कुछ लोगों को पहली नज़र में किसी से प्यार हो जाता है तो कुछ को एक- दूसरे को जानने- समझने में सालों लग जाते हैं। किसी को करीब लाने में परिजन या दोस्त क्यूपिड की भूमिका निभाते हैं तो वहीं कुछ का साथ आना किस्मत में पहले से ही लिखा होता है। हमारी इस बार की ‘मेरा पहला प्यार’ की सीरीज में है एक ऐसे कपल की कहानी, जिन्हें सालों तक पता ही नहीं चला कि वे एक- दूसरे से कितनी मोहब्बत करते हैं। यह प्रेम कहानी शुरू हुई थी लड़ाई, अविश्वास और धोखे से… । आइए, पढ़ते हैं अविनाश और गौरी की अजीबोगरीब मगर प्यारी सी लव स्टोरी।
‘पांच साल पहले मैं एक मल्टीनेशनल फर्म में इंटरव्यू देने गई थी। अपना घर चलाने के लिए यह जॉब मेरे लिए बहुत ज़रूरी थी। मेरे मम्मी- पापा की तबीयत खराब रहती थी और उनकी ज़िंदगी में मेरे सिवाय कोई था भी नहीं। जब मैं ऑफिस पहुंची तो उसी पोस्ट के लिए 5 कैंडिडेट और थे वहां। उन लोगों को देखकर मुझमें थोड़ा आत्मविश्वास आया था कि मैं यह जॉब हासिल कर सकती हूं। मेरे पास एक्सपीरियंस था और मैं शहर के टॉप मैनेजमेंट कॉलेज से एमबीए कर चुकी थी। रिसेप्शनिस्ट बारी- बारी से सबके नाम अनाउंस कर रही थी कि तभी मुझे एक जाना- पहचाना चेहरा नज़र आया। उस चेहरे को नाम देने में मुझे ज्यादा वक्त भी नहीं लगा था… अविनाश सचदेव… इस नाम को तो मैं ज़िंदगी भर नहीं भूल सकती थी।
अविनाश को सामने देखते ही मुझे अपने स्कूल और कॉलेज के दिन याद आ गए। वह जब इंटरव्यू देकर लौटा तो उसके चेहरे की खुशी देखकर ही मैं समझ गई कि उसका इंटरव्यू अच्छा हुआ है। तभी मेरा फोन बजा और मैं मम्मी से बात करने लगी। मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि मेरी टेंशन न लें और यह जॉब मिलते ही हमारे घर की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। हालांकि, अविनाश को सामने देखते ही मैं अपना कॉन्फिडेंस खो चुकी थी। मगर किस्मत मेरे साथ थी और मेरा इंटरव्यू बेहतरीन हुआ था। कंपनी के सी.ई.ओ. मुझसे काफी इंप्रेस हुए थे। मैं बाहर आई तो रिसेप्शनिस्ट ने मुझे अगले राउंड के लिए रुकने को कहा। अब बोर्ड रूम में सिर्फ मैं और अविनाश थे।
हमारा जॉइंट इंटरव्यू हुआ, जिसके बाद पैनल में मौजूद लोगों के चेहरे देखकर साफ नज़र आ रहा था कि वे हम दोनों में से किसी एक को सेलेक्ट करने में काफी कंफ्यूज्ड थे। तभी पता नहीं क्या हुआ कि अविनाश वहां से उठ कर जाने लगा। कंपनी ने मुझे सेलेक्ट तो कर लिया था पर मुझे अविनाश का यह बिहेवियर समझ नहीं आया। हालांकि बदतमीज तो वह शुरू से ही था पर करियर को लेकर वह काफी सीरियस भी रहता था। मैं ऑफिस से बाहर निकली तो अविनाश मेरा वेट कर रहा था। उसने मुझसे कॉफी के लिए पूछा तो मैं मना नहीं कर पाई। मैं उसे नीचा दिखाने के लिए पूरी तरह से तैयार थी, आखिर इस बार जीत मेरी जो हुई थी।
हम दोनों कॉफी शॉप पहुंचे तो मुझे उसका व्यवहार काफी बदला हुआ नज़र आया। उसके चेहरे पर कॉलेज वाले अविनाश की अल्हड़ता नहीं दिखाई पड़ रही थी। तभी बातों- बातों में उसने मुझसे स्कूल और कॉलेज में हुई लड़ाइयों के लिए माफी मांगी। उसकी बातें सुनते हुए मुझे लगा कि वह गलत नहीं था, बल्कि गलती तो हम दोनों की थी। बचपना था और एक- दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ थी… उन बातों को दिल में रखकर ज़िंदगी नहीं काटी जा सकती थी। इसलिए मैंने भी उससे माफी मांगकर अपने दिल के बोझ को कुछ हल्का किया। तभी उसने मेरे पेरेंट्स की तबीयत के बारे में पूछा, जिसके बाद मुझे समझ में आया कि शायद उसने वह जॉब मेरे लिए छोड़ दी थी। दरअसल, जब मैं मम्मी से बात कर रही थी, तब अविनाश वहीं खड़ा था और उसे मेरे घर की आर्थिक स्थिति का अंदाजा लग गया था।
… हम अगले दिन फिर उसी कॉफी हाउस में मिले, जहां अविनाश मेरे लिए रिंग लेकर आया था। उसने मुझे प्रपोज किया और जल्द शादी करने के लिए भी पूछा। मुझे अपनी किस्मत पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। न करने का तो अब सवाल ही नहीं उठता था। मुझे तो कल ही उससे प्यार हो गया था। हम दोनों ने एक साथ एक- दूसरे को आई लव यू कहा और फिर मैं उसे अपने घर वालों से मिलवाने ले गई थी। अब हमारी शादी को पांच साल हो चुके हैं और हमारा प्यार आज भी उस कॉफी हाउस वाली मीटिंग की ही तरह है। इस साल वैलेंटाइंस डे पर हमें बेस्ट कपल अवॉर्ड भी मिला था।
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