जब से ये दुनिया अस्तित्व में आई है शायद तभी से हम लड़कियों को एक नाजुक कली की तरह समझते आए हैं, जिसका गहना शर्म और लज्जा है। अगर कोई महिला इससे परे गई है तो उसे इसी समाज के लोग मर्दाना औरत की उपाधि देने लगते हैं। और शायद इसी डर से हमारी आवाज दब जाती है। लेकिन अब समय बदल रहा और साथ ही महिलाओं की तस्वीर भी। ऐसे में ज़रूरी है कि महिलाएं खुद अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाएं। यहां हम आपको कुछ जरूरी राइट्स यानि कानूनी अधिकारों की जानकारी दे रहे हैं जिन्हें जानकर आप उनका वाजिब इस्तेमाल कर सकती हैं।
0सुप्रीम कोर्ट के अनुसार किसी भी मामले में आरोपी साबित हुई महिला के गिरफ्तारी यानि की पुलिस हिरासत व कोर्ट में पेश करने के कई कानून बने हुए हैं। जिसका पालन करना जरूरी है। जैसे कि बिना महिला पुलिसकर्मी के लिए आरोपी महिला को हिरासत में नहीं लिया जा सकता है। साथ ही महिला के घरवालों को सूचित करना, लॉकअप में बंद करने से पहले उसके लिए अलग व्यवस्था करना जरूरी है।
भारत की प्रसिद्ध महिला राजनेताए
लीगल ऐड कमेटी के तहत रेप पीड़िता को मुफ्त कानूनी सलाह व सरकारी वकील मुहैया कराने की पूरी व्यवस्था है। ऐसे में वो अदालत से गुहार लगा सकती है। उसे किसी भी तरह का कोई भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए एस.एच.ओ स्वयं ही ऐड कमेटी से सरकारी वकील की व्यवस्था करने की मांग करेगा।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति यानि पिता की संपत्ति पर अब जितना बेटे का हक है, उतना ही घर की बेटियों का भी। यहां तक कि ये अधिकार बेटियों के लिए उनकी शादी के बाद भी कायम रहेगा।
मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत किसी भी पब्लिक व प्राइवेट सेक्टर की महिला कर्मचारी को प्रसव के बाद अब 12 नहीं बल्कि 24 हफ्ते यानि 6 महीने तक अवकाश मिलेगा। इस दौरान महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाएगी साथ ही अवकाश के बाद वो फिर से काम शुरू कर सकती है।
किसी महिला के साथ मारपीट की गई हो या फिर उसे मानसिक प्रताड़ना दी गई हो जैसे कि ताने मारना या फिर गाली-गलौज या फिर किसी दूसरी तरह से इमोशनल हर्ट किया गया हो। तो वह घरेलू हिंसा कानून (डीवी ऐक्ट) के तहत मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत कर सकती है।
अगर कोई महिला लिव-इन रिलेशनशिप में है यानि बिना शादी किए किसी मेल पार्टनर के साथ एक छत के नीचे पति-पत्नी की तरह रहती है, तो उसे भी डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट यानि घरेलू हिंसा के तहत प्रोटेक्शन और प्रताड़ित करने व जबरन घर से निकाले जाने के मामले में मुआवजा भी मिलता है। ऐसे संबंध में रहते हुए उसे राइट-टू-शेल्टर भी मिलता है। सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना है कि लंबे समय तक कायम रहने वाले लिव-इन रिलेशन से पैदा होने वाले बच्चे को नाजायज नहीं करार दिया जा सकता।
सभी अधिकारों के तहत ‘जीने का अधिकार’ सबसे अहम है जिसे किसी इंसान से नहीं छीना जा सकता है। अगर किसी महिला की मर्जी के खिलाफ उसका अबॉर्शन कराया जाता है, तो ऐसे में दोषी पाए जाने पर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। हां अगर, गर्भ की वजह से महिला की जान जा सकती है या गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांगता का शिकार हो तो अबॉर्शन कराया जा सकता है। इसके लिए 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट बनाया गया है।
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