प्रकृति के छठे स्वरूप की प्रतीक छठी मईया की पूजा के महापर्व को ही छठ पूजा कहते हैं। छठ सिर्फ एक पर्व नहीं बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय- खाय से लेकर उगते हुए भगवान भास्कर यानि कि सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाला यह पर्व बिहार और उत्तर प्रदेश का एक बेहद अहम पर्व है जो पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वैसे तो दीपावली को पर्वों की माला माना जाता है जो कुल पांच दिन चलता है। लेकिन पर्वों का यह माहौल सिर्फ भैयादूज तक ही नहीं, बल्कि यह छठ तक चलता है। तो आइए जानते हैं छठ पर्व (chhath parv) से जुड़ी कुछ खास और अहम बातें, जो हर किसी को पता होनी ही चाहिए।
1. उगते और डूबते सूरज दोनों की ही होती है पूजा – Surya Pooja Morning
भगवान सूर्य का छठी माता की उपासना का मात्र यही एक पर्व है जिसमें उगते सूरज के साथ-साथ डूबते सूरज की भी उपासना की जाती है। छ्ठ को महापर्व इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इसमें सूर्य ही एकमात्र प्रत्यक्ष देवता हैं। छठ पूजा (chhath puja in hindi) का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि जीवन में हमें सिर्फ उन्हें ही सम्मान नहीं देना चाहिए जो आगे बढ़ते हैं बल्कि समय आने पर उनका भी साथ देना चाहिए जो हमसे पीछे छूट गए हैं या जिनका महत्व कम हो गया हो।
2. चार दिनों का होता है छठ पर्व
ये व्रत छठ माता की पूजा के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक शुक्ल की छठी को आने वाला ये पर्व चार दिनों का होता है। जोकि कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू हो जाता है। इस दिन भक्त केवल अरवा यानि शुद्ध सात्विक आहार खाकर व्रत शुरू करते हैं। फिर इसके अगले दिन पंचमी को भक्त सुबह घाट या नदी में नहाने के बाद पूजा- पाठ करते हैं। शाम को गुड़ और नए चावल की खीर बनाई जाती है। उसके बाद फल और मिठाई के साथ छठ मइया की पूजा की जाती है। पूजा के बाद कुंवारी कन्याओं और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। इसके बाद आता है इस महापर्व का सबसे अहम दिन यानि कि षष्ठी पूजा का दिन। ये वो दिन है जब की जाती है अस्त होते सूरज की पूजा। इस दिन भक्त पूरे दिन का व्रत रखते हैं। पूजा के प्रसाद के लिए ठेकुआ और तरह-तरह के पकवान बनाते हैं और सात तरह के फल बांस के डलिया में रखे जाते हैं। फिर शाम होते ही कमर तक पानी में खड़े होकर अस्त होते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। इसके अगले दिन यानि सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य को जल चढ़ाकर व्रत तोड़ा जाता है।
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3. पति और बच्चों के लिए रखा जाता है ये व्रत
इस त्योहार को मनाने के पीछे ये मान्यता है कि छठ माता का जो व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। लोगों का मानना है कि यह व्रत पति और बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए रखा जाता है। छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अाराधना की जाती है। व्रत करने वाले मां गंगा और यमुना या किसी नदी या जलाशय के किनारे अाराधना करते हैं। कहते हैं कि ये व्रत करने से रोग मुक्ति का आशीर्वाद भी मिलता है।
4. भगवान राम और देवी सीता ने भी किया था ये व्रत
कहा जाता है कि दीपावली के छठे दिन भगवान राम ने सीता संग अपने कुल देवता सूर्य की पूजा सरयू नदी में की थी। उन्होंने षष्ठी तिथि का व्रत रखा और सरयू नदी में डूबते सूर्य को फल, मिष्टान्न एवं अन्य वस्तुओं के साथ अर्घ्य प्रदान किया। सप्तमी तिथि को भगवान राम ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद राजकाज संभालना शुरू किया। इसके बाद से आम जन भी सूर्य षष्ठी का पर्व मनाने लगे।
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5. महाभारत काल से होती आ रही छठ पूजा
छठ पूजा की शुरुआत के बारे में जानकार बताते हैं कि छठ पूजा महाभारत काल के समय से होती आ रही है। जब पांडव सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत (chhath vrat) रखा। उन्होंने सूर्य देव और छठ मइया से पांडवों के राजपाट और सुख-समृद्धि की कामना की। जब पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला, तब द्रौपदी ने धूमधाम से छठ पूजा (chhath pooja) की थी।
6. छठ पर्व सिखाता है बुजुर्गों की सेवा करना
वेद पुराणों में संध्या कालीन छठ पूर्व को संभवतः इसलिए प्रमुखता दी गयी है ताकि संसार को यह पता लग सके कि जब तक हम अस्त होते सूर्य अर्थात बुजुर्गों को आदर सम्मान नहीं देंगे, तब तक उगता सूर्य अर्थात नई पीढ़ी उन्नत और खुशहाल नहीं होगी। यही छठ पूजा की संध्या कालीन सूर्य पूजा का मकसद होता है।
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7. इन चीजों के बिना अधूरी है छठ पूजा
छठ की पूजा में साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। साथ ही पूजा में इस्तेमाल होने वाली कुछ सामग्री (chhath puja samagri) ऐसी होती हैं, जिनके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। जैसे कि – विशेष तरह का बड़ा नींबू, केला, नारियल, गन्ना, बांस की टोकरी, ठेकुए और नये चावल।
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छठ पूजा कब है