हमेशा अपने parents के protected cocoon में रहने के बाद मैंने एक नई दुनिया में कदम रखा था। कॉलेज में बहुत जल्दी दोस्त बन गए थे और वो भी ऐसे जो मेरे लिए किसी से भी लड़ने को तैयार रहते थे। उस पांच साल के सफर में बहुत लोग साथ चले, बहुत पीछे छूट गए, पर जब मंज़िल पर पहुंची तब मैं अकेली थी। वहां से मेरा नया सफर शुरु हुआ- खुद को जानने का, लोगों को पहचानने का, confidence से चलने का, गिराने वालों से बचने का, अपनी पहचान बनाने का, दूसरों के लगाए tags हटाने का, और सबसे ज़रूरी जो कभी नहीं सोचा था- बड़ा होने का। शायद मैं यही सब सीखने आई थी।
तो इस शहर ने मुझे अब तक क्या सिखाया?
1. सपनों को जीयो
दिल्ली को सपनों का शहर कहते हैं तो बस अपने सपनों का टोकरा उठाकर मैं भी यहां आ गई थी या यूं कहूं कि किस्मत ले आई थी। पहली जॉब करने के दौरान पता चला कि वो सपने अब बोझ बनते जा रहे थे जो मैं बस ढो रही थी। घर पास होने के बावजूद दूर हो गया था। पर कुछ करने का, पापा को proud फील करवाने का सपना मुझे आगे ले जाए जा रहा था। ये सपना मुझे दिल्ली ने दिखाया था और वहीं इन्हें पूरा करने का रास्ता भी दिखा रही थी।
2. जानो सभी को, विश्वास कुछ ही पर
मैं कईं नए लोगों से मिली- boss, colleagues, few colleagues turned friends, इन सभी से मिली। कुछ मुझे आगे बढ़ने में मदद कर रहे थे (या ऐसा सिर्फ मुझे लगता था), कुछ पीछे खींच रहे थे। तो दिल्ली ने ये सिखाया कि सब पर विश्वास मत करो। जानो सबको पर विश्वास कुछ पर करो।
3. छोटी चीज़ों में है बड़ी खुशियां
हर चीज़ के बारे में crib मत करो। अपने आस-पास देखो तो कितनी सारी चीज़ों में छोटी-छोटी खुशियां नज़र आएंगी। Shopping करना पसंद ना था। सिर्फ ज़रुरत की चीज़ें लेती थी। पर अब नईं-नईं चीज़ें खरीद के बहुत अच्छा लगता था। दीवाली से कुछ दिन पहले एक स्कूल वैन साथ से निकली तो बच्चों ने “happy diwali didi” कहकर wish किया और वो कितना अच्छा लगा था। अनजान शहर में अपनेपन का अहसास हुआ था।
4. हर किसी के पास अपनी problems हैं
जितना भी लोगों से मिलती तो यहीं पता चलता कि सबकी ज़िंदगी “bed of roses” नहीं है। दूर के ढोल सुहावने तो लगते हैं पर हर किसी के पास अपनी समस्या है और solution भी खुद ही ढूंढना है। किसी को शादी ना होने की tension थी तो किसी को शादी के बाद होने वाली बीवी की चिक-चिक से, किसी को छोटी बहनों के future की तो किसी को अपने भाई की training की। इन सबके बीच अपनी tensions को झेलना सीखा, और तब इस गाने का मतलब समझ आया, “दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है…”
5. चाहे अकेले चलना पड़े, पर फिर भी आगे बढ़ते रहो
अब इस जॉब में मज़ा कम और सज़ा जैसा ज़्यादा लगने लगा था। सोती कम, भागती ज़्यादा थी। Responsibilities, experience के साथ बढ़ गई थीं, पर उन्हें निभाना सीखने में वक्त लग रहा था। फिर एक दिन मैंने इस काम को छोड़कर कुछ और करने का सोचा। Resign देने के बाद समझ नहीं आ रहा था कि क्या करुं। मेरा interest किसमें है ये भी नहीं जान पा रही थी। तीन महीने waste करने करने के बाद आखिरकार इस शहर ने ही बताया कि मुझे क्या चाहिए!!
6. ज़रूरी नहीं कि qualification और career एक ही हो
Engineering के बाद लिखना pursue किया और अब इसमें बहुत अच्छा लगता है। जब आप अपने काम से प्यार करते हो तो वो काम, काम नहीं रहता है। ये यहां आकर ही जाना। दिल्ली ने फिर मुझे निराश नहीं किया। एक और सबक मेरी झोली में डाल दिया।
7. पुराने दोस्तों को मत भूलो, नए दोस्तों का welcome करो
कहते हैं ना ‘old is gold’, तो हर वक्त मेरी हिम्मत बढ़ाने के लिए मेरे besties मेरे साथ थे। मेरी गलती पर डांटना, उपलब्धि पर शाबाशी देना, doubt में सलाह देना, ये सब वो बखूबी कर रहे थे। जिन लोगों को मैंने अपनी life में अभी आने दिया था वो भी मेरी life का integral part बन चुके थे और इस सब के बिना मेरा ये सफर अधूरा ही रहता, ये मैं अच्छे से जानती हूं।
8. अकेले रहना मुश्किल ज़रुर है पर नामुमकिन नहीं
मैं कभी भी अकेले नहीं रही थी। मेरी mumma housewife थी तो हमेशा वो आस-पास होती थीं। पापा teaching service में थे तो टाईम से घर आते थे। कॉलेज में अच्छा group था, तो hostel भी भरा-पूरा था। अब जब इस हालात में आई तो जाना कि अकेले भी रहना पड़ सकता है। थोड़ी मुश्किल हुई पर adapt करना सीख लिया। अपने flat में जाने के बाद उसे अपने ढंग से सजाने का, खुद के लिए खाना बनाने का, खुद को entertain करने का मज़ा ही कुछ और होता है।
9. प्यार हर तरफ है
इस सबके बीच मेरी life में एक दोस्त आया। वो कब सिर्फ दोस्त से खास दोस्त बन गया, जान ही नहीं पाई। उसके साथ वक्त बिताना, बातें share करना, खुलकर हंसना, different types का music सुनना सब बहुत अच्छा लगता था। हमारा साथ ज़्यादा वक्त का नहीं था, पर हां, वो भी मुझे कुछ सिखाने ही आया था। अपने से पहले दूसरे की परवाह करना, अपनी गलती मानना और दिल से sorry कहना, एक दूसरे की space की कद्र करना, बिना शर्त के जीना, जो पसंद है वो करना, सोच-समझ कर आगे बढ़ना, अपने आप को underestimate ना करना- ये सब मैंने उससे सीखा था।
10. Balance हो सबमें
इन सब में इतना खो गई थी कि एक गलती मैं कर रही थी। अपने परिवार से दूर होती जा रही थी। कॉलेज में रोज़ साढ़े दस बजे घर पर बात होती थी। पर अब हफ्ते में 3-4 बार बात होती थी। Weekends पर तीन घंटों का सफर भी मुश्किल लगने लगा था। कॉलेज के दिनों में आठ घंटों का सफर भी ये सोच कर कट जाता था कि अपने घर जाना है। ये सब मेरे साथ क्यों हो रहा था समझ नहीं पा रही थी। पर हां, एक hope थी कि ये भी मैं सीख ही जाऊंगी।
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