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हमारे देश में हर पर्व को मनाने के पीछे कई तथ्य और कारण छिपे हैं। हर पर्व का अपना महत्व है और उसे मनाने के अपने तरीके भी हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक है मकर संक्रांति। एक तरह से हिंदू धर्म में उत्सवों की शुरुआत इसी पर्व के साथ होती है। साल के पहले महीने में ही यह त्योहार पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पोंगल की शुभकामनाएं
हर राज्य में इसे अपने अंदाज़ में मनाने की परंपरा है। जहां आंध्र प्रदेश में संक्रांति पर तीन दिन का उत्सव होता है, वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार में यह खिचड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसमें चावल और दाल की खिचड़ी बनाई जाती है। गुजरात और राजस्थान में यह उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। साथ ही इस दिन पतंग उत्सव भी आयोजित किया जाता है। तमिलनाडु में यह पोंगल के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में लोग इस दिन गजक और तिल के लड्डू विशेष रूप से खाते हैं। पश्चिम बंगाल में इस दिन लोग गंगा सागर में विशेष स्नान करते हैं। असम में यह भोगली बिहू के रूप में मनाई जाने वाली पूजा है तो पंजाब में एक दिन पहले लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है।
इस पर्व में न सिर्फ विशेष पूजा-अर्चना होती है, बल्कि लोग एक साथ, एक जुट होकर पकवान बनाते-खाते हैं और पतंग भी उड़ाते हैं। बिहार और झारखंड में इस दिन तिल और खिचड़ी खाने की परंपरा है तो गुजरात में इसी दिन पतंग उत्सव भी मनाया जाता है। दक्षिण भारत के कई राज्यों में लोग रंगोली बनाते हैं, कई तरह के पकवान बनाते हैं। गुड़ और तिल की मिठाइयां और गजक तो कहीं तिलकुट या फिर कहीं खिचड़ी के कई प्रकार बनाए जाते हैं। लोग इस दिन खासतौर से गंगा स्नान को महत्व देते हैं। जानिए (Makar Sankranti kyu Manate hai) मकर संक्रांति से जुड़ी हर खास जानकारी।
दरअसल, सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांति कहते हैं। संक्रांति का मतलब होता है, एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय। यही सौर मास है। वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रांतियों को महत्वपूर्ण दर्जा दिया गया है। इनमें मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति शामिल हैं। मकर संक्रांति के पावन पर्व पर गुड़ और तिल वगैरह दान करने की प्रक्रिया को बहुत शुभ माना जाता है। यह एक ऐसा दिन है, जब सूर्य दक्षिण के बजाय उत्तर को गमन करने लग जाता है। मकर संक्रांति हर वर्ष निश्चित समय पर ही इसलिए मनाई जाती है, क्योंकि 14 जनवरी को ही सूर्य उत्तरायण होकर मकर रेखा से गुजरते हैं। हालांकि कभी-कभी एक दिन पहले या बाद में भी यह दिन मनाया जाता है। स्पष्ट है कि इस पर्व का सीधा संबंध पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है। बसंत पंचमी पर कविता
मकर संक्रांति पर्व को मनाने के पीछे कई तथ्य हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन सूर्य उत्तरायण में हो जाते हैं। सूर्य के उत्तर दिशा में गमन को उत्तरायण कहा जाता है। इस दिन से ही खरमास समाप्त हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि खरमास में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं लेकिन मकर सक्रांति के साथ ही शादी, विवाह, मुंडन, जनेऊ और नामकरण जैसे शुभ कार्यों की तिथि शुरू हो जाती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि उत्तरायण में मृत्यु होने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही सब कारण है कि मकर सक्रांति को धार्मिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। लोग इस पर्व को प्रकृति से जोड़कर भी देखते हैं, जहां भगवान सूर्य देव की पूजा और आराधना की जाती है। इसे दान पूर्ण करने वाला पर्व भी माना जाता है, जिसमें गरीबों को अनाज और विशेष तौर पर तिल और गुड़ दान किए जाते हैं।
मकर संक्रांति को लेकर कई तरह की कथाएं भी प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान भास्कर (सूर्य) अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं, क्योंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी माने जाते हैं इसलिए भी इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। एक और कथा यह भी है कि भगवान आशुतोष (शिव जी) ने इसी दिन विष्णु भगवान को आत्मज्ञान दिया था। अगर महाभारत के संदर्भ में देखें तो यहीं वह दिन था, जब भीष्म पितामह ने अपने देह त्यागने का निर्णय लिया था। वहीं दूसरी कथाओं के अनुसार गंगाजी भगीरथ के पीछे चल कर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जा मिली थीं।
मकर संक्रांति के दिन जहां पूजा अर्चना को महत्व दिया जाता है, वहीं इसका सेलिब्रेशन भी जम कर होता है। यह आपसी मेलजोल बढ़ाने वाला पर्व भी है। लोग इस पर्व के दिन सुबह ही स्नान करके, एक-दूसरे को मकर संक्रांति की शुभकामनाएं देते हैं और फिर एक दूसरे के साथ मिल कर पतंग भी उड़ाते हैं। एक दूसरे के साथ तिल, गुड़ और बादाम से बने पकवान बांटते हैं, दान-पुण्य करते हैं, गरीबों को खाना खिलाते हैं। फिर सब मिल कर पतंग उड़ाते हैं। पतंग उड़ाने को लेकर किसी भी तरह का कोई धार्मिक कारण नहीं है। महाराष्ट्र में और गुजरात में लोग विशेष तौर पर खूब पतंग उड़ाते हैं। इसके अलावा सभी गंगा नदी और अपने घर से नजदीक वाली नदियों पर स्नान करने भी जाते हैं। फिर शाम को घरों में खिचड़ी बनती है, जिसका पूरे परिवार के साथ लुत्फ उठाया जाता है।
बिहार और उत्तर प्रदेश में घर पर ही तिल, लावा और चूड़ा के गुड़ वाले लड्डू बनाए जाते हैं। इस दौरान पड़ोसियों और करीबियों में लड्डू बांटे भी जाते हैं। महाराष्ट्र में चिक्की फेमस है। दक्षिण भारत में इस दिन हर महिलाएं अपने घर के सामने रंगोली सजाती हैं। स्नान करने के बाद दान-पुण्य करती हैं और फिर खिचड़ी का भोग लगाती हैं। वहां गरीबों में कंबल भी बांटे जाते हैं। इतना ही नहीं कई लोग इस दौरान प्रयागराज के संगम डूबकी लगाने भी पहुंचते हैं, क्योंकि मान्यता है कि इससे काफी सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
यूं तो लोग इस दिन व्रत नहीं करते लेकिन कई लोग इस दिन व्रत करने को बहुत महत्व भी देते हैं। इस दिन तिल को पानी में मिला कर, स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान, किसी तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करना काफी फायदेमंद होता है। इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही मकर संक्रांति में अपने पितरों का ध्यान कर उन्हें तपर्ण भी जरूर दिया जाता है। घर के सदस्य पूजा कर, हल्दी, नमक, चावल, तिल, गुड़, आलू और बाकी अनाज का सीधा निकाल कर गरीबों में उसे दान करती है। इस दिन तेल के स्नान का भी विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन शुद्ध घी और कंबल दान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य की पूजा विशेष रूप से सफ़ेद और लाल रंग के फूलों से की जाती है। साथ ही सूर्य को अर्घ्य भी दिया जाता है। इस दिन सुबह उठकर तिल के उबटन से स्नान करने की भी परंपरा है। वहीं सुहागन महिलाएं आपस में एक दूसरे के साथ सुहाग के सामान का आदान -प्रदान भी करती हैं।
मकर संक्रांति में सबसे अधिक महत्व तिल और गुड़ का माना जाता है। यहीं वजह है कि अधिकतर राज्यों में तिल और गुड़ के पकवान बनते हैं। खासतौर से तिलकुट जो कि बिहार के गया इलाके में बहुत लोकप्रिय है, वह विशेष रूप से तैयार किया जाता है। उसके बाद तिल की चिक्की बनती है। काले और सफेद तिल की सबसे ज्यादा चिक्की बनती है। लावा, चूड़ा, मुढ़ी और बाजरा के भी गुड़ मिला कर लड्डू बनाए जाते हैं। बिहार में इस दिन सुबह दही, चूड़ा और गुड़ खाने की परंपरा है। फिर रात को दाल और चावल की खिचड़ी पकती है। इस पर्व के दौरान तिल और गुड़ खाने का वैज्ञानिक तथ्य यह है कि गुड़ की तासीर गर्म होती है। ऐसे में तिल और गुड़ से बने डिश सर्दी के मौसम में हमारे शरीर को आवश्यक गर्मी पहुंचाते हैं। महाराष्ट्र में इस दौरान पूरन पोली भी बनती है, जो की गुड़ और घी से बनाई जाती है। फिर मूंगफली में गुड़ मिलाकर चिक्की बनती है। गजक भी लोग खूब पसंद से खाते हैं।
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1. तिल हम हैं, गुड़ आप, मिठाई हम हैं और मिठास आप, साल के पहले त्यौहार से हो रही शुरुआत, आपको हमारी तरफ से ढेर सारी मुराद। मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
2. मीठी बोली, मीठी जुबान, मकर संक्रांति पर यही है पैगाम, मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
3. कहीं जगह-जगह, पतंग है उड़ना, कहीं गुड़, कहीं तिल के लड्डू, मिल कर खाना, मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
4. हो आपके जीवन में खुशिहाली, कभी भी न रहे कोई दुख देने वाली पहेली, सदा खुश रहें आप और आपकी फैमिली, मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
5. गुड़ और तिल का है ये मौसम, पतंग उड़ाने का है यह मौसम, शांति और समृद्धि का है मौसम, मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकानाएं।
6. पूर्णिमा की चांद, रंगों की डोली, चांद से चांदनी, खुशियों से भरी हो आपकी झोली, मुबारक हो आपको रंग बिरंगी, पतंगों वाली मकर संक्रांति।
7. मीठे गुड़ में मिल गए तिल, उड़ी पतंग और खिल गए दिल, हर पल सुख और हर दिन शांति, आप सबके लिए लेकर आए मकर संक्रांति।
8. गुड़ में जैसे मीठापन, सभी उड़ाएंगे पतंग, और भर लें आकाश में अपने रंग। मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
9. सभी लोगों को मिले सन्मति, आज है मकर संक्रांति, मित्रों उठ गया है दिनकर, चलो उड़ाए पतंग मिलकर।
10. हमें आशा है कि इस मकर संक्रांति पर आपके जीवन के सभी दुःख जल कर राख हो जाएं, और आपके जीवन में खुशियां और प्यार भर जाए। हैप्पी मकर संक्रांति।
11 Jan 2022
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