विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja Kab Hai) इस साल 17 सितंबर को की जाएगी। इस दिन विश्वकर्मा जी की पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है और उन्हें दुनिया का हला इंजीनियर भी कहा जाता है। माना जाता है कि विश्वकर्मा, शिल्पकला और वास्तुकला में निपुण थे। इस वजह से शिल्प और वास्तु के क्षेत्र से जुड़े लोग, विश्वकर्मा जी को अपना गुरु मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा (vishwakarma jayanti kab hai) जी की पूजा करने से कारोबार में वृद्धि होती है। साथ ही व्यापार में भी तरक्की होती है। यह भी माना जाता है कि यदि इस दिन सही तरीके से पूजा की जाए तो सकरात्मक नजतीजे मिलते हैं। आप भी अपने दोस्तों और परिजनों को विश्वकर्मा पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं दें।
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विश्वकर्मा पूजा कब है – Vishwakarma Puja Kab Hai
हर साल 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा (vishwakarma puja kitne tarikh ko hai) की जाती है। दरअसल, भगवान विश्वकर्मा से संबंधित बहुती सी मान्यताएं हैं। कुछ धर्मशास्त्रियों का मानना है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म अश्विनमास की कृष्णपक्ष को हुआ था। वहीं दूसरी ओर लोगों का मानना है कि उनका जन्म भाद्रपद मास की अंतिम तिथि को हुआ था। वहीं विश्वकर्मा जी की जन्म तिथि से अलग एक ऐसी मान्यता भी है, जिसमें कहा जाता है कि विश्वकर्मा की पूजा को सूर्य के परागम के अनुसार किया जाता है। इस वजह से विश्वकर्मा पूजा को सूर्य संक्रांति (विश्वकर्मा पूजा कब है) के रूप से भी जाना जाता है। इस वजह से हर साल 17 सितंबर को ही विश्वकर्मा पूजा की जाती है।
विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाया जाता है – Vishwakarma Puja Kyu manaya Jata Hai
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म का विवाह वस्तु से हुआ था। धर्म के सात पुत्र हुए और उन्होंने अपने सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा, जो शिल्पकला में माहिर थे। वास्तु के विवाह के बाद उनके एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम विश्वकर्मा रखा गया और वह वास्तुकला के अद्वितीय गुरू बने और उन्हें विश्वकर्मा के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि कलाधिपति, तकनीकि और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यक्ति की उन्नति होती है।
हिंदू पौराणिक कथा के मुताबिक, काशी में धार्मिक आचरण रखने वाला रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने कार्य में बहुत ही निपुण था, लेकिन कई जगह घूमने के बाद भी और काफी कोशिश करने के बाद भी वह भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था। साथ ही उसकी पत्नी के कोई संतान भी नहीं हो रही थी, जिस वजह से वह चिंतित था।
संतान प्राप्ति के लिए दोनों साधु-संतों के पास जाया करते थे, लेकिन उनकी ये इच्छा पूरी नहीं हो पा रही थी। तब एक ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी को ऋषि विश्वकर्मा की शरण में जाने का सुझाव दिया और साथ ही उसे अमावस्या तिथि को व्रत रख कर भगवान विश्वकर्मा की कथा सुनने को कहा।
इसके बाद रथकार और उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की। इससे उन्हें धन-धान्य तो मिला ही साथ ही पुत्र प्राप्ति भी हुई और दोनों सुखी जीवन जीने लगे। तब से ही विश्वकर्मा (vishwakarma puja kab hai 2021) की पूजा बड़े ही धूमधाम से की जाती आ रही है।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व – Importance of Vishwakarma Puja in Hindi
माना जाता है कि प्राचीन समय में जितनी राजधानियां थी, वो सभी विश्वकर्मा जी की बनाई हुई थीं। यहां तक कि ये भी माना जाता है कि सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेता युक की लंका, द्वापर युग की द्वारिका और कलयुग का हस्तिनापुर आदि सब विश्वकर्मा द्वारा ही रचित है। सुदामापुरी की तत्क्षण रचना के बारे में यही कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे। यह भी आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा करने वाले पुरुषों को बाबा विश्वकर्मा (विश्वकर्मा पूजा विधि) की पूजा करना बहुत ही मंगलदायी माना जाता है।
विश्वकर्मा पूजा विधि – Vishwakarma Puja Vidhi
इस दिन सुबह उठकर सबसे पहले स्ननान करें। इसके बाद पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल छिड़कें और उस स्थान को पवित्र कर लें। अब एक चौकी लें और उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं। पीले कपड़े पर लाल रंग के कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं और भगवान गणेश का ध्यान करते हुए उन्हें प्रणाम करें। स्वास्तिक पर चावल और फूल अर्पित करें और फिर चौकी पर भगवान विष्णु और विश्वकर्मा जी की प्रतिमा या फोटो लगाएं।
अब एक दीपक जलाकर चौकी पर रखें। भगवान विष्णु और भगवान विश्वकर्मा जी के मस्तक पर तिलक लगाएं और विश्वकर्मा जी और विष्णु जी को प्रणाम करते हुए उन्हें याद करें। साथ ही प्रार्थना करें कि वो आपको नौकरी-व्यापार में तरक्की करवाएं। इसके बाद विश्वकर्मा जी (Vishwakarma Puja Vidhi) के मंत्र का 108 बार जप करें। अब विष्णु जी की आरती करें और फिर विश्वकर्मा जी की आरती करें। आरती के बाद उन्हें फल-मिठाई का भोग लगाएं।
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