ADVERTISEMENT
home / स्टोरीज़
मेरा पहला प्यार- कभी हार न मानने वाले प्यार की एकदम फिल्मी कहानी

मेरा पहला प्यार- कभी हार न मानने वाले प्यार की एकदम फिल्मी कहानी

ये कहानी एकदम फिल्मी है! दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते हैं लेकिन एक-दूसरे को पसंद नहीं करते। फिर जब पढ़ाई के लिए दिल्ली आते हैं तो दोनों को प्यार हो जाता है। घरवालों की नाराजगी झेलते हैं। लड़की डरी रहती है। लड़के की नौकरी प्यार के आड़े आती है। लेकिन कहते हैं न कि अधिकतर फिल्मी कहानियों का अंत हैप्पी होता है तो इसी तरह से इस कहानी का भी हैप्पी एंडिग ही है। इस बार ‘मेरा पहला प्यार’ सीरीज में हम आपके लिए पेश कर रहे हैं एक ऐसी लड़की की कहानी, जिसने अपने प्यार को पाने के लिए घरवालों की नाराजगी बर्दाश्त की। प्यार के भीनी खुशबू में महकती शिल्पी कुमार की प्यार भरी ये प्यारी सी कहानी पढ़िए-

बरौनी के स्कूल में हम दोनों साथ पढ़ते थे। लेकिन वहां लड़के-लड़कियों का ग्रुप अलग था और उस वक्त हम दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे। किस्मत ऐसी थी कि दोनों ही आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गए। 1994 का साल था वो। जानते नहीं थे कि दोनों यही हैं। एक बार संयोगवश हम कई दोस्त छुट्टियों में घर जा रहे थे। ट्रेन पर ही निशांत से मुलाकात हो गई। बातों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि सुबह कैसे हो गई, पता ही नहीं चला।

मैंने तो उसे दोस्त की तरह लिया था लेकिन यह नहीं पता था कि उसके अंदर के अहसास बदल गए थे। छुट्टियां बिताकर जब कॉलेज वापस आए तो निशांत का मुझसे मिलने आना लगातार जारी रहा। पहले तो मुझे महसूस नहीं हुआ लेकिन बाद में लगने लगा कि दाल में कुछ काला है। मेरा मिलने का मन नहीं करता तो कई बार तो मैं अपनी फ्रेंड से कहलवा देती कि मैं हॉस्टल में नहीं हूं। लेकिन निशांत पर मानो जुनून सवार था। वह मेरा इंतजार करता था। आखिरकार एक दिन उसने अपने मन की बात मुझसे कह ही डाली। मैं अपने मम्मी-पापा की रजामंदी के बिना कुछ नहीं करना चाहती थी, फिर भी निशांत ने मुझ पर कभी दबाव नहीं डाला।

pexels-photo-318378

ADVERTISEMENT

निशांत के दोस्त मेरे पास आते और बताते कि किस तरह उसने दर्द में अपने हाथ जला लिए। मुझसे संबंधित इमोशन्स वह अपनी डायरी में लिखा करता था। उसके दोस्तों ने वह डायरी भी मुझे दिखाई। इस बीच तीन साल बीत गए थे। 1998 में मुझे लगने लगा कि इससे ज्यादा प्यार करने वाला मुझे नहीं मिल सकता! मेरे अंदर भी कुछ – कुछ होने लगा था। इस बीच मैंने हायर स्टडीज के लिए फॉरेन का फॉर्म भरा। मेरा एडमिशन भी हो गया। निशांत दुखी था, उसके लिए करियर बाद में आैर मैं पहले थी। मेरे लिए करियर पहले था। उस समय ज्यादातर लोगों के पास मोबाइल नहीं होता था। निशांत मुझे लंबे लव लेटर लिखा करता था। लेटर्स में वह हमारे प्यार के बारे में शिद्दत से लिखता, मेरा गिल्ट बढ़ता जाता।  उससे मिलने आैर उसे प्यार करने की जिद बढ़ जाती। अब मैं इंतजार कर रही थी उसके पास वापस लौटने का।

मुझे पता नहीं था कि मेरे मम्मी- पापा मेरी शादी के बारे में सोच रहे थे। मैंने बहुत डरते हुए उन्हें निशांत के बारे में बताया। उम्मीद के मुताबिक वे रेडी नहीं थे। मैं डर गई थी आैर मैंने निशांत से दूरी बनानी शुरू कर दी थी। इस बीच मैं वापस लौट आई। निशांत ने फिर से मेरे हॉस्टल के चक्कर लगाने शुरू कर दिए थे। वह दिन भर नौकरी ढूंढता आैर शाम को मेरी एक झलक पाने के लिए हॉस्टल चला आता। मैं रात में देर से वापस लौटती, कई बार हॉस्टल का गेट बंद हो चुका होता लेकिन वह बाहर बैठा मेरा इंतजार करता था। बाहर चल रही गुलाबी हवाएं मुझे उसे आैर प्यार करने के लिए मजबूर कर देतीं। वह मुझे हाय के साथ बाय बोलता आैर वापस चला जाता। मैं बेचैन हो जाती। उसका प्यार मुझे कमजोर करने लगा था।  

इस बीच पता चला कि शादी के लिए एक लड़का मुझसे मिलने आने वाला है। निशांत को मैंने बताया आैर उसके चेहरे के भाव पढ़ने से मुझे महसूस हो गया था कि मेरे लिए इससे बेहतर जीवनसाथी कोई और नहीं। इसी बीच उसकी नौकरी मिल गई आैर मुझे चिकनपॉक्स हो गया। उसने बच्चे की तरह मेरा ध्यान रखा। पर अफसोस तो तब हुआ, जब मुझसे इंफेक्शन की वजह से उसे भी चिकनपॉक्स हो गया आैर उसकी नौकरी छूट गई। अच्छा यह हुआ कि मेरे चेहरे पर पड़े मार्क्स की वजह से मुझे उस लड़के से नहीं मिलना पड़ा।

प्यार यदि सच्चा हो आैर मन में अटल विश्वास तो यह जरूर मुकम्मल होता है। बड़ी मुश्किल से हमारे एक होने के लिए घरवाले तैयार हुए। अब भी सोचती हूं तो लगता है कि यदि मेरी तरह निशांत ने भी हार मान ली होती तो आज हमारा प्यार मुकम्मल नहीं हुआ होता। आज निशांत न केवल मेरा दोस्त है बल्कि एक ऐसा पार्टनर, जिसकी वजह से मेरे होंठों की मुस्कुराहट कायम है।

ADVERTISEMENT

इन्हें भी देखें- 

 
07 Feb 2018

Read More

read more articles like this
good points

Read More

read more articles like this
ADVERTISEMENT