आज कोरोना वायरस जैसे महामारी देश में अपने पैर फैला रही है। बीमारी के चलते लोगों का ऑक्सीजन लेवल गिर रहा है। देश में ऑक्सीजन सिलेंडर कम पड़ रहे हैं। कहना गलत नहीं होगा कि धीरे-धीरे हम ऑक्सीजन के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर पर आश्रित होते जा रहे हैं। जबकि ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत यानि पेड़ हम काटते जा रहे हैं। पेड़ हमसे कार्बन डाइऑक्साइड लेकर हमें ऑक्सीजन देने का काम करते हैं। यहां तक कि पौधों की पत्तियां भी सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड जैसे खतरनाक तत्व अपने में समा लेती हैं और हवा को साफ बनाती हैं। बचपन से हमें यह सब पढ़ाया जाता है। उसके बाद भी हम अपने फायदे के लिए मासूम पेड़ों को काट देते हैं। मगर आज भी कई ऐसे लोग हैं, जो पेड़ों को काटने नहीं बल्कि उन्हें उगाने की न सिर्फ बात करते हैं बल्कि ऐसा करके भी दिखाते हैं। इस अर्थ डे Earth Day (save earth slogans in hindi) पर हम बात कर रहे हैं अपने देश की उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने पेड़ों को अपना जीवन दे दिया।
सालूमरदा थिमक्का
आपको वो महिला तो याद ही होंगी, जिन्होंने राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरस्कार लेते समय खुद देश के राष्ट्रपति को आशीर्वाद दे दिया था। कर्नाटक की रहने वाली 109 वर्षीय सालूमरदा थिमक्का ने अपना पूरा जीवन पेड़ों को दे दिया। इन्हें ‘वृक्ष माता’ के नाम से भी जाना जाता है। थिमक्का एक वह पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। अपने जीवन काल में थिमक्का ने बरगद के 400 पेड़ों समेत 8000 से ज्यादा पेड़ लगाएं हैं। उनके इस कार्य के लिए साल 2019 में थिमक्का को राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
प्रभा देवी सेमवाल
77 साल की प्रभा देवी सेमवाल उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के एक छोटे से गांव की रहने वाली हैं। इन्होंने अपने दम पर एक बंजर भूमि को हरे-भरे जंगल में तब्दील कर दिया है। प्रभा देवी पिछले 50 सालों से जंगलों को सहेजने में जुटी है। दशकों की मेहनत के बाद आज प्रभा देवी के पास अपना खुद का जंगल है, जिसमें इन्होंने पांच सौ से ज्यादा पेड़ उगाये हैं। पेड़ों के संरक्षण के लिए 76 साल की प्रभा देवी ने संतानों के साथ रहने के सुख को भी छोड़ दिया और उन्होंने अपना पूरा जीवन पेड़ों को समर्पित कर दिया।
तुलसी गौड़ा
कर्नाटक की रहने वाली 73 वर्षीय पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा को ‘जंगलों की एनसाइक्लोपीडिया’ के रूप में जाना जाता है। तुलसी गौड़ा एक आम आदिवासी महिला हैं, जो कर्नाटक के होनाल्ली गांव में रहती हैं। तुलसी गौड़ा कभी स्कूल नहीं गईं और न ही उनके पास कोई शैक्षणिक डिग्री है, लेकिन पेड़-पौधों के बारे में अपने अद्भुत ज्ञान के चलते उन्होंने वन विभाग में नौकरी भी की। चौदह वर्षों की नौकरी के दौरान उन्होंने हजारों पौधे लगाए, जो आज पेड़ बन चुके हैं। अपने जीवनकाल में तुलसी गौड़ा अब तक एक लाख से भी अधिक पौधे लगा चुकी हैं। साल 2020 में उन्हें पृथ्वी को दिए इस योगदान के बदले पद्म पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है।
जमुना टूडू
ADVERTISEMENT
झारखण्ड की रहने वाली जमुना टूडू को लेडी टार्जन के नाम से भी जाना जाता है। 39 वर्षीय जमुना टुडू पेड़ों को दिए इस योगदान के चलते पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान से सम्मानित हो चुकी हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि पेड़ों को बचाने के लिए जमुना टूडू जंगल माफिया से भी टकरा चुकी हैं। इसके साथ ही उन्होंने नए पौधे भी लगाने शुरू किये। जमुना की इस लगन को देखकर आसपास के गांवों की महिलाएं जंगल बचाने की उनकी मुहिम में उनके साथ जुड़ती चली गईं। वे महिलाओं के साथ मिलकर पेड़ों का संरक्षण उन्हें राखी बांधकर करती हैं। कहना गलत नहीं होगा कि जमुना टूडू ने अपना पूरा जीवन पेड़ों को समर्पित कर दिया
You Might Also Like
MYGLAMM के ये शनदार बेस्ट नैचुरल सैनिटाइजिंग प्रोडक्ट की मदद से घर के बाहर और अंदर दोनों ही जगह को रखें साफ और संक्रमण से सुरक्षित!