रोशनी और खुशियों के त्योहार दिवाली पर भगवान गणेश, मां लक्ष्मी और मां सरस्वती की पूजा की जाती है। दिवाली के एक दिन बाद आता है, गोवर्धन पूजन, यानी अन्नकूट का त्योहार। गोवर्धन पूजा कार्तिक माह की प्रतिपदा को की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन का प्रतिरूप बनाते हैं। इस दिन विशेष रूप से गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना और परिक्रमा कर छप्पन भोग का प्रसाद चढ़ाने का विशेष प्रावधान है।
दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्योहार का काफी महत्व है। साथ ही इसकी अपनी मान्यताएं और लोककथा (govardhan puja katha) भी है। गोवर्धन पूजा में गोवर्धन, यानी गायों की पूजा की जाती है। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन पूजा की जाती है और इसी के प्रतीक के रूप में गाय की भी पूजा का विधान है।
गोवर्धन पूजा की पारंपरिक शुरुआत कैसे हुई?
ऐसी मान्यता है कि कृष्ण ने देवराज इंद्र के अभिमान को चूर करने और ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप स्वरूप हो रही मूसलाधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत (govardhan parvat) को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाए रखा और गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में रहे। सातवें दिन वर्षा रुकने पर ही भगवान ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। इस प्रकार से इस उत्सव को अन्नकूट के नाम से मनाए जाने की शुरुआत हुई।
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा (govardhan puja in hindi) भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से शुरू हुई। इसमें सभी हिंदू अपने घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी का प्रतिरूप बनाकर उनका पूजन करते हैं। उसके बाद गिरिराज भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें 56 व्यंजनों द्वारा अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।
गोवर्धन पूजा का महत्व – Importance of Govardhan Pooja in Hindi
कहा जाता है कि गोवर्धन पर्व के दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा (govardhan parikrama in hindi) करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, लेकिन ऐसा संभव न हो पाने की स्थिति में लोग घरों में प्रतीकात्मक तौर पर गोवर्धन बनाकर भी उनकी पूजा करते हैं और उसी की परिक्रमा करते हैं। वेदों में इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि आदि देवताओं की पूजा का विधान है। इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर, फूल माला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है।
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। उस समय लोग इन्द्र भगवान की पूजा करते थे तथा छप्पन प्रकार के पकवान व मिठाइयों का भोग लगाया जाता था। ये पकवान तथा मिठाइयां इतनी मात्रा में होती थीं कि उनका पूरा पहाड़ ही बन जाता था। अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का आयोजन है, जिसमें पूरा परिवार एक जगह बनाई गई रसोई से ही भोजन करता है। मंदिरों में भी अन्नकूट बनाकर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
गोवर्धन पूजा की प्रचलित कथा – Govardhan Puja Katha
एक बार एक महर्षि ने ऋषियों से कहा कि कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को गोवर्धन व अन्नकूट की पूजा करनी चाहिए। तब ऋषियों ने महर्षि से पूछा- ‘अन्नकूट क्या है? गोवर्धन कौन हैं? इनकी पूजा क्यों तथा कैसे करनी चाहिए? इसका क्या फल होता है? इस सबका विधान विस्तार से बताएं।’ महर्षि बोले- ‘एक समय की बात है- भगवान श्रीकृष्ण अपने सखा और गोप-ग्वालों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि हज़ारों गोपियां 56 प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच-गाकर उत्सव मना रही थीं। पूरे ब्रज में भी तरह-तरह के पकवान बनाए जा रहे थे।
श्रीकृष्ण ने इस उत्सव का प्रयोजन पूछा तो गोपियां बोलीं- ‘आज तो घर-घर में यह उत्सव हो रहा होगा, क्योंकि आज वृत्रासुर को मारने वाले मेघदेवता, देवराज इन्द्र का पूजन होगा। यदि वे प्रसन्न हो जाएं तो ब्रज में वर्षा होती है, अन्न पैदा होता है, ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है, गायों को चारा मिलता है। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा- ‘यदि देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएं, तब तो तुम्हें यह उत्सव व पूजा जरूर करनी चाहिए।’ गोपियों ने यह सुनकर कहा- ‘कोटि-कोटि देवताओं के राजा देवराज इन्द्र की इस प्रकार निंदा नहीं करनी चाहिए। यह तो इन्द्रोज नामक यज्ञ है। इसी के प्रभाव से अतिवृष्टि तथा अनावृष्टि नहीं होती।’
श्रीकृष्ण बोले- ‘इन्द्र में क्या शक्ति है, जो पानी बरसा कर हमारी सहायता करेगा? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा यह गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। अत: हमें इन्द्र से भी बलवान गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए।’ इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण की बात सुनकर ब्रज में इन्द्र के स्थान पर गोवर्धन की पूजा की तैयारियां शुरू हो गईं। सभी गोप-ग्वाल अपने-अपने घरों से पकवान लाकर गोवर्धन की तलहटी में श्रीकृष्ण द्वारा बताई विधि से गोवर्धन पूजा करने लगे।
उधर श्रीकृष्ण ने पर्वत में प्रवेश करके ब्रजवासियों द्वारा लाए गए सभी पदार्थों को खा लिया तथा उन सबको आशीर्वाद दिया। सभी ब्रजवासी अपने यज्ञ को सफल जानकर बड़े प्रसन्न हुए। नारद मुनि इन्द्रोज यज्ञ देखने की इच्छा से वहां आए। गोवर्धन की पूजा देखकर उन्होंने ब्रजवासियों से पूछा तो उन्होंने बताया- ‘श्रीकृष्ण के आदेश से इस वर्ष इन्द्र महोत्सव के स्थान पर गोवर्धन पूजा की जा रही है।’ यह सुनते ही नारद जी इन्द्रलोक पहुंचे तथा उदास होकर बोले- ‘हे राजन! तुम महलों में सुख की नींद सो रहे हो, उधर गोकुल के निवासी गोपों ने इंद्रोज बंद करके आप से बलवान गोवर्धन की पूजा शुरू कर दी है। यह भी हो सकता है कि किसी दिन श्रीकृष्ण की प्रेरणा से वे तुम्हारे राज्य पर आक्रमण करके इन्द्रासन पर भी अधिकार कर लें।’ यह सुनकर इन्द्र क्रोधित हो गए और उन्होंने अतिवृष्टि शुरू कर दी।
गोप-गोपियों की करुण पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले- ‘तुम सब गऊओं सहित गोवर्धन पर्वत की शरण में चलो। वही सब की रक्षा करेंगे।’ कुछ ही देर में सभी गोप-ग्वाल पशुधन सहित गोवर्धन की तलहटी में पहुंच गए। तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर छाता सा तान दिया और सभी गोप-ग्वाल अपने पशुओं सहित उसके नीचे आ गए। सात दिन तक गोप-गोपिकाओं ने उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टि से अपना बचाव किया। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं पड़ा। इससे इन्द्र को बड़ा आश्चर्य हुआ। यह चमत्कार देखकर और ब्रह्माजी द्वारा श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्र को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। वे स्वयं ब्रज गए और भगवान कृष्ण के चरणों में गिरकर अपनी मूर्खता पर क्षमायाचना करने लगे। सातवें दिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा- ‘अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो।’ तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।
गोवर्धन पूजन विधि – Govardhan Pooja Vidhi in Hindi
गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और इस दिन उनकी पूजा अपने घर में करने से धन-धान्य, संतान और गोरस में वृद्धि होती है। आज का दिन तीन उत्सवों का संगम होता है।
गोवर्धन पूजा की विधि (govardhan puja vidhi) कुछ इस प्रकार है, इस दिन सुबह के समय गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। अनेक स्थानों पर इससे मनुष्य का प्रतिरूप बनाकर फूलों, लताओं आदि से सजाया जाता है। शाम को गोवर्धन की पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया जाता है। पूजा के बाद गोवर्धनजी की सात परिक्रमाएं उनकी जय बोलते हुए की जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य खील लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।
लोग गोवर्धन धारी जी का एक रूप गोबर के ढेर, भोजन और फूलों के माध्यम से भी बनाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। अन्नकुट का मतलब है, लोग भगवान कृष्ण को पेश करने के लिए विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाते हैं। भगवान की मूर्तियों को दूध से स्नान कराया जाता है और नए कपड़े और गहनों के साथ श्रृंगार किया जाता है। फिर पारंपरिक प्रार्थना, भोग और आरती के माध्यम से पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के मंदिरों को सजाने और बहुत सारे कार्यक्रमों का आयोजन करके की जाती है। भगवान के चरणों में अपने सिर को झुकाकर और प्रसाद को खाकर लोग भगवान कृष्ण का आशीर्वाद लेते हैं।
गोवर्धनजी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं। इसके साथ एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांट देते हैं।
गोवर्धन पूजा के समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए
– यह ध्यान होना चाहिए कि इस दिन संध्या के समय चंद्र दर्शन न हों। अन्नकूट में चंद्र-दर्शन अशुभ माना जाता है।
– इस दिन प्रात: तेल मलकर स्नान करना चाहिए।
– इस दिन संध्या के समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है।
– इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो पूर्णत: बंद रहते ही हैं, घर पर कुटीर उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों का दोपहर के समय पूजन किया जाता है।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त – Govardhan Pooja Muhurat in Hindi
गोवर्धन पूजा कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जानी चाहिए, लेकिन यह ध्यान होना चाहिए कि इस दिन संध्या के समय चंद्र दर्शन नहीं हो। यदि शाम को सूर्यास्त के समय ही कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन चंद्र दर्शन होने वाले हों तो गोवर्धन पूजा पहले दिन में ही कर लेनी चाहिए।यदि सूर्य उदय के समय प्रतिपदा तिथि लगती है और चंद्र दर्शन नहीं हों तो उसी दिन गोवर्धन पूजा की जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो गोवर्धन पूजा पहले दिन मान्य होगी।
जब सूर्योदय के बाद प्रतिपदा तिथि कम से कम 9 मुहूर्त तक विद्यमान हो, भले ही उस दिन चंद्र दर्शन शाम को हो जाए, लेकिन स्थूल चंद्र दर्शन का अभाव माना जाए। ऐसी स्थिति में गोवर्धन पूजा उसी दिन मनाने का विधान है।
2019 में गोवर्धन पूजा का सही समय
28 अक्टूबर 2019, सोमवार सुबह के समय पूजा करने का सही मुहूर्त 5.28 से 7.55 शाम के समय पूजा करने का सही मुहूर्त 15.16 से 17.43
गोवर्धन पूजा से जुड़े सवाल और उनके जवाब – FAQ’s
गोवर्धन पूजा में कौन-कौन से पकवान चढ़ायें जाते हैं?
इस दिन मंदिरों में कई तरह के प्रसाद बनाकर भगवान को 56 भोग लगाए जाते हैं। विशेष रूप से खरीफ फसलों से प्राप्त अनाज के पकवान और सब्जियां बनाकर भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट क्यों कहा जाता है?
अन्नकूट शब्द का अर्थ होता है- अन्न का समूह। विभिन्न प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित करने के कारण ही इस उत्सव या पर्व का नाम अन्नकूट पड़ा है। इस दिन अनेक प्रकार के पकवान व मिठाई द्वारा भगवान को भोग लगाया जाता है।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का क्या महत्व है?
इस दिन कई लोग मथुरा-वृंदावन के पास स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। हिंदू धर्म में इस परिक्रमा का बहुत अधिक महत्व है।
इस दिन की अन्य विशेषताएं क्या हैं?
इस दिन महाराष्ट्र में पड़वा और बलिप्रतिपदा त्योहार भी मनाया जाता है। यहां के लोग इस त्योहार को भगवान विष्णु के वामन अवतार को राजा बाली पर हुई जीत की खुशी के रूप में मनाते हैं। इसी दिन गुजराती नव वर्ष की शुरुआत भी होती है।
इस दिन गायों की पूजा क्यों की जाती है?
यह दिन गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण को समर्पित है। श्रीकृष्ण को गायों से बहुत अधिक प्रेम था, इसलिए इस दिन गोधन, यानी गायों की पूजा भी की जाती है।
इस दिन किन मंत्रों का जाप करना चाहिए?
इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है, इसलिए गोवर्धन पूजा के दिन जिन मंत्रों का जाप (govardhan puja mantra) किया जाता है वो श्रीकृष्ण के मंत्र का जाप होता है। सभी मंत्रों का जाप करने से पहले ओम् श्री कृष्णाय शरणम् नम: मंत्र का जाप कर लेना चाहिए।
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