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Chaitra Navratri Vrat Katha

Navratri Vrat Katha – चैत्र नवरात्रि 2022 की व्रत कथा

हर साल अप्रैल के महीने में चैत्र नवरात्रि मनाई जाती है। 9 दिन की नवरात्रि में लोग मां दुर्गा का उपवास करते हैं और इन 9 दिनों तक माता रानी के भजन का जाप करते हैं और केवल फलाहार ही खाते हैं। नव का मतलब नौ होता है और रात्रि का मतलब रात होता है और इस वजह से यह 9 दिन का उपवास होता है। इस दौरान माता रानी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस साल 

चैत्र नवरात्रि कब से शुरू है 2022 – Chaitra Navratri Kab se Shuru Hai

चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल (चैत्र नवरात्रि 2022) यानि की कल से शुरू हो रहे हैं। इस वजह से हम आपको नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं और उम्मीद करते हैं कि आपके नवरात्रि के नौ दिन बहुत ही अच्छी तरह से माता रानी की पूजा अर्चना करते हुए और नवरात्रि के भजन सुनते हुए निकलें। 

चैत्र नवरात्रि 2022 अष्टमी कब है? – Chaitra Navratri ki Ashtami Kab Hai

इस साल नवरात्रि का त्योहार 2 अप्रैल (चैत्र नवरात्रि कब से शुरू है) से शुरू हो रहा है और यह 11 अप्रैल को खत्म होंगे। वहीं अष्टमी (chaitra navratri ki ashtami kab hai) 9 अप्रैल को मनाई जाएगी।

बृहस्पति जी बोले – हे ब्राह्मण, आप अत्यंत बुद्धिमान, सर्वशक्तिशाली और चारों वेदों को जानने वाले श्रेष्ठ हैं। हे प्रभु, कृपा कर के मेरा वचन सुनें। चैत्र, आश्विन और आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष में नवरात्रि का व्रत और उत्सव क्यों मनाया जाता है? हे भगवन! इस व्रत का क्या फल है? इसे किस तरह से करना उचित है और पहले इस व्रत (नवरात्रि की व्रत कथा) को किसने किया है? तो विस्तार से बताइए। 

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बृहस्पति जी के इस प्रश्न को सुनने के बाद ब्रह्मा जी कहते हैं, हे बृहस्पते, प्राणियों का हित करने की इच्छा से तुमने बहुत ही अच्छा प्रश्न पूछा है। जो लोग मनोरथ पूरी करने वाली दुर्गा, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं वो मनुष्ट धन्य हैं, यह नवरात्र व्रत (chaitra navratri vrat katha) संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करता है। इस व्रत (नवरात्रि व्रत कथा) को करने से पुत्र चाहने वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन, विद्या चाहने वाले को विद्या और सुख चाहने वाले को सुख की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से रोगी का रोग खत्म होता है और कारागार हुआ मनुष्य बंधन से छूट जाता है। मनुष्य की सारी आपत्तियां दूर हो जाती हैं और उसके घर में संपत्तियां आकर उपस्थित हो जाती हैं। बन्ध्या और काक बन्ध्या के इस व्रत को करने से पुत्र उत्पन्न होता है। समस्त पापों को दूर करने वाले इस व्रत को करने से ऐसा कोई मनोबल नहीं है जो सिद्ध नहीं हो सकता है। जो मनुष्य अलभ्य मनुष्य देह पाकर भी व्रत नहीं करता है वह माता-पिता से हीन हो जाता है और अनेक दुखों को भोगता है। उसके शरीर में कुष्ठ हो जाता हैं और अंग से हीन हो जाता है और उसे सन्तान प्राप्ति नहीं होती है। यदि इस व्रत को कोई मनुष्य नहीं करता है तो वह धन और धान्य से रहित हो जाता है और भूख और प्यास के मारे पृथ्वी पर घूमता है और गूंगा हो जाता है। 

हे बृहस्पते! जिसने पहले इस व्रत को किया है, उसका पवित्र इतिहास मैं तुम्हें सुनाता हूं। तुम इसे सावधानी से सुनना। इस पर ब्रह्मा जी का वजन सुनकर बृहस्पति जी ने कहा- हे ब्राह्मण, मनुष्यों का कल्याण करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए बताइए, मैं सावधानी से इसे सुन रहा हूं। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करें। 

ब्रह्मा जी ने कहा, पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ नाम का ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके संपूर्ण सद्गुणों से युक्त ब्रह्मा की सबसे पहली अत्यंत सुंदर पुत्री उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने घर के बालकपन में सहेलियों के साथ खेलती हुई इस तरह से बढ़ने लगी, जैसे शुक्लपक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है। सुमति का पिता रोजाना दुर्गा की पूजा करता था। ओउस समय भी वह नियम से वहां उपस्थित होती थी। एक दिन सुमति अपनी सहेलियों के साथ खेलने लग गई और भवती की पूजा में उपस्थित नहीं हुई। इस पर पिता को अपनी पुत्री पर क्रोध आया और उन्होंने कहा, हे दुष्ट पुत्री आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया है, इस वजह से मैं किसी कुष्ठी और दरिद्री मनुष्य से तेरा विवाह करूंगा।

पिता के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुख हुआ और उसने पिता से कहा, हे पिताजी, मैं आपकी कन्या हूं। मैं आपके सब तरह से आधीन हूं। जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा कुष्ठी अथवा किसी के साथ जैसी तुम्हारी इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है मेरा तो इस पर पूर्ण विश्वास है। पुत्री की निर्भयता से कहे हुए वचन को सुनकर उस ब्राह्मण को अधिक क्रोध आ जाता है और वह एक कुष्ठी के साथ अपनी कन्या का विवाह कर देता है और क्रोधित होकर कहता है कि जाओ-जाओ जल्दी जाओ और अफने कर्म का फल भोगो। देखें केवल भाग्य भरोसे पर रहकर तुम क्या करती हो?

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इस पर पिता के कटु वचन को सुनकर सुमति मन में विचार करती है कि अहो, मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला है। इस तरह अपने दुख का विचार करते हुए सुमति अपने पति के साथ वन चली जाती है और भयावने कुशयुक्त स्थान पर बड़े कष्ट के साथ रात बिताती है। उस गरीब बालिका को ऐसी दशा में देखकर भगवती पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर सुमति से कहती हैं कि हे दीन ब्राह्मणी, मैं तुम पर प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो वरदान मांग सकती हो। मैं प्रसन्न होने पर मनवांछित फल देने वाली हूं। इस पर सुमति कहती है कि आप कौन हैं जो मुझ पर प्रसन्न हुई हैं, वह सब मेरे लिए कहो और अपनी कृपा दृष्टि से मुझ दीन दासी को कृतार्थ करो। ब्राह्मणी के इस वचन को सुनकर देवी कहती है कि मैं आदिशक्ति हूं और मैं ही ब्रह्माविद्या और सरस्वती हूं। मैं प्रसन्न हो कर प्राणियों का दुख दर कर उन्हें सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं। 

तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतान्त सुनाती हूं, सुनो, तुम पूर्व जन्म में निषाद की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की औरौ इस वजह से तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर लिया। उन लोगों ने तुम्हें और तुम्हारे पति को भोजन नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्रों के 9 दिन (chaitra navratri story in hindi) तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल ही पिया इसलिए नौ दिन तक नवरात्रों का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी उन दिनों में जो व्रत हुआ उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें मनवांछित वस्तु दे रही हूं। तुम जो चाहो वो वरदान मांग लो।

ब्राह्मणी बोलती है कि हे दुर्गे यदि आप मुझ पर प्रसन्न हुई हैं तो कृपा करके मेरे पति के कुष्ठ को दूर करो। देवी कहती हैं कि उन दिनों में जो तुमने व्रत किए थे उस व्रत के एक दिन का पुण्य तेरे पति के कुष्ठ को दूर कर अर्पण करती हूं, मेरे प्रभाव से तेरा पति कुष्ठ रहित हो जाएगा और सोने के शरीर वाला हो जाएगा। ब्रह्मा जी ने कहा कि इस प्रकार देवी का वचन सुनकर वह ब्राह्मणी बहुत ही प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से ठीक है, ऐसे बोली। तब उसके पति का शरीर दुर्गा माता की कृपा से कुष्ठहीन होकर अति कान्तियुक्त हो गया, जिसकी कान्ति से चंद्रमा की कान्ति भी क्षीण हो जाए। अपने पति की मनोहर देह को देखकर सुमति दुर्गे की स्तुति करती है और कहती है, आप दुर्गत को दूर करने वाली, तीनों जगत की सन्ताप हरने वाली, समस्त दुखों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वासी, प्रसन्न होने पर मनवांछित फल देने वाली और दुष्ट मनुष्य का नाश करने वाली हो। तुम ही सारे जगत की माता और पिता हो। हे अम्बे, मुझ अपराध रहित अबला की मेरे पिता ने कुष्ठी से विवाह कर मुझे घर से निकाल दिया। आप ही ने मेरा इस आपत्ति रूपी समुद्र में उद्धार किया है। हे देवी, आपको प्रणाम करती हूं। मुझ दीन की रक्षा करना।

ब्रह्माजी ने कहा, हे बृहस्पते, इसी प्रकार उस सुमति ने मन से देवी की बहुत स्तुत की, उससे हुई स्तुति सुनकर देवी को बहुत संतोष हुआ और ब्राह्मणी से कहने लगी कि ब्राह्मणी, उदालय नाम का अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेंद्रिय पुत्र शीघ्र होगा। ऐसा कहकर वह देवी उस ब्राह्मणी से फिर कहने लगी कि हे ब्राह्मणी और जो कुछ तेरी इच्छा हो वही मनवांछित वस्तु मांग सकती है, ऐसा भगवान दुर्गा का वचन सुनकर सुमति बोली कि हे भगवती दुर्गे अगर आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्रि व्रत विधि बताइए। जिस विधि से नवरात्र व्रत से आप प्रसन्न होती हैं, उस विधि और उसके फल को मेरे लिए विस्तार से वर्णन कीजिए। 

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इस पर दुर्गा कहने लगती हैं कि हे ब्राह्मणी, मैं तुम्हारे लिए संपूर्ण पापों को दूरू करने वाले नवरात्र व्रत विधि को बताती हूं, जिसको सुनने से समान पापों से मोक्ष की प्राप्ति होती है। आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नौ दिन तक विधि पूर्वक व्रत करें और यदिन दिन भर का व्रत ना कर सकें तो एक समय भोजन करें। पढ़े लिखे ब्राह्मणों से पूछकर कलश स्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सीचें। महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती इनकी मूर्तियां बनाकर उनकी नित्य विधि से पूजा करें और पुष्पों से अध्य्र दें। सात ही फलों से भी अध्य्र देकर विधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, विल्व, नारियल, दाख और कदम्ब से राज सम्मान और दाखों से सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को नम्रता से प्रणाम करे और व्रत की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस व्रत को बताई हुई विधि से जो कोई करता है, उसे सब मनोरथ हासिल होता है। 

ब्रह्मा जी ने कहा, हे बृहस्पते इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत (चैत्र नवरात्रि व्रत कथा) की विधि और फल बताकर देवी अन्तध्र्यान हो गई। जो मनुष्य इस व्रत को भक्तिपूर्ण तरीके से करता है, इस लोक में सुख पाकर अंत में दुर्लभ मोक्ष प्राप्त करता है। 

चैत्र नवरात्रि व्रत से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए  

चैत्र नवरात्रि व्रत से पहले आपको नीचे दी गईं बातों का ध्यान रखना चाहिए। 

देवी की साधना, आपको हमेशा अपने तन-मन को शुद्ध रखकर ही करनी चाहिए और इस वजह से आपको साफ-सुधरे वस्त्र धारण कर ही देवी की साधना करनी चाहिए। देवी की साधना के लिए सफेद, पीले या फिर लाल रंग आदि के कपड़े बेहद शुभ माने जाते हैं। 

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यदि आप शक्ति की साधना सुकून से करना चाहते हैं तो हमेशा पूजा की सामग्री पहले ही अपने पास तैयार रखें, ताकि आपको पूजा के बीच में बार-बार उठकर ना जाना पड़े या फिर आपको किसी से पूजा का सामान ना मांगना पड़े। 

शक्ति की साधना आपको हमेशा शुद्ध जल से स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने ही करनी चाहिए। देवी की साधना से करने से पहले स्त्रियों को सिर के बाल अवश्य धोने चाहिए। नवरात्रि की साधना के दौरान साधक को भूलकर भी अपने बाल और दाढ़ी नहीं कटवानी चाहिए। ऐसी स्थिति में आपको नवरात्र शुरू होने से पहले ही अपने बाल, दाढ़ी, नाखून आदि कटवा लेने चाहिए। 

FAQ

नवरात्रि साल में दो बार क्यों मनाते हैं?

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध करने से पहले अपनी विजय की मनोकामना करते हुए मां का आशीर्वाद लेने के लिए विशाल पूजा का आयोजन किया था। माना जाता है कि राम देवी के आशीर्वाद के लिए इतना इंतजार नहीं करना चाहते थे और तब से ही हर साल दो बार नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। 

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चैत्र नवरात्रि कब हैं?

चैत्र नवरात्रि 2022 (chaitra navratri kab se shuru hai) में 2 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं और 11 अप्रैल को खत्म होंगे

साल में कितनी नवरात्री आती है?

हर साल 2 बार नौ दिवसीय नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। 

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चैत्र नवरात्रि के व्रत में क्या खाना चाहिए?

चैत्र नवरात्रि का व्रत पूर्ण रूप से फलाहार होता है। इस वजह से व्रत के 9 दिनों में आपको फलों का सेवन करना चाहिए और यदि आप दिन में एक बार भोजन करते हैं तो आप कुट्टु के आटे की पूड़ियां और आलू की सब्जी का सेवन कर सकते हैं। 

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01 Apr 2022

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