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आओ,  कुछ नया और सार्थक प्रयास करें इस बार की होली पर !!

आओ, कुछ नया और सार्थक प्रयास करें इस बार की होली पर !!

होली वसंत ऋतु का पर्याय है, हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हिंदू पंचांग के अनुसार ही फाल्गुन मास की पूर्णिमा आई, बुराई पर अच्छाई की विजय, भक्त प्रह्लाद और होलिका दहन, हिंदू नव वर्ष का शुभारम्भ और ऋतुचक्र प्रवर्तन। लीजिए होली फिर आ गई साथ लिए रंग अबीर गुलाल हर्ष उल्लास और फाग धमार जैसे अनेक लोकगीतों पर ढोलक और मंजीरे की थाप, गुझिया , भांग, ठंडाई और मस्ती !

ब्रज की बरसाने की कान्हा संग राधिकाव गोपियां हों या फिर अवध में रघुवीर रामचंद्र, होली का वर्णन हमारे पुराण भी गाते हैं और कालिदास की रतनावली में भी मिलता है। फिर आज के युग में तो लगभग हर दूसरी फ़िल्म में होली का एक गीत तो अवश्य ही देखने को मिल जाता है! होली खेलत नंदलाल से ले कर डू मी अ फ़ेवर, लेट्स प्ले होली… तक का साहित्यिक विघटन चारित्रिक भी हो चला है धीरे धीरे।

आज जब पर्यावरण व प्रदूषण एक दूसरे के पर्याय हो चले हैं तो प्रायः ही होली के संदर्भ में यही सुन ने में आता है कि कैसे सीसा मिले रंग अधिक हानिकारक हो चले हैं, कैसे गुझिया मावा मिलावटी मिल रहे हैं और कैसे पानी की जगह जगह क़िल्लत भीगने का सारा मज़ा ही चौपट किए दे रही है। कैसा आश्चर्य कि हम उन ऋषियों के वंशज हैं जिन्होंने प्रकृति की पूजा की, जहां आयुर्वेद और योग का जन्म हुआ और आज उसी पुण्यधरा पर होली के समूचे स्वरूप ने ही रंग बदल लिया है। कभी चन्दन और टेसु के फूलों से खेली जाने वाली होली आज कीचड़ और गोबर या ग्रीस पेंट से खेली जाने लगी है।

जिस महान संस्कृति में कभी होरी और फाग गाया जाता था वहां आज हर स्कूल कॉलेज के बाहर सीटी बजाते, लड़कियों से अभद्र व्यवहार करते युवा और मनचलों को पकड़ने के लिए पुलिस तैनात दिखती है! मुंह को मीठा करने को बाज़ार से आयी मिठाई भी मिलावटी है और ठंडाई भी – सत्य कड़वा तो यही है! कैसे कहें कि होली अपने साथ ख़ुशियां ले कर आती है, टेलीविज़न के सीरियल हों तो उनकी बात अलग है, वहां की होली के सेट की भव्यता कॉरपोरेट ऑफ़िस से स्पॉन्सर्ड होती हैं क्योंकि हर एपिसोड पर लाखों ख़र्च किए जाते हैं! ताकि करोड़ों कमाए जा सकें!

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ख़ैर , ऐसे में  जनसाधारण क्या करे कि अपने समाज में घर घर की होली शुभ हो ? सौहार्द्र हो, मंगल कामनाएं दिल से हों? तो क्या आज अभी निश्चय किया जाए कि इस वर्ष की होली बेहतर होगी, ऐसा कुछ नया सार्थक प्रयास किया जाए? तो आइए इस होली करें परिवर्तन और रासायनिक रंगों की बजाय खेलें होली ऑर्गैनिक ढंग से और वो भी अपने घरों में रसोई के साधारण से डिब्बों में छुपे ख़ज़ाने से! तरीक़ा बहुत ही सरल है, पीला रंग प्रतीक है सूर्य के तेज़ का, बृहस्पति का, तो अपनी किचन में ही उपलब्ध हल्दी & बेसन को मिलाने से बहुत ही ख़ूबसूरत पीला रंग बनता है। चाहें तो मुल्तानी मिट्टी भी मिलाएं और ख़ुशबू के लिए टैल्कम पाउडर भी मिला सकते हैं। बसंत का मौसम है और हर ओर रंग बिरंगे फूलों की छटा छाई है तो आप भी इस पीले रंग में सूखे गेंदे के फूल बारीक पीस कर मिला सकते है! लाल रंग सबको ही बहुत भाता है और सिंदूर, लाल चन्दन, सूखे हिबिस्कस यानि गुड़हल के फूल मिलाकर बेहतरीन लाल रंग बन सकता है!

टेसू के फूलों से भगवान श्री कृष्ण होली खेला करते थे, आप भी इन फूलों से बढ़िया नारंगी रंग बना सकते हैं! लाल  रंग सबको ही बहुत भाता है और सिंदूर लाल चन्दन सूखे हिबिस्कस के फूल मिला कर बेहतरीन लाल रंग बन सकता है। इसी तरह केसर ,मेहंदी, चुकंदर , आँवला भी बेहतर विकल्प है रंग घर पर बनाने के। गुलमोहर, हिबिस्कस, गुलाब को बारीक पीस कर इस्तेमाल करें, गालों पर खिलेंगे तो लगवाने वाली भी आपको दुआएं देंगीं और मेहंदी व आँवला का पानी जिसके भी सिर पर आप डालेंगे और जब ये पानी उनके बालों पर गिरेगा तो वो कंडीशनर का एहसास कर आपको धन्यवाद कहेंगे।

बेहतर तो यही होगा कि ख़ूब रंगों की फूलों की वर्षा करें, नाचें गायें लेकिन पर्यावरण को दूषित ना करें, ना ही मन को प्रदूषित होने दें। जहां तक हो सके मिठाई घर में ही बनाएं, खिलायें। गाजर का, सूजी का हलवा, शक्करपारे, नमकपारे, मठरी, पकोड़़े, गुझिया आसानी से घर पर बनाई जा सकती हैं। मिनटों में बन जाने वाली ऐसी ही एक रेसिपी है कलाकंद की – बस पनीर को क्रश करें, मिल्कमेड मिलाएं, 3- 4 मिनट कढ़ाई में चलाएं और प्लेट में फैला लें, फिर ऊपर से केसर सज़ा दें और मनचाहे टुकड़े काट लें! खाएं खिलाएं और केसर के क्या कहने! रंग की तरह लगाएं और मिठाई पर लगा कर खाएं!

और इस होली करें प्रण कि समाज से वैर वैमनस्य व जातिभेद की होलिका जलाएंगे। सब की होली शुभ हो घर घर में और हमारी आगे आने वाली पीढ़ियां भी सिर उठा गर्व से कह सकें कि यहां बरसाने की होली में आज भी कृष्ण नाचते हैं और आज भी होली खेलें रघुबीरा अवध में!

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23 Feb 2018

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