कबीर दास (about kabir das in hindi) एक संत, कवि और समाज सुधारक थें। यही वजह है कि उन्हें संत कबीर दास के नाम से जाना जाता है। यहां तक कि वह अपनी कविताओं में भी सत्य को उजागर करने की कोशिश किया करते थे। वह अपनी कविताओं में पाखंडियों के बारे में लिखते थे या फिर अन्याय या फिर लोगों को सत्य का मार्ग दिखाने की कोशिश किया करते थे। संत कबीर दास के बारे में या फिर उनकी कविताएं शायद आपने भी अपने स्कूल के समय में जरूर पढ़ी होंगीं। आज हम इस लेख में आपको संत कबीर का जीवन परिचय बताने वाले हैं।
कबीर दास कौन थे
संत कबीर दास (कबीर के दोहे मीठी वाणी) हिंदी साहित्य के ऐसे कवि हैं, जिन्होंने आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर लिखते रहे। वह कर्म को बहुत अहम मानते थे और इस वजह से वजह से वह कर्म प्रधान समाज के पैरवी थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में भी दिखाई देती है। मानो तो उन्होंने लोक कल्याण के नाम अपना पूरा जीवन कर दिया था। संत कबीर दास की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी।
कबीर दास का जन्म कब हुआ था
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कबीर दास (कबीर दास का जन्म कब हुआ था) के जीवन से संबंधित बहुत सी किंवदन्तियाँ हैं। कबीर पंथियों की माने तो उनका जन्म काशी में लहरतारा तालाब में मौजूद कमल के ऊपर बालक के रूप में हुआ था। वहीं कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उनका जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ था और युवावस्था में उन्हें स्वामी रामानंद के प्रभाव से हिंदू धर्म के बारे में जानकारी मिली थी। एक दिन कबीर गंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर गए थे। उस समय रामानंद जी गंगा स्नान के लिए सीढ़ियां उतर रहे थे और तभी उनका पांव कबीर के शरीर पर पड़ गया और उनके मुख से तुरंत राम-राम शब्द निकल पड़ा। माना जाता है कि उसी समय कबीर ने रामानंद जी को अपना गुरु मान लिया। कबीर दास ने लिखा है –
हम कासी में प्रकट भय हैं,
रामानंद चेताये
कबीर दास का जीवन परिचय
संत कबीर दास का जन्म 1440 में हुआ था। इस्लाम में कबीर का अर्थ महान होता है। हालांकि, संत कबीर दास के असली माता-पिता के बारे में कोई साक्ष्य नहीं है लेकिन माना जाता है कि उनका पालन-पोषण एक गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनको नीरू और नीमा(कबीर की माता का नाम) ने लहरतारा में एक तालाब के पास पाया था। कबीर के माता-पिता (कबीर दास के माता पिता का नाम) बेहद ही गरीब थे लेकिन उन्होंने कबीर को पूरे दिल से स्वीकार किया था और उन्हें अपने व्यवसाय के बारे में शिक्षित किया था, साथ ही उनकी पढ़ाई लिखाई भी कराई थी। इसके बाद कबीर ने एक संतुलित गृहस्वामी और संत के रूप में संतुलित जीवन व्याप्त किया था।
माना जाता है कि कबीर ने अपने बचपन की सारी धार्मिक शिक्षाएं गुरु रामानंद से प्राप्त की और बाद में वह रामानंद के शिष्य के रूप में जाने जाने लगे। कबीर दास ऐसे पहले भारतीय संत थे जिन्होंने हिंदू और इस्लाम धर्म को सर्वश्रेष्ठ रास्ता दिखाया और जिसे दोनों धर्मों द्वारा माना गया। कबीर दास के मुताबिक, हर जीवन का दो धार्मिक सिद्धांतों से संबंध होता है। मोक्ष के बारे में कबीर दास का मानना था कि ये दो दैवीय सिद्धांतों को एक करने की प्रक्रिया है।
कबीर दास की रचना बीजक में ऐसी बहुत सी कविताएं हैं जो धार्मिकता पर उनके सामान्य विचार को स्पष्ट करती हैं। कबीर की हिंदी उनके दर्शन की तरह ही सरल है। वह ईश्वर में एकात्मकता का अनुसरण किया करते थे। वह हिंदू धर्म में मूर्ति पूजन के विरोधी थे और भक्ति और सूफी विचारों में उनका पूरा विश्वास था।
अपनी लेखनियों में कबीर दास आम बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया करते थे। उनकी भाषा पर काफी मजबूत पकड़ थी। वह अपनी जिस बात को जिस रूप में प्रकट करना चाहते थे वो उसे उसी रूप में प्रकट करते थे।
15वीं शताब्दी में कवि कबीर दास के बारे में माना जाता है कि उन्होंने अपनी मृत्यु की जगह का खुद ही चयन कर लिया था। दरअसल, उन्होंने मगहर, जो लखनऊ से 240 किलोमीटर दूर है वहां अपनी मृत्यु की जगह चुनी थी। उन दिनों ऐसा माना जाता था कि जो भी मगहर में मरेगा वो अगले जन्म में बंदर बनेगा और उसे कभी स्वर्ग में जगह नहीं मिलेगी और इस वजह से कबीर दास ने अपनी मृत्यु (कबीर की मृत्यु) के लिए इस स्थान का चयन किया था। कबीर दास लोगों के इस अंधविश्वास को दूर करना चाहते थे। 1575 में हिंदू कैलेंडर के मुताबिक माघ शुक्ल एकादशी पर मगहर में उन्होंने इस दुनिया को त्याग दिया था। ऐसा भी मान्यता है कि काशी में मरने वाला मनुष्य सीधे स्वर्ग जाता है और इस वजह से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और इसी कारण कई लोग अपने अंतिम समय में काशी जाते हैं। लेकिन इस तरह के मिथक को दूर करने के कारण संत कबीर दास की मृत्यु काशी से बाहर हुई। इससे जुड़ा कबीर का एक कथन भी है – ‘जो कबीरा काशी मुएतो रामे कौन निहोरा’। इसका अर्थ है कि स्वर्ग का रास्ता इतना आसान होता तो पूजा करने की क्या जरूरत थी।
कबीर दास ने रामानंद को अपना गुरु माना था और रामानंद ने उन्हें गुरु मंत्र के रूप में भगवान राम का नाम दिया था। कबीर दास हमेशा ही निर्गुण भक्ति को समर्पित रहे हैं। कबीर दास इस्लामिक परंपरा से ज्यादा बुद्ध और सिद्ध से बेहद प्रभावित थे। उनके अनुसार “निर्गुण नाम जपो रहे भैया, अविगति की गति लाखी ना जैया”।
कबीर दास ने अपने जीवन में कभी अल्लाह या भगवान में फर्क नहीं किया। कबीर ने हमेशा लोगों को यही उपदेश दिया है कि ईश्वर एक है, केवल नाम अलग हैं। वह कहते हैं कि बिना किसी निम्न के उच्च जाति या वर्ग के लोगों के बीच प्यार और भाईचारे की भावना या धर्म होना चाहिए। इस वजह से ऐसे भगवान को समर्पित करो, जिनका कोई धर्म ना हो। कबीर दास हमेशा ही कर्म पर भरोसा किया करते थे।
कबीर दास का धर्म
कबीर दास कर्म को ही अपना धर्म मानते थे। उनके मुताबिक कर्म ही पूजा और जिम्मेदारी ही धर्म है। वह कहते थे कि अपना जीवन जियो, जिम्मेदारी निभाओ और अपने जीवन को सफल बनाने के लिए कड़ी मेहनत करो। कभी अपने जीवन से सन्यासियों की तरह दूर मत भागो और अपनी जिम्मेदारियों से दूर मत भागो। उन्होंने पारिवारिक जीवन को महत्व दिया है और इसे ही जीवन का असली अर्थ माना है।
कबीर दास ने लोई नामक महिला से शादी की थी और उनके दो बच्चे थे।
कबीर दास की मृत्यु कब और कहां हुई थी?
संत कबीर दास की मृत्यु 1517 में मगहर में हुई थी।
संत कबीर की हत्या किसने की?
लोग कहते हैं कबीर मरने के बाद फूल बन गये और हिन्दू और मुस्लिमो ने उन्हें बराबर बांट लिया, जबकि सच्चाई यह है कि सिकंदर लोदी ने उन्हें हाथी के पैरो से कुचल कर मरवा दिया था, क्योंकि वे सामाजिक कुरीतियों का खंडन करते थे।
कबीर के चार राम?
एक राम तो राजा दशरथ के पुत्र थे जिन्होंने यहाँ राज किया . वो एक आदर्श पुत्र , आदर्श पति , आदर्श भाई तथा आदर्श राजा थे। दूसरा वो राम है, जो हमारे घट – घट में बैठा है और वो हमारा मन है। तीसरा वो राम है जिसका ये सारा पसारा है इसमें माया भी है , काम – क्रोध – लोभ – मोह – अहंकार भी है बाकि भी हर तरह की कशिश है , हमें इनसे बचने का प्रयास करना है। चौथा राम सबसे न्यारा है, सबसे ऊंचा है ,सबसे बड़ी ताकत है , वही इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता है।