ADVERTISEMENT
home / लाइफस्टाइल
#DilSeDilli:  ..और घर पर शोर हुआ कि मैं किसी के साथ भाग गई

#DilSeDilli: ..और घर पर शोर हुआ कि मैं किसी के साथ भाग गई

दिल वालों की दिल्ली में लोगों का आना-जाना लगा ही रहता है। लोग नए सपनों के साथ धड़कती हुई दिल्ली को महसूस करने आते हैं और कई बार यहीं के होकर रह जाते हैं। देश के हर कोने से दिल्ली आई लड़कियां कैसे जीती और महसूस करती हैं दिल्ली को, और दिलवालों की दिल्ली उन्हें कितना अपनाती है.. ये हम बताएंगे आपको हर बार ‘DilSeDilli’ में।

इस बार #DilSeDilli में हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ (नारायणपुर) से आयी प्रेरणा की। प्रेरणा अभी दिल्ली विश्वविद्यालय के मैत्रेयी कॉलेज से बी. कॉम. कर रही है, इन्हें कविताएं लिखने का और गाने का शौक है और इसी शौक ने इन्हें दिल्ली में कायम रखा है।

1. प्रेरणा आप दिल्ली कब और क्यों आईं?

मैं दिल्ली में करीब 3 साल पहले आई थी और आने की सबसे बड़ी वजह थी मेरी अपनी इच्छा। मैंने तय कर लिया था कि मुझे दिल्ली जाना है और दिल्ली ही जाना है। मेरी स्कूलिंग नारायणपुर में हुई है और क्लास 11th में कॉमर्स लेने के बाद ही मैंने डिसाइड किया था कि मेरा अगला destination दिल्ली युनिवर्सिटी है। घरवाले मेरी बात को इग्नोर कर देते थे, उन्हें लगता था कि अभी बच्ची है, बाद में ये भूत उतर जाएगा तो मान जाएगी। पापा चाहते थे कि मैं छत्तीसगढ़ में ही आगे की पढ़ाई करूं.. वो कहते थे कि यहां भी तो कॉलेज और युनिवर्सिटी सब कुछ है, फिर दिल्ली-मुंबई क्यों जाना? उन्हें ये समझाना मुश्किल था कि DU की क्या वैल्यू है। मम्मी के चाहने-न-चाहने से कुछ नहीं होता था इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा, पर मुझे तो आना ही था।

2. तो हमेशा से दिल्ली आने का मन नहीं था, कॉमर्स लेने के बाद ये शौक जागा?

हमेशा से कहीं जाने का मन तो था पर तब तक ये फिक्स नहीं था कि कहां जाना है। ज़ाहिर है नारायणपुर में रहकर आगे पढ़ने की इच्छा तो नहीं थी इसके लिए आप वहां के परिवेश को भी दोषी मान सकती हैं। अमूमन बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाना ही पड़ता है इसलिए मेरे दिमाग में भी ये बात बैठी थी और धीरे-धीरे DU मेरे लिए ड्रीम यूनिवर्सिटी बन गई।

ADVERTISEMENT

3. क्या दिल्ली आने के लिए घरवालों का सपोर्ट मिला?

घरवालों को ये समझने में बहुत वक्त लगा कि DU में पढ़ने की मेरी इच्छा कोई बचपना नहीं है, मैं सच में इस पर अड़ गई थी। उस वक्त फाइनेंशियल कंडीशन बहुत ठीक नहीं थी पर उतनी खराब भी नहीं थी कि मुझे बिल्कुल ही रोक दिया जाए। मेरे घर में मुझसे पहले किसी लड़की ने इंटरमीडिएट के आगे पढ़ाई नहीं की थी पर सपने सभी देखते थे। ऐसे में मेरे पैरेंट्स मुझे आगे पढ़ाने को तैयार थे ये भी कम नहीं था पर मैं छत्तीसगढ़ से बाहर जाना चाहती थी जो मेरे घर के माहौल के मुताबिक नामुमकिन था। घरवालों ने खूब समझाया कि यहीं रह कर जितना पढ़ना है पढ़ो पर मुझ में उस वक्त पता नहीं कितना जोश था कि कदम रुकने को तैयार न हुए।

4. तो फिर आप यहां तक कैसे आईं?

मैं अपने दोस्तों से पता करती थी और जैसे-जैसे पहले कट-ऑफ, दूसरे कट-ऑफ की लिस्ट आती थी, मेरी सांसें थमने लगती थीं। मैंने सोचा कि इन्हें समझाने में पूरा समय निकल जाएगा और बाद में मुझे कहीं एडमिशन नहीं मिलेगा इसलिए घर में ज़िद्द की कि एक बार दिल्ली जाने दिया जाए, मेरी एक दोस्त वहां थी। मैं उससे मिल कर 3 दिन में आ जाऊंगी। बहुत मुश्किल से वो तैयार हुए।

DilSeDilli1

जब मैं गई तो पता चला कि स्टेट बोर्ड की marking की वजह से मेरे 75% marks थे और इसलिए मुझे कैंपस कॉलेज नहीं मिल सकता। मैंने ऐप्लाई तो कर ही दिया था, 4th cut-off में मुझे मैत्रेयी कॉलेज में एडमिशन मिला। ये फीस मैंने अपने दोस्तों के contribution से भरी थी। मैं 10 दिन बाद वापस घर आई थी तो यहां कोहराम मचा हुआ था। सभी मुझ पर चिल्ला रहे थे, मैंने धीरे-धीरे सबको समझाने की कोशिश की लेकिन जब कोई मुझे दिल्ली भेजने को तैयार नहीं हुआ तो कुछ दिन बाद मैं कुछ कपड़े लेकर दिल्ली भाग आई।

ADVERTISEMENT

5. ओह! तो दिल्ली पहुंचने के बाद आपका पहला रिएक्शन क्या था? 🙂

मैं बहुत प्रॉब्लम्स फेस करते हुए यहां आई थी। मैं घर से भाग कर यहां आई थी इसलिए बहुत stressed भी थी पर यहां कदम रखते ही लगा कि – थैंक गॉड! फाइनली मैं यहां आ गई! मेरे चेहरे पर मुस्कान थी। स्टेशन से निकलते ही ऑटो और टैक्सी वालों ने पूछना शुरू कर दिया कि कहां जाना है। अब मुझे तो कहीं जाना ही नहीं था इसलिए मैं confuse हो गई फिर लगा कि कहीं चली ही जाती हूं.. किराया सुनने के बाद मैं सोच में पड़ गई। जेब में 3 हज़ार रुपये थे और इसे भी मुफ्त में आने-जाने में खर्च कर दिया तो आगे क्या करूंगी ये सोचकर मैं वहीं रुक गई। मैं 3-4 दिन तक इधर-उधर रही, मतलब कभी वेटिंग रूम में, कभी प्लैटफॉर्म पर.. क्योंकि मेरे पास पैसे बहुत कम थे और मैं उन्हें ऐसे waste नहीं कर सकती थी। दिल्ली में रहना थोड़ा आसान हो जाता अगर दिल्ली सस्ती होती।

6. जो सपने देखे थे उसे दिल्ली ने कैसे और किस हद तक पूरा किया?

दिल्ली को लेकर मेरा सबसे बड़ा सपना यही था कि मैं किसी भी तरह यहां पहुंच जाऊं। मुझे DU से बी. कॉम. करना था और वो मैं कर रही हूं। अगर मैं ये सब नहीं कर पाई होती तो लगता कि अपनी लाइफ़ में कुछ भी नहीं किया। अपने पूर्वजों की तरह छत्तीसगढ़ में जन्मी और वहीं खत्म हो गयी।

7. यहां आने के बाद अपने struggle के बारे में बताएं।

यहां आने के बाद पढ़ाई शुरू करने से पहले मेरे लिए ज़रूरी था खुद को सेटल करना। दिल्ली में अपना बेस मुझे खुद बनाना था। मैंने इधर-उधर भटकने के बाद एक NGO जॉइन किया, वहां मैं इवेंट्स मैनेज करती थी, लोगों से interact होती थी और इससे मुझे इतने पैसे मिलने लगे कि मैं अपना खर्च चला सकूं। पहले महीने में बहुत प्रॉब्लम हुई पर बाद में सब ठीक होता चला गया।

 मैं दिन में क्लास अटेंड करती थी औप वहां से सीधे ऑफिस भागती थी। कई बार रात भर का प्रोग्राम होता था और फिर अगली सुबह सूजी हुई आंखों के साथ कॉलेज आना पड़ता था। पर मैं इन सब में खुश थी। उस वक्त घरवालों को बिल्कुल आइडिया नहीं था कि मैं कहां हूं, क्या कर रही हूं। मुझे उनकी फिक्र भी होती थी पर लगता था कि अगर एक बार भी वहां गई तो वापस नहीं आ पाऊंगी और सारी मेहनत बेकार हो जाएगी इसलिए मैं वहां नहीं गई।

ADVERTISEMENT

8. आप अभी तक घर नहीं गयीं? कोई Contact नहीं किया?

जब मेरा 1st year complete हो गया तब मैं घर गई। मुझे पता था कि सबका रिएक्शन अजीब होगा और इसके लिए मैं mentally prepared भी थी। वहां पहुंची तो पैरेंट्स बहुत नाराज़ थे और लोगों ने उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी – और पढ़ाओ, सिर पर चढ़ाओ बेटी को। क्या पता किस के साथ भागी है.. क्या कर रही है.. ज़िंदा है या मर गई.. ऐसी बातें सुनने को मिलती थीं। मैंने पैरेंट्स को सबकुछ बताया और इस बार मैंने डरते हुए अपनी इच्छा नहीं रखी थी। मैंने confidence के साथ अपनी बात रखी और सबसे माफी भी मांगी। धीरे-धीरे सब ठीक होने लगा। पैरेंट्स को भी ये लगा कि अब एक साल हो चुके हैं तो मुझे रोक कर कोई फायदा नहीं है।

DilSeDilli2

9. दिल्ली ने खुशी दी या निराश किया?

शुरूआत में कुछ ठीक नहीं था पर मैं ये बात समझने के लिए तैयार थी कि ये मेरा डिसीज़न था और इसके लिए मैं किसी के पास जाकर रो नहीं सकती। क्लासमेट्स ने बहुत सपोर्ट किया, मैंने BPO में काम किया फिर NGO से जुड़ी और आज मैं बिल्कुल निराश नहीं हूं।

10. आपको दिल्ली अपनी ओर खींचती रही, क्या खास है यहां?

दिल्ली में आप बेकार नहीं बैठ सकते। यहां स्टूडेंट्स के लिए बहुत स्कोप है। अगर आप यहां पहुंच गए तो ये आपको काफी कुछ सिखा कर भेजेगी। दिल्ली हमेशा धड़कती रहती है, ये कभी नहीं रुकती।

ADVERTISEMENT

11. दिल्ली को अगर तीन शब्दों में बयां करना हो तो..

दिल्ली पर मैं पूरी कहानी लिख सकती हूं पर सिर्फ़ तीन शब्दों में बयां कर पाना थोड़ा मुश्किल है। दिल्ली ज़िंदादिल है, बेपरवाह है.. दिल्ली मेरी जान है।

Images: shutterstock.com

यह भी पढ़ें: #DilSeDilli: लोगों के लिए वो आवाज़ ‘अजीब’ थी, पर गूंजी तो…

यह भी पढ़ें: #DilSeDilli: यकीन नहीं होता..इस वजह से मुझे नहीं मिली नौकरी

ADVERTISEMENT
05 May 2016

Read More

read more articles like this
good points

Read More

read more articles like this
ADVERTISEMENT