आयुर्वेद एक पुरानी मेडिकल हेल्थकेयर प्रणाली है जिसमें समय के साथ अनेक आधुनिक बदलाव भी आये हैं। आयुर्वेद उपचार की बजाय बचाव पर जोर देता है और दवाइयों के रूप में खाद्य पदार्थों का उपयोग करता है ताकि स्वास्थ्य से संबंधित गंभीर मामलों और जटिलताओं से बचा सके। बेहतर स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद बेहद प्रभावी साबित हो सकता है और भावी मां तथा बच्चे के लिए बहुत अच्छा है। सवाल यह है कि आधुनिक हेल्थकेयर के जमाने में होने वाली भावी मां को आयुर्वेद आखिर क्यों फॉलो करना चाहिए।
आयुर्वेद शरीर को देता है प्राकृतिक सहायता
आयुर्वेद के बारे में कहा जाता है कि स्वास्थ्य की देखभाल के लिए यह शरीर को प्राकृतिक सहायता मुहैया कराता है और स्वास्थ्य की देखभाल के लिए चल रहे जरूरी उपचार में कोई हस्तक्षेप नहीं करता है। आयुर्वेद से गर्भावस्था के दौरान होने वाली परेशानियों और समस्याओं से निपटने में भी सहायता मिल सकती है। सामान्य तौर पर एक स्वस्थ महिला को भी गर्भावस्था के दौरान जटिलता हो सकती है और आयुर्वेद के कुछ दिशा निर्देश इन समस्याओं को दूर करने में सहायक हो सकते हैं। आयुर्वेद और योग भावी मां का तनाव कम करने में सहायता करते हैं। आयुर्वेद से गर्भवती महिलाओं के बेहतर पाचन के लिए पोषण संबंधी एक खास रोडमैप तैयार किया जा सकता है।
आयुर्वेद से शरीर को किया जा सकता है प्रसव के लिए तैयार (Pregnancy Planning)
आयुर्वेद विज्ञान इतना उन्नत है कि इसके दिशानिर्देशों का पालन करने से शरीर को प्रसव के लिए तैयार करने में सहायता मिलती है। इससे शक्ति बढ़ती है और टिश्यू कोमल होते हैं जिससे प्रसव स्वस्थ होता है। यह शरीर को जन्म के बाद के लिए तैयार करने में भी सहायता करता है। इस समय होने वाले हॉरमोनल और शारीरिक बदलावों को संतुलित करता है।
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भावी मां के लिए विस्तृत दिशा निर्देशन
आयुर्वेद में भावी मांओं के लिए विस्तृत दिशा निर्देशन है जो स्वस्थ गर्भावस्था के लिए उपयुक्त है और इसमें फलों और सब्जियों से भरपूर सात्विक डाइट शामिल है। आयुर्वेद में आम, नारियल, चावल, स्प्राउट, शकरकंद, लोबिया, दूध आदि की पूर्ण डाइट की सिफारिश की जाती है। मांसाहारी लोगों के लिए देसी घी, मुर्गा, अंडे और मछली के बिना डाइट को पूरा नहीं माना जाता है। वैसे तो गर्भवती महिलाओं को रेड मीट का सेवन करने की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि इसके साथ टॉक्सिक प्रतिक्रिया होने का खतरा रहता है।
संतुलित और पोषक डाइट का पालन
गर्भावस्था के भिन्न चरणों में सही मात्रा में आवश्यक चीजें खाने और अनुशंसित संतुलित पोषण का पालन करने से गर्भस्थ शिशु के विकास में सहायता मिलती है। हमें सभी छह स्वादों (मीठा, खट्टा, नमकीन, तीखा, कड़वा और कसैला) की चीजें खानी चाहिए। पर मीठे, खट्टे और नमकीन पर ज्यादा जोर होना चाहिए। उदाहरणों में डेरी (दूध, मक्खन और दही शामिल हैं।) स्वीटनर (मधु, स्टीविया और अन्य प्रकृतिक मिठास) घी, फल, सब्जियां, मूंग दाल, अदरक, जीरा और गरी (तैयार काजू) शामिल हैं।
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पहले तीन महीने में क्या है जरूरी
शुरू के तीन महीने दूध और दूसरे ताजा तरल जैसे नारियल पानी, ताजे फल का जूस और पानी पीना बहुत महत्वपूर्ण है। दूध को इलायची, बादाम, सूखे अदरक आदि से फ्लेवर किया जा सकता है ताकि मितली आने या उल्टी जैसी स्थिति का मुकाबला किया जा सके। इन चीजों के सेवन से गर्भस्थ शिशु के विकास की सघन आवश्यकता पूरी होती है।
चौथे महीने के बाद क्या खाएं
चौथे महीने से और उसके बाद दूध में मधु और घी मिलाया जा सकते हैं। ताजे बिना नमक वाले मक्खन तथा घी की खपत बढ़ाने की सलाह दी जाती है। कई सारी भिन्न जड़ी बूटियों की सिफारिश अकसर आयुर्वोदिक डॉक्टर करते हैं। सातवें महीने और उसके बाद नमक और फैट्स का सेवन कम करने की सलाह दी जाती है। खून में शुगर का लेवल जहां तक संभव हो सामान्य के करीब रखना भी बहुत जरूरी है। खासकर उन महिलाओं के मामले में जिन्हें डायबिटीज़ हो। आप जो मीठा लें वह स्वास्थ्य के लिए ठीक हो इसलिए आप प्राकृतिक स्वीटनर का विकल्प चुन सकते हैं। इनमें मधु, प्रसंस्कृत चीनी की जगह प्राकृतिक चीनी शामिल है। चीनी के इनटेक को स्टीविया से भी संतुलित किया जा सकता है। यह एक प्राकृतिक, सुरक्षित, जीरो कैलोरी स्वीटनर है। यह मीठा खाने के आपके शौक को पूरा करने के साथ आपका ब्लड शुगर लेवल नहीं बढ़ने देता है और ना ही कैलोरी बढ़ाता है।
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गर्भावस्था के दौरान क्या हो आहार (Pregnancy Diet)
गर्भावस्था की पूरी अवधि के दौरान भावी मां को समृद्ध आहार लेना चाहिए। इसमें गेहूं, राई, ओट्स, बीन्स, मेवे, मसूर, सोया बीन्स, आदि शामिल हैं। सब्जी और दूसरी चीजें जैसे आलू, पालक, खजूर, बादाम, अंजीर और अंगूर भी जरूरी हैं। गर्भावस्था के दौरान जिन चीजों से बचना चाहिए आयुर्वेद में उन चीजों की भी सूची है। कुछ आयुर्वेदिक दवाइयां जैसे सतावरी कल्प, अशोकारिष्टम आदि का सेवन किसी डॉक्टर के दिशानिर्देशन में किया जा सकता है।
कैसे बनाएं प्रेगनेंसी डाइट प्लान (Pregnancy Diet Plan)
गर्भस्थ शिशु के विकास के भिन्न चरणों में पोषण की उसकी आवश्यकता को समझना बेहद जरूरी है और इस हिसाब से डाइट प्लान में बदलाव भी जरूरी है। एक अच्छा योग्य चिकित्सक खासतौर से तैयार किया गया डाइट प्लान बनाने में मदद कर सकता है। यह मां के स्वास्थ्य के साथ गर्भस्थ शिशु की खास स्थिति पर भी निर्भर करता है। इसलिए यह जरूरी है कि बेहतर नतीजे और बेहतर स्वास्थ्य के लिए एक अनुभवी आयुर्वेदाचार्य आपको गर्भावस्था की खूबसूरत यात्रा के दौरान दिशानिर्देश दे।
(राम एन कुमार, आयुर्वेद एक्सपर्ट एवं संस्थापक, निरोगस्ट्रीट से बातचीत के आधार पर)