नवरात्रि एक ऐसा त्योहार है, जिसका इंतज़ार देवी मां के भक्तों को हमेशा रहता है। इन 9 दिनों में भक्त देवी मां को प्रसन्न करने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते (नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं)। नवरात्रि के अष्टमी और नवमी तिथि पर घरों में कन्या पूजन कर नवरात्रि के व्रत का समापन किया जाता है। नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्त्व होता है। कहते हैं, जिसके घर कन्या पूजन नहीं हुआ उसकी नवरात्रि में 9 दिनों की पूजा अधूरी मानी जाती है। जो लोग 9 दिनों तक माता रानी का व्रत रखते हैं, वे भी कन्या पूजन के बाद ही अपना उपवास तोड़ते हैं और अन्न को हाथ लगाते हैं। मगर क्या आपने कभी सोचा है कि नवरात्रि पर कन्या पूजा क्यों कराई जाती है और नवरात्रि पर कन्या पूजन का महत्त्व क्या है। अगर नहीं तो यहां जानिए।
क्यों किया जाता है कन्या पूजन?
नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथियों पर मां महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इस दौरान कई घरों में कन्या पूजन शुरू हो जाता है। हाल तो यह होता है कि इस दिन पूजा के लिए कन्या मिलना भी मुश्किल हो जाता है। क्योंकि इन दो दिनों में कन्या पूजन के लिए कन्याओं की बहुत डिमांड रहती है। सबसे पहले आपको बता दें कि 13 साल से नीचे की लड़कियों को कन्या माना जाता है। नवरात्रि पर 9 कन्याओं और एक लंगूर (लड़का) को घर बुलाकर आवभगत की जाती है। इन कन्याओं को 9 देवियों का रूप मानकर घर पर इनका स्वागत सत्कार किया जाता है।
कन्या पूजन का महत्त्व
नवरात्रि पर कन्या पूजन का विशेष महत्व है। कहते हैं कि 9 कन्याओं और एक लंगूर (लड़का) को आदर सत्कार के साथ भोजन कराने से देवी मां प्रसन्न होती हैं और इन कन्याओं के जरिए अपना आशीर्वाद देती हैं। इस दौरान कन्याओं को भोजन कराने के साथ अन्य वस्तुएं भी दान में दी जाती हैं। आइए माना जाता है कि कन्या पूजन करने से घर पर सुख-शांति छाई रहती है और कन्या पूजन करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कन्या पूजन से पहले हवन करवाने का प्रावधान भी होता है। ऐसा माना जाता है कि हवन कराने और कन्या पूजन करने से देवी मां अपनी कृपा दृष्टि बरसाती हैं।
कन्या पूजन की विधि
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1- सबसे पहले 9 कन्याओं और 1 लंगूर (लड़का) को अपने घर कन्या पूजन के लिए आमंत्रित किया जाता है।
2- कन्याओं के आने के बाद घर पर मुख्य द्वार पर पुष्पवर्षा से उनका स्वागत किया जाता है।
3- इसके बाद सभी कन्याओं को उनका स्थान ग्रहण करने के लिए कहा जाता है। जब सभी कन्याएं अपने-अपने स्थान पर बैठ जाती हैं तो स्वच्छ जल या दूध से से खुद उनके पांव धुलकर उनका आशीष लिया जाता है व देवी मां के नाम की चुनरी उनके सिर पर बांधी जाती है।
4- उसके बाद कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए।
5- इसके बाद देवी मां के नाम का जलाकर सभी कन्याओं को उनकी पसंद का भोजन कराना चाहिए। वैसे इस दिन कन्याओं को हलवा पूड़ी या खीर पूड़ी अधिक खिलाई जाती है।
6- भोजन के बाद कन्याओं को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान और उपहार दें। आखिर में उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लें और घर से उन्हें विदा करें।
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