लाइफस्टाइल
#RealShakti: ये हैं ‘पैडवुमन ऑफ इंडिया’ माया जीजी, इनकी पीरियड स्टोरी करती है लाखों महिलाओं को मोटिवेट
क्या आप जानते हैं कि 134,00000 लड़कियां सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित हैं और 72,000* महिलाएं हर साल सर्वाइकल कैंसर के कारण मर जाती हैं। ऐसे ज्यादातर मामले ग्रामीण आदिवासी क्षेत्रों के हैं, जहां महिलाएं गंदे कपड़े, सूखे पत्ते, पुराने कपड़े का इस्तेमाल आज के समय में भी करती हैं ये बहुत गंदा और अनहेल्दी तरीका है। आपको शायद ये बात जानकर हैरानी होगी लेकिन यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत की 80% आबादी सैनिटरी पैड का उपयोग नहीं करती क्योंकि वो उनके पहुंच से बाहर है। ज्यादातर लड़कियों और महिलाओं तक पैड आसानी से उपलब्ध न हो पाने की वजह से उन्हें मजबूरन गंदा कपड़ा इस्तेमाल करना पड़ता है, जोकि कई जानलेवा बीमारी की जड़ बनता है।
साल 2018 में आई अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन से तो वाकिफ हो चुके हैं लेकिन क्या आप भारत की पैडवुमन के बारे में जानते हैं। मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर जिले के मेहरा गांव की रहने वाली माया विश्वकर्मा पैडवुमन ऑफ इंडिया के नाम से भी मशहूर हैं। आइए जनते हैं कैसे माया ने महिलाओं को सैनेटरी पैड्स इस्तेमाल करने और उन्हें सेहत का तोहफा देने के लिए दिन-रात एक कर जागरूकता की अलख जगाई।
26 साल की उम्र तक नहीं इस्तेमाल किया पैड
जोश Talks में शेयर किये गये उनके एक वीडियो में माया कहती हैं कि हमारे देश के कई घरों की तरह उनके घर में भी पीरियड्स से जुड़ी बातें खुलकर नहीं होती थीं। पहली बार माहवारी आने पर उन्हें भी घर की महिलाओं ने कपड़ा इस्तेमाल करने की सलाह दी थी। इसके बाद से 26 साल की उम्र तक उन्होंने कपड़े का ही उपयोग किया। इसके चलते कई बार इन्फेक्शन भी हुआ। इसी कारण माया अपने गांव की महिलाओं को मेंस्ट्रुअल हाइजीन का महत्व बताना चाहती थीं, क्योंकि शहरों के मुकाबले गांवों में ये समस्या ज्यादा है।
अमेरिका की छोड़ी नौकरी
माया विश्वकर्मा ने अपनी शिक्षा अमेरिका से पूरी की है। उन्होने साल 2008 में पीएचडी की थी। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को में ब्लड कैंसर पर रिसर्च करके लौटी माया विश्वकर्मा अमेरिका में एक अच्छी जिंदगी जी रही थीं। हालांकि अपने देश- प्रदेश के विकास के लिए कार्य करने का जज्बा उन्हें वापस भारत ले लाया। यहां उन्होंने माहवारी से जुड़ी जो दिक्कतों का सामना किया था, उसे लेकर गांव-गांव जाकर महिलाओं-बच्चियों से मेंस्ट्रुअल हाइजीन पर बात करनी शुरू की।
नो टेंशन सैनिटरी पैड की खोली फैक्ट्री
पहले तो माया ने मेंस्ट्रुअल हाइजीन जागरुकता अभियान के तरह गांव-गांव में क्लीनिक खोली, जहा पीरियड्स जुड़ी महिलाओं की समस्या का समाधान किया जाता था और फिर उसके बाद सुकर्मा फाउंडेशन की शुरूआत की जिसमें महिलाओं नें जुड़कर घर पर ही सैनेटरी पैड बनाने की शुरू कर दी। दो तरह के पैड बनाए जाते थे- पहला, रुई और लकड़ी के पल्प से और दूसरा, पॉलीमर शीट से। हालांकि माया दूसरे गांव की महिलाओं को भी यह फायदा पहुंचाना चाहती थीं। उन्होंने क्राउड फंडिंग के जरिए पैसे जुटाए। एक छोटी फैक्ट्री यूनिट और पैड बनाने की मशीन खरीदी। इसके लिए उन्हें भारत के अलावा भी कई देशों से आर्थिक मदद मिली और फिर उन्होंने ‘नो टेंशन’ सैनिटरी पैड की फैक्ट्री खोल ली। नो टेंशन का एक पैकेट 25 रुपए का है, जिसमें 7 पैड मिलते हैं। ये बाजार में मिलने वाले बाकी कंपनियों के पैड से काफी सस्ता है और साथ ही गांव की महिलाओं को बेहद आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
बेहद प्रेरक रही माया जीजी की कहानी
गांव वाले प्यार से उन्हें माया जीजी कहकर बुलाते हैं। उनकी लाइफ स्टोरी बेहद प्रेरक है। जोश टॉक शो पर आकर खुद माया ने अपनी लाइफ स्टोरी शेयर करते हुए वो कहती हैं कि मेंस्ट्रुअल हाइजीन के प्रति आज भी शहरों और गांवों में बहुत बड़ा अंतर है। गांवों में लड़कियों पर पीरियड्स पर चुप रहने का दबाव होता है। साथ ही, गांवों में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल की जरूरत को समझते हैं। 26 साल की उम्र तक सैनिटरी पैड के उपयोग से अनजान रहीं माया अब देशभर के ग्रामीण इलाकों में पीरियड्स पर लोगों को जागरूक कर रही हैं। उनकी समाजसेवा और जागरूकता कार्यक्रमों के कारण माया विश्वकर्मा को कई सामाजिक पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
जोश टॉक द्वारा शेयर किया गया ये वीडियो –
माया विश्वकर्मा द्वारा की गई सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल की पहल और उनके इस आत्मविश्वास से भरपूर जज्बे ने लाखों महिलाओं को स्वच्छता के साथ-साथ बेहतर स्वास्थ्य का भी उपहार दिया। हमारी टीम पैडवुमन के इस प्रयास को तहेदिल से सल्यूट करती है।
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