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जानिए क्या है ‘वट सावित्री’ व्रत, क्यों इस दिन सुहागिनें करती हैं बरगद के पेड़ की ही पूजा

Archana Chaturvedi  |  Jun 9, 2021
बरगदाही पूजा, वट सावित्री, vat savitri vrat puja muhurat

 

 

वट सावित्री व्रत भारतीय संस्कृति में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। हमारी भारतीय संस्कृति में कई त्योहार उत्साह और उल्लास के साथ मनाए जाते हैं, जिनमें से एक है वट सावित्री (Vat Savitri) यानि कि बरगदाही। जोकि ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री के रूप में मनाया जाता है। इस व्रत के दौरान विवाहित महिलाएं अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना करती हैं और बरगद के पेड़ की पूजा-अर्चना करती हैं। रोली और अक्षत चढ़ाकर वट वृक्ष पर कलावा बांधती हैं। साथ ही हाथ जोड़कर वृक्ष की परिक्रमा लेती हैं। इससे पति के जीवन में आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि के साथ लंबी उम्र प्राप्त होती है।  वैसे स्कन्द और भविष्योत्तर पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को और नियममृतादि के अनुसार अमावस्या को मनाने की प्रथा है। उत्तर भारत में यह व्रत अमावस्या को, तो दक्षिण भारत में ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है।

क्या है वट सावित्री’ व्रत और उसका महत्व

वट सावित्री व्रत को बरगदाही अमावस्या भी कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, वट वृक्ष देव वृक्ष है। इसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति व्रत धर्म से मृत पति को पुन: जीवित किया था। तभी से यह वृत ‘वट सावित्री व्रत’ के नाम से जाना जाता है। इसी मान्यता के आधार पर महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत पर वट वृक्षों की पूजा करती हैं। इस तरह से देखा जाए तो वट सावित्री व्रत पर्यावरण संरक्षण को संदेश भी देता है। वृक्ष रहेंगे तो पर्यावरण बचा रहेगा और तभी मानव जीवन की रक्षा भी होगी।

बरगद के पेड़ की ही पूजा क्यों?

बरगद को वटवृक्ष भी कहा जाता है। वट वृक्ष आयुर्वेद के अनुसार परिवार का वैद्य माना जाता है। पंचवटी में जिन पांच वृक्षों- वट, अशोक, पीपल, बेल और हरड़ आदि को ही शामिल किया जाता है, वे महिलाओं से संबंधित बीमारियों को जल्दी से ठीक करते हैं। इसके अलावा ज्‍योतिषियों के अनुसार, वट के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों का वास होता है, इसलिए इ‍सकी पूजा करने से पति की दीर्घायु के साथ ही उत्‍तम स्‍वास्‍थ्‍य की प्राप्ति होती है।

वट पूजा का मुहूर्त 

– 2023 में वट सावित्री व्रत 19 मई 2023, शुक्रवार को है।
– ज्येष्ठ अमावस्या का आरंभ = 18 मई 2023, गुरुवार रात 09 बजकर 42 मिनट पर होगी।
– ज्येष्ठ अमावस्या का समापन = 19 मई 2023 को रात 09 बजकर 22 मिनट तक रहेग

बरगदाही पूजा की व्रत कथा

 

वट अमावस्या के पूजन की प्रचलित कहानी के अनुसार सावित्री अश्वपति की कन्या थी, उसने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया था। सत्यवान लकडियां काटने के लिए जंगल में जाया करता था। सावित्री अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करके सत्यवान के पीछे जंगल में चली जाती थी।
एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। सावित्री ने उन्हें पहचाना और सावित्री ने कहा कि आप मेरे सत्यवान के प्राण न लें। यमराज ने मना किया, पर वह वापस नहीं लौटी। सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वर रूप में अंधे सास-ससुर की सेवा में आंखें दीं और सावित्री को सौ पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़ दिया। वट पूजा से

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