एंटरटेनमेंट

#DreamWithMe: झुग्गी-झोपड़ी ने दिलाई इन्हें इंटरनेशनल फेम

Garima Singh  |  May 5, 2016
#DreamWithMe: झुग्गी-झोपड़ी ने दिलाई इन्हें इंटरनेशनल फेम

ब्लू पॉटरी क्वीन के नाम से ग्लोबली पहचानी जाने वाली लीला बोरड़िया एक ऐसा नाम है जिन्होंने अकेले अपना रास्ता बनाया और अपने साथ ही उस खूबसूरत कला को एक मंज़िल तक पहुंचाया जो लगभग खत्म हो चुकी थी। एक बात जो उन्हें हमसे अलग बनाता है वह है उनका effort. इकॉनोमिकली साउंड बैकग्राउंड से ताल्लुक रखने वाली लीला अपनी मां के नक्शे-कदम पर चलने की चाहत रखती थीं। इनकी मम्मी life long मदर टेरेसा के आश्रम से जुड़कर जरूरतमंदों की सेवा करती रहीं। जयपुर में शादी होने के बाद लीला कच्ची बस्तियों में जाकर लोगों से मिलने लगीं। उन्हें साफ-सफाई और पढ़ाई की importance बताने लगीं। इसी दौरान उन्होंने कच्ची बस्ती में रहने वाले एक मजदूर के घर blue pottery craft देखा। यह पहली बार था जब लीला इस खूबसूरत कला से रू-ब-रू हुईं।

1. Knowledge मिली तो attachment बढ़ा


पूछने पर लीला को मजदूर ने बताया कि हमारी कई पीढ़ियां इन्हें बनाने का काम करती रही हैं। लीला ने तुरंत दूसरा सवाल किया – तुम्हें बनाना आता है ये? जवाब हां में मिला। अब लीला की curiosity बढ़ती जा रही थी। अचरज भरे लहजे में पूछ बैठीं – तो तुम शहर की कच्ची बस्ती में क्यों रह रहे हो ? तुम्हारा घर कहां हैं ? मजदूर ने बताया हमारा घर गांव में है, राजा-महाराजा के समय में तो हमें राज घरानों से economical support मिलता था। हम राजपरिवारों के लिए बर्तन बनाते थे। अब रजवाड़े रहे नहीं और इन बर्तनों को खरीदने वाले लोग भी कम हैं क्योंकि ये महंगे होते है। हम तो सिर्फ यही बनाना जानते हैं, यह काम चल नहीं रहा इसलिए मजदूरी कर रहे हैं।

2. एक-एक कदम आगे बढ़ाया

लीला ने तुरंत craft making में आने वाली लागत के बारे में पूछा और जाना कि सामान कहां से मिलेगा। फिर उस मजदूर को पैसे दिए और कहा, “तुम कलाकार हो अपने हुनर को बर्बाद मत करो। तुम सामान बनाओ तुम्हारे लिए market मैं खोजती हूं।” इस incident के बाद लीला का कच्ची-बस्ती में रोज का आना जाना होने लगा। जो लोग शुरुआत में उन्हें हैरत भरी नज़रों से देखते थे वो उन्हें स्माइल कर वैलकम करने लगे। आज से तकरीबन 40 साल पहले किसी महिला का four-wheeler से उतरकर अकेले कच्ची बस्ती में जाना और वहां के लोगों से बात करना…। आप समझ सकते हैं कैसा माहौल बनता होगा।

3. वो कदम बन गया मील का पत्थर


लीला के दिए पैसों से मजदूर सामान लाया तो लीला ने बस्ती के बाकी लोगों से भी बात की। उनमें से सिर्फ 4 लोग ही दोबारा इस काम को करने के लिए तैयार थे क्योंकि सबको लगता था कि अब इस क्राफ्ट को कोई नहीं खरीदेगा। अपने personal contacts और दोस्तों के जरिए लीला ने देश के कई राज्यों के साथ ही विदेशो में भी blue pottery के खरीदार तलाशने शुरू किए। तब लीला ने अपनी बहन के नाम पर इस कंपनी को नीरजा इंटरनेशनल नाम दिया। आज इस कंपनी में 500 से ज्यादा लोग काम करते हैं।

4. Struggle का वो दौर

आज एक बड़ी कंपनी की मालकिन लीला अपने struggle को याद करते हुए कहती हैं “blue pottery और उन मजदूरों के हुनर के बारे में जानने के बाद उन 4 मजदूरों को इस काम के लिए तैयार करने में मुझे 2 साल का समय लगा। मैं जब भी उन लोगों से कहती तुम अपना पुश्तैनी काम ही करो तो मेरी बात अनसुनी कर देते। शुरुआती दौर में उनका भरोसा जीतने और उनसे बॉन्डिंग कायम करन के लिए मैंने उन्हें economical support देना शुरु किया। दूसरी तरफ मुझे भी business का कोई experience नहीं था। फिर मित्रों की मदद से ‘अनोखी ’ के जरिए फ्रांस की कंपनी ‘सिमरेन’ का बहुत बड़ा order मिला।”

5. Business का पहला सबक


फ्रांस गए सामान के बाद मिले feedback से हमें पता चला कि हमारे सामान की क्वालिटी बहुत खराब है। वह सामान फ्रांस में फुटपाथ पर बिक रहा है। तब मैंने blue pottery को लेकर अपनी रिसर्च और तेज कर दी। साथ ही decide किया कि order पूरा करते समय क्वांटिटी पर नहीं क्वालिटी पर ध्यान देना है। मैंने खुद craft making workshop attend करना शुरु किया। इस दौरान बहुत travelling की और बहुत सीखा। blue pottery को कुछ लोग मुगल कालीन कला कहते हैं तो कुछ मुगल और राजपूती कला कला संगम। हमारे देश में इस क्राफ्ट का 300 साल पुराना इतिहास मिलता है। यह कला किसी सदी में परशिया से भारत आई थी।

6. Craft पुराना modification नया

पुराने क्राफ्ट को जीवित रखने का सबसे सही तरीका है कि बदलते वक्त के साथ product बनाए जाएं। आज के समय में घरों में इतनी जगह नहीं होती कि बड़े pots रखे जाएं। इसलिए हमने ब्लू पॉटरी के बीट्स, गेट नोब्स. टाइल्स, बीट्स कर्टेन और डोर हैंडल्स बनाने शुरु किए। ये छोटे क्राफ्ट यंग जनरेशन को बहुत पसंद आ रहे हैं।

Read More From एंटरटेनमेंट