हर प्रेम कहानी अपने में बिलकुल अलग होती है। वो पहली नजर का मिलना, पहला स्पर्श, प्यार का पहला अहसास, सब कुछ बहुत खास होता है। प्यार होने के बाद एकदूसरे के सपनों में रहना….और भी बहुत कुछ। फिर प्यार की हर एक कहानी का अंत भी बिलकुल जुदा होता है। किसी को अपना प्यार मिल जाता है तो किसी को नहीं। किसी का प्यार उससे वफा करता है तो कोई बेवफा निकल जाता है। लेकिन सच्चे प्यार में जो बिन बोले एकदूजे के लिए समझ होती है, एक गहरा रिश्ता होता है विश्वास का, वो किसी साधारण रिश्ते में नहीं होता। आज के मेरा पहला प्यार कॉलम में पढ़िए एक ऐसे प्यार की कहानी, जो एक ऐसी लड़की की कहानी है जो प्यार में छली गई और उसका प्यार उसकी अपनी ही वजह से उससे दूर हो गया हमेशा के लिए। श्रेया निधि के पहले प्यार की अनोखी दास्तान उसके ही शब्दों में पढ़िये –
मेरा पहला प्यार…वो मुझे तब मिला था जब मैं अपने कॉलेज से स्पोर्ट्स के एक ईवेंट में हिस्सा लेने के लिए हैदराबाद गई थी। उसे देखते ही मैं उसे दिल दे बैठी थी, शायद वो भी…क्योंकि वहां उससे मेरी काफी बातचीत भी हुई थी। जो भी मैच होता, मेरी नजरें उसे ही तलाश रही होती थीं.. तब मुझे ये नहीं पता था कि उसके दिल में भी ऐसा ही कुछ था या नहीं…। वहां हम पूरे पांच दिन रहे, इन पांच दिनों में मैं तो बिलकुल उसकी हो चुकी थी और उसके बाद हम लोग वापस अपने- अपने शहर आ गए। उसके बारे में मुझे बस इतना ही पता था कि वो इलाहाबाद का रहनेवाला था और आगे मिलने के लिए इतना पता होना काफी नहीं था। खैर… मैं तो वापस आकर उसके बारे में बहुत सोचती रहती थी, मिलने के लिए मैंने फेसबुक पर भी उसकी बहुत तलाश की, लेकिन उसका कुछ पता नहीं चल सका। मैंने उसे पहले ही बता दिया था कि इलाहाबाद में मेरी मौसी रहती हैं, जिसका उसने कोई जवाब भी नहीं दिया था।
फिल्मों जैसा किस्मत का खेल
किस्मत का खेल कुछ ऐसा हुआ कि कुछ ही दिनों में मेरी मौसी के यहां से हमें न्यौता मिल गया और मौका था उनके नये घर की पूजा का। मेरी मम्मी को तो जाना ही था, साथ में मैं भी जाने को तुरंत तैयार हो गई। सोचा था कि शायद उससे मुलाकात ही हो जाए। मैं और मम्मी इलाहाबाद पहुंच गए जहां मैंने घूमते- फिरते उसे तलाशने की बहुत कोशिश की लेकिन उससे मिलना नहीं हो सका। एक सप्ताह के बाद मैंने उदास मन से वापस आने की तैयारी कर ली और हमें स्टेशन पर छोड़ने मेरी मौसी- मौसाजी आए थे। अचानक मुझे वह दिखाई दे गया। मेरी यह प्रेम कहानी इतनी फिल्मी टाइप की हो सकती है, मैंने सोचा भी नहीं था। मैं उसे ही देख रही थी कि उसकी नजर भी मुझ पर पड़ गई। अभी गाड़ी को चलने में समय था तो मैं यह कहते हुए ट्रेन के बाहर आ गई कि कुछ लेकर आती हूं।
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शादी नहीं कर सकता
बाहर आकर मैंने उससे कहा कि आखिर तुम्हें तलाश कर ही लिया। उसने कहा, तुम यहां कैसे। ज्यादा बात करने का समय नहीं था, मैंने बस उससे यही कहा कि अपना फोन नम्बर दो और उसने तुरंत अपना नंबर मुझे बताया। मैंने अपने मोबाइल में तुरंत उसका नंबर सेव कर लिया। वापस ट्रेन में बैठकर मेरा दिल बल्लियों उछल रहा था। ट्रेन में मैंने जागते हुए ही न जाने कितने सपने देखे होंगे। वापस आगरा पहुंचकर मैंने एक- दो दिन के बाद उसे फोन किया तो उसने बिना कोई भूमिका बांधे मुझसे कह दिया कि मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता। मैं एकदम भौंचक्की रह गई, लेकिन फिर भी मैंने संभलते हुए कहा कि अभी से शादी? शादी के लिए कहा किसने है तुमसे…..। क्या हमारी दोस्ती भी नहीं हो सकती…। इस पर वो कुछ संयत होकर बात करने लगा। धीरे- धीरे हमारी दोस्ती और फिर प्यार बढ़ता चला गया। इस बीच मेरी नौकरी दिल्ली में लग गई और मैं दिल्ली में एक कमरा लेकर रहने लगी। एक बार वो मुझसे मिलने दिल्ली आया। हम खूब घूमे-फिरे और उसके बाद हम मेरे कमरे पर आ गये।
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आज भी याद है वो मासूमियत
अब सोचती हूं कि कितने मासूम थे हम उस समय। हमने अकेले रहने पर भी खुद को बिलकुल भटकने नहीं दिया। वह नहाने बाथरूम गया तो मैंने कहा कि तुम्हें नहलाना चाहती हूं और मैंने उसकी पीठ पर साबुन लगाया। इस बीच वह इतना शर्माया हुआ सा बैठा रहा कि बता नहीं सकती। उसका वो चेहरा आज भी मुझे याद है। फिर शाम को वह वापस चला गया। हालांकि वह हर बार अपनी तरफ से यह साफ करता रहता था कि वह मुझसे शादी नहीं कर पाएगा क्योंकि उसके घर के लोग अपनी ही जाति में शादी करने के लिए बहुत कट्टर हैं। करीब तीन-चाल साल फोन पर हमारी बातचीत और उसका साल में एक बार मेरे पास आना चल ही रहा था कि एक दिन अचानक उसने मुझपर गाज गिरा ही दी। उसने मुझे बताया कि उसके माता-पिता उसकी शादी कर रहे हैं..एक ऐसी लड़की से जो उसे बिलकुल पसंद नहीं है और वो मजबूर है क्योंकि वो उसकी शादी मुझसे करने के लिए तैयार नहीं हैं और वो अपने माता-पिता की बात को टाल नहीं सकता।
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क्या सारी गलती मेरी थी
मैंने उससे बहुत फरियाद की, बहुत समझाया कि इससे उसकी, मेरी और जिससे वो शादी कर रहा है, उसकी भी जिंदगी खराब हो जाएगी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वो चला गया। मुझे लगता कि इसमें पूरी गलती मेरी ही थी, क्योंकि उसके साफ- साफ बताने के बाद भी मैं ही थी जो इस रिश्ते को आगे बढ़ा रही थी। कभी मुझे लगता कि क्या मेरा इतना समझदार होना मेरी गलती था जो मैंने उसकी समस्या को समझ कर उसे जाने दिया। काश, उसके जाते वक्त मुझे कुछ हो जाता। रोती, गिड़गिड़ाती… किसी भी तरह उसे रोक लेती। समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूं…मुश्किल से मैंने खुद को संभाला, लेकिन उसे भूलना मेरे लिए संभव नहीं था..। शादी के बाद भी वह मुझसे मिला.. और आश्चर्य कि मैंने उसे इस बार भी माफ कर दिया। मैं उससे फिर से मिलने लगी…फिर उसे प्यार करने लगी। मैंने यह सोचा ही नहीं कि यह वही इंसान है जिसने मुझे छोड़ दिया था क्योंकि मैं तो उसके प्यार में पागल थी। वो आता..हम मिलते और फिर वह वापस चला जाता। कई साल इसी तरह चलता रहा। मैं खुद ही एक ऐसे आदमी के बंधन में बंधी रहना चाहती थी जो मेरा नहीं था।
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अब आजाद हूं मैं
इसी तरह चल रही थी जिंदगी। मेरी सहेली मुझे अक्सर समझाती थी कि मैं क्यों अपनी जिंदगी उसके लिए बर्बाद कर रही हूं। हालांकि जल्दी मुझे ये बातें समझ नहीं आईं क्योंकि मैं तो उसकी दीवानी थी, उससे बात किये बिना रहना मेरे लिए बहुत मुश्किल था, पर मैंने धीरे- धीरे उससे दूरी बढ़ानी शुरू की। आखिरकार एक दिन बहुत हिम्मत करके मैंने उससे कह ही दिया कि वो मुझे फोन न करे और न ही कभी मिले। इससे मुझे कितनी तकलीफ हुई, यह मैं ही जानती हूं। बहुत कोशिश करके मैं उसके मोह से निकल पाई हूं। आज मैं आजाद हूं और अपनी जिंदगी अपनी तरह से जी रही हूं, लेकिन फिर भी बहुत खलती है उसकी कमी।
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