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सिर्फ महिलाओं ही नहीं, पुरुषों को भी “लस्ट स्टोरीज़” देखने की है जरूरत

Richa Kulshrestha  |  Jul 20, 2018
सिर्फ महिलाओं ही नहीं, पुरुषों को भी “लस्ट स्टोरीज़” देखने की है जरूरत

पिछले कुछ समय से महिलाओं की सेक्स इच्छा को लेकर अनेक फिल्में दिखाई जाने लगी हैं। जहां इससे पहले सेक्स इच्छा को लेकर महिलाओं का खराब रूप ही दिखाया जाता रहा है, वहीं अब हिंदी सिनेमा में इसके सकारात्मक पक्ष के साथ यह दिखाया जाना ही काफी प्रगति का सूचक है कि महिलाओं में भी सेक्स इच्छा होती है और सबसे खास बात यह कि यह सेक्स इच्छा जायज भी है। लेकिन चाहे वह फिल्म लिपस्टिक अंडर माय बुरखा हो या फिर वीरे दी वेडिंग, में महिला सेक्सुएलिटी को अलग- अलग समस्याओं के रूप में जरूर दिखाया गया, लेकिन इसका सल्यूशन यानि कि निदान नहीं दिया गया। जबकि महिलाओं सेक्स की इच्छा कोई समस्या नहीं होनी चाहिए, पुरुष को इसे समझकर उसके अनुरूप व्यवहार करना चाहिए। यह बात लस्ट स्टोरीज़ की आखिरी दो कहानियों में नजर आई, जबकि इसमें भी पहली दो कहानियों को बिना किसी निदान के छोड़ दिया गया।

यहां आपको यह बताना भी जरूरी है कि यह फिल्म लस्ट स्टोरीज़ चार अलग- अलग शॉर्ट फिल्मों का संग्रह है जो ऑनलाइन चैनल नेटफ्लिक्स पर ही उपलब्ध है। इसकी चारों शॉर्ट फिल्मों को अलग-अलग निर्देशकों ने डायरेक्ट किया है जिनमें अनुराग कश्यप, दिबाकर बनर्जी, ज़ोया अख्तर और करण जौहर शामिल हैं। यह चारों फिल्में प्रमुख रूप से महिलाओं की प्यार की तलाश को गहरी भावनात्मकता के साथ दर्शाती हैं। लस्ट स्टोरीज की चारों फिल्मों में बेहतरीन कलाकारों ने बेहतरीन एक्टिंग की है, जिनमें राधिका आप्टे, भूमि पेडनेकर, मनीषा कोइराला, कियारा आडवाणी, नेहा धूपिया, संजय कपूर और विकी कौशल ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई हैं। चारों फिल्मों में महिला सेक्सुएलिटी के अलग- अलग रूप देखने को मिलते हैं। देखें इस फिल्म का ट्रेलर –

1. प्रेम की तलाश में भटकती महिला

लस्ट स्टोरीज़ की पहली कहानी अनुराग कश्यप ने डायरेक्ट की है, जो एक लेडी टीचर और उसके स्टूडेंट के बीच होने वाले शारीरिक रिश्ते पर बनी है जिसमें महिला टीचर की एक अजीब मानसिकता को चित्रित किया गया है जो अपने स्टूडेंट के साथ खुद तो पजेसिव है, और उसको किसी के साथ बांटना पसंद नहीं करती, लेकिन साथ ही साथ उसके साथ बंधना भी उसे पसंद नहीं। यह महिला किरदार महिला स्वतंत्रता की बातें तो तमाम करता है, लेकिन महिला स्वतंत्रता को लस्ट यानि वासना के साथ जोड़कर इसे भ्रष्ट भी कर देता है। इस फिल्म की केंद्रीय किरदार यह महिला प्रेम की तलाश में भटकती सी प्रतीत होती है, जिसकी तलाश का कोई अंत ही नहीं है। इसी तरह इस फिल्म का अंत भी इस समस्या को बिना किसी समाधान के छोड़ देता है।

2. नौकरानी की इच्छाओं का मूक प्रदर्शन

इसकी दूसरी कहानी का विषय भी हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से ही लिया गया है। हमें जाने- अनजाने घर की नौकरानी के साथ शारीरिक संबंधों की अनेक कहानियां पढ़ने- सुनने को मिलती हैं और यही कहानी है जोया अख्तर की यह शॉर्ट फिल्म की। फिल्म में नौकरानी बनी भूमि पेडनेकर के किरदार ने कमाल की एक्टिंग की है और वो यहां कुछ न बोलकर भी बहुत कुछ बोल गई हैं। यहां नौकरानी के मनोभावों के माध्यम से यही दर्शाया गया है कि नौकरानी भी एक इंसान होती है और उसके भी अरमान होते हैं, वो भी प्रेम की तलाश कर सकती है। वो पूरे मन से घर का सारा काम करती है, पूरे मन से सेक्स करती है तो पूरे मन से प्यार भी कर सकती है। हां, ऐसे रिश्ते का कोई भविष्य नहीं होता, यही बात इस फिल्म में भी दिखाई गई है।

3. 40 की उम्र के बाद प्रेम की तलाश

तीसरी फिल्म में दिबाकर बनर्जी ने विवाहेतर सेक्स संबंधों का मुद्दा उठाया है। हर विवाहेतर संबंध की तरह यहां भी पति की उपेक्षा ही इस समस्या की वजह है। मनीषा कोईराला और संजय कपूर का एक्टिंग कमाल का है और पति के किरदार का इस विवाहेतर संबंध के बारे में जानने के बाद इसके साथ एडजस्टमेंट को ही इस समस्या के समाधान के रूप में दिखाना ही इस फिल्म का बेहतर अंत बना है। इसके साथ दिबाकर बनर्जी ने यह भी दिखाने की कोशिश की है कि उम्रदराज होना सेक्स या जिंदगी का अंत नहीं है। प्रेम और सेक्स की जरूरत हर उम्र से परे है। कुल मिलाकर यह फिल्म लाजवाब बन गई है। लोग किसी महिला द्वारा प्रेम या सेक्स के लिए अपने बच्चों को नेगलेक्ट करने की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन साथ ही यह भी देखना जरूरी है कि किसी व्यक्ति की, चाहे वह महिला हो या पुरुष इच्छाएं पूरी होंगी, वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट और खुश होगा, तभी तो वह अपने परिवार को भी खुश रह सकता है।

4. पत्नी की इच्छा का सम्मान करने की जरूरत

इस फिल्म का टॉपिक हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से ही लिया गया है, जहां पुरुष सिर्फ अपनी जरूरत की ही परवाह करता है, उसके लिए पत्नी की इच्छा की कोई कीमत नहीं है। ऐसे में पत्नी अगर मास्टरबेशन का सहारा लेती है तो इसमें गलत क्या है। हालांकि फिल्म में ससुरालवाले ऐसी महिला को गलत मानकर घर से निकाल देते हैं। फिल्म का अंत पॉजिटिव है, जहां पति को अपनी गलती समझ आती है और वह पत्नी को वापस लेकर आता है। फिल्म में देश की आम मानसिकता को कई रूपों में  दिखाया गया है जहां महिलाएं यह मानती हैं कि शादी और सेक्स का मतलब सिर्फ बच्चा पैदा करना ही होता है। 

आजकल महिलाओं का मास्टरबेशन करना यानि हस्तमैथुन करते हुए दिखाना काफी कॉमन हो गया है। इससे पहले वीरे दी वेडिंग में भी स्वरा भास्कर को मास्टरबेशन करते हुए दिखाया गया था, जिस पर काफी हो- हल्ला मचा था तो यहां लस्ट स्टोरीज़ में नेहा धूपिया और कियारा अडवानी को भी मास्टरबेशन करते हुए दिखाया गया है और इसे लेकर फिल्म की खासी आलोचना भी हुई है।

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