाता।
यह व्रत सामूहिक रूप से मनाया जाता है। इस व्रत में दिन के समय सोना वर्जित है।
करवा चौथ पर सास अपनी बहू को अपने आशीर्वाद स्वरूप सरगी अवश्य देती है।
पूजा करने का औचित्य है, सुख-सौभाग्य की प्राप्ति की कामना। हम ऐसी शक्तियों का या ऊर्जा का आहवान करते हैं, जो हमारी इच्छा पूरी करने में हमारा ध्यान तेज़ करे उसे और गहरा करे। शुभ मुहूर्त ग्रह-दशाओं के अनुसार पूजन के लिए तय ऐसा समय होता है, जब हम आसानी से थोड़े से ही प्रयास से अपना मन एकाग्र करके पूजन का ध्यान कर सकते हैं। इस समय में की गई पूजा विशेष फलदायी होती है।
सवाल- क्या करवाचौथ में पानी पी सकते हैं ?
जवाब- करवाचौथ का व्रत निर्जला रखने का प्रचलन है, किंतु कुछ स्थानों पर सूर्योदय से पूर्व सरगी खाने के बाद ही व्रत रखने का प्रावधान भी है। वैसे यह व्रत बाकी के पूरे समय बिना पानी पिए ही रखा जाता है, किंतु यदि आपका स्वास्थ्य ठीक न हो तो अपवाद स्वरूप थोड़ा पानी पी सकती हैं।
सवाल- क्या है 2020 के करवाचौथ की तारीख ?
जवाब- साल 2020 का करवाचौथ व्रत 4 नवम्बर को है।
सवाल- मैं विदेश में रहती हूं और करवा फेरे नहीं कर सकती तो क्या करूं ?
जवाब- आप इंटरनेट पर आसानी से मिल जाने वाला करवाचौथ केलेंडर मंगवा लें या उसका प्रिंटआउट निकल कर, शुभ मुहूर्त में करवाचौथ पूजा कर लें। इतने में भी आपका व्रत पूरा हो जाएगा, क्योंकि कोई भी पूजन विधि से पहले विश्वास की मांग करता है।
सवाल- क्या शादी से पहले करवाचौथ रख सकते हैं?
जवाब- सामान्यता ये व्रत सिर्फ सुहागनें रखती हैं। कुछ स्थानों पर यह भी प्रचलन में है कि जिन लड़कियों की सगाई हो चुकी है, वे भी इस व्रत को रखने लगी हैं।
सवाल- क्या करवा चौथ का व्रत पुरुष भी रख सकते हैं?
जवाब- अगर कोई पति अपनी पत्नी से बहुत अधिक प्यार करते हैं या पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो ये व्रत पति भी रख सकते हैं। वैसे भी करवा चौथ का व्रत पति और पत्नी के परस्पर प्रेम का ही तो प्रतीक है।