करवा चौथ का व्रत एक ऐसा व्रत है जिससे पति- पत्नी के मन में एक-दूसरे के प्रति समर्पण, विश्वास और प्रेम की भावना और भी बढ़ जाती है। ‘करवे’ का अर्थ है- मिट्टी का बर्तन और ‘चौथ’ का अर्थ है- चतुर्थी। सुहाग का यह व्रत हर साल कार्तिक के पवित्र महीने में संकष्टी चतुर्थी के दिन यानि कि कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तिथि को किया जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं अपने सुहाग और रिश्ते की लंबी उम्र की कामना करते हुए व्रत रखती हैं। चांद की पूजा करने के बाद वो छलनी में दिया रखकर पहले चांद का दीदार करती हैं और फिर उससे ही अपने पति को देखकर करवा चौथ का व्रत खोलती हैं। लेकिन सभी के मन में हमेशा ये सवाल उठता है कि करवा चौथ के चांद को देखने के लिए आखिर छलनी का इस्तेमाल क्यों किया जाता है ? तो हम आज आपके इसी सवाल का जवाब बताने वाले हैं।
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क्यों करते हैं चांद का दीदार ?
हिंदू मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा को भगवान ब्रह्मा का रूप माना जाता है और चांद को लंबी आयु का वरदान मिला हुआ है। कहते हैं कि चांद में सुंदरता, शीतलता, प्रेम, प्रसिद्धि और लंबी आयु जैसे गुण पाए जाते हैं। इसीलिए सभी महिलाएं करवा चौथ के दिन चांद को देखकर उससे प्रार्थना करती हैं कि उसके सभी गुण उनके पति में आ जाएं और उनके जीवन में भी खुशियां इसी तरह हमेशा चमकती रहें।
चांद देखने के लिए क्यों करते हैं छलनी का इस्तेमाल ?
त्योहार वहीं होता है लेकिन अलग- अलग परंपराओं के चलते तरीका बदल जाता है। वैसे ही करवा चौथ में भी कुछ लोग चांद को देखने के लिए छलनी का प्रयोग करते हैं तो कोई पायल और चांद को अर्घ्य देकर बाल की लट से उसे देखते हैं। किसी जगह के लोग इसे छलनी बोलते हैं तो कहीं इसे चलनी बोला जाता है। इस दिन महिलाएं दीए की लौ में चांद और अपने पिया के चेहरे का दीदार छलनी के जरिये से करती हैं। दरअसल, छलनी से चांद का दीदार करने का चलन फैशन की देन नहीं है बल्कि ये बरसों से ये होता आया है। और इसके परंपरा के पीछे एक कहानी है।
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करवाचौथ की एक पौराणिक कथा के अनुसार वीरवती नाम की एक पतिव्रता स्त्री ने शादी के पहले साल करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख की वजह से उसकी हालत खराब होने लगी। भाईयों से अपनी बहन की यह स्थिति देखी नहीं जा रही थी। इसलिए चांद निकलने से पहले ही एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे दीया रखकर बहन से कहने लगे कि देखो चांद निकल आया है। बहन ने झूठा चांद देखकर व्रत खोल लिया। लेकिन इससे वीरवती के पति की मौत हो गई। वीरवती को जब झूठे चांद को देखकर व्रत खोलने की वजह से पति की मौत होने की सूचना मिली, तब वह बहुत दुखी हुई। वीरवती ने अपने पति के मृत शरीर को अपने पास सुरक्षित रखा और अगले साल करवा चौथ के दिन नियम पूर्वक व्रत रखा। इस पर करवा माता प्रसन्न हुईं और वीरवती का मृत पति फिर से जिंदा हो गया।
शादीशुदा महिलाएं हर साल इस बात को याद रखते हुए यह सोचकर कि कहीं कोई छल से उनका व्रत तोड़ न दे, खुद छलनी अपने हाथ में रखकर उगते हुए चांद को देखती हैं। इस तरह से छलनी की ये परंपरा शुरू हुई।
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