भारत में प्राचीन काल से गुरु-शिष्य परंपरा रही है। पूर्व में शिष्य गुरु के साथ आश्रम में रहते थे। उस समय, शिष्य अपने घरों को छोड़कर गुरुगृह में रहते थे। ज्ञान प्राप्त करने के लिए शिष्य को विलासितापूर्ण जीवन का त्याग करना पड़ा। गुरुपूर्णिमा को ज्ञान के बाद गुरु को गुरुदक्षिणा देने के लिए मनाया जाता था। हालांकि, अब गुरुकुल परंपरा कम हो गई है। लेकिन गुरु से ज्ञान लेने की प्रथा आज भी वैसी ही है। उसी तरह आज भी जीवन में अच्छे या कठिन समय के लिए, शिष्य अपने गुरु से मार्गदर्शन लेने के लिए अपने गुरु के पास जाते हैं। वैसे तो गुरु के मौजूद रहने पर किसी भी दिन उनकी पूजा की जानी चाहिए। किंतु पूरे विश्व में आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन विधिवत गुरु की पूजा करने का विधान है। भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान माना गया है। इसलिए गुरुपूर्णिमा पर गुरुपूजन (About Guru Purnima in Hindi) भी किया जाता है। भारत में कई स्कूलों, कॉलेजों और संप्रदायों में गुरुपूर्णिमा को बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। सभी अपने गुरुजन एंव प्रियजन को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं। आज यहां हम आपको गुरु पूर्णिमा कब है (guru purnima kab ki hai), गुरु पूर्णिमा का महत्व, गुरु पूर्णिमा की कथा (Story of Guru Purnima in Hindi) और गुरु पूर्णिमा कैसे मानाएं इन सबके बारे में विस्तारपूर्वक बतायेंगे।
Table of Contents
- गुरु पूर्णिमा कब है? – Guru Purnima Kab Hai
- गुरु पूर्णिमा का महत्व – Importance of Guru Purnima in Hindi
- गुरु पूर्णिमा का इतिहास – Guru Purnima History in Hindi
- गुरु पूर्णिमा की कथा – Story of Guru Purnima in Hindi
- गुरु पूर्णिमा कैसे मानाएं – How to Celebrate Guru Purnima in Hindi
- गुरु पूर्णिमा से जुड़े सवाल-जवाब FAQs
गुरु पूर्णिमा कब है? – Guru Purnima Kab Hai
साल 2022 में गुरुपूर्णिमा (Guru Purnima 2022) 13 जुलाई को है और गुरुपूर्णिमा कई जगहों पर बड़ी श्रद्धा के साथ मनाई जाएगी। प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था के तहत शिष्य इसी दिन श्रद्घा भाव से प्रेरित होकर अपनी सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर गुरु के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते थे। इसी दिन चारों वेदों के व्याख्याता वेद व्यास जी की प्रमुख रूप से पूजा की जाती है।
भारत में प्राचीन काल से गुरु-शिष्य परंपरा रही है। पुराणों में कृष्ण-अर्जुन, अर्जुन-द्रोणाचार्य, एकलव्य-द्रोणाचार्य, चाणक्य-चंद्रगुप्त जैसे अनेक उदाहरण मिलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अर्जुन कृष्ण के इतने बड़े भक्त थे कि उनके शरीर के बाल भी कृष्ण के नाम का जाप करते सुने जा सकते थे। कृष्ण के मार्गदर्शन में अर्जुन के मार्गदर्शन के कारण पांडवों ने महाभारत जीता। रामकृष्ण परमहंस – स्वामी विवेकानंद, रामदास स्वामी – शिवाजी महाराज जैसे उदाहरण भी गुरु-शिष्य के लिए प्रसिद्ध हैं।
गुरु पूर्णिमा का महत्व – Importance of Guru Purnima in Hindi
गुरुपूर्णिमा भारत में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। गुरुपूर्णिमा आषाढ़ मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। ये तो आप जान ही गयें। अब गुरु पूर्णिमा का महत्व (Importance of Guru Purnima in Hindi) क्या है, इसपर प्रकाश डालते हैं। किसी के जीवन में हमेशा एक गुरु होता है। हर किसी के जीवन में पहली शिक्षक ‘माँ’ होती है। क्योंकि हमें जो पहला साथी मिलता है वो है मां। माँ हमें चलना, बात करना और जीना सिखाती है। दुनिया का बुनियादी ज्ञान हमें अपने पहले गुरु, मां से मिलता है। इतना ही नहीं जीवन के हर पड़ाव पर मां हमारी मार्गदर्शक होती है। जैसे माता, पिता और अनेक शिक्षक, मित्र, अच्छी पुस्तकें आपके गुरु हो सकते हैं। गुरु का महत्व महान है, इसलिए हमें बचपन से ही ‘आचार्य देवो भवः’ की शिक्षा दी जाती है। गुरुपूर्णिमा अभी भी भारत में ईमानदारी और भक्ति के साथ मनाई जाती है क्योंकि यह शिक्षा दी जाती है कि एक गुरु या शिक्षक भगवान के समान होता है।
गुरु पूर्णिमा का इतिहास – Guru Purnima History in Hindi
गुरु पूर्णिमा हिंदुओं, जैनियों और बौद्धों के लिए एक प्रमुख त्योहार है, जहां प्रत्येक धर्म का अपना समृद्ध गुरु पूर्णिमा इतिहास (Guru Purnima History in Hindi) है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था। अत: यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। यह भी माना जाता है कि उन्होंने उसी दिन अपनी प्रसिद्ध कृति, ब्रह्म सूत्र का लेखन समाप्त किया था। बौद्ध धर्म के अनुसार, गुरु पूर्णिमा को भगवान बुद्ध को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने इस धर्म की नींव रखी थी। बौद्धों द्वारा यह भी माना जाता है कि इस पूर्णिमा के दिन, बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त करने के बाद, भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ, उत्तर प्रदेश में दिया था। उसी दिन और समय से यह पर्व उन्हीं की उपासना को समर्पित रहा। वहीं जैन धर्म के अनुसार, जैन धर्म में प्रसिद्ध 24 वें तीर्थंकर गुरु महावीर को सम्मानित करने के लिए त्योहार को त्रेणोक गुहा पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस धर्म के अनुयायियों का मानना है कि इसी दिन महावीर को उनके पहले अनुयायी गौतम स्वामी मिले थे, जिसके बाद वे सफलतापूर्वक त्रेणोक गुहा बन गए थे।
गुरु पूर्णिमा की कथा – Story of Guru Purnima in Hindi
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अवतार हैं, महर्षि वेदव्यास के पिता का नाम ऋषि पराशर था और माता का नाम सत्यवती था। वेद ऋषि को बाल्यकाल से ही अध्यात्म में रुचि थी। इसके फलस्वरूप इन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की और वन में जाकर तपस्या करने की अनुमति मांगी, लेकिन उनकी माता ने वेद ऋषि की इच्छा को ठुकरा दिया। तब इन्होंने हठ कर लिया, जिसके बाद माता ने वन जाने की आज्ञा दे दी। उस समय वेद व्यास के माता ने उनसे कहा कि जब गृह का स्मरण आए तो लौट आना। इसके बाद वेदव्यास तपस्या हेतु वन चले गए और वन में जाकर कठिन तपस्या की। इसके पुण्य प्रताप से वेदव्यास को संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई। इसके बाद इन्होंने वेदों का विस्तार किया और महाभारत, अठारह महापुराणों सहित ब्रह्मसूत्र की भी रचना की। इन्हें बादरायण भी कहा जाता है। वेदव्यास को अमरता का वरदान प्राप्त है। अतः आज भी वेदव्यास किसी न किसी रूप में हमारे बीच उपस्थित हैं।
गुरु पूर्णिमा कैसे मानाएं – How to Celebrate Guru Purnima in Hindi
माता, पिता और शिक्षकों की तरह, मनुष्य को भी जीवन में आध्यात्मिक प्रगति करने के लिए आध्यात्मिक गुरुओं की आवश्यकता होती है। सच्चा गुरु वही होता है जो अपने जीवन और दुनिया को सुखी बनाने के लिए शिष्य का सही और सटीक मार्गदर्शन करता है। गुरु पूर्णिमा पर ‘गुरुपूजन’ करने की एक विधि है। गुरुपूजन का अर्थ है गुरु की पूजा करना। लेकिन गुरुपूजन केवल गुरु की पूजा करने या गुरु को नमन करने के बारे में नहीं है। जबकि गुरु को प्रणाम करना या गुरु का सम्मान करना महत्वपूर्ण है, यह निश्चित रूप से सच्चा गुरु पूजन नहीं है। क्योंकि एक सच्चे गुरु को ऐसे दिखावे की बिल्कुल भी जरूरत नहीं होती है।
गुरु पूजा का सही अर्थ अपने गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान को आत्मसात करना है। गुरु से प्राप्त ज्ञान को व्यवहार में लाने का प्रयास करना। गुरु पूर्णिमा (How to Celebrate Guru Purnima in Hindi) को गुरु का ध्यान करते हुए गुरु की पूजा, अर्चना व अभ्यर्थना करनी चाहिए। भक्ति और निष्ठा के साथ उनके रचे ग्रंथों का पाठ करते हुए उनकी पावन वाणी का रसास्वादन करना चाहिए। उनके उपदेशों पर आचरण करने की निष्ठा का वर मांगना चाहिए। इस प्रकार के गुरु पूजन से गुरु को वास्तविक गुरुदक्षिणा मिलती है। क्योंकि जब शिष्य आगे बढ़ता है, तो गुरु वास्तव में उसे देखकर प्रसन्न होता है। यह एक सच्चे गुरु के लिए एक तरह का सम्मान है।
गुरु पूर्णिमा से जुड़े सवाल-जवाब FAQs
वैसे तो गुरु के मौजूद रहने पर किसी भी दिन उनकी पूजा की जानी चाहिए। किंतु पूरे विश्व में आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन विधिवत गुरु की पूजा करने का विधान है। वर्ष की अन्य सभी पूर्णिमाओं में इस पूर्णिमा का महत्व सबसे ज्यादा है। इस पूर्णिमा को इतनी श्रेष्ठता प्राप्त है कि इस एकमात्र पूर्णिमा का पालन करने से ही वर्ष भर की पूर्णिमाओं का फल प्राप्त होता है।
”गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।” अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ।
गुरु पूर्णिमा को गुरु का ध्यान करते हुए गुरु की पूजा, अर्चना व अभ्यर्थना करनी चाहिए। भक्ति और निष्ठा के साथ उनके रचे ग्रंथों का पाठ करते हुए उनकी पावन वाणी का रसास्वादन करना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है, जिसमें हम अपने गुरुजनों, महापुरुषों, माता-पिता एवं श्रेष्ठजनों के लिए कृतज्ञता और आभार व्यक्त करते हैं। हर साल इस दिन लोग व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। कई मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधि की पूजा करते हैं।
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