सोमनाथ का मंदिर एक प्राचीन शिव मंदिर है जिसका भारत की ऐतिहासिक किताबों में भी उल्लेख है। इसे पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। जानकारों का मानना है कि सोमनाथ के मंदिर में शिवलिंग (somnath shivling) हवा में स्थित था। यह वास्तुकला का एक नायाब नमूना था। इन्हीं कारणों से प्रभावित होकर महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर आक्रमण किया था। सोमनाथ का मंदिर उत्थान और पतन का प्रतीक है क्योंकि मुगल शासकों द्वारा 17 बार नष्ट किये जा चुके इस मंदिर का हर बार पुनर्निर्माण किया गया है। इस सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कंद पुराणादि में विस्तार से बताई गई है। इस वजह से सोमनाथ मंदिर की मान्यता और भी ज्यादा है। सावन के महीने और महाशिवरात्रि (Mahashivratri ki Hardik Shubhkamnaye) में सोमनाथ का मंदिर सुबह 4 बजे खुल जाता है और रात को 10 बजे तक खुला रहता है। इस दौरान यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं। आज यहां हम सोमनाथ मंदिर के बारे में विस्तारपूर्वक हर वो बात जानेंगे जो आपको जाननी चाहिए।
सोमनाथ मंदिर भारत के पश्चिम क्षेत्र गुजरात राज्य के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित है। यह तीर्थस्थान (somnath temple gujarat) देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है। समुंद्र के किनारे स्थित होने की वजह से यह जगह बेहद खूबसूरत है। सोमनाथ मंदिर (somnath ka mandir) की ऊंचाई लगभग 155 फीट है। मंदिर के चारों ओर विशाल आंगन है। मंदिर का प्रवेश द्वार कलात्मक है। मंदिर तीन भागों में विभाजित है - नाट्यमंडप, जगमोहन और गर्भगृह। मंदिर के बाहर वल्लभभाई पटेल, रानी अहिल्याबाई आदि की मूर्तियां भी लगी हैं। समुद्र किनारे स्थित ये मंदिर बहुत ही सुंदर दिखाई देता है।
प्राचीन समय में दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रदेव के साथ किया था। दक्ष की सभी कन्याओं में से रोहिणी सबसे सुदर थी। चंद्र को सभी पत्नियों में से सबसे अधिक प्रेम रोहिणी से ही था। इस बात से दक्ष की शेष 26 पुत्रियों को रोहिणी से जलन होने लगी। जब ये बात प्रजापति दक्ष को पता चली तो उसने क्रोधित होकर चंद्रमा को धीरे-धीरे खत्म होने का शाप दे दिया। दक्ष के शाप से चंद्रदेव धीरे-धीरे खत्म होने लगे।
इस शाप से मुक्ति के लिए ब्रह्माजी ने चंद्र को प्रभास क्षेत्र यानी सोमनाथ में शिवजी की प्रसन्नता के लिए तपस्या करने को कहा। चंद्र ने सोमनाथ में शिवलिंग की स्थापना करके उनकी तपस्या शुरू कर दी। चंद्रमा के कठोर तप से प्रसन्न होकर शिवजी वहां प्रकट हुए और चंद्र को शाप से मुक्त करके अमरत्व प्रदान किया। इस वजह से चंद्रमा की कृष्ण पक्ष में एक-एक कला क्षीण (खत्म) होती है, लेकिन शुक्ल पक्ष को एक-एक कला बढ़ती है और पूर्णिमा को पूर्ण रूप प्राप्त होता है। शाप से मुक्ति मिलने के बाद चंद्रदेव ने भगवान शिव को माता पार्वती के साथ यहीं रहने की प्रार्थना की। तब से भगवान शिव प्रभास क्षेत्र यानी सोमनाथ में ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करते हैं।
सोमनाथ मंदिर (somnath ka mandir) के बार में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव सोमराज ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। ये मंदिर जब अस्तित्व में आया उसके बाद से इसकी कीर्ति और महिमा के बखान दूर-दूर तक फैल गये। कई मुस्लिम शासकों ने इसे धवस्त करने की भी कोशिश की। लेकिन समय-समय पर इसका पुनर्निर्णाण होता रहा।
सोमनाथ मंदिर वैसे कई रहस्यों को अपने में समेटे हुए है। लेकिन सबसे दिलचस्प है सोमनाथ मंदिर के प्रांगण में स्थित 'बाणस्तंभ'। इस स्तंभ के बारे में कहा जाता है कि ये मंदिर से भी पुराना है। जिसका मंदिर के साथ-साथ जीर्णोद्धार किया गया है। लगभग 6ठी शताब्दी से इस स्तंभ का इतिहास में उल्लेख मिलता है। इस स्तंभ पर वैज्ञानिक भी शोध कर रहे हैं। क्योंकि सैकड़ों वर्ष पहले से विद्यमान ये दिशादर्शक स्तंभ है जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है।
इस बाणस्तंभ पर लिखा है- 'आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत, अबाधित ज्योर्तिमार्ग।' इसका मतलब है कि समुद्र के इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं है। इसका मतलब यह कि इस मार्ग में कोई भूखंड का टुकड़ा नहीं है। चौंका देने वाली बात तो ये है कि उस समय के खगोलविदों को यह जानकारी जरूर थी कि दक्षिणी ध्रुव किधर है और धरती गोल है। इतना ही नहीं, पृथ्वी का दक्षिण ध्रुव किस ओर है, इसका भी अच्छे से ज्ञान था। उस समय बिना किसी सैटेलाइट, ड्रोन और एरियल व्यू के ये पता लगाना बेहद हैरान कर देने वाला रहस्य है।
सोमनाथ मंदिर (somnath temple gujarat) विनाश और विजय का प्रतीक है। क्योंकि इस मंदिर को 17 बार नष्ट करने की कोशिश की गई। कई बार मुस्लिम शासकों ने इस मंदिर आक्रमण किया। लेकिन जितनी बार ये नष्ट हुआ उतनी बार इसका भव्य निर्माण हुआ। दरअसल, गुजरात के वेरावल बंदरगाह में स्थित सोमनाथ मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका वर्णन भी किया है। उसमें बताया है कि इस मंदिर से प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने साल 1024 में सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया था। इसके बाद साल 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर कब्जा किया तो इसे फिर गिराया गया। फिर इसका निर्माण हुआ और फिर सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया। सोमनाथ मंदिर के विनाश और पुनर्निर्माण का सिलसिला यूं ही चलता रहा। इस समय आप जो सोमनाथ मंदिर देख रहे हैं उसे भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और साल 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया।
सोमनाथ मंदिर भारत के पश्चिम क्षेत्र गुजरात राज्य के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित है। यह तीर्थस्थान (somnath temple gujarat) देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है।
सोमनाथ मंदिर की स्थापना कब हुई इस बारे में कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन इस मंदिर का पुनर्निर्माण 7 वीं सदी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं द्वारा 649 ईस्वी में करवाया गया था। इसके बाद राजा दिग्विजय सिंह, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद और जामनगर की राजमाता ने इसको पूर्ण निर्मित करवाया।
गुजरात प्रांत में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है। इसे पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग भी माना जाता है। जानकार बताते हैं कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी।
सोमनाथ मंदिर पहले के समय में प्रभासक्षेत्र या फिर प्रभासपाटण के नाम से जाना जाता था। चंद्र के द्वारा स्थापना की जाने की वजह से इस शिवलिंग का नाम सोमनाथ पड़ा है।
साल 1024 में महमूद गजनवी ने पहली बार सोमनाथ मंदिर (somnath temple) को नष्ट कर दिया था। इस हमले में गजनवी ने मंदिर की संपत्ति लूटी और मंदिर में पूजा कर रहे हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।
जानकारों के मुताबिक सोमनाथ मंदिर को 17 बार लूटा गया और उसे नष्ट करने की कोशिश की गई। लेकिन साल 1024 में महमूद गजनवी ने इस मंदिर को तहस-नहस कर दिया था।