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Rabindranath Tagore Poems in Hindi – पढ़िए रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविताएं हिंदी में

Supriya Srivastava  |  Apr 10, 2022
Rabindranath Tagore Poems in Hindi

रवींद्रनाथ टैगोर की बहुप्रशंसित कृति ‘गीतांजलि’, जो पहली बार 1910 में प्रकाशित हुई और बाद में 1912 में अंग्रेजी में अनुवादित और प्रकाशित हुई, ने उन्हें 1913 में “उनके गहन संवेदनशील, ताजा और सुंदर कविता के लिए साहित्य में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिलाया, जिसके द्वारा, उन्होंने अपने काव्य चिंतन को, अपने अंग्रेजी शब्दों में व्यक्त कर, पश्चिम के साहित्य का हिस्सा बना लिया है। वैसे तो विवेकानंद (Swami Vivekananda Quotes in Hindi) से लेकर सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu Quotes in Hindi) तक ने कई अनमोल विचार और कविताएं सबके सामने रखी हैं। मगर कविताओं के क्षेत्र में रवींद्रनाथ टैगोर के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता। हम यहां आपके लिए रवींद्रनाथ टैगोर की कविता हिंदी में (Rabindranath Tagore Poems in Hindi) का एक छोटा सा संग्रह लेकर आये हैं।  

Rabindranath Tagore Poems in Hindi – रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविताएं

7 मई, 1861 को बंगाल के बार्ड में जन्मे रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने लेखन, कविता और विचारों के माध्यम से लोगों की पीढ़ियों को प्रेरित किया है। टैगोर अपने समय से बहुत आगे थे और उनकी कविताओं को न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में पसंद किया जाता रहा है। पढ़िए ऐसी ही कुछ रवींद्रनाथ टैगोर की कविता हिंदी में (rabindranath tagore hindi poems).  

1- चल तू अकेला!

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,

चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,

जब सबके मुंह पे पाश..

ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,

हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!

तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,

मनका गाना गूंज तू अकेला!

जब हर कोई वापस जाय..

ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..

कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…

2- चुप-चुप रहना सखी

चुप-चुप रहना सखी, चुप-चुप ही रहना,

कांटा वो प्रेम का,छाती में बाँध उसे रखना!

तुमको है मिली सुधा, मिटी नहीं अब तक उसकी क्षूधा,

भर दोगी उसमे क्या विष! जलन अरे जिसकी सब बेधेगी मर्म,

उसे खिंच बाहर क्यों रखना!!

3- विपदाओं से रक्षा करो

विपदाओं से रक्षा करो-

यह न मेरी प्रार्थना,

यह करो : विपद् में न हो भय।

दुख से व्यथित मन को मेरे

भले न हो सांत्वना,

यह करो : दुख पर मिले विजय।

मिल सके न यदि सहारा,

अपना बल न करे किनारा; –

क्षति ही क्षति मिले जगत् में

मिले केवल वंचना,

मन में जगत् में न लगे क्षय।

करो तुम्हीं त्राण मेरा-

यह न मेरी प्रार्थना,

तरण शक्ति रहे अनामय।

भार भले कम न करो,

भले न दो सांत्वना,

यह करो : ढो सकूँ भार-वय।

सिर नवाकर झेलूँगा सुख,

पहचानूँगा तुम्हारा मुख,

मगर दुख-निशा में सारा

जग करे जब वंचना,

यह करो : तुममें न हो संशय।

4- रोना बेकार है

व्यर्थ है यह जलती अग्नि इच्छाओं की

सूर्य अपनी विश्रामगाह में जा चुका है

जंगल में धुंधलका है और आकाश मोहक है।

उदास आँखों से देखते आहिस्ता क़दमों से

दिन की विदाई के साथ

तारे उगे जा रहे हैं।

तुम्हारे दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए

और अपनी भूखी आँखों में तुम्हारी आँखों को

कैद करते हुए,

ढूँढते और रोते हुए, कि कहाँ हो तुम,

कहाँ ओ, कहाँ हो…

तुम्हारे भीतर छिपी

वह अनंत अग्नि कहाँ है…

जैसे गहन संध्याकाश को अकेला तारा अपने अनंत

रहस्यों के साथ स्वर्ग का प्रकाश, तुम्हारी आँखों में

काँप रहा है,जिसके अंतर में गहराते रहस्यों के बीच

वहाँ एक आत्मस्तंभ चमक रहा है।

अवाक एकटक यह सब देखता हूँ मैं

अपने भरे हृदय के साथ

अनंत गहराई में छलांग लगा देता हूँ,

अपना सर्वस्व खोता हुआ।

5- होंगे कामयाब

होंगे कामयाब,

हम होंगे कामयाब एक दिन

मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

हम होंगे कामयाब एक दिन।

हम चलेंगे साथ-साथ

डाल हाथों में हाथ

हम चलेंगे साथ-साथ, एक दिन

मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन।

6- तेरा आह्वान सुन कोई ना आए

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,

चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,

जब सबके मुंह पे पाश..

ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,

हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!

तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,

मनका गाना गूंज तू अकेला!

जब हर कोई वापस जाय..

ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..

कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…

7- मेरा शीश नवा दो अपनी

मेरा शीश नवा दो अपनी, चरण-धूल के तल में।

देव! डुबा दो अहंकार सब, मेरे आँसू-जल में।

अपने को गौरव देने को, अपमानित करता अपने को,

घेर स्वयं को घूम-घूम कर, मरता हूं पल-पल में।

देव! डुबा दो अहंकार सब, मेरे आँसू-जल में।

अपने कामों में न करूं मैं, आत्म-प्रचार प्रभो;

अपनी ही इच्छा मेरे, जीवन में पूर्ण करो।

मुझको अपनी चरम शांति दो, प्राणों में वह परम कांति हो.

आप खड़े हो मुझे ओट दें, हृदय-कमल के दल में।

देव! डुबा दो अहंकार सब, मेरे आँसू-जल में।

8- गर्मी की रातों में

गर्मी की रातों में

जैसे रहता है पूर्णिमा का चांद

तुम मेरे हृदय की शांति में निवास करोगी

आश्चर्य में डूबे मुझ पर

तुम्हारी उदास आंखें

निगाह रखेंगी

तुम्हारे घूंघट की छाया

मेरे हृदय पर टिकी रहेगी

गर्मी की रातों में पूरे चांद की तरह खिलती

तुम्हारी सांसें, उन्हें सुगंधित बनातीं

मरे स्वप्नों का पीछा करेंगी।

9- मेरे प्यार की ख़ुशबू

मेरे प्यार की ख़ुशबू

वसंत के फूलों-सी

चारों ओर उठ रही है।

यह पुरानी धुनों की

याद दिला रही है

अचानक मेरे हृदय में

इच्छाओं की हरी पत्तियाँ

उगने लगी हैं

मेरा प्यार पास नहीं है

पर उसके स्पर्श मेरे केशों पर हैं

और उसकी आवाज़ अप्रैल के

सुहावने मैदानों से फुसफुसाती आ रही है ।

उसकी एकटक निगाह यहाँ के

आसमानों से मुझे देख रही है

पर उसकी आँखें कहाँ हैं

उसके चुंबन हवाओं में हैं

पर उसके होंठ कहाँ हैं …

10- मन जहां डर से परे है

मन जहां डर से परे है

और सिर जहां ऊंचा है;

ज्ञान जहां मुक्त है;

और जहां दुनिया को

संकीर्ण घरेलू दीवारों से

छोटे छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है;

जहां शब्द सच की गहराइयों से निकलते हैं;

जहां थकी हुई प्रयासरत बांहें

त्रुटि हीनता की तलाश में हैं;

जहां कारण की स्पतष्टह धारा है

जो सुनसान रेतीले मृत आदत के

वीराने में अपना रास्ताद खो नहीं चुकी है;

जहां मन हमेशा व्यासपक होते विचार और सक्रियता में

तुम्हानरे जरिए आगे चलता है

और आजादी के स्वेर्ग में पहुंच जाता है

ओपिता

मेरे देश को जागृत बनाओ

11- दिन पर दिन चले गए

दिन पर दिन चले गए पथ के किनारे।

गीतों पर गीत अरे रहता पसारे।।

बीतती नहीं बेला सुर मैं उठाता।

जोड़-जोड़ सपनों से उनको मैं गाता।।

दिन पर दिन जाते मैं बैठा एकाकी।

जोह रहा बाट अभी मिलना तो बाकी।।

चाहो क्या रुकूँ नहीं रहूँ सदा गाता।

करता जो प्रीत अरे व्यथा वही पाता।।

12- विविध वासनाएँ हैं मेरी

विविध वासनाएँ हैं मेरी प्रिय प्राणों से भी

वंचित कर उनसे तुमने की है रक्षा मेरी;

संचित कृपा कठोर तुम्हारी है मम जीवन में।

अनचाहे ही दान दिए हैं तुमने जो मुझको,

आसमान, आलोक, प्राण-तन-मन इतने सारे,

बना रहे हो मुझे योग्य उस महादान के ही,

अति इच्छाओं के संकट से त्राण दिला करके।

मैं तो कभी भूल जाता हूँ, पुनः कभी चलता,

लक्ष्य तुम्हारे पथ का धारण करके अन्तस् में,

निष्ठुर ! तुम मेरे सम्मुख हो हट जाया करते।

यह जो दया तुम्हारी है, वह जान रहा हूँ मैं;

मुझे फिराया करते हो अपना लेने को ही।

कर डालोगे इस जीवन को मिलन-योग्य अपने,

रक्षा कर मेरी अपूर्ण इच्छा के संकट से।।

13- प्रेम में प्राण में गान में गंध में

प्रेम में प्राण में गान में गंध में

आलोक और पुलक में हो रह प्लावित

निखिल द्युलोक और भूलोक में

तुम्हारा अमल निर्मल अमृत बरस रहा झर-झर।

दिक-दिगंत के टूट गए आज सारे बंध

मूर्तिमान हो उठा, जाग्रत आनंद

जीवन हुआ प्राणवान, अमृत में छक कर।

कल्याण रस सरवर में चेतना मेरी

शतदल सम खिल उठी परम हर्ष से

सारा मधु अपना उसके चरणॊं में रख कर।

नीरव आलोक में, जागा हृदयांगन में,

उदारमना उषा की उदित अरुण कांति में,

अलस पड़े कोंपल का आँचल ढला, सरक कर।

14- धीरे चलो

धीरे चलो, धीरे बंधु लिए चलो धीरे 

मंदिर में, अपने विजन में 

पास में प्रकाश नहीं, पथ मुझको ज्ञात नहीं 

छाई है कालिमा घनेरी 

चरणों की उठती ध्वनि आती बस तेरी

रात है अँधेरी 

हवा सौंप जाती है वसनों की वह सुगंधि,

तेरी, बस तेरी 

उसी ओर आऊँ मैं, तनिक से इशारे पर,

करूँ नहीं देरी 

15- मेरे प्यार की ख़ुशबू…

मेरे प्यार की ख़ुशबू

वसंत के फूलों-सी

चारों ओर उठ रही है।

यह पुरानी धुनों की 

याद दिला रही है

अचानक मेरे हृदय में

इच्छाओं की हरी पत्तियाँ

उगने लगी हैं

मेरा प्यार पास नहीं है

पर उसके स्पर्श मेरे केशों पर हैं

और उसकी आवाज़ अप्रैल के

सुहावने मैदानों से फुसफुसाती आ रही है ।

उसकी एकटक निगाह यहाँ के

आसमानों से मुझे देख रही है

पर उसकी आँखें कहाँ हैं

उसके चुंबन हवाओं में हैं

पर उसके होंठ कहाँ हैं …

Rabindranath Tagore Famous Poems in Hindi – ठाकुर रवींद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कविताएं

टैगोर को अपने मूल बंगाल में एक लेखक के रूप में शुरुआती सफलता मिली थी। अपनी कुछ कविताओं के अनुवादों से वे पश्चिम में तेजी से प्रसिद्ध हुए। वास्तव में उनकी प्रसिद्धि ने एक चमकदार ऊंचाई प्राप्त की, उन्हें व्याख्यान दौरों और दोस्ती के दौरों पर महाद्वीपों में ले जाया गया। दुनिया के लिए वे भारत की आध्यात्मिक विरासत की आवाज बने; और भारत के लिए, विशेष रूप से बंगाल के लिए, वे एक महान जीवित संस्था बन गए। पढ़िए Rabindranath Tagore famous poems in Hindi.

1- लगी हवा यों मन्द-मधुर इस

लगी हवा यों मन्द-मधुर इस

नाव-पाल पर अमल-धवल है;

नहीं कभी देखा है मैंने

किसी नाव का चलना ऐसा।

लाती है किस जलधि-पार से

धन सुदूर का ऐसा, जिससे-

बह जाने को मन होता है;

फेंक डालने को करता जी

तट पर सभी चाहना-पाना !

पीछे छरछर करता है जल,

गुरु गम्भीर स्वर आता है;

मुख पर अरुण किरण पड़ती है,

छनकर छिन्न मेघ-छिद्रों से।

कहो, कौन हो तुम ? कांडारी।

किसके हास्य-रुदन का धन है ?

सोच-सोचकर चिन्तित है मन,

बाँधोगे किस स्वर में यन्त्र ?

मन्त्र कौन-सा गाना होगा ?

2- अरे भीरु

अरे भीरु, कुछ तेरे ऊपर, नहीं भुवन का भार

इस नैया का और खिवैया, वही करेगा पार।

आया है तूफ़ान अगर तो भला तुझे क्या आर

चिन्ता का क्या काम चैन से देख तरंग-विहार।

गहन रात आई, आने दे, होने दे अंधियार–

इस नैया का और खिवैया वही करेगा पार।

पश्चिम में तू देख रहा है मेघावृत आकाश

अरे पूर्व में देख न उज्ज्वल ताराओं का हास।

साथी ये रे, हैं सब “तेरे”, इसी लिए, अनजान

समझ रहा क्या पायेंगे ये तेरे ही बल त्राण।

वह प्रचण्ड अंधड़ आयेगा,

काँपेगा दिल, मच जायेगा भीषण हाहाकार–

इस नैया का और खिवैया यही करेगा पार।

3- कहाँ मिली मैं? कहाँ से आई? यह पूछा जब शिशु ने माँ से…

कहाँ मिली मैं? कहाँ से आई? यह पूछा जब शिशु ने माँ से

कुछ रोती कुछ हँसती बोली, चिपका कर अपनी छाती से

छिपी हुई थी उर में मेरे, मन की सोती इच्छा बनकर

बचपन के खेलों में भी तुम, थी प्यारी-सी गुड़िया बनकर

मिट्टी की उस देव मूर्ति में, तुम्हें गढ़ा करती बेटी मैं

प्रतिदिन प्रातः यही क्रम चलता, बनती और मिलती मिट्टी में

कुलदेवी की प्रतिमा में भी, तुमको ही पूजा है मैंने

मेरी आशा और प्रेम में, मेरे और माँ के जीवन में

सदा रही जो और रहेगी, अमर स्वामिनी अपने घर की

उसी गृहात्मा की गोदी में, तुम्हीं पली हो युगों-युगों से

विकसित होती हृदय कली की, पंखुड़ियाँ जब खिल रहीं थीं

मंद सुगंध बनी सौरभ-सी, तुम ही तो चहुं ओर फिरी थीं

सूर्योदय की पूर्व छटा-सी, तब कोमलता ही तो थी वह

यौवन वेला तरुणांगों में, कमिलिनी-सी जो फूल रही थी

स्वर्ग प्रिये उषा सम जाते, जगजीवन सरिता संग बहती

तब जीवन नौका अब आकर, मेरे हृदय घाट पर रुकती

मुखकमल निहार रही तेरा, डूबती रहस्योदधि में मैं

निधि अमूल्य जगती की थी जो, हुई आज वह मेरी है

खो जाने के भय के कारण, कसकर छाती के पास रखूँ

किस चमत्कार से जग वैभव, बाँहों में आया यही कहूँ?

4- प्रेम, प्राण, गीत, गन्ध, आभा और पुलक में,

आप्लावित कर अखिल गगन को, निखिल भुवन को,

अमल अमृत झर रहा तुम्हारा अविरल है।

दिशा-दिशा में आज टूटकर बन्धन सारा-

मूर्तिमान हो रहा जाग आनंद विमल है;

सुधा-सिक्त हो उठा आज यह जीवन है।

शुभ्र चेतना मेरी सरसाती मंगल-रस,

हुई कमल-सी विकसित है आनन्द-मग्न हो;

अपना सारा मधु धरकर तब चरणों पर।

जाग उठी नीरव आभा में हृदय-प्रान्त में,

उचित उदार उषा की अरुणिम कान्ति रुचिर है,

अलस नयन-आवरण दूर हो गया शीघ्र है।।

5- लगी हवा यों मन्द-मधुर इस

नाव-पाल पर अमल-धवल है;

नहीं कभी देखा है मैंने

किसी नाव का चलना ऐसा।

लाती है किस जलधि-पार से

धन सुदूर का ऐसा, जिससे-

बह जाने को मन होता है;

फेंक डालने को करता जी

तट पर सभी चाहना-पाना!

पीछे छरछर करता है जल,

गुरु गम्भीर स्वर आता है;

मुख पर अरुण किरण पड़ती है,

छनकर छिन्न मेघ-छिद्रों से।

कहो, कौन हो तुम? कांडारी।

किसके हास्य-रुदन का धन है?

सोच-सोचकर चिन्तित है मन,

बाँधोगे किस स्वर में यन्त्र?

मन्त्र कौन-सा गाना होगा?

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